जानिए की  क्या प्रभाव (लाभ -हानि ) होते  हें नाडी दोष के..?? 
( EFFECTS OF NADI DOSH)
नाडी दोष के उपचार(परिहार) हेतु क्या उपाय(टोटके) करें..???


नाडी [ शिरा ] दोष भारतीय ज्ञान-विज्ञान का समावेश——-


पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–.) के अनुसार  भारतीय वैदिक परम्पराओं को आधुनिक वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने भी नाडी दोष को सत्य साबित किया .भारतीय वैदिक शास्त्रों में लिखा जिसको आयुर्वेदिक शास्त्रों तथा ज्योतिष शास्त्रों के अनुसंधानकर्ताओं पुनः प्रकाशित किया जो आज मान्य होते है .


नाडी दोष—— 


नाडी = शिरा ,धमनिया में रक्त प्रवाह में वात, पित, कफ के संतुलन में असंतुलन नही हो का ध्यान पूर्वक अध्ययन नाडी दोष से बचाव करता हैं .


पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–.90.4.90067) के अनुसार  चिकित्सा की दृष्टि से मनुष्य आध्यात्मिकता ,ज्योतिषी एवं सामाजिकता में पारिवारिक मूल्यांकनों का समावेश रहता है .जिसका भावी दाम्पत्य जीवन का गुण मेल-मिलाप में नाडी दोष का के कारण का निवारण देखा जाता हैं . भावी दाम्पत्य जीवन के मध्य सामजस्य ,प्रेम ,सुखी जीवन ,अपनी जीवनशैली में वंशवृद्धि जो अपनी कुल की परम्पराओं को बढ़ाने वाली ,आय,समृद्धि और यश कीर्ति वान संतान की प्राप्ति देते पितृ कर्ज से मुक्त वो सन्तान समाज के साथ अपना उत्थान करे .


चिकित्सा की दृष्टि से नाडी की गति तीन मानी जाती है जो उसकी चाल को कहते . आदि , मध्य और अंत .जो आदि = वात, मध्य=पित्त और अंत=कफ मानी जाती हैं जो शारीरिक धातु के रूप में जानी जाती है .इस लिए वैध जातक को वातिक को वायु,गैस उत्पन्न करनेवाले भोजन की मना करते हैं.पेत्तिक को पित्त वर्धक और कफज को कफ वर्धक भोजन का मना किया जाता हैं . शरीर में इन तीनों के समन्वय बिगाड़ने से रोग पैदा होता हैं.
पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार   परन्तु ज्योतिषी की भाषा में नाडीयां [ शिरा ] तीन होती हैं .आदि ,मध्य ,अंत .इन नाडीयो के वर-कन्या से सामान होने से दोष माना जाता हैं . समान नाडी होने से पारस्परिक विकर्षण पैदा होता हैं मानसिक रोग पैदा होता हैं.. और असमान ना डी होने से आकर्षण के साथ मानसिक रोग मुक्त होता हैं. 


पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार  विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है । इस संस्कार मे बंधने से पूर्व वर एवं कन्या के जन्म नामानुसार गुण मिलान करके की परिपाटी है । गुण मिलान नही होने पर सर्वगुण सम्पन्न कन्या भी अच्छी जीवनसाथी सिद्व नही होगी । गुण मिलाने हेतु मुख्य रुप से अष्टकूटों का मिला न किया जाता है । ये अष्टकुट है वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रहमैत्री, गण, राशि, नाड़ी । विवाह के लिए भावी वर-वधू की जन्मकुंडली मिलान करते नक्षत्र मेलापक के अष्टकूटों (जिन्हे गुण मिलान भी कहा जाता है) में नाडी को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है । नाडी जो कि व्यक्ति के मन एवं मानसिक उर्जा की सूचक होती है । व्यक्ति के निजि सम्बंध उसके मन एवं उसकी भावना से नियंत्रित होते हैं । जिन दो व्यक्तियों में भावनात्मक समानता, या प्रतिद्वंदिता होती है, उनके संबंधों में ट्कराव पाया जाता है । जैसे शरीर के वात, पित्त एवं कफ इन तीन प्रकार के दोषों की जानकारी कलाई पर चलने वाली नाडियों से प्राप्त की जाती है, उसी प्रकार अपरिचित व्यक्तियों के भावनात्मक लगाव की जानकारी आदि, मध्य एवं अंत्य नाम की इन तीन प्रकार की नाडियों के द्वारा मिलती है । 


पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार  नाड़ी दोष होने पर यदि अधिक गुण प्राप्त हो रहे हो तो भी गुण मिलान को सही माना जा सकता अन्यता उनमे व्यभिचार का दोष पैदा होने की सभांवना रहती है । मध्य नाड़ी को पित स्वभाव की मानी गई है । इस लिए मध्य नाड़ी के वर का विवाह मध्य नाड़ी की कन्या से हो जाए तो उनमे परस्पर अंह के कारण सम्बंन्ध अच्छे बन पाते । उनमे विकर्षण कि सभांवना बनती है । परस्पर लडाईझगडे होकर तलाक की नौबत आ जाती है । विवाह के पश्चात् संतान सुख कम मिलता है । गर्भपात की समस्या ज्यादा बनती है । अन्त्य नाड़ी को कफ स्वभाव की मानी इस प्रकार की स्थिति मे प्रबल नाडी दोश होने के कारण विवाह करते समय अवश्य ध्यान रखे । जिस प्रकार वात प्रकृ्ति के व्यक्ति के लिए वात नाडी चलने पर, वात गुण वाले पदार्थों का सेवन एवं वातावरण वर्जित होता है अथवा कफ प्रकृ्ति के व्यक्ति के लिए कफ नाडी के चलने पर कफ प्रधान पदार्थों का सेवन एवं ठंडा वातावरण हानिकारक होता है, ठीक उसी प्रकार मेलापक में वर-वधू की एक समान नाडी का होना, उनके मानसिक और भावनात्मक ताल-मेल में हानिकारक होने के कारण वर्जित किया जाता है । तात्पर्य यह है कि लडका-लडकी की एक समान नाडियाँ हों तो उनका विवाह नहीं करना चाहिए, क्यों कि उनकी मानसिकता के कारण, उनमें आपसी सामंजस्य होने की संभावना न्यूनतम और टकराव की संभावना अधिकतम पाई जाती है । इसलिए मेलापक में आदि नाडी के साथ आदि नाडी का, मध्य नाडी के साथ मध्य का और अंत्य नाडी के साथ अंत्य का मेलापक वर्जित होता है । जब कि लडका-लडकी की भिन्न भिन्न नाडी होना उनके दाम्पत्य संबंधों में शुभता का द्योतक है । यदि वर एवं कन्या कि नाड़ी अलग -अलग हो तो नाड़ी शुद्धि मानी जाती है । यदि वर एवं कन्या दोनो का जन्म यदि एक ही नाड़ी मे हो तो नाड़ी दोष माना जाता है । 


पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार  भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नाडी  का निर्धारण जन्म नक्षत्र से होता हैं.हर एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं.नौ नक्षत्र की एक नाड़ी होती हैं.जन्म नक्षत्र के आधार पर नाडीयों को टी भागों में विभाजित किया जाता हैं.जो आदि ,मध्य,अंत ( वात,पित्त,कफ ) नाड़ी के नाम से जाना जाता हैं. ज्योतिष चिंतामणि के अनुसाररोहिणी, म्रिगशीर्ष, आद्र, ज्येष्ठ, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती, उत्तराभाद्र, नक्षत्रों को नाडी दोष लगता नहीं है|


अष्ट कूट गुण मिलन में 36 गुणों को निर्धारण किया जाता हैं. वर्ण,वश्य,तारा,योनी,ग्रह मैत्री ,गण ,भकूट,और नाडी के लिए .+2+3+4+5+6+7+8 = 36 गुण .भावी दंपत्ति के मानसिकता एवं मनोदशा का मूल्याङ्कन किया जाता हैं.नाडी दोष भावी वर वधु के समान नाडी होने से नाडी दोष होता है जिस के कारण विवाह में निषेध माना जाता हैं.


नाडी दोष ब्राह्मण वर्ण की राशियों में जन्मे जातको पर विशेष प्रभावी नही होता..क्यों..???


[ यह एक भ्रम हें की नाडी ब्राहमण जाती पर प्रभावी को माना जाता जो व्यापक अधूरा ज्ञान हैं.]
ज्योतिष शास्त्र में सभी राशियों को चार वर्णों में विभाजित किया गया हैं.


ब्राहमण वर्ण   =  कर्क,वृश्चिक,मीन 
क्षत्रिय वर्ण     =  मेष ,सिह,धनु,
बैश्य  वर्ण      =  वृष,कन्या,मकर.
शुद्र  वर्ण        = मिथुन,तुला,कुम्भ.


आदि नाडी = अश्विनी ,आद्रा ,पुर्नवसु, उत्तराफाल्गुनी , हस्त,ज्येष्ठा,मूल,शतभिषा,पूर्वाभाद्रपद.
मध्य नाडी = भरनी,मृगशिर,पुष्य,पूर्वाफाल्गुनी,चित्रा,अनुराधा,पूर्वाषाढ़,घनिष्ठा,उत्तराभाद्रपद,
अत्य  नाडी = कृतिका,रोहिणी,आश्लेषा,मघा,स्वाति,विशाखा,उत्तराषाढा, श्रवण,और रेवती.     
नाडी दोष निवारण [ परिहार ] = मांगलिक कन्या को समंदोश वाले वर का दोष नही लगता 


पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार  यदि कन्या के जो मंगल होवे और वर के उपरोक्त स्थानों में मंगल के बदले में शनी,सूर्य,राहू,केतु होवे तो मंगल का दोष दूर करता हैं पाप क्रांत शुक्र तथा सप्तम भाव पति को नेष्ट स्थिति भी मंगल तुल्य ही समजना चाहिए 


—-पगड़ी मंगल चुनडी मंगल जिस वर या कन्या के जन्म कुंडली में लग्न से या चन्द्र से तथा वर के शुक्र से भी 1 – 4 -7 – 8- 12 स्थान भावो में मंगल होवे तो मांगलिक गुणधर्म की कुण्डली समझें.अधिक जानकारीपूर्ण अपने निकट ज्योतिष से सम्पर्क करे .


इन स्थितियों में नाड़ी दोष नहीं लगता है: ——-


1. यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र  एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
2. यदि वर-वधू की एक ही राशि  हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न  हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।
3. वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न  हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
                                                                                                                                                                                                                                                4. वर-वधु प्राय – क्षत्रीय , वेश्य , या  शूद्र वर्ण (जाती ) में जन्म होने वाले वर वधु पर नाड़ी दोष को  पूर्ण नहीं माना जाता है !


नाडीदोष से संतानहीनता:——


 अपनी आधार भूत पौराणिक एवं पारंपरिक मान्यताओं के ठोस आधार पर दृष्टिपात करने को ज़िल्लत, जाहिलो की चर्या एवं कल्पना आधारित एक ताना-बाना मान कर मानसिक रूप से भी गुलामी के बंधन में पूरी तरह बंध गए है.विचित्र, सुन्दर, सबसे अलग-थलग एवं सबकी नज़रो के आकर्षण केंद्र बनने के लिए विविध एवं विचित्र आभूषणों एवं रसायनों से शरीर सज्जा के लिए हम शारीरिक रूप से तो पराई सभ्यताओं के गुलाम हो ही गए है.


संतानोत्पादन के लिए लड़का लड़की का मात्र शारीरिक रूप से ही स्वस्थ रहना अनिवार्य नहीं है. बल्कि दोनों के शुक्राणुओ या गुणसूत्र या Chromosomes का संतुलित सामंजस्य भी स्वस्थ एवं समानुपाती होना चाहिए. अन्यथा हर तरह से स्वस्थ लड़का एवं लड़की भी संतान नहीं उत्पन्न नहीं कर सकते.


गुणसूत्र या Chromosomes के दो वर्ग होते है. एक तो X होता है तथा दूसरा Y. X पुरुष संतति का बोधक होता है. तथा Y महिला संतति का. यदि पुरुष एवं स्त्री के दोनों X मिल गए तो लड़का होगा. किन्तु यदि YY या XY हो गए तो लड़की जन्म लेगी. किन्तु यदि X ने Y को या Y ने X को खा लिया. तो फिर संतान हीनता का सामना करना पडेगा. क्योकि या तो फिर अकेले X बचेगा या फिर अकेले Y बचेगा. और ऐसी स्थिति में निषेचन क्रिया किसी भी प्रकार पूर्ण नहीं होगी. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की धाराओं में संतान उत्पन्न होने की यही प्रक्रिया है. और ज्योतिष शास्त्र में भी इसी कमी को नाडीदोष का नाम दिया गया है.


अब ज़रा ज्योतिष के स्तर पर इसे देखते है. यदि किसी भी तरह लड़का एवं लड़की के गुणसूत्रों का पार्श्व एवं पुरोभाग अर्थात Front Portion चापाकृति में होगा तो निषेचन नहीं हो सकता है. इनमें से किसी एक का विलोमवर्ती होना आवश्यक है. तभी निषेचन संभव है. जिस तरह से चुम्बक के दोनों उत्तरी ध्रुव वाले सिरे परस्पर नहीं चिपक सकते. उन्हें परस्पर चिपकाने के लिए एक का दक्षिण तथा दूसरे का उत्तर ध्रुव का सिरा होना आवश्यक है. ठीक उसी प्रकार गुनासूत्रो के परस्पर निषेचित होने के लिए परस्पर विलोमवर्ती होना आवश्यक है. अन्यथा दोनों सदृश संचारी हो जायेगें तो सदिश संचार होने के कारण दोनों एक दूसरे से मिल ही नहीं पायेगें. और गुणसूत्रों के इस मूल रूप को परिवर्तित नहीं किया जा सकता. अन्यथा ये संकुचित और परिणाम स्वरुप विकृत या मृत हो जाते है. सदृश नाडी वाले युग्म के गुणसूत्रों का लेबोरटरी टेस्ट किया जा सकता है. वैसे अभी अब तक भ्रूण परिक्षण तो किया जा सकता है किन्तु गुणसूत्र परिक्षण अभी बहुत दूर दिखाई दे रहा है. सीमेन टेस्ट के द्वारा यह तो पता लगाया जा चुका है कि संतान उत्पादन क्षमता है या नहीं. किन्तु यह पता नहीं लगाया जा सका है कि सीमेन में किन सूत्रों के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है?


जब कभी लडके एवं लड़की के जन्म नक्षत्र के अंतिम चरण का विकलात्मक सादृश्य हो तभी यह नाडी दोष प्रभावी होता है.मुहूर्त मार्तंड. मुहूर्त चिंतामणि, विवाह पटल एवं पाराशर संहिता के अलावा वृहज्जातक में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है. उसमें बताया गया है क़ि नाडी दोष होते हुए भी यदि नक्षत्रो के अंतिम अंश सदृश मापदंड के तुल्य नहीं होते, तो साक्षात दिखाई देने वाला भी नाडीदोष प्रभावी नहीं हो सकता है. अतः नाडी दोष का निर्धारण बहुत ही सूक्ष्मता पूर्वक होनी चाहिए.


इतनी गहराई तक का ज्ञान हमारे ग्रंथो में भरा पडा है. किन्तु अति आधुनिक दिखने के चक्कर में भारतीय परम्परा एवं मान्यताओं का अनुकरण कर गंवार न दिखने की लालसा में इतर भारतीय मान्यताओं एवं परम्पराओं को सटीक, आवश्यक तर्कपूर्ण एवं ठोस मानते हुए उसी के अनुकरण में बड़प्पन एवं प्रतिष्ठा ढूंढा जा रहा है. पता नहीं किस आधार पर बिना समझे बूझे अनाडी एवं मनुष्य का चोला धारण किये भ्रष्ट बुद्धि लोग ऐसी मान्यताओं को पाखण्ड, ढोंग एवं झूठ की संज्ञा दे देते है? और आम जनता इनके बहकावे में आती जा रही है. अपूर्ण एवं घृणित मान्यताओं के आधार पर आधारित गैर भारतीय मूल्यों एवं सिद्धांतो का मुकुट पहन पाखण्ड, ढोंग एवं भ्रम बताकर हमारी इन परमोत्कृष्ट मान्यताओं एवं परम्पराओं को गर्त में धकेलने को आतुर इन अप टू डेट अध् कचरे ज्ञान वाले पाश्चात्य अनुयायी बाबाओं से तो निर्मल बाबा बहुत बेहतर है. जो ठगने का ही कार्य क्यों न करते हो, कम से कम भारतीय मान्यताओं को उत्खनित तो नहीं करते है. यदि निर्मल बाबा ज़हर है जो शरीर को मारने का काम कर रहे है तो ये सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाने के नाम पर जो बाबाओं की माडर्न भूमिका अदा कर रहे है वे शराब है जो शरीर के साथ अंतरात्मा तक को मार डालती है.


अपनी विरासत में मिली इतनी समृद्ध परम्परा एवं मान्यताओं को ठोकर मार कर इतर भारतीय मान्यताओं का अनुकरण इतना भयावह होगा, अभी इसका अनुमान नहीं लगाया जा रहा है. किन्तु जब तक चेत होगा तब तक सब कुछ हठ, अदूरदर्शिता, मूर्खता, स्वार्थ, लोभ एवं निम्नस्तरीय नैतिकता के भयंकर अँधेरे गर्त में समा गया होगा. कम से कम प्रबल समाज सुधारक कबीर दास जी की ही पंक्ति याद कर लिए होते-


दुनिया ऐसी बावरी कि पत्थर पूजन जाय.
घर की चकिया कोई न पूजे जिसका पीसा खाय.


पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार  


नाडी दोष की शान्ति संभव है. किन्तु इसमें कुछ शर्तें है——


——-उम्र साठ वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
——शादी के बाद अधिक से अधिक आठ वर्ष तक प्रतीक्षा की जा सकती है. बारह वर्ष बीत जाने के बाद कुछ भी नहीं हो सकता है.


——–नाडी दोष सूक्ष्मता पूर्वक निर्धारित होना चाहिए. यदि अंत की अंशात्मक स्थिति नहीं बनाती है, तो साक्षात दिखाई देने वाला नाडी दोष भी निरर्थक होता है. अर्थात वह नाडी दोष में आता ही नहीं है.
——–पीयूष धारा  ग्रन्थ के अनुसार – स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राणप्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय मंत्र का जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है। 


——–पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार  यदि उपरोक्त शर्तें है तो प्राथमिक स्तर पर निम्न उपाय किये जा सकते है. जीरकभष्म, बंगभष्म, कमल के बीज, शहद, जिमीकंद, गुदकंद, सफ़ेद दूब एवं चिलबिला का अर्क एक-एक पाँव लेकर शुद्ध घी में कम से कम सत्ताईस बार भावना दें. सत्ताईसवें दिन उसे निकाल कर अपने बलिस्त भर लबाई का रोल बना लें तथा उसके सत्ताईस टुकडे काट लें. इसके अलावा शिलाजीत, पत्थरधन, बिलाखा, कमोरिया एवं शतावर सब एक एक पाँव लेकर एक में ही कूट पीस ले. और नाकीरन पुखराज सात रत्ती का लेकर सोने की अंगूठी में जडवा लें.रोल बनाए गए मिश्रण को नित्य सुबह एवं शाम गर्म दूध के साठ निगल लिया करें. तथा शतावर आदि के चूर्ण को रोज एक छटाक लेकर गर्म पानी में उबाल लें जब वह ठंडा हो जाय तो उसे और थोड़े पानी में मिलकर रोज सूर्य निकलने के पहले स्नान कर ले. तथा उस पुखराज को तर्जनी अंगुली में किसी भी दिन शनि एवं मंगल छोड़ कर पहन लें.


—– वर एवं कन्या दोनो मध्य नाड़ी मे उत्पन्न हो तो पुरुष को प्राण भय रहता है । इसी स्थिति मे पुरुष को महामृत्यंजय जाप करना यदि अतिआवश्यक है । यदि वर एवं कन्या दोनो की नाड़ी आदि या अन्त्य हो तो स्त्री को प्राणभय की सम्भावना रहती है । इसलिए इस स्थिति मे कन्या महामृत्युजय अवश्य करे ।
—- नाड़ी दोष होने संकल्प लेकर किसी ब्राह्यण को गोदान या स्वर्णदान करना चाहिए ।
—— अपनी सालगिराह पर अपने वजन के बराबर अन्न दान करे एवं साथ मे ब्राह्यण भोजन कराकर वस्त्र दान करे ।
—— नाड़ी दोष के प्रभाव को दुर करने हेतु अनुकूल आहार दान करे । अर्थातृ आयुर्वेद के मतानुसार जिस दोष की अधिकतम बने उस दोष को दुर करने वाले आंहार का सेवन करे ।
—— वर एवं कन्या मे से जिसे मारकेश की दशा चल रही हो उसको दशानाथ का उपाय दशाकाल तक अवश्य करना चाहिए ।
—-विशाखा, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवति, हस्त, स्वाति, आद्र्रा, पूर्वाभद्रपद इन 8 नक्षत्रो मे से किसी नक्षत्र मे वर कन्या का जन्म हो तो नाड़ी दोष नही रहता है ।
—–उत्तराभाद्रपद, रेवती, रोहिणी, विषाख, आद्र्रा, श्रवण, पुष्य, मघा, इन नक्षत्र मे भी वर कन्या का जन्म नक्षत्र पडे तो नाड़ी दोष नही रहता है । उपरोक्त मत कालिदास का है ।
—-वर एवं कन्या के राषिपति यदि बुध, गुरू, एवं शुक्र मे से कोई एक अथवा दोनो के राशिपति एक ही हो तो नाड़ी दोष नही रहता है ।
—–आचार्य सीताराम झा के अनुसार-नाड़ी दोष विप्र वर्ण पर प्रभावी माना जाता है । यदि वर एवं कन्या दोनो जन्म से विप्र हो तो उनमे नाड़ी दोष प्रबल माना जाता है । अन्य वर्णो पर नाड़ी पूर्ण प्रभावी नही रहता । यदि विप्र वर्ण पर नाड़ी दोष प्रभावी माने तो नियम नं घ का हनन होता हैं । क्योंकि बृहस्पती एवं शुक्र को विप्र वर्ण का माना गया हैं । यदि वर कन्या के राशिपति विप्र वर्ण ग्रह हों तो इसके अनुसार नाडी दोष नही रहता । विप्र वर्ण की राशियों में भी बुध व षुक्र राशिपति बनते हैं ।
—–सप्तमेश स्वगृही होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो एवं वर कन्या के जन्म नक्षत्र चरण में भिन्नता हो तो नाडी दोष नही रहता हैं । इन परिहार वचनों के अलावा कुछ प्रबल नाडी दोष के योग भी बनते हैं जिनके होने पर विवाह न करना ही उचित हैं । यदि वर एवं कन्या की नाडी एक हो एवं निम्न में से कोई युग्म वर कन्या का जन्म नक्षत्र हो तो विवाह न करें ।
—–वर कन्या की एक राशि हो लेकिन जन्म नक्षत्र अलग-अलग हो या जन्म नक्षत्र एक ही हो परन्तु राशियां अलग हो तो नाड़ी नही होता है । यदि जन्म नक्षत्र एक ही हो लेकिन चरण भेद हो तो अति आवश्यकता अर्थात् सगाई हो गई हो, एक दुसरे को पंसद करते हों तब इस स्थिति मे विवाह किया जा सकता है.




पंडित दयानन्द शास्त्री—.(मोब.–09024390067) के अनुसार शोधित नाडीदोष के सिद्ध हो जाने पर यह नुस्खा बहुत अच्छा काम करता है. किन्तु यदि नाडी दोष अंतिम अंशो पर है तो कोई उपाय या यंत्र-मन्त्र आदि काम नहीं करेगें. क्योकि सूखा हो, गिरा हो, टूटा हो या उपेक्षित हो, यदि कूवाँ होगा तो उसका पुनरुद्धार किया जा सकता है. किन्तु यदि कूवाँ होगा ही नहीं तो उसके पुनरुद्धार की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

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