वास्तु सम्मत –  रसोईघर (KITCHAN AS PAR VASTU)—-

दीर्घायु के लिये व्यक्ति का स्वस्थ होना आवश्यक है। स्वस्थ व्यक्ति जीवन पर्यन्त समस्त प्रकार के उत्तर दायित्वो का ठीक से निर्वाह कर सकता है। वह वृद्धावस्था में किसी पर बोझ नही बन सकता है। इसलिये स्वास्थ को बहुत महत्व दिया है। व्यक्ति स्वस्क कैसे रहे, इसे समझाना आवश्यक है ताकि अच्छे स्वास्थ का महत्व स्पष्ठ हो सके। अच्छा स्वास्थ हमेशा परिवार की रसोई से होकर ही आता है, इस पर किसी प्रकार का विवाद नही हो सकता है। इसके महव को प्राचीन काल से ही समझा गया था, इसलिये रसाई को वास्तु सम्मत बनाने दिशा-निर्देश दिये गये थे। रसोईघ जितना व्यवस्थित होगा, भोजन तैयार करने वाली महिलाये जितनी सात्विकता से भोजन बनाकर खिलाती है। इन सब पर अच्छे भोजन ही अवधारणा टिकी हुई है। इसलिये रसोई को वास्तु की दृष्टि से देखना आवश्यक है। वर्तमान समय में शहरीकरण और जनसंख्यावृद्धि के कारण प्रायः मनुष्य सीमित स्थान पर ही अपना निवास बना पाते है। विभिन्न कार्यो हेतु अलग-अलग कमरो का निर्माण सम्भव नही होता इसलिये घ के निर्माण करते यमय घर की डिजाइन तैयार करते समय आवश्यकताओ और उपयोग को ध्यान में रखना चाहिये। रसोई घर कितना ही बडा हो, इस बात पर निर्भर करेगा कि घर में कितने सदस्य है तथा घर का आकार कितना बडा है ? चूंकि रसोई घर में ग्रहणी का समय सबसे अधिक समय व्यतीत होता है, अतः वहा सभी सुविधाए होनी चाहिए। मख्मी मच्छर की राकथाम हेतु इसके दरवाजों एवं खिड़कियो पर जालियां लगनी चाहिए। रसोई घर को डाइनिंग रूम के निकट होना चाहिए ।   जिससे खाना परोसने भागदौड़ नही करनी पडेगी। डाइनिंग रूम और रसोईघर के बीच की दीवार में सर्विसविन्डोका निर्माण करवाना चाहिये जहां प्रवेश द्वार पर नजर रह सके। किसी व्यक्ति के आने पर तुरन्त ही वहां पंहुचा जा सके । रसोईघर में स्वच्छ वायु प्रवाह के लिये आवश्यक है कि उसकी एक खिडकी बाहर की ओर खुले। यदि सभव हो तो आमने-सामने की दीवारो पर खिडकियां बनवाये, हवा का आवगमन सुचारू रूप से हो सकेगा। ऐसा होना सम्भव न हो तो खिडकी के ऊपर छत से थोडा नीचे गर्म हवा निकलाने के लिये एग्जास्ट फेन लगवा दें। रसोईघर सुव्सवस्थित होने से वहां काम करते समय तनाव नही होता। यदि यदि भोजन बनाने वाला तनावग्रस्त रहेगा तो भोजन ग्रहण करने वाले परिजन भी तनावग्रस्त रहेगे। अतः अपने रसोईघर को शांत मन से सोच समझकर आवश्यकतानुसार व्यवस्थित करें। वास्तुसम्मत रसोईघर निर्मित होने से आपके परिवार में अच्छा स्वास्थ, सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहेगी। वेद कहते है – पहला सुख निरोगी काया। निरोगी काया तभी समंव है जब उचित और स्वादिष्ट भोजन मिले। ओर एसे मे प्यार भी शामिल भी हो जाये तो क्या बात है। यदि रसोईघर सुव्यवस्थित ( वास्तु अनुरूप) बनी होगी तो वहां पर बना खाना भी अच्छा होगा औ अच्छा भोजन करने से व्यक्ति स्वास्थ होगा और स्वस्थ व्यक्तित में में अधिक उर्जा होगी, जिसके कारण वह व्यक्ति अपना कार्य अधिक एवं बेहतर तरीके से करेगा, ऐसा करके अधिक धन कमायेगा। हम जानते है कि प्रत्येक घर का मुखिया कोई ना कोई होता है, ठीक वैसा ही स्थान भवन में रसोई का होता है। रसोईघर वास्तु के अनुरूप नही बने तो परिवार में कलह, लड़ाई-झगडे़ आदि संमभावनाऐ बढ जाती है। नुकसान भी होता है तथा परिजनो का स्वास्थ भी ठीक नही रहता है । रसोईघर बनााने के लिऐ सबसे उपयुक्त भाग आन्गेय कोण होता है क्योकि आन्गेय कोण का स्वामी अग्निदेव है तथा रसोईघर में अग्नि तत्व का ही अधिकाधिक प्रयोग होता है, जो अत्यावश्यक भी है। रसोईघर में अग्नि उत्पन्न करने वाली वस्तुये गैस का चुल्हा, स्टोव, मिक्सी, टोस्टर, फ्रीज, ओवन आदि भी अग्नि कोण या दक्षिण दिशा में रखे। सभी विद्युत चालित उपकरण दक्षिणी दीवार के सहारे रखे जाने चाहिये। 


रसोईघर को वास्तु सम्मत बनाने हेतु उपाय:—

.. ईशान दिशा की तरफ मुख करके खाना नही बनाना चाहीये । 
.. रसोईघर अग्नेय कोण में कभी नही बनवाये।
.. खाद्य पदार्थो एवं अनाज को रखने के लिये दक्षिण या पश्चिम ही दिवार से सटी एक अलमारी या छोटा भण्डार कक्ष बनाया जा सकता है। 
4. रसोईघर में खिडकियो एवं धुआं निकलने का स्थान पूर्व या पश्चिम में होना चाहिये।
 5. रसोईघर का पानी निकालने के लिये उŸार या पूर्व की ओर नाली (जल निकासी मार्ग) बनाया जा सकता है।
 6. ध्यान रहे की भोजन बनाते समय गृहणी का मुह यथासंभव पूर्व में हो। बना हुआ भोजन वयाव्य कोण में रखे, पश्चिम की ओर। 
7. सिंक की व्यवस्था उत्तर  में करें । चूल्हे व पानी के बीच पर्याप्त दूरी रखे क्याकि अग्नि एवं जल तत्व एक-दूसरे के शत्रु है, निकट  होने के कलह है।
 8. पीने के पानी व्यवस्थाउत्तर  या ईशान कोण में करें ।
9. झूठे बर्तन यदि रसोईघर में रखे हो तो नैऋत्य कोण में रखे । 
1.. रसोईघर मे हमेंशा रोशनी रहे ऐसी व्यवस्था करें। 
11. बन्द चूल्हे पर कभी खाली बर्तन ना रखे । 
12. रसोईघर का दरवाजा शौचालय के दरवाजे के सामने नही होना चाहियंे ।
13. रसोईघर की दीवारो पर पीला सफद या हल्के रंग का प्रयोग करे ।  
 14. रसोईघर सीढियो के नीचे नही होनी चाहिये । 
15. रसोईघर का मुख्यद्वार भोजन बनाने वाले क ठीक पीछे ना होकर दायें या बाये होना चाहिये। पीठ क पीछे दरवाजा होने पर ग्रहणी की पीठ में दर्द बना रहेगा।
 16. भोजन हमेशा खूशनुमा माहोल में अच्छे मन से बनाना चाहिये एवं स्नेहपूर्वक सभी को खिलाना चाहिये।
17. सफाई क पूर्ण सुचारू रूप से व्यवस्था होनी चाहिये पानी का निकास पूर्व दिशा की ओर होना चाहिये।
18.रसोईघर में अचार-खटाई न रखे। इनके कारण महिलाआंे में सिरदर्द, अनियमित मासिक धर्म एवं श्वेत प्रदर की समस्याये। उत्पन्न हो जाती है। पुराने समय में अचार-खटाई को रसोईघर के समीप ( छोटी कोठरी में ) ही ढककर या छुपाकर रखा जाता था। यदि उपरोक्त नियमानुसार  का निर्माण एवं प्रबन्ध किया जाता है तो उस घर में सुख सौभग्य एवं आरोग्य बना रहकर उत्तर रोतर वृद्ध होती है।   


 पं0 दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 … .

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