कच्ची उम्र में प्रेम न बन जाए बोझ—मानसी




हेलो दोस्तो! पहले प्रेम पर न जाने कितने साहित्य रचे गए हैं। कितनी लोककथा, किंवदंतियों का मुख्य बिंदु ही प्रथम प्रेम रहा है। बॉबी, लव स्टोरी, मैंने प्यार किया आदि सुपर हिट फिल्मों का एक मात्र फॉर्मूला ही प्रथम प्रेम रहा है, वह भी किशोरावस्था में। वर्षों से नए जोड़े को लॉन्च करने का सुरक्षित तरीका यही रहा है। बचपन से निकलकर यौवन की दहलीज पर कदम रखते व प्रेम को महसूस करते किशोर-किशोरियों को फिल्मों में देखना तो बहुत अच्छा लगता है पर वास्तविक जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है इसका हमें अनुमान नहीं होता है। 


आमतौर पर इन प्रेम कहानियों को किस्सों और फिल्मों तक ही महफूज रखकर सोचते हैं। हम यह मानना ही नहीं चाहते कि हमारे बिल्कुल आस-पास भी हूबहू वैसा ही घट रहा है। हमारा ध्यान तब ही उधर जाता है जब कोई बड़ा हादसा घट जाता है। 


किशोरावस्था में प्रेम की अनुभूति कोई बड़ी बात नहीं है पर यह अभिशाप बन जाए, यह अवश्य ही दुर्भाग्यपूर्ण है। हमारे पास बहुत सारे अभिभावक और किशोर-किशोरियों के पत्र इस संदर्भ में आते हैं कि क्या इस उम्र में प्रेम करना सामान्य व उचित है? इस उम्र में प्रेम का दायरा दोस्ती तक ही महफूज रहे तो बेहतर है। प्रेम जैसी भावना संभालने के लिए जो परिपक्वता चाहिए वह इस उम्र में विकसित नहीं हो पाती है। 


अन्य रिश्तों में, जो बचपन से चले आ रहे हैं, वहां गुस्सा, नाराजगी, निराशा, अवसाद को समझकर उन्हें समझाने व संभालने के लिए अभिभावक होते हैं। उनके स्वभाव की नजाकत को मां-बाप भली-भांति जानते हैं इसलिए आम दोस्तों से झगड़ा, स्कूल में डांट-फटकार, किसी विशेष वस्तु की जिद का पूरा नहीं होना आदि जैसे हालात में वे उन्हें दिलासा देने और सामान्य अवस्था में लाने में कामयाब हो जाते हैं। पर, प्रेम जैसी भावना से उलझते और निपटते वक्त कच्ची उम्र के लोग अपनी यह निजी भावना अपने अभिभावक से छुपाकर रखते हैं। इसी वजह से मुश्किलें आने पर कोई उनकी मदद नहीं कर पाता है। और, यह सहायता न कर पाने वाली हालत ही सबसे घातक होती है। 


प्रेम के चक्कर में पड़कर कई बार किशोर-किशोरियां अपना कॅरिअर ही बिगाड़ लेते हैं। पढ़ाई का समय वे अपने निजी सुख-दुख की बातों में गंवाने लगते हैं। विशेषकर दुःख की हालत में वे अपनी परेशानी हमउम्र दोस्तों के साथ ही केवल बांट पाते हैं। इसीलिए वे भी उन्हें सही सलाह नहीं दे पाते हैं। और उनकी यही कशमकश उन्हें अध्ययन में बाधा डालती है। अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का खामियाजा उन्हें किस कदर चुकाना पड़ेगा इसका एहसास उन्हें नहीं होता है। 


एक दसवीं कक्षा की छात्रा सोनाली (बदला हुआ नाम) अपने प्रेम के टूटने के कारण इतनी बीमार हो गई कि उसका बचना मुश्किल हो गया था। लगभग ७-८ महीने बाद ही वह स्वस्थ हो पाई और सामान्य होने के लिए उसके दोस्त को उसकी खोज खबर लेनी पड़ी। उसका दोस्त रहमदिल व समझदार निकला जो उसने उससे संवाद बनाते हुए बीमारी से निकलने में मदद की वरना आमतौर पर ऐसी जटिल परिस्थिति में दोस्त भाग खड़े होते हैं। 


प्रेम के चक्कर में पड़कर कई बार किशोर-किशोरियां अपना कॅरिअर ही बिगाड़ लेते हैं। पढ़ाई का समय वे अपने निजी सुख-दुख की बातों में गंवाने लगते हैं। विशेषकर दुःख की हालत में वे अपनी परेशानी हमउम्र दोस्तों के साथ ही केवल बांट पाते हैं।
अभिभावकों, शिक्षकों को चाहिए कि किशोरावस्था के बच्चों को गहरी, और स्वस्थ दोस्ती व प्रेम के बीच फर्क कराना सिखाएं। इस बारे में उनकी जागरूकता बढ़ाएं। उनकी काउंसिलिंग भी उन्हें गलत साबित किए बिना करनी चाहिए। उन्हें बुरा-भला कहे बिना एक गंभीर विषय की तरह बात करनी चाहिए। ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता के बीच अनबन रहती है या अलग हैं या समय नहीं दे पाते हैं स्कूल के कांउसिंलिंग विभाग को गंभीरता से समय देना चाहिए।


सोनाली के माता-पिता में भी गहरी अनबन और तनाव रहा और बिटिया अपनी मन की शांति व प्यार के लिए दूसरों का मुंह ताकने लगी। इसलिए एक के बाद वह एक रिश्ते में उलझती गई। उसका लिखना है कि कभी भी उसने ऐसी-वैसी हरकत नहीं की है फिर भी सभी उसे बुरी लड़की समझते हैं जिसके कारण वह और भी उद्दंड और साथ ही हीनभावना की शिकार भी हो गई है। इस कोमल उम्र में किसी प्रकार का आघात न लगे इसके लिए किशोर-किशोरियों पर बहुत ही समझदारी से नजर रखनी चाहिए और समय व कॅरिअर की अहमियत हमेशा शांत व अच्छी भाषा में समझाते रहने से ही परिवार सुखी हो सकता है।
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