क्या सम्बन्ध हें दहेज़ और मंगलदोष का —-
दहेज़ का साधारण अर्थ है जो दिल को दहला दे वही दहेज़ है । दहेज़ के प्रतिबन्ध के विषय में हम चाहे जितना भी कह ले या क़ानून बना ले लेकिन यथार्त जीवन में इसका नितांत अभाव ही दीखता है । जब तक पूर्णरुपेंन सामाजिक जागृति नहीं आती,दहेज़ का बहिस्कार असंभव ही रहेगा। क्या दहेज़ के कारण होने वाले हर गुनाह को क़ानून के समक्ष लाया जा सका है ? क्या दहेज़ के हर गुनाहागार को उचित दंड दिया जा सका है ? निर्मम हत्या, शारीरिक एवं मानसिक उत्पीडन करना दहेज़ लोभीयो के लिए मात्र एक खेलवाड़ है । हमारे पूर्वजो ने जिस सदउद्देश्य को लेकर कन्यादान के साथ यथाशक्ति विदाई देना शुरू किया आज उसी का विकृत रूप दहेज़ है ।आज पारिवारिक सम्पन्नता के आधार पर वर-वधु का मूल्यांकन किया जा रहा है। सरकारी नौकरी का महत्व दहेज़ के साथ जडित होता जा रहा है। यही कारण है कि व्यवसाय पर नौकरी हावी होता जा रहा है।
पुरुष वर्ग कन्या धन से इतना दु:खी नहीं होता जितना कि बिजली महिलाओं पर गिरती है। उनका वश चले तो जच्चा और बच्ची दोनों को ही कच्चा चवा जाये। जबकि सच तो यह है कि सनातन धर्मी नौदेवियां मुस्लिम समाज दस बीबियों को महान मानता है। दूर क्यों जाओ मां बहिन बेटी और पत्नी को घर परिवार से एक दिन के लिये अलग कर दो एक दिन काटना मुश्किल हो जायेगा पर कौन समझाये।
अनादि काल से स्त्री पुरुष दोनों मिलकर ईश्वर की इस सृष्टि के सृजनहार रहे हैं पर प्रारम्भ से लेकर आज तक इन दोनों के मिलन के अनेकों अनेक उपक्रम चलते रहे और अन्त में ”विवाह संस्कार” को सारे समाज ने एकमत होकर स्वीकार किया जिससे समाज में शान्ति पूर्वक ढंग से सृष्टि की प्रक्रिया अनवरत रूप से चलती रहे।
हम सामाजिक प्राणी इस चाल से चलना चाहते हैं, कि जीवन की गाड़ी बिना किसी व्यवधान के चलती रहे। कभी हमारा समाज मातृ प्रधान समाज था जिसमें बच्चे, मॉ के पल्ले बंध जाते थे अशक्त मां उन्हें जन्म देती पालती और पुरुष पर उसकी कोई जिम्मेदारी न होती – परिस्थितियों ने करवट बदली माताऐं जागृत हुई और इन्होंने समाज को स्वीकृति से एक – पुरुष और एक स्त्री को जोड़कर विवाह सम्पन्न करवाये और गृहस्थी की डोर पति-पत्नी के हाथों में सौंप दी जिसमें कि जन्म लेने वाले बच्चें अपने को सुरक्षित समझें और बुढ़ापा बेसहारा न हो।
यदि विवाह संस्कार जब एक गांव से दूसरे गांव और एक शहर से दूसरे शहर या एक राज्य से दूसरे राज्य में किये जाने लगे तो लड़की के माता-पिता रास्ते में कोई असुविधा वर वधू या बारातियों को न हो तो उपहार स्वरूप कुछ खाद्य सामग्री-बर्तन-बिस्तर चारपाई आदि अपनी सामर्थ्य के अनुसार वर पक्ष को कन्यादान के साथ जो बन पड़ता दान देते कि उनके कलेजे के टुकड़े को ससुराल में भी घर (मायके) जैसा प्यार मान सम्मान मिले और बाद के घर से जैसे डोली में ससुराल आई थी वैसे ही सुसराल से श्मशान या कब्रिस्तान तक समय आने पर अर्थी में पहुचाई जाये।
इस कारण जो मेरी अंकचन बुध्दि में आया है वह यही दहेज है जो कि सारी खुशियों को निगल जाता है, विवाह की कल्पना करते ही बालिका के भविष्य की चिन्ता माता पिता को डसने लगती है, एक ही बेटी काफी है, जीवन भर चिंता में जलने के लिये और अगर पुत्र की चाह में दो चार हो गयी तब तो समझ लो दोनों का ही जीवन नारकीय बन जाता है।दहेज की सीमा का कोई ओर छोर नहीं जितना मां बाप दे दें उतना ही कम है लडके वालों के लिये संतुष्ट कर पाना कठिन ही नहीं असम्भव हैं। भले ही अपने घर में तवा सावित न हो पर कुंवर साहब के लिये मोटर से नीचे बात नहीं बनेगी।
वर्तमान मे मंगली दोष चिर परिचित शब्द है। विवाह वार्ता के समय इन दो शब्दो का मायाजाल या आंतक आपने कई बार देखा होगा । यदि कहा जाए कि 5. प्रतिशत रिश्ते इन दो दोषो के कारण अपने अंतिम चरण मे जाकर टुटते है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी ! कई बार युवती के माता -पिता अपनी लाडली के योग्य रिश्ते की चाह मे अपना सुख -चैन खो बेठते है परंतु दहेज रूपी शेषनाग उन्हे जीवन भर डसने की कोशिस करता रहता है ! दहेज ईच्छा पुरी न करने पर अपनी संतान के साथ ससुराल पक्ष का व्यवहार बिगड जाता है ! कई बार कन्या को शारीरिक यातनाएं भी दी जाती है !
मंगली दोष एवं दहेज का परस्पर घनिष्ठ संबंध है ! मंगल को ऋण का अचल संपन्ति का कारक ग्रह माना जाता है ! जब किसी युवक के जन्मांग मे मंगल धन -लाभ का कारक होकर ससुराल भाव से संबंध बनाए तो उसे ससुराल से धन की प्राप्ति हो जाती है। यहि मंगल जब कमजोर हो तो उसे ससुराल से धन कि प्राप्ति कम हो जाती है। आजकल धन कि इच्छा प्रत्येक व्यक्ति को रहती है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से धन कि प्राप्ति करना चाहता है। ज्योतिष मे इसी कारण धन भाव को मारक भाव माना गया है। जीवन साथी का धन भाव अर्थात अष्टम भाव भी मारक भाव माना गया है। मंगल एक पाप ग्रह है। इसलिए धन प्राप्ति के लिए पाप कार्य भी करवा सकता है।
जब मंगली दोष धन भाव या अष्टम भाव मे स्थिति के कारण बनता हो तो ऐसी स्थिति मे दहेज कि पूर्ति नही कर पाने के कारण उसके साथ मारपीट भी कि जाती है। इस समय अल्पायु योग वाली कन्याओ को दहेज हत्या का सामना भी करना पडता है।
अक्सर आपने समाचार पत्रो मे कई बार पढा होगा कि विवाह कि रस्म या पाणिग्रहण संस्कार के समय दहेज इच्छा पुरी नही होने के कारण बारात वापिस लौट गयी । दहेज मे मारुति न मिलने कारण बारात लौट जाना अब आम बात हो गई है। दहेज लेते समय व्यक्ति विशेष का उदाहरण देकर अपनी लालसा को सही बताने कि कोशिस करते है। दहेज के कारण कई बार युवति द्वारा पुलिस केस कर दिया जाता है। तो कई बार विवाह समारोह स्थल पर तोडफोड भी कर दी जाती है। अर्थात मंगली दोष कि ऐसी स्थिति विवाह मे कोई न कोई बाधा अवश्य उत्पन्न करती है।
विवाह के पश्चात भी इनका जीवन परेशानियो भरा रहता है। ससुराल पक्ष द्वारा ताने मारकर परेशान किया जाना एक सामान्य बात है। इलेक्ट्कि करट देना ,गर्म चिमटे द्वारा शरीर को दागना जैसी कई अमानवीय यातना दि जाती है। कई बार ऐसा भी होता है। कि रसोई घर मे खाना बनाते समय आग लगने से जलकर मृत्यु हो जाती है। इसका कारण दहेज हत्या न होने पर भी दहेज हत्या का आरोप लगा दिया जाता है। तो कई बार जानबुझकर केरोसीन डालकर हत्या कर दी जाती है। अर्थात दहेज न मिलने से ससुराल पक्ष द्वारा घृणित कार्य को अंजाम दे दिया जाता है।
——–क्या कारन हैं की व्यक्ति के जीवन में ” कोर्ट केस ” चलता है ? और उसके जीवन में पूर्णतया अंधकार आता चला जाता है ? कभी पति से कोर्ट का मामला तो कभी भाई से , यहाँ तक की पिता से भी मामला कोर्ट तक पहुंचते देखा गया है ! 
——जिस प्रकार किसी कन्या कि कुण्डली मे दहेज कि स्थिति बनती है। उस प्रकार का किसी पुरुष कि कुंडली मे होने पर कन्या पक्ष को धन देना पडता है। वर्तमान मे कई राज्यो मे स्त्री पुरुष अनुपात अर्थात लिंगानुपात समस्या बनता जा रहा है। एक हजार पुरुषो के मुकाबलो आढ सौ स्त्रिया होने क कारण दुसरे राज्यो से युवतिया खरीद कर विवाह किया जा रहा है। तो कई लोगो द्वारा युवती के पिता को धन देकर विवाह सम्बंध तय किया जाता है। 
——विवाह सम्बंध के पश्चात भी जब युवती के माता पिता को आवश्यकता पडने पर धन नही दिया जाता तो उसे घर पर बैढा दिया जाता है। उसे ससुराल नही भेजा जाता । अर्थात पुरुष कि कुंडली मे दहेज जिसे दापा भी कहते है। योग होने पर दाम्पत्य जीवन मे परेशानी होती रहती है।
——-जब किसी जन्म कुंडली मे मंगली दोष के साथ दहेज योग भी निर्मित हो रहा हो तो उसे किसी योग्य ज्योतिषि का मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करना चाहिए । विशेष रुप से लग्न, द्वितिय एंव अष्टम भाव मे मंगल स्थिति बनाकर किसी पापग्रह से सम्बंध बनाए एंव वह पाप ग्रह धनेश या लाभेश बन रहा हो तो उन्हे इस प्रकार कि पीडा सहन करनी पड सकती है।
——-अगर व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष हो तो जातक के हर काम बिगड़ने लगते है। उसे हर एक क्षेत्र में असफलताए मिलने लगती है। वह व्यक्ति समाज में उपहाश का पात्र बन जाता है। और उसका हर एक तरफ बहिष्कार होने लगता है। वह धन से भी हीन हो जाता है फलतः वह समाज में दीन-दरिद्र की श्रेणी में जीवन-यापन करने लगता है।
——–जातक अगर मंगल दोष से पीड़ित हो तो उसे मंगल दोष के निवारण का प्रयास करना चाहिए । इसके लिए उसे हर मंगल के दिन प्रातः ब्रह्मा मुहूत्र में स्नानादि के उपरांत लाल वस्त्र धारण करने चाहिए । इसके बाद उसे मंगल देव की उपासना करनी चाहिए । माथे पर लाल सिन्दूर और रोली मिला टिका लगाना चाहिए।और मंगल देव को जल चढ़ाना चाहिए जल चढाते समय निम्न मंत्र का जप करना चाहिए । 
ॐ मंगल देवाय नमो नमः।
—-मंगल दोष के निवारण हेतु बजरंग बलि की पूजा भी लाभकारी है।इस दिन जातक को सुन्दरकाण्ड का पाठ करना भी हितकारी होता है । 
———माना जाता है कि मंगलवार-शनिवार को हनुमान जी का व्रत और उनके पाठ कर गुणगान करने से विशेष लाभ मिलता है। मंगल दोष से पीड़ित जातकों को मंगलवार का व्रत करना लाभकारी होता है। किसी भी मंगलवार से इन उपायों को प्रारम्भ करने से शीघ्र ही सफलता मिलती है :

विद्या प्राप्ति के लिए——

बुद्धिहीन तनु जान के सुमिरो पवन कुमार
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार।
मुकद्दमे में विजय प्राप्ति के लिए——
पवन तनय बल पवन समाना। 
बुद्धि विवेक विग्यान निधाना।
पीड़ा निवारण के लिए
हनुमान अंगद रन गाजे हांक 
सुनत रजनीचर भाजे।
विवाह में शीघ्रता के लिए——–
मास दिवस महुं नाथु न भावा 
तो पुनि मोहि जिअत नहि पावा।
इन मंत्रों का जप मंगल या शनिवार से प्रारम्भ करें। सर्व प्रथम तेल का दीपक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके लाल आसन पर बैठ कर ‘मूंगा माला’ से यथा शक्ति जप करने चाहिएं।

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