हमारे भीतर मौजूद हैं लक्ष्मी तो—
( प्रवीन कुमार)—
समृद्घि नाम की तितली हमारे आसपास ही मंडराती रहती है और इस सत्य को हम जैसे ही जानते हैं, यह तितली हमारे अंतस में भी मंडराने लगती है। लेकिन ऐसा होता नहीं। हमें अपनी समृद्घि हमेशा भौतिक तत्वों में छुपी दिखती है और हम समृद्घि की पहचान गोल्ड, शेयर, फ्लैट, बैंक बैलेंस के तौर पर करने लगते हैं। लक्ष्मी के आशीर्वाद के आकांक्षी हम भूल जाते हैं कि लक्ष्मी खुद कभी भौतिक चीजों के पीछे नहीं, बल्कि विष्णु के पीछे दौड़ती हैं। क्षीर सागर में बिल्कुल शांत चित्त लेटे विष्णु ही समृद्घि के असली प्रतीक हैं। वे इतने समृद्घ हैं कि समृद्घि की चाह नहीं रखते। यकीनन हम देव नहीं, मानव हैं, इसलिए चाह से दूर नहीं हो सकते, लेकिन इस चाह को एक नई दिशा दे सकते हैं।
समृद्घि चाहिए तो सबसे पहले लक्ष्मी की तरह चंचल नहीं, विष्णु की तरह शांत चित्त होना होगा। इस सोच से उबरना होगा कि ‘मैं ऐसा व्यक्ति हूं, जिसकी जरूरतें पूरी नहीं हो रहीं।’ अशांत होना और अभाव की सोच रखना वास्तविक समृद्घि से हमें कोसों दूर ले जाता है। अभाव की सोच चाहे वह पैसे का अभाव हो, प्यार का, पहचान का, मान का, अभाव ही पैदा करती है। अच्छी बातों को स्वीकारना, जो कि पहले से जीवन में रची-बसी हैं, हर तरह की समृद्घि का आधार हैं। दार्शनिक टॉमस हॉब्स ने कहा है- समृद्घि को खोजा नहीं जा सकता, यह अपने आप आती है, बशर्ते इसके स्वागत में आप दोनों बांहें फैलाए खड़े हों।
समृद्घि का सोता भीतर ही है, बस इसे महसूस करना आना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हममें अच्छी बातों को स्वीकारने का हुनर होना ही चाहिए, वैसी अच्छी बातें, जो पहले से हमारे जीवन में मौजूद हैं। जिन चीजों के बारे में हम सोचते हैं कि दुनिया हम तक उन्हें आने से रोक रही है, हम उन्हें दुनिया में रोक रहे होते हैं। हम रोकते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि हम तुच्छ हैं और हमारे पास देने के लिए कुछ है ही नहीं। लेकिन याद रखें हिंदू ही नहीं, अधिकांश धर्मों का दर्शन यही है कि समृद्घ वही है, जो दे सकता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कोई चीज ऐसी नहीं, जो आपके भीतर स्व के रूप में मौजूद न हो। इस दीपावली समृद्घ होना है तो यह प्रण लें कि हम दाता बनेंगे। वह हर चीज, जिसके बारे में लगता है कि दुनिया यह नहीं चाहती कि यह हमारे पास मौजूद हो, उसे आप दूसरों में बांटें। आप पाएंगे कि आप पर ये चीजें बरसने लगी हैं। आप अक्सर खुद से पूछें-‘मैं यहां क्या दे सकता हूं’। इस चीज को गांठ बांध लें कि समृद्घि उन्हीं के पास आती है, जिनके पास पहले से है। समृद्घि और अभाव दोनों अंदर की स्थितियां हैं। लक्ष्मी हमारे भीतर मौजूद हैं। हम जैसे ही विष्णु के पालनहार का एक अंश अपने भीतर महसूस करेंगे, कोई कारण नहीं कि लक्ष्मी हम पर मेहरबान नहीं होंगी।

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