तेरे इश्क में शेदाई  हुए हम,

सरे जहाँ से अंजाने हुए हम,
भूले हम दुनिया जहान,
ऐसे हुए हम तुम पर कुरबान,
एक ही ख्वाब अब इन आँखों में,
जो टुटा दिन के उजाले में…
पाया जो होता हमें अंजाम- ऐ –  उल्फत..
तो कभी न पाते वीरान जिंदगी फकत…
इश्क की मंजिल तो रही सदा हमसे दूर…
हम रहे उस राह में “अंजाना” मजबूर…
अब राहें ले जाएँ किस और…
कुछ खबर नहीं साहिल हें बहुत दूर….!!!
### पंडित दयानंद शास्त्री’अंजाना’####

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