आइये जाने की केसे करे उपायों/टोटकों द्वारा गृह दोष निवारण….????


मंत्र जप,व्रत एवं ग्रह सम्बन्धी वस्तुओं के दान से ग्रह जनित दोषों का निवारण —-
 
ग्रहों की शुभता और अशुभता जन्म कुंडली में भावगत स्थित ग्रहों के अनुसार होती है| जन्म कुंडली में भावगत ग्रह शुभ स्थिति में हैं, तो व्यक्ति को परिणाम भी अच्छे मिलते हैं| यदि अशुभ स्थिति में हैं, तो बनते हुए काम भी बिगड़ जायेंगे| प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाने के लिए ग्रह सम्बन्धी मंत्र का जप या व्रत करें| यह उपाय इतने सरल और सुगम हैं, जिन्हें कोई भी साधारण व्यक्ति आसानी से कर सकता है|

——सूर्य के लिए —–– सूर्य की प्रतिकूलता दूर करने के लिए रविवार का व्रत रखें| भोजन नमक रहित करें| सूर्य सम्बन्धी वस्तुओं- गुड, गेहूं, या ताम्बे का दान किसी औसत उम्र वाले व्यक्ति को दें| दान रविवार को सांयकाल करें| यदि चाहें तो गाय या बछड़े को गुड-गेहूं खिलाएं| अपने पिताजी की सेवा करें| यह नहीं कर सकें तो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करके आदित्य ह्रदयस्त्रोत का पाठ करें|
——-चंद्रमा के लिए —-– यदि कुंडली में चंद्रमा, प्रतिकूल चल रहा हो तो सोमवार का उपवास शुरू कर दें| अपनी माँ की सेवा करें| सोमवार को शाम किसी युवती को शंख, सफ़ेद वस्त्र, दूध, चावल व चांदी का निरंतर दान करते रहें| गाय को सोमवार को सना हुआ आता खिलाएं| चंद्रमा यदि दोषप्रद हो तो व्यक्ति दूध का प्रयोग नहीं करें|
——मंगल के लिए —-– मंगल की प्रतिकूलता से बचाव के लिए मंगलवार का व्रत रखें| अपने छोटे भाई-बहन का विशेष ख्याल रखें| मंगल की वस्तुओं – लाल कपडा, गुड, मसूर की दाल, स्वर्ण, ताम्बा, तंदूर पर बनी मीठी रोटी का यथा-शक्ति दान करते रहें| आवेश पर हमेशा नियंत्रण रखने का प्रयास करें| हिंसात्मक कार्य से दूर रहें|
——बुध के लिए —-– बुध दोष निवारणार्थ बुधवार का उपवास करें| इस दिन उबले हुए मूंग गरीब व्यक्ति को खिलाएं| गणेशजी की अभ्यर्थना दूर्वा से करें| हरे वस्त्र, मूंग की दाल का दान बुधवार मध्याह्न करें| बुध के दोष दूर करने के लिए अपने वजन के बराबर हरी घांस गायों को खिलाएं| बहिन व बेटियों का हमेशा सम्मान करें|
——गुरु के लिए—- – देवगुरु बृहस्पति यदि दशावाश या गोचरवश प्रतिकूल परिणाम दे रहे हों तो गुरूवार का उपवास करें| इसके अलावा केले की पूजा, पीपल में नित्य जल चढ़ाना, गुरुजनों व विद्वान व्यक्तियों का सम्मान करने से भी गुरु की प्रतिकूलता दूर होती है|
——शुक्र के लिए —-– शुक्र की प्रतिकूलता दूर करने के लिए शुक्रवार का व्रत किसी शुक्लपक्ष से प्रारम्भ करें| फैशन सम्बन्धी वस्तुओं इत्र, फुलेल, डियोडरेंट इत्यादि का प्रयोग ना करें| रेशमी वस्त्र, इत्र, चीनी, कर्पूर, चन्दन, सुगन्धित तेल इत्यादि का दान किसी ब्राह्मन युवती को दें|
——–शनि / राहू- केतु के लिए —– शनि राहू – केतु मुख्यतया जप-तप की बजाय दान दक्षिणा से ज्यादा प्रसन्न होते हैं| इनके द्वारा प्रदत्त दोष निवारणार्थ शनिवार का व्रत रखें| सुबह पीपल को जल से सींचे व सांयकाल गृत का दीपक जलाएं| काले वस्त्र व काली उड़द, लौह, तिल, सरसों का तेल, गाय आदि का दान करें|
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लग्न कुंडली में किसी भी भाव में सूर्य के साथ केतु या चंद्रमा के साथ राहू की युति हो तो  ग्रहण योग बनता है |इसके अलावा सप्तम या द्वादश भाव में नीच के शुक्र [कन्या राशी में ] के साथ राहू की युति को भी कुछ विद्वान ग्रहण दोष की संज्ञा देते है | ग्रहण योग का दुष्प्रभाव कुंडली के विभिन्न भावों में अलग – अलग देखने को मिलता है |

प्रथम भाव—– व्यक्ति गुस्सेल, स्वस्थ्य में कमी, रुखा स्वभाव व निज स्वार्थ सर्वोपरी मानने वाला होता है |
द्वितीय भाव—– धन की चिंता करना, सरकारी छापे राजकार्य में धन की बर्बादी और मेहनत का परिणाम अल्प मिलता है |
तीसरा भाव—- भाई-बंधुओ से कलह रहती है | यह योग जातक को शांतचित नही रहने देता |
चतुर्थ भाव—- मानसिक परेशानी व अस्थिरता, निकटस्थ लोगो से वैचारिक मतभेद व हीनभावना से ग्रस्त व्यक्ति होता है |
पंचम भाव—- बचपन कठोर व वृद्धावस्था संघर्षो से भरी हुई होती है | दरिद्रता, मित्रो का अभाव व गृह कलह रहता है |
छठा भाव—- विविध रोग विशेष कर हृदय रोग, कदम कदम पर दुश्मनी पालने वाला, परस्त्रीगामी, संदेहास्पद व्यक्तित्व का जातक होता है |
सप्तम भाव—- क्रोधी स्वभाव, कायाक्षीण, द्वि-भार्या योग,संकीर्ण मनोवृति व जीवनसाथी हमेशा स्वस्थ्य से संघर्षशील रहता है |
अष्टम भाव—- अल्पायु योग का निर्माण, दुर्घटना का भय, बीमारी व दुष्ट मित्रो के माध्यम से धन का नाश होता है | यदि अन्य योग ठीक हो तो अल्पायु योग समाप्त हो सकता है
नवम भाव—- शिक्षा व आजीविका के लिए निरंतर संघर्ष, व्यर्थ की यात्राएं, किसी का भी सहयोग नही, भाग्य वृद्धि 48 वर्ष के पश्चात होती है |
दशम भाव—- माता-पिता के सुख में कमी, असंयमी, रोजगार के लिए संघर्षशील व्यक्ति रहता है |
ग्यारवाँ भाव—- जिद्दी, गलत बात पर अड़ने वाला, आय के साधन अनिश्चित, ठगी, खुद भी धोका खा सकता है |
बारहवां भाव—– संघर्षशील व परेशानो का भरा जीवन, प्रेम विवाह [जाती से बहार] योग, व्यर्थ के व्ययों की भरमार, पिता के सुख में कमी व निरंतर उत्थान पतन का सामना करना पड़ता है |
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जानिए दोष निवारण के उपाय —-
                                           जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी |
                                            दुर्गा क्षमा शिव धात्री, स्वाहा सवधा नमोस्तुते ||

ग्रहण योगजनित दोषों का निवारण जयंती का अवतार जीण की आराधना से होता है | इसका ज्वलंत उदाहरण यह है के हमारे यहाँ पर ग्रहण काल में किसी भी देवी-देवता की पूजा नही होती है | जबकि जीण की पूजा ग्रहण काल में भी मान्य है | गृह जनित योग यहाँ पर निष्प्रभावी हो जाते है | इस लिए जिन लोगो की कुंडली में  ग्रहण-दोष है, वे निम्न प्रकार जीण की आराधना करे |

जीण के नाम से संकल्प लेकर शुक्लपक्ष की अष्टमी के 4.  उपवास करे | यदि ग्रहण दोष . , . , 6 , 8 , 11 , व 12 , भावों में है, तो शुक्लपक्ष की एकम से जीण की प्रतिमा के आगे तेल की अखंड जोत जलाकर अष्टमी तक नित्य पूजा अर्चना करे |  शेष भावों 2 , 4 , 5 , 7 , 9 व 1. , भावों में ग्रहण दोष है, तो अखंड जोत घी की जलाई जाती है व शेष क्रिया यथावत रखे | इससे ग्रह दोष जनित बाधाओं का निवारण होता है |

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सुदर्शन यंत्र—–

शास्त्रों  में सुदर्शन यंत्र की उत्पत्ति भगवान विष्णु के सुदार्शनावतार से बताई गयी है | भगवन विष्णु के इस अवतार का पूजन सुदर्शन यंत्र के द्वारा किया जाना विशेष लाभकारी बताया गया है | इसी मान्यता है की यह यंत्र श्री नाथजी का भी परम प्रिय है | यह यंत्र सभी प्रकार के अशुभ प्रभावों एवं दुष्प्रभावों नष्ट करके रक्षा प्रदान करने वाला है |इस यंत्र के पूजन से व्यापार एवं आमजन को भी लाभ मिलता है |

पूजन विधि-  सुदर्शन यंत्र की स्थापना, कार्यस्थल या अपने निवास के पूजन घर में पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्ध योग, त्रिपुष्कर योग या अन्य किसी विशेष मुहूर्त में करे | पंचोपचार या षोड़शोपचार से पूजन करने के बाद पंचामृत से यंत्र का पुरुष सूक्त एवं श्रीसूक्त से अभिषेक करे | इसके बाद सुदर्शन कवच का पाठ एवं क्ली बीज मंत्र का जप करे | यंत्र का निर्माण भोजपत्र, ताम्रपात्र, चांदी या स्वर्ण पर करवाएं | यह यंत्र किसी पंडित से बनवा ले या खरीद ले 

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