ज्योतिष और उससे जुड़े भ्रम—-मोनिका जैन
ज्योतिष शास्त्र उस विद्या का नाम है जो ब्रह्मांड में विचरने वाले ग्रह – नक्षत्रों की गति, दूरी और स्थिति का गणितीय आधार पर गणना करता है । ज्योतिष शास्त्र का सम्बन्ध वेदों से है परन्तु इसका यह तात्पर्य कादाचित नहीं कि ज्योतिष शास्त्र महज़ बस एक ग्रन्थ है । अपितु यह एक विज्ञान है जो अपने गणतिय समीकरणों के ज़रिये आकाशीय ग्रह नक्षत्रों की चाल बताने के साथ – साथ सूर्य – चन्द्र ग्रहण, तिथि, व्रत – त्यौहार, ऋतु परिवर्तन, आदि का भी इसी के माध्यम से पता लगता है । ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर ही एक भविष्यवक्ता मानव जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं के विषय में हमें जन्मपत्री के माध्यम से बताता है । किसी भी व्यक्ति की कुण्डली का अध्ययन भी ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर ही किया जाता है । आज बदलते दौर के साथ हम जितना आधुनिक होते जा रहे हैं उतना ही ज़्यादा हम भविष्य को जानने के लिऐ भी आतुर रहने लगे हैं । शायद यही वजह है कि आज ज्योतिष विद्या को अनेक भ्रान्तियों ने आ घेरा है जिस कारण समाज में अन्धविश्वास भी बढ़ने लगा है । वहम और वास्तविकता के बीच का सच क्या है यही जानने के लिऐ हमने बातचीत की पण्डित कृष्ण गोपाल मिश्र से –
प्र. – पण्डित जी ज्योतिष क्या है ?
उ. – वैसे ज्योतिष शब्द अपने आप में ही अपना अभिप्राय प्रकट करता है । ज्योतिष खगोलीय ज्योति पिण्डों की स्थिति एवं उनके वातावरण पर प्रभाव आदि ज्ञान को कहा जाता है । प्रकृति से जुड़ा हर ज्ञान अपने आप में विज्ञान है और विज्ञान से भी सर्वोपरि ज्ञान या महाविज्ञान ज्योतिष है जो हमें जीवन की उत्पत्ति या जीवन की रूपरेखा आदि का ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि हम यह कह सकते हैं कि हमारे समाज के अधिकतर संस्कार जो वैज्ञानिक सम्मत हैं वो ज्योतिष ज्ञान से ही संभव है । जिस प्रकार से जीवन का आधार बिंदु या पदार्थ मात्र का साकार रूप में होने का आधार है, धनात्मक, तटस्थ और ऋणात्मक नामक तीन ऊर्जाओं के सहसंजन (आपस में जुड़ा होना), जिसे वैज्ञानिक आधार पर पदार्थ का सूक्ष्मतम कण परमाणु संरचना से समझ सकते हैं । इस आधार पर इस ब्रह्माण्ड में हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा कण पिण्ड या पदार्थ सूक्ष्म व स्थूल रूप से एक-दूसरे से कहीं न कहीं सम्बंध रखते हैं और ऊर्जा परिवर्तन के आधार संरचना, आकार एवं गुण आदि परिवर्तित होते रहते हैं । ऊर्जा परिवर्तन पिण्डों के आपसी आकर्षण के कारण गतिमान पिण्डों द्वारा कालपरिवर्तन पर निर्भर करता है । जिससे हम सबका जीवन संचालित होता है ।
प्र. – क्या ज्योतिष और हस्त रेखा विज्ञान एक दूसरे पर निर्भर हैं ?
उ. – ज्योतिष खगोलीय पिण्डों की गति दिशा व प्रभाव के गणितीय आंकलन पर निर्भर करता है, जबकि हस्तरेखा समौद्रिक ज्ञान अर्थात् एक लक्षण विज्ञान है, जो हाथों की रूपरेखा, बनावट आदि के आधार पर फलादेश बताता है ।
प्र. – क्या जन्म कुण्डली पर ग्रहण जैसी कोई अवधारणा है या यह सिर्फ भ्रम है ?
उ. – कुण्डली में किसी भी प्रकार का कोई ग्रहण नहीं होता । कुण्डली में कारक और अकारक ग्रहों को तुलनात्मक आंकलन पर भविष्यफल कथन किया जाता है ।
प्र. – ज्यातिषीय गणनायें कितने प्रतिशत सही होने की सम्भावनाएंं होती हैं और ज्योतिष पर कितना निर्भर होना चाहिये ?
उ. – ज्योतिष तो अपने आप में पूर्णतः सही गणना है, परन्तु भविष्य वक्ता की गणना सही है या गलत यह इस बात पर निर्भर करता है कि जो व्यक्ति गणना कर रहा है, उसके पास ज्योतिष का कितना ज्ञान है, जिस प्रकार एक प्रशिक्षित डॉक्टर या वैद्य किसी बीमारी को डाइग्नोस करने में पहले उसके लक्षण व स्वभाव को समझता है फिर उसका इलाज करता है । हालांकि यह और बात है कि आज के मशीनी युग में हम मशीनी परीक्षण पर निर्भर हैं, लेकिन दोनों ही स्थितियों में डॉक्टर व वैद्य का ज्ञान और परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही मरीज़ को सही इलाज मिलना सम्भव है । थोड़ी सी लापरवाही या अल्पज्ञान मरीज़ के लिये घातक सिद्ध हो सकता है ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों के स्वभाव, भाव और राशि तथा आपसी ग्रहों के संबंधों के आधार पर भविष्य कथन होता है जो पूर्णतः सही होता है । परन्तु यदि ज्योतिष शास्त्री अगर ग्रहों की स्थिति व भावगत स्वभाव को समझने में थोड़ी सी भी भूल कर देते हैं तो उनका कथन गलत हो जाता है ।
प्र. – कई पण्डित जन्मपत्री देख कर दोष निवारण के लिये मंत्र जाप पूजा पाठ आदि का विधान बताते हैं साथ ही वह कहते हैं कि “आप हमें ग्यारह हज़ार या फिर इक्कीस या इकत्तीस हज़ार की धन राशि दे दें तो हम आपके लिये मंत्र जाप, पूजा पाठ आदि विधान कर देंगे और आपकी कुण्डली के दोष निवारण हो जायेंगे तथा आपको मन वांछित फल प्राप्त हो जायेगा“ क्या यह सचमुच सम्भव है ?
उ. – ज्योतिष का सारा आंकलन काल समय पर निर्भर करता है । ज्योतिष में यह माना जाता है कि जो पदार्थ जीव, सजीव जिस काल में साकार रूप लिया है उस काल की ग्रह स्थिति के अनुसार उसका स्वभाव, गुण, दोष जीवन तय हो जाता है, जिसमें कभी भी विपरीत बदलाव नहीं हो सकते । थोड़ा बहुत उपायों एवं प्राकृतिक आधार पर आचार व्यवहार से उसके कुप्रभाव में कमी लायी जा सकती है, अर्थात सीधे तौर पर किसी की तकदीर बदली नहीं जा सकती है । जहाँ तक पूजा-पाठ का सवाल है पूजा का आधार श्रद्धा है, चूंकि हम साकार ब्रह्म को मानते हैं और उस पर आस्था रखकर उसका पूजन कर हम अपना आत्मबल बढ़ाते हैं तथा उस आस्था के बल पर हम विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं को दृढ़ रख पाते हैं, पूजा का यही अभिप्राय है । जहाँ तक मंत्रों की बात है, तो मंत्र एकाग्रता लाते हैं अधिकांश मंत्र स्वर से शुरू होते हैं । स्वर सूक्ष्म रूप से ऊर्जा का द्योतक होता है जो आग्नेय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है । हमारी वर्णमाला में व्यंजन स्थूल रूप से ठण्डी प्रवृत्ति को क्षारीय ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं । इन दोनों के संयोजन से शब्द का निर्माण होता है, जिसके उच्चारण से व्यक्ति को एकाग्रता आत्मबल व ऊर्जा प्रदान होती है पर यह स्वयं करने से ज्यादा प्रभावी होता है, लेकिन इसका अभिप्राय यह भी नहीं है, कि इंसान की तकदीर बदली जा सकती है । यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कि तपती धूप में इंसान स्वयं को धूप से बचाने के लिये छाता तो लगा सकता है, परन्तु सूरज को नहीं हटा सकता । इसलिये ज्योतिष पर विश्वास रखने के साथ – साथ हमें अपने पुरूषार्थ पर भी भरोसा रखना चाहिये ।
प्र. – क्या जन्मपत्री के ज़रिये यह पता लगाया जा सकता है कि जातक पर तंत्र – मंत्र या जादू टोना किया गया है या नहीं और क्या कुण्डली के ग्रहों के अनुसार उसका तोड़ किया जा सकता है या यह महज़ भ्रम है ?
उ. – किसी की तकदीर पर किसी भी विधि द्वारा बदलाव नहीं किया जा सकता । ये महज़ एक भ्रम ही है । मंत्र, जादू, टोने के द्वारा किसी का नुकसान नहीं किया जा सकता अगर ऐसा संभव होता तो अभी तात्कालिक उदाहरण यह है कि ओसामा को मारने के लिए अमेरिका को ११ वर्ष नहीं लगते ।
प्र. – क्या कुण्डली में कालसर्प जैसा कोई योग होता है ?
उ. – राहु और केतु सौर मंडल में दो ऐसे बिन्दुओं के नाम हैं, जो .8. अंश पर आमने-सामने स्थित हैं । इसके अन्तर्गत अक्सर सातों ग्रह इकट्ठे हो जाते हैं, जिसमें बहुत सारे लोगों का जन्म होता है और इसी के साथ-साथ काफी अच्छी और प्रगतिशील कुण्डली वालों का भी जन्म होता है । इसी संयोग को कुछ लोग कालसर्प योग कह कर लोगों को भयभीत कर उन्हें भ्रमित करते हैं । कालसर्प योग कोई ऐसी चीज नहीं है, जिससे भयभीत हुआ जाय, इसका कोई भी प्रभाव नहीं होता है । कुण्डली हमेशा कारक और अकारक ग्रहों के संतुलन पर ही निर्भर करती है । जिससे यह तय होता है कि आप कितना सफल और सुखद जीवन व्यतीत करेंगे । कुण्डली में काल सर्प योग का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है ।
प्र. – प्रश्न कुण्डली क्या है और यह कितनी सार्थक है ?
उ. – ज्योतिष में हर गणना समय पर निर्भर करती है । प्रश्न कुण्डली ज्योतिष में एक बड़ी ही सार्थक विधि है । जातक के द्वारा किये गये प्रश्न के समय के आधार पर कुण्डली बनाकर उसके ग्रहों का आंकलन किया जाता है जो काफी सार्थक होता है, और उसका कथन काफी हद तक सही होता है ।
प्र. – ग्रह – नक्षत्र हर पल अपना स्थान बदलते हैं फिर कुण्डली के ज़रिये भविष्य जानने की सार्थकता कितने प्रतिशत सही है, और जन्म समय का कितना महत्व है ?
उ. – ग्रह नक्षत्र यदि चलायमान न रहें तो वक्त रूक जायेगा और सृष्टि भी अस्तित्वहीन हो जायेगी, इसलिए ग्रह नक्षत्र का चलायमान होना एक प्राकृतिक व्यवस्था है, जो संसार व जीवन का अस्तित्व बनाये रखती है । जहाँ तक ज्योतिष में भविष्य कथन का सवाल है, जन्म के समय में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति और आने वाले पूरे जीवन में ग्रह नक्षत्रों की स्थिति का आपस में सम्बन्ध होता है, जिसका जन्म के समय ही सारा आंकलन पता चल जाता है । जिस तरह से कैलेण्डर में आज से सौ साल बाद किस महीने की कौन सी तारीख को कौन सा दिन होगा यह सुनिश्चित है उसी प्रकार सौर मंडल के ग्रहों की चाल, गति बड़े ही सुव्यवस्थित ढंग से चलती है, जिसका सम्बन्ध जन्म के समय से ही निश्चित हो जाता है, बल्कि यूं कहें कि जबसे सृष्टि अस्तित्व में आई तब से हर दिन की रूपरेखा पूर्व निर्धारित व सुनिश्चित है । इसी प्रकार आदमी का जीवन भी सुनिश्चित होता है । इसलिये जन्मकुण्डली के बनाने के लिये जन्म समय, स्थान और दिनांक की आवश्यकता पड़ती है ।
प्र. – क्या वास्तव में ज्योतिष के माध्यम से जीवन से जुड़ी समस्याओं का निवारण सम्भव है ? मसलन नौकरी न मिलना, बीमारी का ठीक न होना, दरिद्रता दूर करना, वगैरह – वगैरह ?
उ. – ज्योतिष शास्त्र जीवन का आईना दिखाने के साथ – साथ जीवन का मार्गदर्शन भी करता है । व्यक्ति का जीवन किस दिशा में निर्धारित है और उसे को किस दिशा में प्रयास करना चाहिए । जैसे कि ज्योतिष में पहले से निर्धारित है कि अमुक समस्या का समय अमुक तारीख से अमुक तारीख तक रहेगा, उसके लिए व्यक्ति मानसिक तौर पर तैयार हो जाता है और उस समय धैर्य नहीं खोता है । अगर समस्या का समय पता न हो तो व्यक्ति धैर्य खो देता है । अतः समस्या का कारण पता होने से सकारात्मक दिशा में सुधार हेतु प्रयास भी काफी हद तक व्यक्ति को समस्याओं से निजात दिलाने में सार्थक होते हैं । जहाँ तक नौकरी की बात है तो बच्चे के जन्म के समय से ही पता लग जाता है कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय तो उस दिशा में उसके स्वभाव के अनुरूप दिशा देना उसके कैरियर में काफी महत्वपूर्ण साबित होता है । ठीक उसी प्रकार से बीमारी की जहां तक बात है तो ज्योतिष द्वारा यह आंकलन होता है कि कौन सी बीमारी कब और शरीर के किस हिस्से में होगी उसके अनुरूप ज्योतिष द्वारा कौन से उपाय करने चाहिए यह तय करना आसान हो जाता है । जैसे की अगर किसी को पाचन की समस्या हो रही है तो कुण्डली में यह पता चल जाता है कि उसे यह समस्या मंदाग्नि या जठराग्नि के कारण है । मंदाग्नि, जठराग्नि पित्तज प्रवृति के ग्रहों की प्रबलता या निर्बलता पर निर्भर करते हैं । ऐसी स्थिति में उन ग्रहों को सन्तुलित करने का उपाय स्वास्थ्य के लिए कारगर साबित हो सकता है ।
प्र. – कई बार लोग जीवन में सफलता आदि पाने के लिये अपने नाम के अक्षरों में फेर बदल करवाते हैं या फिर नाम ही बदल लेते हैं तो यह क्या ज्योतिष विद्या के ज़रिये सचमुच यह सम्भव है या महज़ भ्रम है ?
उ. – जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि धनात्मक, ऋणात्मक व तटस्थ ऊर्जाओं के संयोजन से सृष्टि संचालित है ठीक उसी तरह से हमारे यहाँ वर्णमाला के अक्षर स्वर और व्यंजन के संयोग से शब्द का निर्माण होता है स्वर धनात्मक ऊर्जा का प्रतीक है और व्यंजन ऋणात्मक ऊर्जा का प्रतीक है । जिस आदमी के शरीर का आधार पित्तज ग्रहों से या आग्नेय प्रवृति के प्रधान ग्रहों द्वारा उसका लग्न निर्धारित हो उसके लिए स्वर अक्षर से नाम ज्यादा लाभकारी होते हैं । जिसमे लग्न कफज या क्षारीय ग्रहों पर आधारित हों उसके लिए व्यंजन अक्षर से नाम लाभकारी होता है इसके साथ-साथ ज्योतिष का ही एक अंग अंक ज्योतिष के अनुसार उन अक्षरों के अंकों से जोड़कर जातक के मूलांक से मिलान कराया जाता है तब वह नाम लाभकारी होता है और प्रसिद्धि दिलाता है, लेकिन नाम बदल देने से ही सब कुछ नहीं होता है आदमी की प्रसिद्धि और प्रगति उसकी कुण्डली पर भी निर्भर करती है ।
इसमें कहीं कोई दो राय नहीं कि मनुष्य का भाग्य और पुरूषार्थ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परन्तु यह भी सच है कि भाग्य से मनुष्य जो पाता है उसे कायम रखने के लिए उसे प्रयास करने होते हैं लेकिन जो भाग्य में नहीं है उसे कर्मयोगी व्यक्ति पुरूषार्थ से हासिल कर लेते हैं। जीवन के अनेक पहलुओं को प्रभावित करने वाला ज्योतिष शास्त्र हमारी समस्याओं के हल तो अवश्य देता है परन्तु ज्योतिष विद्या भी कर्म पर बल देती है । इसलिए यदि हम स्वयं पर भरोसा रखेंगे तो भ्रम और भ्रान्तियों के मकड़जाल में भी कम फसेंगे ।