वास्तु दोष एवं उपचार—पवन निशान्त

अथर्ववेद में वास्तु के आधार पर भवन निर्माण के मानक तय किए गए हैं। वास्तु का दूसरा रूप ही फंग्शुऊ है, जो चाइना, जापान, सिंगापुर, हांगकांग, मलेशिया होता हुआ अब पूरे विश्व में पापुलर हो रहा है। भवन निर्माण के दौरान सारा ध्यान सकारात्मक ऊर्जा का विखंडन रोकने पर लगाया जाता है। सही और निर्धारित दिशा में निर्धारित निर्माण के अलावा भवन की अंदरूनी सजावट का भी जीवन की खुशहाली में बड़ा महत्व है। भवन निर्माण में प्राकृतिक नियमों के तहत ही निर्माण की बात और लाभ-हानि का हिसाब करना चाहिए। हमें भवन निर्माण कराते समय उसका डिजाइन आर्किटैक्ट पर ही नहीं छोड़ देना चाहिए। क्योंकि वे वास्तु सलाहकार या वास्तु विशेषज्ञ की तरह हर छोटी और महत्वपूर्ण बात का ध्यान नहीं रख पाते हैं। उनका पूरा जोर भवन के स्पेस का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने पर रहता है। आपको समझना चाहिए कि एक वास्तु आधारित भवन ग्रह-नक्षत्रों के शुभ-अशुभ फल को ज्यादा या कम प्रदान करने में सक्षम होता है।

मकान बनाते समय हमें सबसे पहले मुख्य दरवाजे का ख्याल करना चाहिए। यह भ्रम ही है कि दक्षिण दिशा के भवन अशुभ होते हैं। ऐसा नहीं है। केवल ईशान को छोड़कर शेष सभी कोने दरवाजों के लिए अशुभ कहे गए हैं। हमें कभी भी मुख्य दरवाजे के अलावा हरेक कमरे के दरवाजे अग्नि कोण, वायव्य कोण व नैऋत्य कोण में नहीं रखने चाहिए। इसका ज्ञान केवल कम्पास से लग सकता है कि वास्तव में कौन सा कोना किसी कोण में आ रहा है अथवा नहीं। इसी तरह हम लोग रसोई को बहुत कम स्पेस देते हैं। रसोई के स्थान का भवन के अंदर बड़ा महत्व है। इन दोनों का सही दिशा निर्धारण हमें गरीबी से दूर कर सकता है। और यही छोटी गलती आजीवन दरिद्र रखने में पर्याप्त है।

रसोई हमेशा आग्नेय में होनी चाहिए। जगह न हो तो पश्चिम दिशा में बना सकते हैं। दोनों ही अवस्था में चूल्हा आग्नेय कोण में होना चाहिए। इसके अलावा ओवन, बिजली का बोर्ड, चिमनी, आदि भी आग्नेय कोण में रखें। खाना बनाते समय गृहिणी का मुंह पूरब की ओर हो, ऐसी व्यव्स्था करें। पानी का सिंक, आरओ पूरब, ईशान या उत्तर में रखें। पानी निकास भी इन्हीं दिशाओं में रखें। नैऋत्य में एक आलमारी बनाएं, जिनमें मसाले व खाद्य सामग्री रखी जा सके। वर्तमान समय में वास्तु आधारित भवन बहुत संभव भी नहीं रह गए हैं। जहां फ्लैट कल्चर है, वहां तो वास्तु अनुरूप मकान मिलना मुश्किल ही है। किसी वास्तु सलाहकार के कहने पर भवन की तोड़-फोड़ और भी महंगा सौदा है। ऐसे में हमें फिर से अर्थववेद की और लौटना होगा। इस वेद में ऐसे उपाय दिए गए है, जो किसी अन्य उपायों से ज्यादा सटीक और प्रभावी हैं।

मैंने अब तक सैकड़ों परिवारों में इन उपायों को कराया है, और यह देखा गया है कि खराब ग्रहों की दशा-अंतर चलने पर भी उनके साथ में नकारात्मक असर उतने नहीं हुए, जितने होने चाहिए थे। वास्तु पूजन सबसे प्रभावी उपाय है। महानगरों में आचार्य लोग समय की कमी के चलते इसे एक दिन में ही पूरा करा रहे हैं, जो सही नहीं है। तीन दिन का वास्तु पूजन, जाप और अंतिम दिन हवन ही कारगर है। वास्तु पूजन किसी सुयोग्य आचार्य से ही कराएं, यानि संपूर्ण वास्तु पूजन विधि और हवन आदि कर्मकांड का उसे ज्ञान होना चाहिए। वास्तु पूजन एक और तीन दिन का होता है। एक दिन का पूजन सामान्य, जबकि तीन दिन के पूजन में पूरी विधि से कर्मकांड हो जाता है। इसमें दो दिन गणेश जी, नवग्रह, वास्तु पुरुष आदि देवताओं के मंत्र जाप व पूजन चलता है, जबकि तीसरे दिन पूरे भवन में डोरा चलाते हैं और हरेक दिशा के स्वामी की उसी दिशा में चावल अर्पण कर प्रतिष्ठा करते हैं। अंत में हवन होता है, जिसमें भवन स्वामी को उसकी पत्नी के साथ आहूति देनी होती है। इस तरह देवताओं की तुष्टि-पुष्टि-संपुष्टि हो जाती है और दिशाओं के नकारात्मक प्रभाव का शमन हो जाता है। थोड़े ही दिन में हमें इसका आभास होना शुरू हो जाता है।

वास्तु दोष के कुछ और उपाय हमारे पूर्वजों ने सुझाए हैं। इन्हें नयी पीढ़ी भूलती जा रही है। जैसे प्रातः भोजन पकने पर पहली रोटी हमें गाय को खिलानी चाहिए और अंतिम रोटी कुत्ते के लिए निकालनी चाहिए। ग्रहणी को किचिन में भोजन नहीं करना चाहिए। इससे दरिद्रता आती है। लेकिन ऐसे जातक जो काल सर्प दोष से पीड़ित हैं, उन्हें रसोई में बैठकर भोजन करने से लाभ होता है। आटे के पात्र और पानी के पात्र से बार-बार झूठे हाथ नहीं लगाने चाहिए। मेरी दादी ने एक उपाय मुझे बताया था, जो मैंने अनुभव किया कि वह वंश वृद्धि, रोग निवारण, अनावश्यक व्यय और अपने खाते में पुण्य  जमा करने का अचूक उपाय है। इस उपाय को करने वाले को कभी भी विपत्ति नहीं सताती। परिवार के मुखिया को सुबह स्वयं भोजन करने से पहले आटे की पांच लोई बनवाकर अपने सीधे हाथ की हथेली पर रखकर गाय को खिलानी चाहिए और हथेली पर जो गाय की लार आ जाए, उसे अपने सिर से पौंछ लेना चाहिए। गाय का न केवल मूत्र और दूध ही अमृत है, बल्कि उसकी लार भी पुण्य लाभ देने वाली है। यह प्रयोग गुरुवार से शुरू करना है और प्रतिदिन करना चाहिए। इसका कई गुना फल मिलता है और घर के अंदर यदि वास्तु दोष हैं तो उनका शमन काफी हद तक होता रहता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here