——श्रीराम दूत अर्थात पवनपुत्र हनुमानजी —-
शिवजी के अवतार हनुमानजी बल – बुद्धि एवं अष्ट सिद्धि और नव निधि के प्रदाता हैं|
###श्रीराम दूतम् शरणं प्रपद्ये###
आमजनों को चाहिए कि वे नित्यप्रति हनुमान चालीसा, संकटमोचन हनुमानाष्टक, बजरंग बाण, सुंदरकांड का पाठ करें|
यदि नित्य इतना समय नहीं दे पाते हैं तो निम्न मंत्र से प्रतिदिन इनकी प्रार्थना करें—–
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन। जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं। दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्॥
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं। रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्। रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम्॥
अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम्। कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम्॥
महाव्याकरणाम्भोधिमन्थमानसमन्दरम्। कवयन्तं रामकीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे॥
उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं यः शोकवह्निं जनकात्मजायाः। आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम्॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम्। पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम्॥
यत्र-यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र-तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम्। बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्॥
श्रीराम दूत अर्थात पवनपुत्र हनुमानजी जन-जन द्वारा पूजित देव है| हनुमानजी के प्रति आस्था का सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि हमारे यहां हर मंदिर में प्रत्येक शनिवार व मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ होता है| आगामी . अप्रैल, [.7 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को] हनुमान जयंती है| हनुमान जयंती भी वर्ष में दो बार मनाई जाती है| चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के अलावा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को साल में दो बार हनुमान मंदिरों में उत्सव मनाए जाते हैं – चैत्र शुक्ल पूर्णिमा व अश्विन शुक्ल पूर्णिमा को| हनुमानजी के बारे में यह प्रसिद्ध है कि इन्हें भूलने की आदत है|
इनसे वंचित परिणाम प्राप्त करने के लिए इन्हें बारंबार याद दिलाना पड़ता है| ऐसा बचपन में इनके द्वारा खिलौना समझकर सूर्य को भक्षण कर लेने के कारण श्रापवश हुआ| इसी कारण जब वानरों का समूह सीताजी की खोज में गया हुआ था और सम्पाती द्वारा जब यह बताया गया की वे रावण की नगरी लंका में है और वहां जाने के लिए समुद्र को लांघना आवश्यक है, तो सभी ने अपना-अपना बल बताया पर हनुमानजी भूल गए| अंत में जाम्बवन्त द्वारा याद दिलाने पर इन्हें अपने बल का स्मरण हुआ और देखते ही देखते समुद्र पार कर लंका से सीताजी का पता लगाकर वापस लौट कर समस्त वानर यूथ की जान बचाई| हनुमानजी से कार्यसिद्धी के लिए इन्हें नित्य पूजा पाठ करके याद दिलाना पड़ता है|
हनुमानजी बल, बुद्धि, अणिमाद, अष्ट सिद्धि व नव निधि के प्रदाता हैं| ऐसा माता सीता के वरदान के कारण संभव हुआ है| हनुमानजी शिव के अवतार माने गए हैं| ये भूमिपुत्र मंगल के भी प्रतिरूप या समानांतर माने जाते हैं| इसलिए कुआं या बोरिंग खोदने के समय बाकायदा हनुमानजी के पूजा प्रतिष्ठा की जाती है| यहां तक कि ग्रामीण अंचल में तो जहाँ-जहाँ कुए होते हैं, वहां हनुमान जी का मंदिर अनिवार्य रूप से होता है| क्योंकि मान्यता है कि निर्जन वनों या खेतों में, जल के नजदीक भूत-प्रेत होते हैं| इन बाधाओं से मुक्ति के लिए वहां विधिवत रूप से हनुमानजी कि स्थापना की जाती है| क्योंकि कहा भी गया है- ‘बन उपवन मग गिरी गृह मांही, तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं|’
ग्रह बाधा निवारण: किसी भी जातक के ग्रहों की बाधा या दुष्परिणाम की अवस्था में हनुमानजी की पूजा व पाठ से फायदा होता है| प्रमुख रूप से मंगल दोष निवारण| कुंडली में मंगल की स्थिति के अनुसार निवारण अलग-अलग तरीकों से होता है| जिनमें सुंदरकांड पाठ, हनुमान चालीसा व अन्य प्रकार से विशेष पूजा कर मांगलिक दोष का निवारण होता है| वक्री मंगल या मंगल की महादशा के दौरान विपरीत परिणामों को दूर करने के लिए भी हनुमानजी की अभ्यर्थना लाभदायक सिद्ध होती है| राहू की महादशा के दुष्परिणाम भी हनुमानजी की अर्चना से दूर हो जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से 2. मंगलवार तक हनुमानजी के चोला चढ़ाना व शनिवार व मंगलवार को गुड-चने का प्रसाद बांटना प्रमुख है| इन उपायों से राहु जनित दोषों का निवारण होता है|
इनसे वंचित परिणाम प्राप्त करने के लिए इन्हें बारंबार याद दिलाना पड़ता है| ऐसा बचपन में इनके द्वारा खिलौना समझकर सूर्य को भक्षण कर लेने के कारण श्रापवश हुआ| इसी कारण जब वानरों का समूह सीताजी की खोज में गया हुआ था और सम्पाती द्वारा जब यह बताया गया की वे रावण की नगरी लंका में है और वहां जाने के लिए समुद्र को लांघना आवश्यक है, तो सभी ने अपना-अपना बल बताया पर हनुमानजी भूल गए| अंत में जाम्बवन्त द्वारा याद दिलाने पर इन्हें अपने बल का स्मरण हुआ और देखते ही देखते समुद्र पार कर लंका से सीताजी का पता लगाकर वापस लौट कर समस्त वानर यूथ की जान बचाई| हनुमानजी से कार्यसिद्धी के लिए इन्हें नित्य पूजा पाठ करके याद दिलाना पड़ता है|
हनुमानजी बल, बुद्धि, अणिमाद, अष्ट सिद्धि व नव निधि के प्रदाता हैं| ऐसा माता सीता के वरदान के कारण संभव हुआ है| हनुमानजी शिव के अवतार माने गए हैं| ये भूमिपुत्र मंगल के भी प्रतिरूप या समानांतर माने जाते हैं| इसलिए कुआं या बोरिंग खोदने के समय बाकायदा हनुमानजी के पूजा प्रतिष्ठा की जाती है| यहां तक कि ग्रामीण अंचल में तो जहाँ-जहाँ कुए होते हैं, वहां हनुमान जी का मंदिर अनिवार्य रूप से होता है| क्योंकि मान्यता है कि निर्जन वनों या खेतों में, जल के नजदीक भूत-प्रेत होते हैं| इन बाधाओं से मुक्ति के लिए वहां विधिवत रूप से हनुमानजी कि स्थापना की जाती है| क्योंकि कहा भी गया है- ‘बन उपवन मग गिरी गृह मांही, तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं|’
ग्रह बाधा निवारण: किसी भी जातक के ग्रहों की बाधा या दुष्परिणाम की अवस्था में हनुमानजी की पूजा व पाठ से फायदा होता है| प्रमुख रूप से मंगल दोष निवारण| कुंडली में मंगल की स्थिति के अनुसार निवारण अलग-अलग तरीकों से होता है| जिनमें सुंदरकांड पाठ, हनुमान चालीसा व अन्य प्रकार से विशेष पूजा कर मांगलिक दोष का निवारण होता है| वक्री मंगल या मंगल की महादशा के दौरान विपरीत परिणामों को दूर करने के लिए भी हनुमानजी की अभ्यर्थना लाभदायक सिद्ध होती है| राहू की महादशा के दुष्परिणाम भी हनुमानजी की अर्चना से दूर हो जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से 2. मंगलवार तक हनुमानजी के चोला चढ़ाना व शनिवार व मंगलवार को गुड-चने का प्रसाद बांटना प्रमुख है| इन उपायों से राहु जनित दोषों का निवारण होता है|