पद —
लाल की रुप माधुरी, निरखि नैकु सखी री।
मनसिज मन हरनि हाँसि, साँवरौ सुकुमार रासि,
नख सिख अंग-अंग निरखि सोभा सींव नखी री ॥१॥
रँगमँगि सिर सुरँग पाग, लटकि रही बाम भाग,
चंपकली कुटिल अलक बीच-बीच रखी री।
आयत दृग अरुन लोल, कुंडल मंडित कपोल,
अधर दसन दीपति छबि क्यौंहुँ न जाति लखी री ॥२॥
अभयद भुजदंड मूल पीन अंस सानुकूल,
कनक मेखला दुकूल दामिनी धरषी री।
उर पै मंदार हार, मुक्ता लर बर सुढार,
मत्त द्विरद गति तियनि की देह-दसा करषी री ॥३॥
मुकुलित बय नव किसोर, वचन रचन चितै चोर,
माधुरी प्रकास मंजरी अनूप चखी री।
सूर स्याम अति सुजान, गावत कल्यान तान,
सप्त सुरनि कल तिहि पर मुरलिका बरषी री ॥४॥

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