आइये जाने -भाई बहन के स्नेह का (एक पावन त्योहार)पर्व “भाई दूज” …!!!(Bhai Duj, Yam Dwitiya )—

आप सभी जानते ही हैं कि भाई दूज पर्व भाईयों के प्रति बहनों की श्रद्धा और विश्वास का पर्व है. इस पर्व को हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन ही मनाया जाता है. इस पर्व को बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगा कर मनाती हैं. और भगवान से अपने भाइयों की लम्बी आयु की कामना करती हैं.

दरअसल, हिन्दू समाज में भाई-बहन के स्नेह और सौहार्द का प्रतीक यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है. क्योंकि यह दिन यम द्वितीया भी कहलाता है. इसलिये इस पर्व पर यम देव की पूजा भी की जाती है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है.
हिन्दूओं के बाकी त्योहारों कि तरह यह त्योहार भी परम्पराओं से जुड़ा हुआ है. इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर और उपहार देकर उसकी लम्बी आयु की कामना करती हैं. बदले में भाई अपनी बहन कि रक्षा का वचन देता है. इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रूप से शुभ होता है.
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाया जाने वाला यह पर्व भाई बहन के स्नेह का अद्भुद प्रतिक पर्व है | दीपावली के पाँच दिवसीय महोत्सव में से यह एक अतिमहत्व्यपूर्ण पर्व है जिसे हम ‘भाई दूज’ कहते है । भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं। भाई दूज की पौराणिक कथानुसार सूर्यदेव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निरंतर निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें तथा उसका आथिथ्य स्वीकार करे। लेकिन यमराज को व्यस्तता  के चलते अवसर ही न मिल पाता । कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने घर के द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर भाव -विभोर और हर्षित हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई को विजय तिलक लगाया और यथा सामर्थ स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर माँगने को कहा। तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज ने प्रसन्न होकर यमुना को यह वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी और तथास्तु कहकर यमुना को अमुल्य वस्त्राभूषण देकर यमपुरी को चले गये । ऐसी भी मान्यता है की यम ने इस दिन अपने बहन के घर जाने से पूर्व सभी आत्माओ को मुक्त कर दिय था जिससे उन्हें यम की यातना से मुक्ति मिली इसी कारण इस दिन यमुना नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके अलावा यमी ने अपने भाई से यह भी वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, हर भाई अपनी बहन के घर जाए। तभी से भाईदूज मनाने की प्रथा चली आ रही है। जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज पर अवश्य जाते हैं | मान्यता ऐसी भी है की  जो भी भाई आज के दिन अपने बहन के हाथ का बना कुछ भी भोग ग्रहण करते है, उनके आतिथ्य को स्वीकार करते है, और अपनी बहन का आदर सत्कार, सम्मान से विदाई करते है उन्हें यमुना के भाई यम के कोप से मुक्ति मिल जाएगी |  
 हिंदू समाज में भाई-बहन के अमर प्रेम के दो ही त्योहार हैं। पहला है रक्षा बंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को आता है तथा दूसरा है भाई दूज जो दीपावली के तीसरे दिन आता है। परम्परा है कि रक्षाबंधन वाले दिन भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देकर उपहार देता है और भाई दूज वाले दिन बहन अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी उम्र की कामना करती है। रक्षा बंधन वाले दिन भाई के घर तो, भाई दूज वाले दिन बहन के घर उसके हाथो से सप्रेम बना भोजन करना अति शुभ फलदाई होता है।यह पर्व भाई बहन के प्रेम का अनूठा पर्व है | इस पर्व पर भाई का बहन के घर जा कर उसके हटो बना कुछ भोग ग्रहण करना ही बड़ा शुभ माना गया है, उसके बाद बहन का भाई को उपहार देना और भाई का बहन को कुछ उपहार, अन्न , वस्त्र, धन देना सौभाग्य में वृद्धि करता है | 
उत्तर भारत की परम्परा में हर पर्व मानाने का अपना अलग ही मिजाज़ और उत्साह दीखता है | चाहे वह पर्व कितना ही बड़ा से बड़ा हो या छोटा से छोटा | पूरी परम्परा और रीती रिवाज़ के साथ सारे नियम का पालन पूर्ण निष्ठा व भाव से किया जाता है | भाई दूज के दिन यहाँ गोधना कूटने का विधान है, जिसे कूटने समाज और परिवार के सभी औरते, महिलाये एक स्थान पर जुटती है और फिर गोधना में कुटा गया लावा भाई को खिलाती है और चना भाई को घोटना होता है फिर बहन भाई से यह वचन लेती है के हमेशा की तरह भाई उनकी रक्षा करेगा और आज के दिन उनके घर आना नहीं भूलेगा |  भाई दूज के दिन हर बहन कुमकुम एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। भाई अपनी बहन को अन्न – वस्त्र और यथाशक्ति कुछ उपहार या दक्षिणा देता है। 
यह पर्व भाई-बहन के बीच स्नेह के बंधन को और भी मजबूत करता है. भारतीय परम्परा के अनुसार विवाह के बाद कन्या का अपने घर, मायके में कभी-कभार ही आना होता है. मायके की ओर से भी परिवार के सदस्य कभी-कभार ही उससे मिलने जा पाते हैं. ऎसे में भाई अपनी बहन के प्रति उदासीन न हों, उससे सदा स्नेह बना रहें, बहन के सुख:दुख का पता चलता रहें. भाई अपनी बहनों की उपेक्षा न करें, और दोनों के सम्बन्ध मधुर बने रहें. इन्ही भावनाओं के साथ भाई दूज का पर्व मनाया जाता है. भैया-दूज भी हुई हाईटेक भाई-बहन के प्यार का प्रतीक भैया-दूज भी आधुनिक जमाने के साथ कदम से कदम मिलाते हुए हाईटेक हो गया है. इन दिनों जहां देश-विदेश के विभिन्न स्थानों पर रहने वाले भाई-बहन समय की कमी को महसूस करते हुए वीडियो कांफ्रेंसिंग का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं वहीं एस. एम. एस और ई-मेल के जरिए भी प्यार भरे बधाई संदेश दिए जाते हैं.
एक जमाना था जब बहन भाई के माथे पर तिलक लगा उसे बताशे और चने खिलाकर भैया के प्रति अपना प्यार दर्शाते हुए उसकी लंबी आयु और दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की कामना करती थी. मगर, समय के बदलने के साथ-साथ इस त्योहार ने भी अपना रूप बदल लिया है. अब लोगों ने टेक्नोलॉजी का बखूबी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. देश-विदेश में रहने वाले भाई-बहनों ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए एक-दूसरे को भैया दूज के बधाई संदेश भेजने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में बहन को दिया जाने वाला उपहार भी भला क्यों हाईटेक नहीं होता. अब भाई इंटरनेट के माध्यम से बहन के लिए उपहार खरीदते हैं जो बहन को गिफ्ट पैक में उसके घर पहुंच जाया करता है.
चित्रगुप्त जयंती—
इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों, चित्रों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। आज के दिन कोई लिखा पढ़ी का कार्य नहीं किया जाता और सभी अध्यन – आध्यापन सामग्री को पूजा कक्ष में चित्रगुप्त जी के समक्ष रख दिया जाता है |
इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इसी दिन ‘गोधन’ नामक पर्व मनाया जाता है जो भाईदूज की तरह होता है।

बहिन द्वारा भाई की पूजा—
इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं जैसे “गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े” इसी प्रकार कहीं इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है ” सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे” इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।

यह हें मान्यता/ विचार धारणा  —

भारत में जितने भी पर्व त्यौहार होते हैं वे कहीं न कहीं लोकमान्यताओं एवं कथाओं से जुड़ी होते हैं। इस त्यौहार की भी एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार। यमी यमराज की बहन हैं जिनसे यमराज काफी प्रेम व स्नेह रखते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को एक बार जब यमराज यमी के पास पहुंचे तो यमी ने अपने भाई यमराज की खूब सेवा सत्कार की। बहन के सत्कार से यमराज काफी प्रसन्न हुए और उनसे कहा कि बोलो बहन क्या वरदान चाहिए। भाई के ऐसा कहने पर यमी बोली की जो प्राणी यमुना नदी के जल में स्नान करे वह यमपुरी न जाए। यमी की मांग को सुनकर यमराज चिंतित हो गये। यमी भाई की मनोदशा को समझकर यमराज से बोली अगर आप इस वरदान को देने में सक्षम नहीं हैं तो यह वरदान दीजिए कि आज के दिन जो भाई बहन के घर भोजन करे और मथुरा के विश्राम घट पर यमुना के जल में स्नान करे उस व्यक्ति को यमलोक नहीं जाना पड़े। इस पौराणिक कथा के अनुसार आज भी परम्परागत तौर पर भाई बहन के घर जाकर उनके हाथों से बनाया भोजन करते हैं ताकि उनकी आयु बढ़े और यमलोक नहीं जाना पड़े। भाई भी अपने प्रेम व स्नेह को प्रकट करते हुए बहन को आशीर्वाद देते है और उन्हें वस्त्र, आभूषण एवं अन्य उपहार देकर प्रसन्न करते हैं।

यम द्वितीया—

कथा—-सूर्य भगवान की स्त्री का नाम संज्ञा देवी था। इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थी। संज्ञा देवी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने लगीं। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनीचर का जन्म हुआ। इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुना जी गो लोक चली आईं जो कि कृष्णावतार के समय भी थी। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि वह उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। बहुत समय व्यतीत हो जाने पर एक दिन सहसा यम को अपनी बहन की याद आई। उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना की खोज करवाई, मगर वह मिल न सकीं। फिर यमराज स्वयं ही गोलोक गए जहाँ विश्राम घाट पर यमुना जी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुना जी ने हर्ष विभोर होकर उनका स्वागत सत्कार किया तथा उन्हें भोजन करवाया। इससे प्रसन्न हो यम ने वर माँगने को कहा।

यमुना ने कहा, “हे भईया मैं आपसे यह वरदान माँगना चाहती हूँ कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएँ।”
प्रश्न बड़ा कठिन था, यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। भाई को असमंजस में देख कर यमुना बोलीं – आप चिंता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहाँ भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वे तुम्हारे लोक को न जाएँ। इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने बहन यमुना जी को आश्वासन दिया –‘इस तिथि को जो सज्जन अपनी बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बाँध कर यमपुरी ले जाऊँगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होगा।’ तभी से यह त्योहार मनाया जाता है।

चन्द्रदर्शन और स्नान—-

इस दिन प्रातःकाल चंद्र-दर्शन की परंपरा है और जिसके लिए भी संभव होता है वो यमुना नदी के जल में स्नान करते हैं। स्नानादि से निवृत्त होकर दोपहर में बहन के घर जाकर वस्त्र और द्रव्य आदि द्वारा बहन का सम्मान किया जाता है और वहीं भोजन किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से कल्याण या समृद्धि प्राप्त होती है। बदलते हुए समय को देखें तो यह व्यस्त जीवन में दो परिवारों को मिलने और साथ समय बिताने का सर्वोत्तम उपाय है। ऐसा कहा गया है कि यदि अपनी सगी बहन न हो तो पिता के भाई की कन्या, मामा की पुत्री, मौसी अथवा बुआ की बेटी – ये भी बहन के समान हैं, इनके हाथ का बना भोजन करें। जो पुरुष यम द्वितीया को बहन के हाथ का भोजन करता है, उसे धन, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुख की प्राप्ति होती है। यम द्वितीय के दिन सायंकाल घर में बत्ती जलाने से पूर्व, घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान करने का नियम भी है।

इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा उसे भेंट दें, उसकी सब अभिलाषाएं आप पूर्ण किया करें एवं उसे आपका भय न हो। यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्योहार मनाया जाने लगा। 

वस्तुतः इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है भाई-बहन के मध्य सौमनस्य और सद्भावना का पावन प्रवाह अनवरत प्रवाहित रखना तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। इस प्रकार ‘दीपोत्सव-पर्व’ का धार्मिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय महत्व अनुपम है।
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भाई-दूज – अर्थात यम या भ्रातृ-द्वितीया – के दिन संध्यासमय भारत के अनेक अंचलों में वहां की ग्रामीण महिलाएं बस्ती से बाहर जाकर किसी पूर्व-निर्धारित स्थान पर एकत्र होती हैं, वहां पर कुछ पूजा आदि करती हैं और अपने अपने भाइयों के लिए यमराज से प्रार्थना करती हैं। इस प्रार्थना के समय या उसके समापन पर कहीं पर कोई चील उड़ती हुई दिखाई पड़ जाए तो वह यह मानती हैं कि उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई है, अथवा वह चील यमराज तक उनके निवेदन को पहुंचा देगी। ऐसा नहीं कि केवल यम-द्वितीया के दिन ही चील का दर्शन शुभ है। आप अपने किसी कार्य से कहीं जा रहे हैं और आपको सफ़ेद चील दिख जाए तो समझ लीजिए कि आपका काम सफल होगा। और वह चील उसी समय अगर कुछ बोल भी दे तब तो अपने मंतव्य में आपकी सफलता शत-प्रतिशत निश्चित है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में राम-विवाह के लिए अयोध्या से चलने वाली बरात को मिले शुभ शकुनों में इस शकुन की भी चर्चा की है – क्षेमकरी कह क्षेम बिसेसी।
वैसे चील सदा शुभ शकुन नहीं, वह अशुभ शकुन भी है। किसी व्यक्ति या समूह के ऊपर बहुत कम ऊँचाई से कोई चील उड़ती दिखाई दे – विशेषरूप से उस समय जब वह किसी ऐसी यात्रा पर निकले हों जिसमें लड़ाई-झगड़े की आशंका हो – तो उसे उनमें से किसी की मृत्यु अथवा गंभीर रूप से घायल होने का सूचक माना जाता है। और वह चील अगर किसी वाहन पर बैठ जाए तो उस पर आसीन व्यक्ति की मृत्यु अवश्यम्भावी समझी जानी चाहिए। शकुन पक्षी होने के अतिरिक्त चील शाक्तों का पूजनीय पक्षी भी है। देवी-पूजा की विशिष्ट विधियों में अवसर-विशेष पर उसे मांस का टुकड़ा या उसके भोजन की अन्यान्य सामग्री उसे अर्पित की जाती है। यह भेंट उसके लिए सामान्यत: छप्पर या छत पर बिखेर दी जाती है जिससे वह सहज ही उसे उठा कर ले जा सके।

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