*****कब तक**????????-पवन तलहन
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—–सत्य को जानो—सत्य को पहचानो—–
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अरे भाई कब-तक शास्त्रों को अँधेरे में रख छोड़ेंगे?
कब-तक शास्त्रों को अंधेरों में पढोगे?
कब-तक शास्त्रों से मुंह फेरोगे?
कब-तक निंदा-स्तुति सुनोगे?
कब-तक शास्त्रों की बात कर अपना ऊलु सीधा करोगे?
कब-तक शास्त्र शब्द को अपनी अच्छा अनुसार अर्थ दोगे?
कब-तक शास्त्र को बेचोगे?
कब जागेगी अन्तरात्मा?
कब शास्त्र को अपनाओगे?
कब नींद से जागोगे?
कब अपने-आप को पहचानोंगे?
शास्त्र मर्यादा-उपदेश सब भूल गये फिर कैसे राम-कृष्ण-शिव को जानोगे?
पाखंडियों की पहचान कर, कब सत्य को जानोंगे?
चोर पहन के बैठा, साधु चोला कब तक शीश झुकाओगे?
गीता-गीता सब कोई कहता कब गीता उपदेश जानोगे?
रामायण-रामायण सब कोई कहते, कब रामायण मर्यादा जानोगे?
कब-तक धर्म दिखावा करोगे, जब धर्म अधर्म से हार जायेगा?
कब-तक असत्य की जय-जय करोगे?
कब सत्य को पाचानोगे?
आज तुम्हारी एक भूल के कारण साधु, चोर कहलायेगा!
फिर साध-संतों और चोर में अंतर क्या रह जायेगा?
ठग बैठा बाजार में. शिव-शंकर में अंतर बतलायेगा!
अपना ऊलु [स्वार्थ] सीधा करने खातिर, शास्त्र बलि चढ़ायेगा!
ले नाम योग का, गुमराह कर जायेगा!
कब-तक दुष्टात्माओं की चुंगल में फंस कर, पथ-भ्रष्ट होते जाओगे?
काम-कंचन-कीर्ति जिनका उद्देश्य, कब-तक इन्हें अपनाओगे?
जागो ओ सोने वालो—-
धर्म तुझे पुकार रहा—
धर्म की खातिर जो मर जाता,
वही मोक्ष है पाता!
अंधविश्वास का नित होता जन्म यहाँ, कब-तक अंधविश्वासों में अपना जीवन गवाओगे?
कब-तक पाखंडियों से मिलकर पथभ्रष्ट होते जाओगे?
जागो-जागो धर्म को जानो—-पहचानों धर्म-शास्त्र को!
सब संतों की एक आवाज —धर्महीन मनुष्य पशु समाना!
शास्त्र पढ़ने की सिर्फ पढ़ने की वस्तु नहीं है, इसे तो मन में उतार कर रखना होगा! शास्त्रों की मर्यादा को समझ कर हमें शास्त्र-धर्म निभाना होगा! आज हमें सच्चे साधु-संतों-ऋषियों और मुनियों की पहचान करनी होगी! कहीं ऐसा न हो जाये, जिस भारतवर्ष ने समस्त विश्व को ज्ञान दिया, विश्व को प्रकाशमान किया, वही अज्ञान से भर जाये और अज्ञानी [मूर्ख] कहलाये!
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—–सत्य को जानो—सत्य को पहचानो—–
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अरे भाई कब-तक शास्त्रों को अँधेरे में रख छोड़ेंगे?
कब-तक शास्त्रों को अंधेरों में पढोगे?
कब-तक शास्त्रों से मुंह फेरोगे?
कब-तक निंदा-स्तुति सुनोगे?
कब-तक शास्त्रों की बात कर अपना ऊलु सीधा करोगे?
कब-तक शास्त्र शब्द को अपनी अच्छा अनुसार अर्थ दोगे?
कब-तक शास्त्र को बेचोगे?
कब जागेगी अन्तरात्मा?
कब शास्त्र को अपनाओगे?
कब नींद से जागोगे?
कब अपने-आप को पहचानोंगे?
शास्त्र मर्यादा-उपदेश सब भूल गये फिर कैसे राम-कृष्ण-शिव को जानोगे?
पाखंडियों की पहचान कर, कब सत्य को जानोंगे?
चोर पहन के बैठा, साधु चोला कब तक शीश झुकाओगे?
गीता-गीता सब कोई कहता कब गीता उपदेश जानोगे?
रामायण-रामायण सब कोई कहते, कब रामायण मर्यादा जानोगे?
कब-तक धर्म दिखावा करोगे, जब धर्म अधर्म से हार जायेगा?
कब-तक असत्य की जय-जय करोगे?
कब सत्य को पाचानोगे?
आज तुम्हारी एक भूल के कारण साधु, चोर कहलायेगा!
फिर साध-संतों और चोर में अंतर क्या रह जायेगा?
ठग बैठा बाजार में. शिव-शंकर में अंतर बतलायेगा!
अपना ऊलु [स्वार्थ] सीधा करने खातिर, शास्त्र बलि चढ़ायेगा!
ले नाम योग का, गुमराह कर जायेगा!
कब-तक दुष्टात्माओं की चुंगल में फंस कर, पथ-भ्रष्ट होते जाओगे?
काम-कंचन-कीर्ति जिनका उद्देश्य, कब-तक इन्हें अपनाओगे?
जागो ओ सोने वालो—-
धर्म तुझे पुकार रहा—
धर्म की खातिर जो मर जाता,
वही मोक्ष है पाता!
अंधविश्वास का नित होता जन्म यहाँ, कब-तक अंधविश्वासों में अपना जीवन गवाओगे?
कब-तक पाखंडियों से मिलकर पथभ्रष्ट होते जाओगे?
जागो-जागो धर्म को जानो—-पहचानों धर्म-शास्त्र को!
सब संतों की एक आवाज —धर्महीन मनुष्य पशु समाना!
शास्त्र पढ़ने की सिर्फ पढ़ने की वस्तु नहीं है, इसे तो मन में उतार कर रखना होगा! शास्त्रों की मर्यादा को समझ कर हमें शास्त्र-धर्म निभाना होगा! आज हमें सच्चे साधु-संतों-ऋषियों और मुनियों की पहचान करनी होगी! कहीं ऐसा न हो जाये, जिस भारतवर्ष ने समस्त विश्व को ज्ञान दिया, विश्व को प्रकाशमान किया, वही अज्ञान से भर जाये और अज्ञानी [मूर्ख] कहलाये!