श्री गणेश चालीसा——

भगवान श्री गणेश दिव्य स्वरूप और शक्तियों के स्वामी है। श्री गणेश की उपासना न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ फल देती है। बल्कि उनके स्वरूप और शक्तियों से जुड़ा हर विषय व्यावहारिक जीवन के लिये भी बहुत ही प्रेरणादायी है।

इसी कड़ी में श्री गणेश को उनके विशेष शारीरिक डील-डौल के कारण लम्बोदर नाम से भी पुकारा जाता है। जिसका सरल अर्थ है लम्बे उदर यानी पेट वाले। श्री गणेश के लंबे पेट होने के पीछे एक रोचक धार्मिक मान्यता यह भी है कि अपने माता-पिता भगवान शंकर और पार्वती से मिले वेद ज्ञान व संगीत, नृत्य और कलाओं को सीखने व अपनाने से श्री गणेश का उदर अनेक विद्याओं का भण्डार होने से लंबा हो गया।

वहीं व्यावहारिक नजरिए से श्री गणेश के लंबोदर नाम से जुड़े संदेशों को समझें तो श्री गणेश का लंबा पेट संकेत करता है कि जिस तरह पेट के कार्य पाचन द्वारा शरीर स्वस्थ्य व ऊर्जावान बनता है, उसी तरह जीवन को सुखद बनाना है तो व्यावहारिक जीवन में उठते-बैठते जाने-अनजाने लोगों से मिले कटु या अप्रिय बातों और व्यवहार को सहन करना यानी पचाना सीखें।

इसके विपरीत बुरी बातों और व्यवहार को याद रख घुटते रहना या प्रतिक्रिया में कटु बोल या व्यवहार आपके लिये अधिक दु:ख और संकट का कारण बन सकता है। चूंकि श्री गणेश विघ्रों के नाशक हैं, इसलिए श्री गणेश उपासना के वक्त लंबोदर नाम स्मरण कर जीवन से जुड़ी इस अच्छी सीख को भी जेहन में रखें।


॥ दोहा ॥

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल ।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥

जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभ काजू ॥

जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायक बुद्घि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥

राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्व-विख्याता ॥

ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥

एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ।

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥

अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥

कहन लगे शनि, मन सकुचा‌ई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखा‌ई ॥

नहिं विश्वास, उमा उर भय‌ऊ । शनि सों बालक देखन कहा‌ऊ ॥

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥

बुद्घि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुला‌ई । रचे बैठ तुम बुद्घि उपा‌ई ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥

तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ा‌ई । शेष सहसमुख सके न गा‌ई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥

॥ दोहा ॥

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।

नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥

सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥

————————————————————————————————————————————
श्रीगणेश वन्दना—-

ऊँ गं गणपतये नम:—-

“श्री गणेश का नाम लिया तो बाधा फ़टक न पाती है,देवों का वरदान बरसता बुद्धि विमल बन जाती है”कहावत सटीक भी और खरी भी उतरती है.बिना गणेश के कोई भी काम बन ही नही सकता,चाहे कितने ही प्रयास क्यों नही किये जायें,भारत ही नही विश्व के कौने कौने मे भगवान श्री गणेश जी की मान्यता है,कोई किस रूप में पूजता है तो कोई किसी रूप में उनकी पूजा और श्रद्धा रखता है।

ऊँ—-

ऊँ का वास्त्विक रूप ही गणेश जी का रूप है,हिन्दू धर्म के अन्दर अक्षरों की पूजा की जाती है,अक्षर को ही मान्यता प्राप्त है,हर देवता का रूप है हिन्दी भाषा का प्रत्येक अक्षर,”अ” को सजाया गया और श्रीराम की शक्ल बन गयी,”क्रौं” को सजाया गया तो हनुमान जी का रूप बन गया,”शं” को सजाया गया तो श्रीकृष्ण का रूप बन गया,इसी तरह से मात्रा को शक्ति का रूप दिया गया,जैसे “शव” को मुर्दा का रूप तब तक माना जायेगा जब तक कि छोटी इ की मात्रा को इस पर नही चढाया जाता,छोटी की मात्रा लगाते ही “शव” रूप बदल कर और शक्ति से पूरित होकर “शिव” का रूप बन जाता है। ऊँ को उल्टा करने पर वह “अल्लाह” का रूप धारण कर लेता है.

चन्द्र बिन्दु का स्थान—-

ऊँ के ऊपर चन्द्र बिन्दु का स्थान चन्द्रमा की दक्षिण भुजा का रूप है,चन्द्रमा का आकार एक बिन्दु के अन्दर बताया गया है,और बिन्दु को ही श्रेष्ठ उपमा से सुशोभित किया गया है,बिन्दु का रूप उस कर्ता से है जिससे श्रष्टि का निर्माण किया है,अ उ और म के ऊपर भी शक्ति के रूप में चन्द्र बिन्दु का रूपण केवल इस भाव से किया गया है कि अ से अज यानी ब्रह्मा,उ से उदार यानी विष्णु और म से मकार यानी शिवजी का भी आस्तित्व तभी सुरक्षित है जब वे तीनो शक्ति रूपी चन्द्र बिन्दु से आच्छादित है।

ब्रह्म-विद्या है श्रीगणेश जी आराधना में—

ब्रह्म विद्या को जाने बिना कोई भी विद्या मे पारंगत नही हो पाता है,तालू और नाक के स्वर से जो शक्ति का निरूपण अक्षर के अन्दर किया जाता है वही ब्रह्मविद्या का रूप है। बीजाक्षरों को पढते समय बिन्दु का प्रक्षेपण करने से वह ब्रह्मविद्या का रूप बन जाता है.ब्रह्मविद्या का नियमित उच्चारण अगर एक मंदबुद्धि से भी करवाया जाये तो वह भी विद्या में उसी तरह से पारंगत हो जाता है जैसे महाकवि कालिदास जी विद्या में पारंगत हुये थे।

गणेशजी के नाम के साथ ब्रह्मविद्या का उच्चारण—–

ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करते वक्त “गं” अक्षर मे सम्पूर्ण ब्रह्मविद्या का निरूपण हो जाता है,गं बीजाक्षर को लगातार जपने से तालू के अन्दर और नाक के अन्दर जमा मल का विनास होता है और बुद्धि की ओर ले जाने वाली शिरायें और धमनियां अपना रास्ता मस्तिष्क की तरफ़ खोल देतीं है,आंख नाक कान और ग्रहण करने वाली शिरायें अपना काम करना शुरु कर देतीं है और बुद्धि का विकास होने लगता है.

ब्रह्म विद्या का उच्चारण ही सर्व गणपति की आराधना है

अं आं इं ईं उं ऊं ऋं लृं एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं डं. चं छं जं झं यं टं ठं डं णं तं थं दं धं नं पं फ़ं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं त्रं ज्ञं,ब्रह्म विद्या कही गयी है। उल्टा सीधा जाप करना अनुलोम विलोम विद्या का विकास करना कहा जाता है,लेकिन इस विद्या को गणेश की शक्ल में या ऊँ के रूप को ध्यान में रख कर करने से इस विद्या का विकास होता चला जाता है।

अनिष्ट से बचाते हैं श्री गणेश के ये मंगल मंत्र—

लोक परंपराओं में भगवान श्री गणेश के अनेक नामों में चिंताहरण स्वरूप भी भी बहुत ही श्रद्धा और आस्था से पूजनीय है। चिंताहरण का सरल शब्दों में अर्थ है चिंता हरने वाले देवता। व्यावहारिक जीवन में झांके तो हर इंसान छोटी या बड़ी चिंताओं से घिरा रहता है, जो इंसान के कर्म और व्यवहार की ही देन होती है। बुद्धि और विवेक का सदुपयोग इन चिंताओं से बाहर निकाल सकता है।

शास्त्रों के मुताबिक भगवान गणेश बुद्धिदाता हैं। जिनकी उपासना मानसिक चिंता और दुविधाओं से छुटकारा देती है। अगर आप भी पारिवारिक, व्यावसायिक या शारीरिक परेशानियों से चिंता में डूबे हैं तो यहां बताए जा रहे श्री गणेश मंत्रों का स्मरण कर निश्चिंत हो जाए। माना गया है कि श्री गणेश के ये मंत्र गहरी मानसिक सुख और शांति देने वाले हैं। इन शुभ मंत्रों का असर हर अनिष्ट से बचाते हैं।

बुधवार को गणेश उपासना के विशेष दिन नीचे लिखें मंत्रों का स्मरण करें और श्री गणेश की सामान्य या पंचोपचार पूजा करें –

– स्नान के बाद श्री गणेश की पूजा गंध, अक्षत, सिंदूर, जनेऊ, दूर्वा, फूल चढ़ाकर करें। धूप और घी का दीप जलाकर नीचे लिखें सरल मंत्रों का श्रद्धा से स्मरण चिंतामुक्ति की कामना से करें –

ॐ शान्ताय नम:

ॐ भक्तवांछितदायकाय नम:

ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम:

ॐ हरये नम:

ॐ ज्ञानिने नम:

पूजा और मंत्र जप के बाद मावे-मिश्री के लड्डूओं का श्री गणेश को भोग लगाएं। यथासंभव सपरिवार श्री गणेश की आरती करें। आरती और प्रसाद ग्रहण कर शुभ और मंगल की प्रार्थना करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here