वफ़ा और बेवफाई..!!!!
प्यार कहते हैं जिसे एक हसीं धोख़ा है । 
पूरी शिद्दत से जो इंसान को छल जाता है ॥
राह चलते हुए कोई अज़नबी क़रीब आकर । 
चाहे अनचाहे ही कब दिल में “विशाल”उतर जाता है ॥
हसरतें दिल की फ़ना होती हैं जिसकी ख़ातिर । 
बस उसी शख्स को कुछ भी न समझ आता है ॥
ज़िन्दगी लाश, कभी बोझ, कभी पागलपन । 
क्या-क्या बन जाती है कोई नहीं बनता है ॥
हर नए मोड़ पे मिलते हैं कई ज़ख्म नये । 
चोट खाता है ये दिल “विशाल” फिर भी मुस्कुराता है ॥
वफ़ा न आये उसे बेवफ़ा न कह पाए । 
साथ रहता भी है और साथ न निभाता है ॥
कोई अपना नहीं “विशाल” है हक़ीक़त फिर भी । 
एक ताल्लुक़ है जो तोड़ा नहीं जा पाता है ॥
—-पंडित दयानन्द शास्त्री”विशाल”
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