आइये जाने श्री हनुमान जयंती क्यों..??? केसे मनाएं..?? कोनसे उपाय /टोटके करें इस दिन..???


मित्रों, आज मेनेजमेंट गुरु, अंजनी के लाल, पवनपुत्र , अतुलित बलशाली श्री हनुमान जी की जयंती हें.
..रामभक्त श्री हनुमान जी के जीवन से हमें भक्ति,ज्ञान,मर्यादा,सहिष्णुता,भाईचारे का सन्देश मिलता हें… 


 श्री हनुमान जी को हिन्दु धर्म में कष्त विनाशक और भय नाशक देवता के रूप में जाना जाता है| हनुमान जी अपनी भक्ति और शक्ति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| सारे पापों से मुक्त करने ओर हर तरह से सुख-आनंद एवं शांति प्रदान करने वाले श्री हनुमान जी की उपासना लाभकारी एवं सुगम मानी गयी है।


भगवान शिव के आठ रूद्रावतारों में एक हैं श्री हनुमान जी। शास्त्रों का ऐसा मत है कि जहां भी राम कथा होती है वहां श्री हनुमान जी अवश्य होते हैं। इसलिए श्री हनुमान की कृपा पाने के लिए श्री राम की भक्ति जरूरी है। जो राम के भक्त हैं हनुमान उनकी सदैव रक्षा करते हैं। भगवान राम त्रेतायुग में धर्म की स्थापना करके पृथ्वी से अपने लोक बैकुण्ठ चले गये लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हनुमान को अमरता का वरदान दिया। इस वरदान के कारण हनुमान जी आज भी जीवित हैं और भगवान के भक्तों और धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं। 


हनुमान जयंती एक हिन्दू पर्व होता है। यह चैत्र माह की पूर्णीमा को मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में स्वयं भगवान शिवजी ने अंजना के गर्भ से रुद्रावतार लिया।
श्रीहनुमान जी की जयंती तिथि के विषय में दो विचारधाराएं विशेष रूप से प्रचलित हैं- चैत्र शुक्ल पूर्णमासी और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी। 
हनुमान जी अपार बलशाली और वीर हैं, तो विद्वता में भी उनका सानी नहीं है। फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। आज के समय में थोड़ी शक्ति या बुद्धि हासिल कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, किंतु बाल्यकाल में सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में रहते हैं। वह जानते हैं कि सेवा ही कल्याणकारी मंत्र है। बल्कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान जी ने चूर कर दिया। 


पंडित दयानन्द शास्त्री  के अनुसार सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली श्री हनुमान। हनुमान जी ने ही हमें यह सिखाया है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान बन सकता है। हनुमान जी का चरित्र रामकथा में इतना प्रखर है कि उसने राम के आदर्र्शो को गढ़ने में मुख्य कड़ी का काम किया है। रामकथा में श्री हनुमान के चरित्र में हम जीवन के सूत्र हासिल कर सकते हैं। वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे हनुमान के गुणों को अपने भीतर उतारकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।


सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए श्री हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, बल्कि अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया।


वह दृश्य किसकी स्मृति में नहीं होगा, जब हनुमान जी लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत ले आए थे। उनकी निष्काम सेवा भावना ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया। पौराणिक ग्रंथों में एक कथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई, जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया? आग्रह करने पर उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया। हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर सेवा को तत्पर रहते। रात को माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा। वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकी बजाने लगे। हनुमान जी के जाने से श्रीराम को लगातार जम्हाई आने लगी। जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई, तब जम्हाई बंद हुई।


राम की वानर सेना का उन्होंने नेतृत्व जिस तरह किया, हम उनसे सीख ले सकते हैं। जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल गए, तब याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। वहीं लक्ष्मण को शक्ति लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तो भ्रम होने पर उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया। हनुमान जी के ये गुण अपनाकर ही हनुमान जयंती मनाना सफल होगा।


678 साल बाद अतिशुभ है हनुमान जयंती ….ये हम नहीं कह रहे बल्कि हनुमान जयंती पर बन रही ग्रहों की स्थिति ये बता रही है जब आपको बजरंगबली की पूर्ण कृपा तो मिलेगी ही और साथ इस दिन लगने वाले चंद्र ग्रहण के कुप्रभाव से भी रक्षा करेगी ये हनुमान जयंती.


पंडित दयानन्द शास्त्री  के अनुसार जिस प्रकार भगवान श्री राम जी के कार्यों को पूर्ण किया उसी प्रकार भक्त के कार्यों को भी वायुनंदन पूर्ण करते हैं। हनुमान जी की महिमा का गुणगान वाणी के द्वारा किया ही नहीं जा सकता। इनकी महिमा तो अपरंपार है। इसी महिमा के कारण सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग में निरंतर श्री हनुमान जी की आराधना होती रही है और होती रहेगी। हनुमान जी एकादश रुद्र के रूप में संपूर्ण लोकों में वंदनीय हैं। इनके विषय में एक सुंदर कथा इस प्रकार है। 


श्री रामावतार के समय ब्रह्माजी ने देवताओं को वानरों और भालुओं के रूप में धरा पर प्रकट होकर श्री राम जी की सेवा करने का आदेश दिया था। इस आज्ञा का पालन कर उस समय सभी देवता अपने-अपने अंशों से वानर और भालुओं के रूप में उत्पन्न हुए। इनमें वायु के अंश से स्वयं रुद्रावतार महावीर हनुमान जी ने जन्म लिया था। इनके पिता वानरराज केसरी और माता अंजनीदेवी थीं। जन्म के समय नन्हे शिशु को क्षुधापीड़ित देखकर माता अंजना वन से कंद, मूल, फल आदि लेने चली गईं, उधर सूर्योदय के अरुण बिम्ब को फल समझकर बालक हनुमान ने छलांग लगाई और पवन वेग से सूर्यमंडल के पास जा पहंचे। उसी समय राहु भी सूर्य को ग्रसने के लिए सूर्य के समीप पहंचा था। हनुमान जी ने फलप्राप्ति में अवरोध समझकर उसे धक्का दिया तो वह भयभीत होकर इंद्र के पास जा पहंचा। देवराज इंद्र ने सृष्टि की व्यवस्था में विघ्न समझकर हनुमान पर वज्र का आघात किया, जिससे हनुमान जी की बायीं ओर की ठुड्डी (हनु) टूट गई। अपने प्रिय पुत्र पर वज्र के प्रहार से वायुदेव अत्यंत क्षुब्ध हो गए और उन्होंने अपना संचार बंद कर दिया। वायु ही प्राण का आधार है, वायु के संचरण के अभाव में समस्त प्रजा व्याकुल हो उठी। त्राहि-त्राहि व चीत्कार मच गई। ऐसी भयानक स्थिति में समस्त प्रजा को व्याकुल देख प्रजापति पितामह ब्रह्मा सभी देवताओं को लेकर वहां गए, जहां वायुदेव अपने मूच्र्छित शिशु हनुमान को लेकर क्षुब्धावस्था में बैठे थे। ब्रह्माजी ने अपने हाथ के स्पर्श से शिशु हनुमान को सचेत कर दिया। उसी समय वायुदेव व शिशु हनुमान की प्रसन्नता हेतु सभी देवताओं ने शिशु हनुमान को अपने अस्त्र-शस्त्रों से अवध्य कर दिया। पितामह ने वरदान देते हुए कहा- ‘मारुत! तुम्हारा यह नन्हा पुत्र शत्रुओं के लिए भयंकर होगा। युद्ध क्षेत्र में इसे कोई पराजित नहीं कर सकेगा। रावण के साथ युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाकर यह श्री राम जी की प्रसन्नता बढ़ाएगा।’ जो कोई भी श्रद्धाभाव से हनुमान जी की सेवा आराधना करता है, उसकी मनोकामनाएं निश्चय ही पूर्ण होती हैं। उसके चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) सिद्ध हो जाते हैं।


महाबलि श्री हनुमान जी को ऐसे करें प्रसन्न—–


—–पंडित दयानन्द शास्त्री  के अनुसार सतयुग से कलयुग तक प्रथम चरण विशेष में हनुमानजी की आराधना सकल मनोरथ पूर्ण करने वाली है। श्रद्धा भाव से हनुमान जी का नमन रोग, शोक, दुखों को हरकर विशिष्ट फल देता है..
—–सभी जानते हें की चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। प्राय: शनिवार व मंगलवार हनुमान के दिन माने जाते हैं। इस दिन हनुमानजी की प्रतिमा को सिंदूर व तेल अर्पण करने की प्रथा है। कुछ जगह तो नारियल चढाने का भी रिवाज है। अध्यात्मिक उन्नति के लिए वाममुखी (जिसका मुख बाईं ओर हो) हनुमान या दास हनुमान की मूर्ति को पूजा में रखते हैं। 
——-अगर धन लाभ की स्थितियां बन रही हो, किन्तु ‍फिर भी लाभ नहीं मिल रहा हो, तो हनुमान जयंती पर गोपी चंदन की नौ डलियां लेकर केले के वृक्ष पर टांग देनी चाहिए. स्मरण रहे यह चंदन पीले धागे से ही बांधना है.
—–श्री हनुमान जी की भक्ति करने वाले को बल, बुद्धि और विद्या सहज में ही प्राप्त हो जाती है। भूत-पिशाचादि भक्त के समीप नहीं आते। हनुमान जी जीवन के सभी क्लेश को दूर कर देते हें..।
——बजरंगबली चमत्कारिक सफलता देने वाले देवता माने गए हैं. हनुमान जयंती पर उनका यह टोटका ‍विशेष रूप से धन प्राप्ति के लिए किया जाता है. साथ ही यह टोटका हर प्रकार का अनिष्ट भी दूर करता है. कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें. संकट दूर होगा और धन भी प्राप्त होगा.
——एक नारियल पर कामिया सिन्दूर, मौली, अक्षत अर्पित कर पूजन करें. फिर हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएं. धन लाभ होगा.
——हनुमान जयंती के दिन .1 पीपल के पत्ते लें। उनको गंगाजल से अच्छी तरह धोकर लाल चंदन से हर पत्ते पर 7 बार राम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएं तथा वहां प्रसाद बाटें और इस मंत्र का जाप जितना कर सकते हो करें। 
“‘जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरु देव की नांई'” 
हनुमान जयंती के बाद 7 मंगलवार इस मंत्र का लगातार जप करें। प्रयोग गोपनीय रखें। आश्चर्यजनक धन लाभ होगा।


पंडित दयानन्द शास्त्री  के अनुसार यदि धन या पैसों से जुड़ी समस्याओं से निजात पाना चाहते है, दुर्भाग्य को दूर करना है तो हनुमानजी के ऐसे फोटो की पूजा करनी चाहिए जिसमें वे स्वयं श्रीराम, लक्ष्मण और सीता माता की आराधना कर रहे हैं। पवनपुत्र के भक्ति भाव वाली प्रतिमा या फोटो की पूजा करने से उनकी कृपा तो प्राप्त होती है साथ ही श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता की कृपा भी प्राप्त होती है। इन देवी-देवताओं की प्रसन्नता के बाद दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है।


—–पंडित दयानन्द शास्त्री  के अनुसार हनुमान जी की कृपा प्राप्ति के लिए निम्न श्लोकों का पाठ करना चाहिए-


जयत्यतिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः।
 राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः।।
 दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्ट कर्मणः। 
हनूमा´शत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः।। 
न रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्। 
शिलाभिश्च प्रहरतः पादपैश्च सहस्रशः।। 
अर्दयित्वा पुरीं लंकामभिवाद्य च मैथिलीम्। 
समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम्।।
 (वा.रा. 5/4./.3-36) 


श्री हनुमान वाहक के पाठ से सभी पीड़ाएं दूर हो जाती हैं। हनुमान जी की भक्ति स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध सभी समान रूप से कर सकते हैं। भक्त की भक्तवत्सलता, श्रद्धा भाव, संबंध, समर्पण ही श्री हनुमान जी की कृपा का मूल का मंत्र है।

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