दक्षिण दिशा का द्वार (दरवाजा)—

हमारे मन में दक्षिण दिशा से बहुत भय है। इसलिए कोई भी अपने मकान का द्वार दक्षिण में नहीं रखना चाहता है।
पश्चिम में कुछ अच्छा है। अतः दो चार प्रतिशत भवन पश्चिम द्वार में मिल जाते हैं। भवनों के प्रायः
पूर्व और उत्तर मुखी द्वार शुभ है। यही तोड़ इस दक्षिण दिशा का है। यदि आपका मकान दक्षिण द्वार
वाला है तो आप घर के चारों ओर द्वार रख लें शुभ हो जायेगा।
ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियों को ब्राह्मण आदि चार वर्णों और पूर्वादि चार दिशाओं में बाँट
दिया है। कर्क, वृश्चिक, मीन राशि ब्राह्मण वर्ग की है इसलिए इस राशि वालों को पूर्व दिशा का द्वार
शुभ है। सिंह, धनु, मेष राशि क्षत्रिय वर्ण है अतः इनके लिए दक्षिण द्वार वाले मकान शुभ है।
वृषभ, कन्या, मकर राशि वैश्य वर्ण की है अतः इन राशि वालों को पश्चिम में और शुद्र वर्ण की
राशि (मिथुन, तुला, कुंभ) वालों को उत्तर दिशा का द्वार शुभ है। तदानुसार जो निर्णय आप करेंगें वैसे
ही न्याय दक्षिण द्वार को भी दीजिये। यही इसका आशय है।
यदि वास्तु के नियमों को बिना विचारे तो एक आदमी ही घर पर रहेगा और शेष सभी को घर से
निकाल देना होगा। जैसा कि प्रचलित है कि प्रारंभ और अंत में भवनके द्वार दो निश्चित्त स्थान पर होते
हैं। उनके सामने वृक्ष, दूसरे के घर का कोना, कूप हो, खंभा हो या घूमने वाली वस्तु हो तो गृह स्वामी
की मृत्यु, रोग, शोक, अपव्यय, स्त्री दोष आदि कुप्रभाव होंगें।दरवाजे अपने आप खुलते हों तो उन्माद, अपने आप बंद हो तो कुल का नाश, भीतर खुले तो स्वामी नाश, बाहर झुके तो विदेश वास होगा। लाल किताब
तो दक्षिण द्वार वाले मकान को रंडुओं की अफसोस करने की जगह कहती है। स्त्रियों के लिए अशुभ,
धन के लिए मंदा, शराब जुआ आदि कुकर्मों का स्थान दर्शाती है। यह सब बातें विचारणीय हैं तथा
जो सुलभता से मानने योग्य बातें हैं वे ही मनन चिंतन के बाद कार्य में में परिणित करने के योग्य
हैं। दक्षिण दिशा मुख्य द्वार के लिए हमेशा बुरी नही होती। व्यापारिक कार्यो के लिए वह उत्तम होगी
यदि आपके सामने सड़क या रास्ता हो दक्षिण दिशा मात्र कुछ नही करती उसके साथ अन्य वास्तु दोष
7. या 80 प्रतिशत हों तो ही दक्षिण द्वार अशुभ फल देती है। इसलिए द्वार के अतिरिक्त्त भी अन्य सिद्धांतों
के हिसाब से वास्तु दोष दूर करना श्रेष्ठ होगा। पूर्व निर्मित मकान में न तोड़ फोड़ करें न इतना खर्च
करें मात्र आंतरिक व्यवस्था वास्तु की दिशाओं के हिसाब से परिवर्तित कर लें।
  यदि पश्चिम में शयन कक्ष, मेहमान का कमरा पश्चिम उत्तर में, पूजा अध्ययन बोरिंग उत्तर पूर्व में, रसोई दक्षिण पूर्व में, टाॅयलेट दक्षिण पश्चिम या उत्तर पश्चिम में, ड्राईंग रूम को दक्षिण पूर्व में परिवर्तित कर लें तो मकान शुभ फल देने लगेगा।
जो लोग नये भवन बना रहे हो एवं उनका द्वार दक्षिण की ओर हो तो आग्नेय कोण से तीन भाग
छोड़ कर दो भाग में द्वार बनाना चाहिए। यह शुभफल दायक रहेगा।
दक्षिण द्वार को शुभ करने एवं वास्तुदोष शांति के लिए उपाय—

  द्वार पर पंच धातु का बना नौ पिरामिड युक्त ‘‘वास्तु दोष मुक्त पिरामिड’’ लगायें।
  दक्षिण द्वार के भवन में ठीक दरवाजें के सामने श्री हनुमान जी की आर्शवाद की मुद्रा का
चित्र दक्षिण मुख करके लगा दें।
  द्वार के ठीक पास एक आदम कद दर्पण लगा दें इससे बुरी आत्मा का प्रवेश नही होगा।
  घर के ईशान कोण में एक चांदी का कलश जिसमें गंगा जल या पवित्र जल भर कर किसी पर्व,
अमृत सिंह योग आदि में पूजा कर स्थापित कर दें तो वास्तुदोष शांत हो जाता है। इसमें जल की कमी
न हो इसका ध्यान रखें।
  प्रातः दरवाजा खोलते ही एक जग पानी दरवाजे पर डाल दें । इससे आने वाले रोग, शोक
सभी शांत हो जाते हैं।
  भवन में घी का दीपक जलायें व तुलसी का पौधा लगायें।
  दरवाजे पर अपनी राशि का शुभ रंग करवाने से भी आशातीत शांति मिलती है।
  दक्षिण द्वार के दोनों ओर मांगलिक चिंह बनाने से भी वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
  द्वार बनाने का साधारण नियम है कि चैड़ाई से दुगनी ऊचाँई दरवाजे की भी होनी चाहिए। चैड़ाई
चार फीट या साढ़े तीन फीट से कम नहीं होनी चाहिए।

 पं0 दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6023
मो0 नं0 .;;.

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