सैक्स से ज्यादा बिक रहा है …ज्योतिष!!! आखिर क्यों..???

इन दिनों भारत ही नहीं, विश्व समुदाय ज्योतिष और आध्यात्म की ओर तेजी से बढ़ रहा है। कोई समाचार पत्र हो, कोई टीवी चैनल, ज्योतिष, धर्म और आध्यात्म की चर्चा हर ओर है। खगोलीय घटनाओं से लेकर भूकंप व मौसम जैसे मामलों में भी ज्योतिष का आकलन प्रमुखता से लिया जा रहा है। 

कम्प्यूटर ने इस मरते हुए साहित्य को जिंदा किया था तो इंटरनेट ने इसे संजीवनी प्रदान कर दी है। सैकड़ों सालों तक रिसर्च से दूर रहा यह सब्जेक्ट अब नयी पीढ़ी के लिए भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है। विभिन्न प्रख्यात समाचार एजेंसियों के सर्वे से यह भी तथ्य उभरा है कि सबसे अधिक ज्योतिष साहित्य, वास्तु, तंत्र-मंत्र, योग और अध्यात्म बिक रहा है। उसके बाद सैक्स और तीसरे नंबर पर अपराध साहित्य आता है। तो यहां यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसा क्या है ज्योतिष शास्त्र में। 

यहां यह जानना जरूरी है कि पूरे जगत का जीवन समय से संचालित है। कितना महान है समय कि यह सबको समान हिस्से में मिला हुआ है, कितना विद्रूप है इसका कि किसी के पास समय नहीं और किसी के पास इतना समय है कि वह पूरा जीवन व्यर्थ कर देता है। शुभ भी है समय और अशुभ भी है। या यह कहें कि अपने समय को हम ही बनाते हैं। शुभ-अशुभ समय का अनुमान, सही समय में सही कार्य करने की बुद्धि एवं समय का संयमन हमें ज्योतिष से ही प्राप्त होता है। तो क्या समय से ही बना है जीवन। कहते हैं कि समय के स्वरूप का ज्ञान कर लेने के बाद अगर उसी के अनुरूप आचरण कर लो तो सफलता को स्वयं समय भी नहीं रोक सकता।

महाबली भीम में दस हजार हाथियों का बल था, किंतु समय की गति को समझते हुए उन्होंने राजा विराट के यहां रसोइए की नौकरी करके अशुभ समय को न केवल बुद्धिमता पूर्वक निकाल दिया, बल्कि उस अज्ञातवास में कीचक वध जैसी महान उपलब्धि भी हासिल की थी। 

वेदांग ज्योतिष में ज्योतिष को काल विधायक शास्त्र बतलाया गया है। छह वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोच्च स्थान दिया गया है। यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि ज्योतिष जिज्ञासुओं के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपनी जन्म राशि पर विश्वास करें कि नाम राशि पर। इस संबंध में ज्योतिष शास्त्र इस प्रकार निर्देश देता है….

विद्यारम्भे विवाहे च सर्व संस्कार कर्मेषु।

जन्म राशि प्रधानत्वं नाम राशि न चिंतयेत।।इसका मतलब यह है कि एजूकेशन शुरू करने में, शादी में, यज्ञोपवीत आदि मूल संस्कारित कार्यों में जन्म राशि की प्रधानता होती है, नाम राशि का विचार नहीं करना चाहिए, किंतु..

गृहे ग्रामे, खले, क्षेत्रे, व्यापार कर्माणि।
नामराशि प्रधानत्वं जन्म राशि न चिंतयते।। 

इसका अर्थ यह है कि यात्रा में, व्यापार आदि दैनिक कार्यों में नाम राशि प्रधान है न कि जन्म राशि। जहां तक इस मामले में मेरे 45 वर्षों से अधिक के अध्ययन का व्यावहारिक अनुभव है, उसके अनुसार जिस नाम के लेने से सोया हुआ आदमी नींद से जाग जाए, जिस नाम से उसके रोजमर्रा के कार्यों का गहरा संबंध हो, वही अक्षर प्रधान राशि उस आदमी के भूत, भविष्य व वर्तमान को निर्धारित करती है। पश्चिम के प्रकांड विद्वान एलिन लियो का भी यही विश्वास था, जो मेरे अनुभव से साबित हो रहा है। 

ज्योतिष में कई अन्य स्तंभ हैं जैसे अंग स्फुरण, अंग संचालन, हस्त सामुद्रिक शास्त्र, मस्तक रेखा, पाद रेखा आदि भी महत्वपूर्ण जानकारी दे देते हैं। श्री रामचरित मानस के अनुसार-

आगे परा जटायू देखा, 
सुमिरत राम चस की रेखा। 

इससे भी साबित होता है कि गिद्ध राज पाद रेखा विद्य़ा के विद्वान ज्ञाता थे। समय का सम्यक ज्ञान ही ज्योतिष है। श्रीराम चरित मानस में कई जगह समय की महिमा बतायी गयी है। 

समय जानि गुरु आयसु पाई
संध्या करन चले दोउ भाई।।
विश्वामित्र समय शुभ जानी
बोले अति सनेह मय वानी।।
उठहु राम भंजहु भव चाप
मेटहु तात जनक परिताप।। आदि आदि..

मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ज्योतिष एक संपूर्ण वैज्ञानिक शास्त्र है। इसमें दो और दो चार ही होते हैं। आवश्यकता है गंभीर एवं व्यावहारिक अद्यययन, धैर्य, अथक पिरश्रम, शास्त्रीय किताबों का अच्छा संग्रह, मनन, सामुदिक्र लक्षणों का अध्ययन और स्वयं भविष्यवक्ता का संस्कारित और संयमित जीवन, तभी इस विषय में आगे बढ़ा जा सकता है। जहां तक तंत्र शास्त्र का सवाल है, यह महान समुद्र है। इसमें जितने गहरे गोते लगाए जाएंगे, उतने उत्कृष्ट मोती प्राप्त होंगे। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here