आइये जाने  को क्यों मानते हें तेजा दशमी  ..????

लोकदेवता के रूप में पूजनीय तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल .. (तेजा दशमी) से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है  


राजस्थान के लोक देवता : जिन्होंने समाज को एक नयी दिशा दी ……….

लोक देवता ऐसे महा पुरुषो को कहा जाता हे जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारणऔर लोकोपकारी  कार्यो के कारन देविक अंश के प्रतीक के रूप में स्थानीय  जनता द्वारास्वीकार किये गये हे |राजस्थान मेंरामदेवजी,भेरव,तेजाजी,पाबूजी,गोगाजी,जाम्भोजी,जिणमाता ,करणीमाता आदि सामान्यजन में लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध हे | इनके जन्मदिन अथवा समाधि की तिथि को मेलेलगते हे | राजस्थान में  भादो शुक्ल दशमी को बाबा रामदेव और सत्यवादी जाट वीर तेजाजीमहाराज का मेला लगता  हे |
तेजाजी के पुजारी को घोडला एव  चबूतरे को थान कहा जाता हे | सेंदेरिया तेजाजी कामूल स्थान हे यंही पर नाग ने इन्हें डस लिया था |ब्यावर में तेजा चोक में तेजाजी का एकप्राचीन थान हे | नागौर  का खरनाल भी तेजाजी का महत्वपूर्ण स्थान हे | प्रतिवर्ष भादवासुधि दशमी को नागौर जिले के परबतसर गाव में तेजाजी की याद में “तेजा पशु मेले” काआयोजन किया जाता हे | वीर तेजाजी को “काला और  बाला” का देवता कहा जाता हे | इन्हेंभगवान शिव का अवतार माना जाता हे | 

इस मेले की लोकाक्ति यह है कि वीर तेजाजी जाति से जाट थे । वह बड़े शूरवीर, निर्भीक, सेवाभवी, त्यागी एवं तपस्वी थे । उन्होंने दूसरों की सेवा करना ही अपना परम धर्म समझा । निस्वार्थ सेवा ही उनके जीवन का लक्ष्य था । उनका विवाह बचपन में ही इनके माता-पिता ने कर दिया था । उनकी पत्नी पीहर गई हुई थी । भौजाई के बोल उनके मन में चुभ गए और उन्होंने अपने माता-पिता से अपने ससुराल का पता ठिकाना मालूम करके अपनी पत्नी को लाने, लीलन घौड़ी पर चल दिए । रास्ते में उनकी पत्नी की सहेली लाखा नाम की गूजरी की गायों को जंगल में चराते हुए चोर ले गया । लाखा ने तेजाजी को जो इस रास्ते से अपने ससुराल जा रहे थे, गायों को छुड़ाकर लाने की कहा । तेजाजी तुरंत चोरों से गायों को छुड़ाने लाने को कहा । तेजाजी तुरंत चोरों से गायों को छुड़ाने चल दिए । रास्ते में उनको एक सांप मिला जो उनका काटना चाहता था, परंतु तेजाजी ने सांप से लाखा की गायों को चोरों से छुड़ाकर उसे संभलाकर तुरंत लौटकर आने की प्रार्थना की जिसे सांप ने मान ली  वादे के मुताबिक  लाखा की गाएं चोरों से छुड़ाकर लाए और उसे लौटा दी और उल्टे पांव ही अपनी जान की परवाह किए बगैर सांप की बाम्बी पर जाकर अपने को डसने के लिए कहा । तेजाजी ने गायों को छुड़ाने के लिए चोरों से लड़ाई की थी जिससे उनके सारे शरीर पर घाव थे । अतः सांप ने तेजाजी को डसने से मना कर दिया । तब तेजाजी ने अपनी जीभ पर डसने के लिए सांप को कहा जिसने तुरंत लीलन घेाड़ी पर बैठना डालकर तेजाजी की जीभ डस ली । तेजाजी बेजान हो धरती माता की गोद में समा गए । यह बात उनकी पत्नी को मालूम पड़ी तो पतिव्रता के श्राप देने के भय से सांप ने पेमल को उसे श्राप ने देने की विनती की । तेजाजी का यह उत्सर्ग उनकी पत्नी को सहन नहीं हुआ । अतः वह भी उनके साथ ही सती हो गई । सती होते समय उसने ‘अमर वाणी’ की कि भादवा सुदी नवमी की रात जागरण करने तथा दशमी को तेजाजी महाराज के कच्चे दूध, पानी के कच्चे दूधिया नारियल व चूरमें का भेाग लगाने पर जातक की मनोकामना पूरी होगी । इसी प्रकार सांप ने भी उनको वरदान दिया कि आपके ‘अमर-पे्रम’ को आने वाली पीढ़ी जन्म जन्मांतर तक ‘युग-पुरूष देवता’ के रूप में सदा पूजा करती रहेगी । 

तेजा दशमी मेले—

वीर तेजाजी का मेला जो प्रतिवर्ष भाद्रप्रद शुक्ल की नवमी की रात्रि से एकादशी की रात्रि तक भरता है 
मेले में जाट लोक देवता त्यागी, निर्भीक, वचनों के पक्के पर सेवी वीर तेजाजी महाराज के थान यानि मंदिर पर चढ़ाने के लिए कई रंगों में रेशमी पट्टी में गोटा किनारी से तैयार किए गए बड़े-बड़े झण्डे देश के दूर-दूर स्थानों से उनके अनुयायियों द्वारा जो विशेष ग्रामीण व श्रमिक वर्ग होते हैं, के द्वारा जुलूस के रूप में गाते-बजाते ढोल, बैंड, नगाड़ों के साथ लाए जाते हैं ।  
कई प्रकार के झूले-चकरियां, बच्चों की रेल गाडि़यां, कई प्रकार के जादू के खेल इत्यादि लगाए जाते हैं । सफाई की, पीने के ठण्डे व मीठे पानी की अनेक प्याऊ व मेलार्थियों के सुस्ताने व ठहरने के लिए अनेक स्थानों पर टेंट लगाए जाते हैं । ग्रामीण-लोग अपनी रंगीन पोशाकों में बडे़-बड़े रेश्मी झण्डे टेªक्अरों में लगाकर बैण्ड बाजों, ढोल नगाड़ों के साथ तेजाजी महाराज की जोत के साथ अलग-अलग टोलियों में तेजाजी के मंदिर पर नाचते गाते जुलूस के रूप में तेजा दशमी के रोज दिन भर आते रहते हैं जो तेजाजी के दरबार में मन्नत मंागते हैं और जिनकी मन्नत पूरी होती है वे मन्नत चढ़ाने आते हैं। प्रत्येक वर्ष भादप्रद शुक्ला नवमी की रात्री के जागरण के साथ यह मेला भादप्रद शुक्ला एकादशी रात्री तक यानि तीन दिन तक लगातार आयोजित किया जाता है।  इस मेले में मध्य राजस्थान की मूल ग्रामीण संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है, जहां असंख्य ग्रामीण आसपास के श्रेत्रों से भव्य मेले का आनंद प्राप्त करते हैं । प्रशासन के द्धारा इस मेले का भव्य आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से आकर कागज की लुगदी से संुदर-संुदर कलात्मक बनाए नऐ खिलौनों की दुकानें लगाई जाती हैं। मिट्टी के भिन्न-भिन्न प्रकार के घर में काम आने वाले पकाए हुए बर्तनों की दुकानें लगाई जाती हैं। भव्य रोशनी की सुचारू व्यवस्था की जाती है। नारियल की दुकानें, चाट-पकोड़ी की दुकानों के साथ-साथ विसायती के सामान की बहुत सी दुकानें लगाई जाती है। 

आइये जानेकी कोन थे तेजाजी..???— 

विकिपीडिया ने तेजाजी के बारे में लिखा हे :—तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ मे बसे थे। नागवंश के धवलराव अर्थात धौलाराव के नाम पर धौल्या गौत्र शुरू हुआ। तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में .4 गांव थे।
तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादो शुक्ला दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। तेजाजी का भारत के जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है। तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म – बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात – पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में हिन्दू धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन – साधारण में नवचेतना जागृत की, लोगों की जात – पांत में आस्था कम हो गई।

लोक देवता तेजाजी का जन्म एवं परिचय–

लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 11.0 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे। 

तेजाजी का जन्म धौलिया या धौल्या गौत्र के जाट परिवार में हुआ। धौल्या शासकों की वंशावली इस प्रकार है:- 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी

यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी ‘लीलण’ पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। 

इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण गोगाजी की तरह तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। 

तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं। नागौर जिले के परबतसर में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। वीर तेजाजी को “काला और बाला” का देवता तथा कृषि कार्यों का उपकारक देवता माना जाता है। उनके बहुसंख्यक भक्त जाट जाति के लोग होते हैं। तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में राजस्थान के ग्रामीण अंचल में श्रद्धाभाव से गाई व सुनाई जाती है।

तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खड़नाल के धौल्या गौत्र के जाट कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सत्रह सौ तीस को हुआ। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-

जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।

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