सुख और दुख—-




हो सकता है कि मेरे इस लेख में आप को मेरी बातें किताबी बातों की तरह लगें, यह भी हो सकता है कि आप को ऐसा भी लगे कि में ज्ञान बाँट रही हूँ, या जो कुछ मैंने इस लेख के ज़रिये कहने कि कोशिश कि है वह कहना बहुत आसान है मगर करना उतना ही मुश्किल  है।    
मगर तब भी में यह जरुर कहना चाहूंगी की आप दूसरों के सुख दुःख के अनुभवों के उपर कोई भी विचार प्रस्तुत कर भी सकते हैं और नहीं भी, क्यूंकि मेरे ख़याल से यह एक बहुत ही कठिन विषय है ,क्यूंकि हर एक व्यक्ति का ज़िन्दगी को देखने का नजरिया बहुत अलग होता है, और वह उस ही नज़रिये पर निभर करता है कि उसकी नज़रों मे उसके सुख -दुःख की क्या परिभाषा है। क्यूंकि मुझे ऐसा लगता है कि जब हम किसी की ज़िन्दगी के बारे मे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं तभी हम सही तरीके से उसके सुख दुःख का अनुमान लगा सकते हैं और यदि हम उस व्यक्ति को ज्यादा करीब से नहीं जानते तो हमारे लिए उसके सुख दुख का अंदाजा लगाना भी नामुमुकिन सी बात होगी, क्यूंकि हो सकता है, जो बात हमको बहुत सुखद लगे वो उसकी ज़िन्दगी मे एक आम बात हो, और जो बात हमको आम लगे वो उसकी ज़िन्दगी मे बहुत मायने रखती हो       
खैर वह एक अलग बात है, जैसे के उदहारण के तौर पर मान लीजिये कि जब हमको किसी के प्रेम प्रसंग का पता चलता  है  और साथ  ही उसकी नाकामयाबी के बारे मे तो हमें कोई खास बुरा नहीं लगता और हम यह सोच कर उस बात को भूल जाते हैं कि वो जिस की ज़िन्दगी है वह जाने यह उसका निजी मामला है। और हमको उसकी निजी ज़िन्दगी में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है और थोड़ी सी संतवना महसूस करके उस बात को भूल जाते हैं। मगर जब ऐसी ही कोई घटना हमको अपने किसी परिचित के बारे में जान ने, या सुन ने को मिलती है, जो की हमारा बहुत ही करीबी हो तो, उस वक़्त उस वक्ती विशेष से बहुत सहानभूति भी रखते हैं और कोशिश भी बहुत करते हैं कि यदि हमारी किसी प्रकार कि सहायता से वो दोनों एक हो सकें तो उस वक़्त हमको उसे बड़ा पुन्य का काम और कोई नहीं लगता। उन्हें एक करने के लिए उस वक़्त हम प्रयास के साथ-साथ प्राथना भी करते हैं कि वह दोनों एक हों जाये क्यूंकि उस वक्त हम उनकी भावनाओ को समझने के साथ-साथ उनकी भावनाओं को महसूस भी करने लगते हैं। क्यूंकि यह एक ऐसा अनुभव है जिसको हम खुद भी अपनी ज़िन्दगी  में अनुभव कर चुके होते है।       
 मेरे हिसाब से सुख तो व्यक्ति की आवश्यकता पर निभर करता है, कि वह किस स्थिति में है, और उस वक़्त उसकी क्या प्राथमिकता है। हालाकी काफी हद तक यह बात दुःख की परिस्थियौं पर भी लागु होती है। मगर मेरे विचार से सुख पर ज्यादा लागु होती है। शायद इसलिए वह कहावत बानी है कि ”जिस तन लागे वो मन जाने”  अर्थत जिसके उपर बीतती है वही जानता है। यह बात दुःख के संधर्व में कही गयी है। इसलिए शायद दूसरों के सुख मे शामिल होना बहुत आसान है और दुःख मे शामिल होना उतना ही मुश्किल,  इसलिए हमारे बुजुगों ने कहा है कि जो व्यक्ति आपका दुःख मे साथ दे वही आप का सच्चा हितेषी है, शुभचिंतक है, क्यूंकि सुख में तो सभी साथ देते है,  मगर दुःख में बहुत कम और शायद इसलिए दूसरों के सुख-दुःख का अनुभव कर पाना मुश्किल है। वो कहते है ना   
” खुशी बाटने बढती है और दुःख बाटने से कम तो नहीं होता किन्तु उसे सहने कि शक्ति जरुर बढ़ जाती है ”
ऐसी ही यदि आप एक छोटे बच्चे का उद्धरण लें तो एक छोटा सा बच्चा यदि आप से रूठा हुआ हो तो प्यार भरी झपी और एक choclate से कितनी आसानी से मान जाता है, क्यूँ ? क्यूंकि इंसान चाहे बड़ा हो, या छोटा हो, हमेशा प्यार का भूखा होता है। ऐसे ही किसी ने एक बहुत ही खुबसुरत सी बात कही है। किसने कही है, यह तो मुझे याद नहीं मगर बात में दम बहुत है कि” It is so simple to be happy ,But so difficult to be simple ”हलाकि इस बात का किसी के सुख दुःख से कोई खास सम्बन्ध नहीं है, मगर यदि आप एक साधारण इंसान हो तो आप बहुत आसानी से दूसरों के सुख दुःख का अंदाज़ लगा सकते हो उनकी परिस्थियों को समझ सकते हो उनके सुख दुःख का ख्याल रख सकते हो, इसलिए शायद महात्मा बुद्ध ने जब दूसरों का दुःख देखा तो उनसे खुद भी नहीं रहा गया था और उन्होंने अपना राज पाट त्याग कर सन्यास लेना ज्यादा उचित समझा था।  
अंत : बस यही कहना चाहुगी कि  किसी वक्ती के जीवन के इन सुख दुःख के अनुभवों को उसके जीवन को उस व्यक्ति को आप तभी समझ सकते हैं जब आप या तो खुद उस परिस्थिती में हो, या उस परिस्थिती से गुज़र चुके हो, अर्थात किसी व्यक्ति विशेष को समझने  के लिए जानने के लिए आप को खुद उसका जीवन जीना होगा, उसके जीवन में उतारना होगा तभी आप उसके इन अनुभवों को समझ सकते हो ,तो इसी के साथ बस इतना ही की
 ”किसी की मुस्कुराहटों पे हो फ़िदा ,किसी का दर्द मिल सके तो ले उठा ,किसी के वास्ते हो तेरे दिल मैं प्यार जीना इसी का नाम है”….जय हिंद 

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