जीवन में सुखी रहने, सुख बंटोरने या कायम रखने का सबसे अच्छा उपाय माना गया है – क्षमाभाव। क्षमा करना ही नहीं उससे भी ज्यादा मन को शांति और सुख तब मिलता है, जब इंसान अपनी गलतियों के लिये क्षमा मांग ले।
क्षमा का यह सूत्र रिश्तों और भक्ति दोनों में ही अपार सुख देता है। असल में क्षमाभाव जोड़कर रखता है। रिश्तों में इंसानों से तो भक्ति में ईश्वर से। भक्ति में भाव ही अहम माना गया है, न कि साधन।
चूंकि ईश्वर भक्ति से जुड़े़ कारणों में सांसारिक जीवन के दु:खों से रक्षा भी एक होता है। इसलिए श्रद्धा और आस्था से की जाने वाली देव उपासना में मानसिक, शारीरिक या बाधा आती है तो सुख की कामना से की गई उपासना में खलल मन को आहत कर संशय से भरता है।
शास्त्रों में देव उपासना की परंपराओं में पूजा-पाठ के दौरान जाने-अनजाने हुए ऐसे ही दोष से छुटकारे के लिए विशेष मंत्र बताए गए हैं। जिनको बोलकर मंत्र, क्रिया या भक्ति दोष का शमन हो जाता है। जानते हैं इनमें से ही एक मंत्र –
इस विशेष क्षमा मंत्र को देव विशेष की पूजा, मंत्र जप, आरती के बाद अंत में क्षमा प्रार्थना के दौरान बोलें-
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर।
यत्पूजितं मया देव परिरपूर्णं तदस्तु में।।