जानिए की केसे करें बिना तोड़-फोड़ के वास्तु सुधार/वास्तु दोष निवारण..???
एक सुंदर एवं दोषमुक्त घर हर व्यक्ति की कामना होती है। किंतु वास्तु विज्ञान के पर्याप्त ज्ञान के अभाव में भवन निर्माण में कुछ अशुभ तत्वों तथा वास्तु दोषों का समावेश हो जाता है। फलतः गृहस्वामी को विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। घर के निर्माण के बाद फिर से उसे तोड़कर दोषों को दूर करना कठिन होता है। ऐसे में हमारे ऋषि-मुनियों ने बिना तोड़-फोड़ किए इन दोषों को दूर करने के कुछ उपाय बताए हैं। उन्होंने प्रकृति की अनमोल देन सूर्य की किरणों, हवा और पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति आदि के उचित उपयोग की सलाह दी है।
साधरणतः लोग बिना जाने समझे वास्तु दोष के नाम पर अनावश्यक तोड़-फोड़ कराने लगते हैं। अतः सबसे पहले यह जानना जरूरी होता है कि वास्तव में वास्तु दोष है भी अथवा नहीं। इसके लिए किसी अच्छे वास्तुविद की मदद लेनी चाहिए। और तदनुसार उपाय अथवा टोटके करना चाहिए। वास्तु का सबसे अच्छा उपाय है- वास्तु दोष से युक्त घर को तोड़-फोड़ कर वास्तु सम्मत बनाना। किंतु कई बार कुछ कारणवश घर में तोड़-फोड़ नहीं की जा सकती। इस दशा में दोष को दूर करने के लिए यंत्र, मंत्र, तंत्र और टोटकों की सहायता ली जाती है। इनकी वैज्ञानिक तार्किकता ज्ञान की इस प्राचीन विरासत को महिमा मंडित कर पुनः प्रतिष्ठित करते हुए जन मानस का कल्याण करती है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार घर गृहणी का होता है न कि पुरुष का। जो उर्जा और शक्ति का धोतक है। जिस तरह हर देव जैसे-लक्ष्मीनारायण, गौरीषंकर, सीताराम, राधेश्याम आदि के साथ शक्ति का नाम पहले जुड़ता है, ठीक उसी प्रकार घर की उर्जा में संतुलन स्थापित करने के लिए गृह का प्रथम हक घर की गृहणी का होता है। अतः घर की व्यवस्था में वास्तु सम्मत बातों का विषेश घ्यान रखना परम आवश्यक हो जाता है। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए मेने इस लेख (पंडित दयानन्द शास्त्री,..–.) में प्रयास किया है कि कुछ सामान्य टोटकों एवं उपायों को मैं आप को दे सकूं।जिसके लिए आप दर दर भटकते फिरते हैं, उसे सरल व आसान भाषा में प्रस्तुत किया है।
वास्तुदोष दूर करने पर निश्चित जीवन सुखद एवं सरल होता है। यह सब जानते हुए भी वास्तुदोष के कारण लम्बे समय से परेशान लोग केवल सिर्फ यह चाहते है कि, उनके घर के वास्तुदोष दूर करने के लिए ऐसे उपाए बताया जाए जिसमें, किसी भी प्रकार की तोड़-फोड़ न करनी पड़े।घर में वास्तुदोष होने पर उसका अशुभ प्रभाव वहां रहने वाले सभी सदस्यों पर पड़ता है। घरों में कई ऐसे दोष होते है जो घर में बड़ी विपदा ले आते है, अनहोनी तक करा देते है..
वास्तु शास्त्र व्यक्ति की प्रगति और समृद्धि का विज्ञान है। यह अनुकूल है तो जीवन में सब शुभ-शुभ वरना तरह-तरह की परेशानियां पैदा होती रहती हैं। इसका समय रहते इलाज भी हो जाना चाहिए वरना बढ़ते घाव की तरह उपेक्षा करने पर यह भी नासूर बन जाता है।भवन के आकार , उसकी भौगोलिक तथा देशिक स्थिति, उसका उपयोग करने वालों के कारण उर्जा विशेष प्रकार का रूप तथा गुण धारण कर लेती है। यह भवन का उपयोग करने वालों के अनुकूल या प्रतिकूल हो सकती है। अनुकूलता तो सुखद होती है, लेकिन प्रतिकूलता जीवन के समस्त कारोबार को प्रभावित करती है।
गहन जानकारी के बिना तोडफ़ोड़ करके वास्तु सुधार ठीक वैसे ही है जैसे किसी सामान्य आदमी से कोई जटिल ऑपरेशन कराना। वास्तु में उर्जा की शुद्धि अथवा सकारात्मक उर्जा की आपूर्ति के लिए किसी तरह के तोडफ़ोड़ की जरूरत नहीं पड़ती। सच तो यह है कि मकान में तोडफ़ोड़ करने से लाभ की जगह अधिकांश मामलों में हानि होती है। सामान्यतया कास्मिक, ग्लोबल तथा टेल्युरिक उर्जाओं का संतुलन गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक है। इसके लिए किसी प्रकार की तोडफ़ोड़ की जरूरत नहीं होती।
वास्तु दोषों के निराकरण हेतु तोड़-फोड़ से भवन के स्वामी को आर्थिक हानि तो होती ही है, साथ ही कीमती समय भी खर्च होता है। इस तरह का निराकरण गृह स्वामी को कष्ट देने वाला होता है तथा व्यक्ति मानसिक रूप से टूट जाता है। मेने इस लेख (पंडित दयानन्द शास्त्री,Mob.–.90.4.90067) में भवन को नुकसान पहुंचाए बिना वास्तु दोषों का निवारण करने के सरल उपायों बताने का एक प्रयास किया गया है——
पूर्व दिशा में बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोषों का निवारण-
दोष : भवन की पूर्व दिशा का भाग अन्य दिशाओं की अपेक्षा ऊंचा होना। उपाय : उपरोक्त दोष निवारण के लिए भवन में टी.वी. का ऐन्टीना नैत्य कोण में लगा लें, जिसकी ऊंचाई भवन के पूर्वी एवं उत्तरी भाग की दीवारों से अधिक हो, ऐन्टीना के स्थान पर लोहे का एक पाइप या झंडा भी लगाया जा सकता है। भवन के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में ठोस वस्तुएं एवं उत्तरी-पूर्वी भाग में पोली वस्तुएं रख देनी चाहिए।
दोष : भवन में यदि पूर्वी-उत्तरी भाग में बिना कोई रिक्त स्थान छोड़े घर का निर्माण हो गया है तो- उपाय : दूसरी मंजिल का निर्माण कराते समय उत्तरी एवं पूर्वी भाग को खाली छोड़ दें और जब तक निर्माण कार्य नहीं होता, तब तक के लिए पूर्वी एवं उत्तरी भाग का हिस्सा बिना सामान के खाली छोड़ दें।
दोष : मुखय द्वार यदि आग्नेय में हो तो- उपाय : मुखय दरबाजे पर गहरे लाल रंग का पेन्ट करने तथा दरबाजे पर लाल रंग के पर्दे लगाने से इस दोष का निवारण हो जाता है। दरवाजे पर बाहर की ओर सूर्य का चित्र लगा दें। पूर्व आग्नेय कोण में स्थित दरवाजे को बंद रखें।
ईशान कोण में मुखय वास्तु दोष एवं बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोषों के निवारण के उपाय :
दोष : र्इ्रशानोन्मुख भूखंड की उत्तरी दिशा में ऊंची इमारत या भवन हो तो- उपाय : उपरोक्त वास्तु दोष को दूर करने के लिए उत्तर-दिशा वाली ऊंची इमारत और भवन के बीच एक मार्ग बना देना चाहिए अर्थात् मार्ग के लिए खाली जगह छोड़ दें। इससे ऊंची इमारत के कारण जो वेध उत्पन्न हो रहा है, उसके एवं भूखंड के बीच मार्ग बन जाने से वास्तु दोष या वेध दोष का निवारण स्वतः ही हो जाएगा।
दोष : ईशानोन्मुख भूखंड पर पूर्व व उत्तर दिशा की चार दीवारी से सटाकर एवं पश्चिम व दक्षिण दीवार से हटकर भवन होने से- उपाय : इस स्थिति में पूर्व या उत्तर दिशा के लिए निर्माण का कम से कम प्रयोग करें और इस भाग को हमेशा साफ एवं शुद्ध रखें। इसके साथ ही भूखंड के नैत्य कोण में अनुपयोगी एवं भारी वस्तुओं का ढेर बनाकर रखें।
दोष : ईशान कोण में कूड़ा-कचरा आदि का ढेर हो तो- उपाय : इसका सबसे सरल उपाय है कि ईशान कोण पर लगे ढेर को साफ करवाकर उस स्थान को स्वच्छ एवं पवित्र रखें।
दोष : ईशान कोण में रसोई घर होना- उपाय : इस स्थिति में रसोई घर के अंदर गैस चूल्हे को आग्नेय कोण में रख दें और रसोई के ईशान कोण में जल भरकर रखें।
दोष : ईशान कोण में शौचालय हो तो- उपाय : इस स्थिति में शौचालय का प्रयोग बंद कर दें अथवा शौचालय की बाहरी दीवार पर एक बड़ा आदमकद शीशा लगा दें। शौचालय की दीवार पर शिकार करता हुआ शेर का चित्र भी लगाया जा सकता है या फिर शौचालय के बाहर ऐसे मिट्टी के पात्र जिन पर कटावदार आलेखन आदि निर्मित हों, को रखा जा सकता है। क्योंकि ईशान कोण में शौचालय होना अत्यंत अशुभ फलदायक है।
उत्तरोन्मुखी भूखंड के वास्तु दोषों का निवारण :
दोष : इस भूखंड पर बनाए गये घर उत्तरी भाग उन्नत होना। उपाय : इस दोष के निवारण हेतु दक्षिण भाग को ऊंचा करने के लिए टी.वी. का ऐन्टीना, झंडा या लोहे का रॉड उत्तरी भाग से ऊंचा लगा दें तथा साथ ही घर में भारी सामान दक्षिण दिशा में ही रखें। छत के ऊपर रखी जाने वाली पानी की टंकी को भी दक्षिण दिशा में ही रखें।
दोष : भूखंड की पूर्व दिशा में टीले अथवा ऊंचा मकान हो तो- उपाय : उत्तर-दिशा में स्थित इन वेधों एवं भूखंड के बीच एक सार्वजनिक मार्ग बना दे।
वायव्योन्मुख भूखंड के वास्तु दोष एवं उनका निवारण-
दोष : यदि इस भूखंड पर बने घर में मुखय द्वार उत्तर दिशा में हो तथा दक्षिण और पश्चिम दिशा में दरवाजे हों तो- उपाय : इस दशा में वायव्य कोण व आग्नेय कोण में विस्तार की भूमि को अनुपयोगी छोड़ दें तथा दक्षिण दरवाजे का प्रयोग तुरंत बंद कर दें।
दोष : वायव्य दिशा में रसोई घर हो तो- उपाय : इस दशा में वायव्य कोण में स्थित रसोई के आग्नेय कोण में गैस चूल्हा रख देना चाहिए। इसके साथ ही घर में अन्नादि के डिब्बे वायव्य कोण में रख देना चाहिए।
पश्चिमोन्मुख भूखंड के वास्तु दोषों का निवारण- दोष :—-
इस भूखंड के पश्चिम दिशा के दरवाजे का मुख नैत्य कोण में होने पर-
उपाय :—– इस दरवाजे पर काले रंग का पेन्ट करवा दें तथा दरवाजे के समक्ष एक आदमकद आईना इस प्रकार लगवाएं कि प्रवेश करने वाले व्यक्ति को उसका प्रतिबिम्ब अवश्य दिखाई दे।
दोष :—– घर में प्रयोग किया गया जल अथवा वर्षा का पानी पश्चिम से बाहर निकलता हो तो-
नैत्योन्मुख भूखंड के मुखय वास्तु दोष एवं उनके निवारण के उपाय :—-
दोष :—–यदि इस भूखंड में बनाए गये भवन-कक्षों व बरामदों में ठोस भारी वस्तुएं नैत्य कोण का नीचा होना : उपाय —: इस दशा में इन कमरों के अंदर व बरामदों में ठोस भारी वस्तुएं रखे कक्षों को धोते समय जल को नैत्य से ईशान की ओर लाएं एवं पूर्व, उत्तर अथवा ईशान को स्थित दरबाजे से बाहर निकलें।
दोष :— नैत्य कोण में खिड़की होना –
उपाय :—– इस दशा में खिड़की को बंद कर उसके ऊपर गहरे हरे रंग का पर्दा डाल देना चाहिए।
दक्षिणोन्मुख भूखंड के वास्तु दोष एवं उनका निवारण : दोष : इस भूखंड के सम्मुख भाग में कुंआ हो तो- उपाय : ऐसी स्थिति में कुएं को बंद कर देना चाहिए/अथवा कुएं पर मोटी एवं भारी स्लैब डालकर उसे ऊपर से पाट देना चाहिए। आग्नेयोन्मुख भूखंड के
वास्तु दोष एवं उनके निवारण के उपाय : दोष : आग्नेय कोण में मुखय द्वार होने पर – उपाय : इस दरबाजे को अधिकतर बंद ही रखना चाहिए। इसके साथ ही दरवाजे पर गहरे लाल रंग का पेन्ट करवा देने से वास्तु दोष समाप्त हो जाता है।
दोष : इस प्रकार के भूखंड में दक्षिणी आग्नेय में गेट होने पर – उपाय : इस दरवाजे को अधिकतर बंदर रखें तथा दरवाजे पर काले रंग का पेन्ट करा देना चाहिए। बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोषों का शत-प्रतिशत नहीं तो 70 से 80 प्रतिशत तक सुधार किया जा सकता है तथा यह उपाय ज्यादा श्रम साध्य एवं महंगे भी नहीं हैं अतः कोई भी इसे आसानी से अमल में ला सकता है। आशा है इस जानकारी को पढ़कर आप इससे अपने वास्तु दोषों का निवारण कर सकेंगे और अपने जीवन को सुखमय एवं शांति से गुजार सकेंगे।
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वास्तु दोष निवारण हेतु कुछ अन्य जरुरी उपाय/टोटके—
——-दक्षिण में सिर करके सोना चाहिए इससे व्यक्ति स्वस्थ और दीर्घायु होता है।
—–पति पत्नी का सुंदर सा फोटो शयन कक्ष में लगाएं।
—–शयन कक्ष की उत्तरी दीवार पर हंस अथवा सारस के जोड़े का फोटो लगाएं। इससे दाम्पत्य जीवन में मधुरता बढ़ेगी और साथ ही पारिवारिक कलह में कमी आएगी।
——तिजोरी समतल धरातल पर रखें। इसे किसी धातु पर न रखें और हिलने से बचाने के लिए पत्थर के बजाय लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग करें
—-तिजोरी में सुग्रधित चीजें जैसे-सेंट, स्प्रे व अगरबत्ती आदि न रखें।
—–घर में नित्य घी का दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय लौ पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर हो या दीपक के मध्य में (फूलदार बाती) बाती लगाना शुभ फल देने वाला है।
—-रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से बीमारियां, दुःस्वपन नहीं आते, पितृ दोष का नाश होता है एवं घर में शांति बनी रहती है।
—–घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन और गंगाजल मिला कर चटाएं।
—–पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं। पीपल के पेड़ की लकड़ी सिरहाने रखें।
——पत्नी बीमार हो तो गोदान करें। जिस घर में स्त्रीवर्ग को निरन्तर स्वास्थ्य की पीड़ा रहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धापूर्वक देखभाल से रोग पीड़ा समाप्त होती है।
—-सदैव पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर सिर रख कर ही सोना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर सिर कर के सोने वाले व्यक्ति में चुम्बकीय बल रेखाएं पैर से सिर की ओर जाती हैं, जो अधिक से अधिक रक्त खींच कर सिर की ओर लायेंगी, जिससे व्यक्ति विभिन्न रोंगो से मुक्त रहता है और अच्छी निद्रा प्राप्त करता है।
——अगर परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार औषधि सेवन के पश्चात् भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से आरम्भ करके लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उबार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को खिला दें। अवश्य ही इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर टोटके की अवधि में रोगी ठीक हो जाता है, तो भी प्रयोग को पूरा करना है, बीच में रोकना नहीं चाहिए।
—–चार-चार इंच का ताम्र धातु में निर्मित वास्तु दोष निवारण यन्त्र भवन के मुख्य द्वार पर लगाना चाहिए.
——भवन के मुख्य द्वार के ऊपर की दीवार पर बीच में गणेश जी की प्रतिमा, अन्दर और बाहर की तरफ, एक जगह पर आगे-पीछे लगाएं.
——वास्तु के अनुसार सुबह पूजा-स्थल (ईशान कोण) में श्री सूक्त, पुरूष सूक्त एवं संध्या समय श्री हनुमान चालीसा का नित्यप्रति पठन करने से की शांति प्राप्त होती है.
—–यदि भवन में जल का बहाव गलत दिशा में हो, या पानी की सप्लाई ठीक दिशा में नहीं है, तो उत्तर-पूर्व में कोई फाऊन्टेन (फौव्वारा) इत्यादि लगाएं. इससे भवन में जल संबंधी दोष दूर हो जाएगा.
——टी. वी. एंटीना/ डिश वगैरह ईशान या पूर्व की ओर न लगाकर नैऋत्य कोण में लगाएं, अगर भवन का कोई भूभाग ईशान से ऊँचा है, तो उसका कीदोष निवारण हो जाएगा.
——भवन या व्यापारिक संस्थान में कभी भी संगमरमर/ ग्रेनाईट पत्थर का उपयोग न करें. ग्रेनाईट चुम्बकीय प्रभाव में व्यवधान उत्पन कर नकारात्मक उर्जा का संचार करता है.
——-भूखंड के ब्रह्म स्थल (केन्द्र स्थान) में ताम्र धातु निर्मित एक पिरामिड दबाएं .
——-जब भी जल का सेवन करें, सदैव अपना मुख उत्तर-पूर्व की दिशा की ओर ही रखें.
——भोजन करते समय, थाली दक्षिण-पूर्व की ओर रखें और पूर्व की ओर मुख कर के ही भोजन करें.
—— दक्षिण-पश्चिम कोण में दक्षिण की ओर सिराहना कर के सोने से नींद गहरी और अच्छी आती है. यदि दक्षिण की ओर सिर करना संभव न हो तो पूर्व दिशा की ओर की कर सकते हैं.
——यदि भवन की उत्तर-पूर्व दिशा का फर्श दक्षिण-पश्चिम में बने फर्श से ऊँचा हो तो दक्षिण-पश्चिम में फर्श को ऊँचा करें.यदि ऐसा करना संभव न हो तो पश्चिम दिशा के कोणे में एक छोटा सा चबूतरा टाईप का बना सकते हैं.
—-दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक दरवाजे, खिडकियाँ हों तो, उन्हे बन्द कर के, उनकी संख्या को कम कर दें.
—–भवन के दक्षिण-पश्चिम कोने में सफेद/क्रीम रंग के फूलदान में पीले रंग के फूल रखने से पारिवारिक सदस्यों के वैचारिक मतभेद दूर होकर आपसी सौहार्द में वृ्द्धि होती है.
——-श्यनकक्ष में कभी भी दर्पण न लगाएं. यदि लगाना ही चाहते हैं तो इस प्रकार लगाएं कि आप उसमें प्रतिबिम्बित न हों, अन्यथा प्रत्येक दूसरे वर्ष किसी गंभीर रोग से कष्ट का सामना करने को तैयार रहें.
——–अमावस्या को प्रातः मेंहदी का दीपक पानी मिला कर बनाएं। तेल का चैमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के दाने, कुछ सिन्दूर, 2 बूंद दही डाल कर . नींबू की दो फांकें शिवजी या भैरों जी के चित्र का पूजन कर, जला दें। महामृत्युजंय मत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग-शोक दूर करने की भगवान से प्रार्थना कर घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुंए में नींबू सहित डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस दिन एक ब्राह्मण -ब्राह्मणी को भोजन करा कर वस्त्रादि का दान भी कर दें। कुछ दिन तक पक्षियों, पशुओं और रोगियों की सेवा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भूत बाधा, मानसिक अशांति निश्चय ही दूर होती है।
——यदि बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का सवा पाव आटा लें। उसमें साबुत काले तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाएं। भैंसा कहाँ मिलेगा, इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है, केवल भैंसे को ही खिलाना श्रेष्ठ रहता है। शनिवार और मंगलवार को ही यह कार्य करें।
—–शुक्रवार रात को मुठ्ठी भर काले साबुत चने भिगोयें। शनिवार की शाम काले कपड़े में उन्हें बांधे तथा एक कील और एक काले कोयले का टुकड़ा रखें। इस पोटली को किसी तालाब या कुंए में फेंक दें। फेंकने से पहले रोगी के ऊपर से 7 बार वार दें। ऐसा 3 शनिवार करें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा।
——-यदि लगे कि शरीर में कष्ट समाप्त नहीं हो रहा है, तो थोड़ा सा गंगाजल नहाने वाली बाल्टी में डाल कर नहाएं।
——-हर मंगल और शनिवार को रोगी के ऊपर से इमरती को 7 बार वार कर कुत्तों को खिलाने से धीरे-धीरे आराम मिलता है। यह कार्य कम से कम 7 सप्ताह करना चाहिये। बीच में रूकावट न हो, अन्यथा वापस शुरू करना होगा।
——-धान कूटने वाला मूसल और झाडू रोगी के ऊपर से उतार कर उसके सिरहाने रखें।
——घर से बीमारी जाने का नाम न ले रही हो, किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र ले कर उसे हांडी में पिरो कर रोगी के पलंग के पाये पर बांधने से आश्चर्यजनक परिणाम मिलता है। उस दिन से रोग समाप्त होना शुरू हो जाता है।
——-यदि पर्याप्त उपचार करने पर भी रोग-पीड़ा शांत नहीं हो रही हो अथवा बार-बार एक ही रोग प्रकट होकर पीड़ित कर रहा हो तथा उपचार करने पर शांत भी हो जाता हो, ऐसे व्यक्ति को अपने वजन के बराबर गेहूँ का दान रविवार के दिन करना चाहिए। इस गेहूँ का दान जरूरतमंद एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों को ही करना चाहिए।
किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर बटुक भैरव की पूजा कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए।
——-सरकारी या निजी रोजगार के क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की कुषा की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।
——–व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तेल में सिक्के, गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तेल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चैराहे पर रखें और कहें -हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना। यह सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।
—–सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएं। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएं। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।
——–किसी शनिवार को, यदि उस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।
——अक्सर सुनने में आता है कि घर में कमाई तो बहुत है, किन्तु पैसा नहीं टिकता, तो यह प्रयोग करें। जब आटा पिसवाने जाएं तो उससे पहले थोड़े से गेंहू में 11 पत्ते तुलसी तथा 2 दाने केसर के डाल कर मिला लें तथा अब इसको बाकी गेंहू में मिला कर पिसवा लें। यह क्रिया सोमवार और शनिवार को करें। फिर घर में धन की कमी नहीं रहेगी।
—-आटे में 100 ग्राम काले पिसे चने भी डाल दिया करें तथा केवल शनिवार को ही आटा पिसवाएं अथवा खरीदें।
शनिवार को खाने में किसी भी रूप में काला चना अवश्य ले लिया करें।
—-अगर पर्याप्त धर्नाजन के पश्चात भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शनिवार को कड़वे तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोटी खिलाएं।
—-संध्या समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है। सोने से पूर्व पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए किन्तु गीले पैर नहीं सोना चाहिए। इससे धन का क्षय होता है।
—-रात्रि में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अतः समृद्धि चाहने वालों को तथा ——जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात्रि भोज में नहीं करना चाहिये।
—–भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर के करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए।
—-सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी भी गाय, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
—–घर में देवी-देवताओं पर चढ़ाये गये फूल या हार के सूख जाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।
—–अपने घर में पवित्र नदियों का जल संग्रह कर के रखना चाहिए। इसे घर के ईशान कोण में रखने से अधिक लाभ होता है।
—-किसी कार्य की सिद्धि के लिए जाते समय घर से निकलने से पूर्व ही अपने हाथ में रोटी ले लें। मार्ग में जहां भी कौए, दिखलाई दें, वहां उस रोटी के टुकड़े कर के डाल दें और आगे बढ़ जाएं। इससे सफलता प्राप्त होती है।
—–घर में समृद्धि लाने हेतु घर के उत्तर पश्चिम के कोण (वायव्य कोण) में सुन्दर से मिट्टी के बर्तन में कुछ सोने-चांदी के सिक्के, लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर बर्तन को गेहूं या चावल से भर दें। ऐसा करने से घर में धन का अभाव नहीं रहेगा।
—–अगर निरन्तर कर्ज में फँसते जा रहे हों, तो श्मशान के कुंड का जल लाकर किसी पीपल के वृक्ष पर चढ़ाना चाहिए।
—-घर में बार-बार धन हानि हो रही हो तों वीरवार को घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़क कर गुलाल पर शुद्ध घी का दोमुखी (दो मुख वाला) दीपक जलाना चाहिए। इससे घर में धन हानि का सामना नहीं करना पड़ेगा। जब दीपक शांत हो जाए तो उसे बहते हुए पानी में बहा देना चाहिए।
—-काले तिल परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर सात बार उतार कर घर के उत्तर दिशा में फेंक दें, धनहानि बंद होगी।
—-घर की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए घर में सोने का चैरस सिक्का रखें। कुत्ते को दूध दें। अपने कमरे में मोर का पंख रखें।
—कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। अनिष्ट दूर होगा और धन भी प्राप्त होगा ।
—–अगर अचानक धन लाभ की स्थितियाँ बन रही हो, किन्तु लाभ नहीं मिल रहा हो, तो गोपी चन्दन की नौ डलियाँ लेकर केले के वृक्ष पर टाँग देनी चाहिए। यह चन्दन पीले धागे से ही बाँधना है। यदि व्यवसाय में आकिस्मक व्यवधान एवं पतन की सम्भावना प्रबल हो रही हो, तो प्रथम बुधवार को सफेद कपड़े के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगाना चाहिए।
—–अगर आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हों, तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) लगा दें।
—-एक नारियल पर कामिया सिन्दूर, मोली, अक्षत अर्पित कर पूजन करें। फिर हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएं। धन लाभ होगा।
—-पीपल के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें। फिर वापस घर आ जाएं, व पीछे मुड़कर न देखें। धन लाभ होना।
—प्रातःकाल पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाए, तथा अपनी सफलता की मनोकामना करें और घर से बाहर शद्ध केसर से स्वास्तिक बनाकर उस पर पीले पुष्प और अक्षत चढ़ाएं। घर से बाहर निकलते समय दाहिना पाँव पहले बाहर निकालें।
—-एक हंडिया में सवा किलो हरी साबुत मूंग की दाल, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दोनों हंडिया घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।
—–प्रत्येक मंगलवार को 11 पीपल के पत्ते लें। उनको गंगाजल से अच्छी तरह धोकर लाल चन्दन से हर पत्ते पर 7 बार राम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा दें तथा वहां प्रसाद बाटें। रुके कार्य पूर्ण होंगे।
उसपर थोड़ी सी दही और सिन्दूर लगाकर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें और बिना मुड़कर देखे वापिस आ जायें। सात शनिवार लगातार करने से आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली बनी रहेगी।
इन उपरोक्त उपायों को आप अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति व सकारात्मक सोच एवं दैवकृपा का विलय कर करें, तो यह नितांत सत्य है कि इनसे आप अपने भवन से अधिकांश वास्तुजन्य दोषों को दूर कर कईं प्रकार की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकेंगें.
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मेने इस लेख (पंडित दयानन्द शास्त्री,Mob.–09024390067) में कुछ खास/विशेष टोटके /उपाय लिखे हें—-
——-यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह टोटका काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे “संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।
—–किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर “बटुक भैरव स्तोत्र´´ का एक पाठ कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।
—–रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें `जय गणेश काटो कलेश´।
——सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की `कुशा´ की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।
—– व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना।´´ सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।
——सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएँ। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।
—–किसी शनिवार को, यदि उस दिन `सर्वार्थ सिद्धि योग’ हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।
——-रविवार पुष्य नक्षत्र में एक कौआ अथवा काला कुत्ता पकड़े। उसके दाएँ पैर का नाखून काटें। इस नाखून को ताबीज में भरकर, धूपदीपादि से पूजन कर धारण करें। इससे आर्थिक बाधा दूर होती है। कौए या काले कुत्ते दोनों में से किसी एक का नाखून लें। दोनों का एक साथ प्रयोग न करें।
——प्रत्येक प्रकार के संकट निवारण के लिये भगवान गणेश की मूर्ति पर कम से कम 21 दिन तक थोड़ी-थोड़ी जावित्री चढ़ावे और रात को सोते समय थोड़ी जावित्री खाकर सोवे। यह प्रयोग 21, 42, 64 या 84 दिनों तक करें।
——अक्सर सुनने में आता है कि घर में कमाई तो बहुत है, किन्तु पैसा नहीं टिकता, तो यह प्रयोग करें। जब आटा पिसवाने जाते हैं तो उससे पहले थोड़े से गेंहू में 11 पत्ते तुलसी तथा 2 दाने केसर के डाल कर मिला लें तथा अब इसको बाकी गेंहू में मिला कर पिसवा लें। यह क्रिया सोमवार और शनिवार को करें। फिर घर में धन की कमी नहीं रहेगी।
——-आटा पिसते समय उसमें 100 ग्राम काले चने भी पिसने के लियें डाल दिया करें तथा केवल शनिवार को ही आटा पिसवाने का नियम बना लें।
——शनिवार को खाने में किसी भी रूप में काला चना अवश्य ले लिया करें।
——अगर पर्याप्त धर्नाजन के पश्चात् भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शनिवार को कड़वे तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोटी खिलाएँ।
——-संध्या समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है। सोने से पूर्व पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए, किन्तु गीले पैर नहीं सोना चाहिए। इससे धन का क्षय होता है।
——रात्रि में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात्रि भोज में नहीं करना चाहिये।
——भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर के करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए।
——सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
——घर में देवी-देवताओं पर चढ़ाये गये फूल या हार के सूख जाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।
——अपने घर में पवित्र नदियों का जल संग्रह कर के रखना चाहिए। इसे घर के ईशान कोण में रखने से अधिक लाभ होता है।
——रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तब गूलर के वृक्ष की जड़ प्राप्त कर के घर लाएं। इसे धूप, दीप करके धन स्थान पर रख दें। यदि इसे धारण करना चाहें तो स्वर्ण ताबीज में भर कर धारण कर लें। जब तक यह ताबीज आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्राप्ति होती रहेगी। धन संपदा भरपूर होंगे। सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी।
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ऐसे करें बिना तोड़फोड़ करें दोष निवारण—–
कभी-कभी दोषों का निवारण वास्तुशास्त्रीय ढंग से करना कठिन हो जाता है। ऐसे में दिनचर्या के कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए निम्नोक्त सरल उपाय कर इनका निवारण किया जा सकता है—–
—–पूजा घर पूर्व-उत्तर (ईशान कोण) में होना चाहिए तथा पूजा यथासंभव प्रातः 06 से 08 बजे के बीच भूमि पर ऊनी आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ कर ही करनी चाहिए।
——पूजा घर के पास उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में सदैव जल का एक कलश भरकर रखना चाहिए। इससे घर में सपन्नता आती है। मकान के उत्तर पूर्व कोने को हमेशा खाली रखना चाहिए।
—–घर में कहीं भी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। उसे पैर नहीं लगना चाहिए, न ही लांघा जाना चाहिए, अन्यथा घर में बरकत और धनागम के स्रोतों में वृद्धि नहीं होगी।
—–पूजाघर में तीन गणेशों की पूजा नहीं होनी चाहिए, अन्यथा घर में अशांति उत्पन्न हो सकती है। तीन माताओं तथा दो शंखों का एक साथ पूजन भी वर्जित है। धूप, आरती, दीप, पूजा अग्नि आदि को मुंह से फूंक मारकर नहीं बुझाएं। पूजा कक्ष में, धूप, अगरबत्ती व हवन कुंड हमेशा दक्षिण पूर्व में रखें।
——-घर में दरवाजे अपने आप खुलने व बंद होने वाले नहीं होने चाहिए। ऐसे दरवाजे अज्ञात भय पैदा करते हैं। दरवाजे खोलते तथा बंद करते समय सावधानी बरतें ताकि कर्कश आवाज नहीं हो। इससे घर में कलह होता है। इससे बचने के लिए दरवाजों पर स्टॉपर लगाएं तथा कब्जों में समय समय पर तेल डालें।
——खिड़कियां खोलकर रखें, ताकि घर में रोशनी आती रहे।
——घर के मुख्य द्वार पर गणपति को चढ़ाए गए सिंदूर से दायीं तरफ स्वास्तिक बनाएं।
—–महत्वपूर्ण कागजात हमेशा आलमारी में रखें। मुकदमे आदि से संबंधित कागजों को गल्ले, तिजोरी आदि में नहीं रखें, सारा धन मुदमेबाजी में खर्च हो जाएगा।
—–घर में जूते-चप्पल इधर-उधर बिखरे हुए या उल्टे पड़े हुए नहीं हों, अन्यथा घर में अशांति होगी।
——सामान्य स्थिति में संध्या के समय नहीं सोना चाहिए। रात को सोने से पूर्व कुछ समय अपने इष्टदेव का ध्यान जरूर करना चाहिए।
—–घर में पढ़ने वाले बच्चों का मुंह पूर्व तथा पढ़ाने वाले का उत्तर की ओर होना चाहिए।
——घर के मध्य भाग में जूठे बर्तन साफ करने का स्थान नहीं बनाना चाहिए।
—–उत्तर-पूर्वी कोने को वायु प्रवेश हेतु खुला रखें, इससे मन और शरीर में ऊर्जा का संचार होगा।
——-अचल संपत्ति की सुरक्षा तथा परिवार की समृद्धि के लिए शौचालय, स्नानागार आदि दक्षिण-पश्चिम के कोने में बनाएं।
——भोजन बनाते समय पहली रोटी अग्निदेव अर्पित करें या गाय खिलाएं, धनागम के स्रोत बढ़ेंगे।
——-पूजा-स्थान (ईशान कोण) में रोज सुबह श्री सूक्त, पुरुष सूक्त एवं हनुमान चालीसा का पाठ करें, घर में शांति बनी रहेगी।
——-भवन के चारों ओर जल या गंगा जल छिड़कें।
——–घर के अहाते में कंटीले या जहरीले पेड़ जैसे बबूल, खेजड़ी आदि नहीं होने चाहिए, अन्यथा असुरक्षा का भय बना रहेगा।
——–कहीं जाने हेतु घर से रात्रि या दिन के ठीक १२ बजे न निकलें।
——किसी महत्वपूर्ण काम हेतु दही खाकर या मछली का दर्शन कर घर से निकलें।
——घर में या घर के बाहर नाली में पानी जमा नहीं रहने दें।
——-घर में मकड़ी का जाल नहीं लगने दें, अन्यथा धन की हानि होगी।
——-शयनकक्ष में कभी जूठे बर्तन नहीं रखें, अन्यथा परिवार में क्लेश और धन की हानि हो सकती है।
——भोजन यथासंभव आग्नेय कोण में पूर्व की ओर मुंह करके बनाना तथा पूर्व की ओर ही मुंह करके करना चाहिए।
इन उपरोक्त उपायों को आप अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति व सकारात्मक सोच एवं दैवकृपा का विलय कर करें, तो यह नितांत सत्य है कि इनसे आप अपने भवन से अधिकांश वास्तुजन्य दोषों को दूर कर कईं प्रकार की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकेंगें.
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विशेष उपाय वास्तु दोष निवारण हेतु———
—–निवास गृह या कार्यालय में शुद्ध ऊर्जा के संचार हेतु प्रातः व सायं शंख-ध्वनि करें। गुग्गुल युक्त धूप व अगरवत्ती प्रज्वलित करें तथा क्क का उच्चारण करते हुए समस्त गृह में धूम्र को घुमाएं।
—–प्रातः काल सूर्य को अर्य देकर सूर्य नमस्कार अवश्य करें।
—-यदि परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य अनुकूल रहेगा, तो गृह का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। ध्यान रखें, आईने व झरोखों के शीशों पर धूल नहीं रहे। उन्हें प्रतिदिन साफ रखें।
——गृह की उत्तर दिशा में विभूषक फव्वारा या मछली कुंड रखें। इससे परिवार में समृद्धि की वृद्धि होती है।

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