आइये जाने उच्च तथा नीच राशि के ग्रह—


ज्योतिष में रूचि रखने वाले लोगों के मन में उच्च तथा नीच राशियों में स्थित ग्रहों को लेकर एक प्रबल धारणा बनी हुई है कि अपनी उच्च राशि में स्थित ग्रह सदा शुभ फल देता है तथा अपनी नीच राशि में स्थित ग्रह सदा नीच फल देता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह को तुला राशि में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा इसीलिए तुला राशि में स्थित शनि को उच्च का शनि कह कर संबोधित किया जाता है और अधिकतर ज्योतिषियों का यह मानना है कि तुला राशि में स्थित शनि कुंडली धारक के लिए सदा शुभ फलदायी होता है। 

किंतु यह धारणा एक भ्रांति से अधिक कुछ नहीं है तथा इसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है और इसी भ्रांति में विश्वास करके बहुत से ज्योतिष प्रेमी जीवन भर नुकसान उठाते रहते हैं क्योंकि उनकी कुंडली में तुला राशि में स्थित शनि वास्तव में अशुभ फलदायी होता है तथा वे इसे शुभ फलदायी मानकर अपने जीवन में आ रही समस्याओं का कारण दूसरे ग्रहों में खोजते रहते हैं तथा अपनी कुंडली में स्थित अशुभ फलदायी शनि के अशुभ फलों में कमी लाने का कोई प्रयास तक नहीं करते। इस चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइए एक नज़र में ग्रहों के उच्च तथा नीच राशियों में स्थित होने की स्थिति पर विचार कर लें।

नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह को किसी एक राशि विशेष में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है जिसे इस ग्रह की उच्च की राशि कहा जाता है। इसी तरह अपनी उच्च की राशि से ठीक सातवीं राशि में स्थित होने पर प्रत्येक ग्रह के बल में कमी आ जाती है तथा इस राशि को इस ग्रह की नीच की राशि कहा जाता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह की उच्च की राशि तुला है तथा इस राशि से ठीक सातवीं राशि अर्थात मेष राशि शनि ग्रह की नीच की राशि है तथा मेष में स्थित होने से शनि ग्रह का बल क्षीण हो जाता है। इसी प्रकार हर एक ग्रह की .. राशियों में से एक उच्च की राशि तथा एक नीच की राशि होती है। 

किंतु यहां पर यह समझ लेना अति आवश्यक है कि किसी भी ग्रह के अपनी उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का संबंध केवल उसके बलवान या बलहीन होने से होता है न कि उसके शुभ या अशुभ होने से। तुला में स्थित शनि भी कुंडली धारक को बहुत से अशुभ फल दे सकता है जबकि मेष राशि में स्थित नीच राशि का शनि भी कुंडली धारक को बहुत से लाभ दे सकता है। इसलिए ज्योतिष में रूचि रखने वाले लोगों को यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि उच्च या नीच राशि में स्थित होने का प्रभाव केवल ग्रह के बल पर पड़ता है न कि उसके स्वभाव पर। 
पारम्‍परिक भारतीय ज्‍योतिष कभी यह नहीं कहती कि उच्‍च का ग्रह हमेशा अच्‍छे परिणाम देगा और नीच का ग्रह हमेशा खराब परिणाम देगा। लेकिन हेमवंता नेमासा काटवे की मानें तो उच्‍च ग्रह हमेशा खराब परिणाम देंगे और नीच ग्रह अच्‍छे परिणाम देंगे। इसके पीछे उनका मंतव्‍य मुझे यह नजर आता है कि जब कोई ग्रह उच्‍च का होता है तो वह इतनी तीव्रता से परिणाम देता है कि व्‍यक्ति की जिंदगी में कर्मों से अधिक प्रभावी परिणाम देने लगता है। यानि व्‍यक्ति कोई एक काम करना चाहे और ग्रह उसे दूसरी ओर लेकर जाएं। इस तरह व्‍यक्ति की जिंदगी में संघर्ष बढ़ जाता है। इसी वजह से काटवे ने उच्‍च के ग्रहों को खराब कहा होगा।
कुछ परिस्थितियां ऐसी भी होती हैं जब नीच ग्रह उच्‍च का परिणाम देते हैं। यह मुख्‍य रूप से लग्‍न में बैठे नीच ग्रह के लिए कहा गया है। मैंने तुला लग्‍न में सूर्य और गुरू की युति अब तक चार बार देखी है। तुला लग्‍न में सूर्य नीच का हुआ और गुरू अकारक। अगर टर्मिनोलॉजी के अनुसार गणना की जाए तो सबसे निकृष्‍ट योग बनेगा। लेकिन ऐसा नहीं होता। लग्‍न में सूर्य उच्‍च का परिणाम देता है और वास्‍तव में देखा भी यही गया। लग्‍न में उच्‍च का सूर्य गुरू के सा‍थ हो तो जातक अपने संस्‍थान में शीर्ष स्‍थान पर पहुंचता है
आइए कुछ तथ्यों की सहायता से इस विचार को समझने का प्रयास करते हैं। शनि नवग्रहों में सबसे धीमी गति से भ्रमण करते हैं तथा एक राशि में लगभग अढ़ाई वर्ष तक रहते हैं अर्थात शनि अपनी उच्च की राशि तुला तथा नीच की राशि मेष में भी अढ़ाई वर्ष तक लगातार स्थित रहते हैं। यदि ग्रहों के अपनी उच्च या नीच राशियों में स्थित होने से शुभ या अशुभ होने की प्रचलित धारणा को सत्य मान लिया जाए तो इसका अर्थ यह निकलता है कि शनि के तुला में स्थित रहने के अढ़ाई वर्ष के समय काल में जन्में प्रत्येक व्यक्ति के लिए शनि शुभ फलदायी होंगे क्योंकि इन वर्षों में जन्में सभी लोगों की जन्म कुंडली में शनि अपनी उच्च की राशि तुला में ही स्थित होंगे। यह विचार व्यवहारिकता की कसौटी पर बिलकुल भी नहीं टिकता क्योंकि देश तथा काल के हिसाब से हर ग्रह अपना स्वभाव थोड़े-थोड़े समय के पश्चात ही बदलता रहता है तथा किसी भी ग्रह का स्वभाव कुछ घंटों के लिए भी एक जैसा नहीं रहता, फिर अढ़ाई वर्ष तो बहुत लंबा समय है। 
इसलिए ग्रहों के उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का मतलब केवल उनके बलवान या बलहीन होने से समझना चाहिए न कि उनके शुभ या अशुभ होने से। मैने अपने ज्योतिष अभ्यास के कार्यकाल में ऐसी बहुत सी कुंडलियां देखी हैं जिनमें अपनी उच्च की राशि में स्थित कोई ग्रह बहुत अशुभ फल दे रहा होता है क्योंकि अपनी उच्च की राशि में स्थित होने से ग्रह बहुत बलवान हो जाता है, इसलिए उसके अशुभ होने की स्थिति में वह अपने बलवान होने के कारण सामान्य से बहुत अधिक हानि करता है। इसी तरह मेरे अनुभव में ऐसीं भी बहुत सी कुंडलियां आयीं हैं जिनमें कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में स्थित होने पर भी स्वभाव से शुभ फल दे रहा होता है किन्तु बलहीन होने के कारण इन शुभ फलों में कुछ न कुछ कमी रह जाती है। ऐसे लोगों को अपनी कुंडली में नीच राशि में स्थित किन्तु शुभ फलदायी ग्रहों के रत्न धारण करने से बहुत लाभ होता है क्योंकि ऐसे ग्रहों के रत्न धारण करने से इन ग्रहों को अतिरिक्त बल मिलता है तथा यह ग्रह बलवान होकर अपने शुभ फलों में वृद्धि करने में सक्षम हो जाते हैं। 
हर ग्रह अपनी उच्‍च राशि में तीव्रता से परिणाम देता है और नीच राशि में मंदता के साथ। अगर वह ग्रह आपकी कुण्‍डली में अकारक है तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह उच्‍च का है या नीच का। सूर्य मेष में, चंद्र वृष में, बुध कन्‍या में, गुरू कर्क में, मंगल मकर में, शनि तुला में और शुक्र मीन राशि में उच्‍च के परिणाम देते हैं। यानि पूरी तीव्रता से परिणाम देते हैं। इसी तरह सूर्य तुला में, चंद्रमा वृश्चिक में, बुध मीन में, गुरू मकर में, मंगल कर्क में, शुक्र कन्‍या में और शनि मेष में नीच का परिणाम देते हैं।

अब हम ग्रह एवं राशियों के कुछ वर्गीकरण को जानेंगे जो कि फलित ज्‍योतिष के लिए अत्‍यन्‍त ही महत्‍वपूर्ण हैं। पहला वर्गीकरण शुभ ग्रह और पाप ग्रह का इस प्रकार है –
शुभ ग्रह:  चन्द्रमा, बुध, शुक्र, गुरू हैं
पापी ग्रह:  सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु हैं
साधारणत चन्‍द्र एवं बुध को सदैव ही शुभ नहीं गिना जाता। पूर्ण चन्‍द्र अर्थात पूर्णिमा के पास का चन्‍द्र शुभ एवं अमावस्‍या के पास का चन्‍द्र शुभ नहीं गिना जाता। इसी प्रकार बुध अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ होता है और यदि पापी ग्रह के साथ हो तो पापी हो जाता है।
यह ध्‍यान रखने वाली बात है कि सभी पापी ग्रह सदैव ही बुरा फल नहीं देते। न ही सभी शुभ ग्रह सदैव ही शुभ फल देते हैं। अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों जैसे ग्रह का स्‍वामित्‍व, ग्रह की राशि स्थिति, दृष्टियों इत्‍यादि पर भी निर्भर करता है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
जैसा कि उपर कहा गया एक ग्रह का अच्‍छा या बुरा फल कई अन्‍य बातों पर निर्भर करता है और उनमें से एक है ग्रह की राशि में स्थिति। कोई भी ग्रह सामान्‍यत अपनी उच्‍च राशि, मित्र राशि, एवं खुद की राशि में अच्‍छा फल देते हैं। इसके विपरीत ग्रह अपनी नीच राशि और शत्रु राशि में बुरा फल देते हैं।

ग्रहों की उच्‍चादि राशि स्थिति इस प्रकार है —-
 
ग्रह
उच्च राशि
नीच राशि
स्‍वग्रह राशि
1
सूर्य,मेष
तुला
सिंह
2
चन्द्रमा,  वृषभ
वृश्चिक
कर्क
.
मंगल,   मकर
 कर्क
मेष, वृश्चिक
4
बुध, कन्या
मीन          
मिथुन, कन्या
5
 गुरू,   कर्क  
मकर 
 धनु, मीन
शुक्र,   मीन        
कन्या 
वृषभ, तुला
7
शनि,  तुला                 मेष  मकर, कुम्भ
8
 राहु, धनु           मिथुन
9
केतु    मिथुन धनु
उपर की तालिका में कुछ ध्‍यान देने वाले बिन्‍दु इस प्रकार हैं –
1 ग्रह की उच्‍च राशि और नीच राशि एक दूसरे से सप्‍तम होती हैं। उदाहरणार्थ सूर्य मेष में उच्‍च का होता है जो कि राशि चक्र की पहली राशि है और तुला में नीच होता है जो कि राशि चक्र की सातवीं राशि है।
2 सूर्य और चन्‍द्र सिर्फ एक राशि के स्‍वामी हैं। राहु एवं केतु किसी भी राशि के स्‍वामी नहीं हैं। अन्‍य ग्रह दो-दो राशियों के स्‍वामी हैं।
3 राहु एवं केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती। राहु-केतु की उच्‍च एवं नीच राशियां भी सभी ज्‍योतिषी प्रयोग नहीं करते हैं।
 
सभी ग्रहों के बलाबल का राशि और अंशों के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। एक राशि में 3.ए अंश होते हैं। ग्रहों के सूक्ष्म विश्लेषण के लिए ग्रह किस राशि में कितने अंश पर है यह ज्ञान होना अनिवार्य है। सभी नौ ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण इस प्रकार है-

सूर्य- सूर्य सिंह राशि में स्वग्रही होता है। 1ए से 10ए अंश तक उच्च का माना जाता है। तुला के 10ए अंश तक नीच का होता है। 1ए से 20ए अंश तक मूल त्रिकोणस्थ माना जाता है। सिंह में ही 21ए से 30ए अंश तक स्वक्षेत्री होता है।
चंद्र- कर्क राशि में चंद्रमा स्वग्रही अथवा स्वक्षेत्री माना जाता है, परन्तु वृष राशि में 3ए अंश तक उच्च का और वृश्चिक राशि में 3ए अंश तक नीच का होता है। वृष राशि में ही 4ए से 30ए अंश तक मूल त्रिकोणस्थ तथा कर्क राशि में 1ए से 30ए अंश तक स्वक्षेत्री माना जाता है।

मंगल- मंगल मेष तथा वृश्चिक राशियों में स्वग्रही होता है। मकर राशि में 1ए से 28ए अंश तक उच्च का तथा कर्क राशि में 1ए से 28ए अंश तक नीच का माना जाता है। मेष राशि में 1ए से 18ए अंश तक मूल त्रिकोणस्थ होता है और 19ए से 20ए अंश तक स्वक्षेत्री कहा जाता है।

बुध- बुध ग्रह कन्या और मिथुन राशियों में स्वग्रही होता है परंतु कन्या राशि में 15ए अंश तक उच्च का और मीन राशि में 15ए अंश तक नीच का होता है। कन्या राशि में ही 16ए से 20ए अंश तक मूल त्रिकोणस्थ और इसी राशि में 21ए से 30ए अंश तक स्वक्षेत्री कहलाता है।

गुरू- गुरू धनु और मीन राशियों में स्वग्रही या स्वक्षेत्री होता है। कर्क राशि में 5ए अंश तक उच्च का और मकर राशि में 5ए अंश तक नीच का होता है। 1ए से 10ए अंश तक मूल त्रिकोणस्थ तथा धनु राशि में ही 14ए से 30ए अंश तक स्वक्षेत्री माना जाता है।

शुक्र- शुक्र ग्रह अपनी दो राशियों वृष और तुला में स्वग्रही होता है। मीन राशि में 27ए अंश तक उच्च का और कन्या राशि में 27ए अंश तक नीच का होता है। तुला राशि में 1ए से 10ए अंश तक मूल त्रिकोणस्थ और उसी राशि में 11ए से 30ए अंश तक स्वक्षेत्री होता है।

शनि- शनि अपनी दो राशियों कुंभ और मकर में स्वग्रही होता है। तुला में 1ए से 20ए अंश तक उच्च का और मेष में 20ए अंश तक नीच का होता है। कुंभ राशि में ही शनि 1ए से 20ए अंश तक मूल त्रिकोण का होता है। उसके बाद 21ए से 30ए अंश तक स्वक्षेत्री होता है।

राहू- कन्या राशि का स्वामी मिथुन और वृष में उच्च का होता है। धनु में नीच का कर्क में मूल त्रिकोस्थ माना जाता है।

केतु- केतु मिथुन राशि का स्वामी है। 15ए अंश तक धनु और वृश्चिक राशि में उच्च का होता है। 15ए अंश तक मिथुन राशि में नीच का, सिंह राशि में मूल त्रिकोण का और मीन में स्वक्षेत्री होता है। वृष राशि में ही यह नीच का होता है। जन्म कुंडली का विश्लेषण अंशों के आधार पर करने पर ही ग्रहों के वास्तविक बलाबल को ज्ञात किया जाता है। उदाहरण के लिए सिंह लग्न की जन्म कुंडली में सूर्य लग्न में बैठे होने से वह स्वग्रही है। यह जातक को मान सम्मान, धनधान्य बचपन से दिला रहा है। दशम भाव में वृष का चंद्रमा होने से जातक उत्तरोत्तर उन्नति करता रहेगा। अत: यह दो ग्रह ही उसके भाग्यवर्धक होंगे।
नीच भंग राज योग —–
ग्रह अगर नीच राशि में बैठा हो या शत्रु भाव में तो आम धारणा यह होती है कि जब उस ग्रह की दशा आएगी तब वह जिस घर में बैठा है उस घर से सम्बन्धित विषयों में नीच का फल देगा. लेकिन इस धारणा से अगल एक मान्यता यह है कि नीच में बैठा ग्रह भी कुछ स्थितियों में राजगयोग के समान फल देता है. इस प्रकार के योग को नीच भंग राजयोग के नाम से जाना जाता है.
नीच भंग राजयोग के लिए आवश्यक स्थितियां——-
ज्योतिषशास्त्र के नियमों में बताया गया है कि  नवमांश कुण्डली में अगर ग्रह उच्च राशि में बैठा हो तो जन्म कुण्डली में नीच राशि में होते हुए भी वह नीच का फल नहीं देता है. इसका कारण यह है कि इस स्थिति में उनका नीच भंग हो जाता है.
जिस राशि में नीच ग्रह बैठा हो उस राशि का स्वामी ग्रह उसे देख रहा हो अथवा जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा हो उस राशि का स्वामी स्वगृही होकर साथ में बैठा हो तो स्वत: ही ग्रह का नीच भंग हो जाता है( If a planet is located in the debilitated sign or it aspects any other debilitated planet which is located in the seventh house from it then the inauspiciousness of the planet will be canceled as it will be obstructed) . नीच भंग के संदर्भ में एक नियम यह भी है कि नीच राशि में बैठा ग्रह अगर अपने सामने वाले घर यानी अपने से सातवें भाव में बैठे नीच ग्रह को देख रहा है तो दोनों नीच ग्रहों का नीच भंग हो जाता है.
अगर आपकी कुण्डली में ये स्थितियां नहीं बनती हों तो इन नियमों से भी नीच भंग का आंकलन कर सकते हैं जैसे जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठे हों उस राशि के स्वामी अपनी उच्च राशि में विराजमान हों तो नीच ग्रह का दोष नहीं लगता है( If these positions does not occur then the Ascendant in the birth-chart should be determined to consider this Yoga) . एक नियम यह भी है कि जिस राशि में ग्रह नीच का होकर बैठा है उस ग्रह का स्वामी जन्म राशि से केन्द्र में विराजमान है साथ ही जिस राशि में नीच ग्रह उच्च का होता है उस राशि का स्वामी भी केन्द्र में बैठा हो तो सर्वथा नीच भंग राज योग बनता है. अगर यह स्थिति नहीं बनती है तो लग्न भी इस का आंकलन किया जा सकता है यानी जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा उस राशि का स्वामी एवं जिस राशि में नीच ग्रह उच्च का होता है उसका स्वामी लग्न से कहीं भी केन्द्र में स्थित हों तो नीच भंग राज योग का शुभ फल देता है.
अगर आपकी कुण्डली में ग्रह नीच राशियों में बैठे हैं तो इन स्थितियों को देखकर आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि आपकी कुण्डली में नीच राशि में बैठा ग्रह नीच का फल देगा अथवा यह नीच भंग राजयोग बनकर आपको अत्यंत शुभ फल प्रदान करेगा.
नीच भंग राजयोग का फल—–
नीच भंग राज योग कुण्डली में एक से अधिक होने पर भी उसी प्रकार फल देता है जैसे एक नीच भंग राज योग होने पर . आधुनिक परिवेश में ज्योतिषशास्त्री मानते है कि ऐसा नहीं है कि इस योग के होने से व्यक्ति जन्म से ही राजा बनकर पैदा लेता है. यह योग जिनकी कुण्डली में बनता है उन्हें प्रारम्भ में कुछ मुश्किल हालातों से गुजरना पड़ता है जिससे उनका ज्ञान व अनुभव बढ़ता है तथा कई ऐसे अवसर मिलते हैं जिनसे उम्र के साथ-साथ कामयाबी की राहें प्रशस्त होती जाती हैं.
यह योग व्यक्ति को आमतौर पर राजनेता, चिकित्सा विज्ञान एवं धार्मिक क्षेत्रों में कामयाबी दिलाता है जिससे व्यक्ति को मान-सम्मान व प्रतिष्ठा मिलती है. वैसे, इस योग के विषय में यह धारणा भी है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में जिस राशि में ग्रह नीच होकर बैठा है उस राशि का स्वामी एवं उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी केन्द्र स्थान या त्रिकोण में बैठा हो तो व्यक्ति महान र्धमात्मा एवं राजसी सुखों को भोगने वाला होता है. इसी प्रकार नवमांश में नीच ग्रह उच्च राशि में होने पर भी समान फल मिलता है. 

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