हे ईश्वर भाग्य विधाता कौन है ?
        प्रभु ईश्वर कहते है -हर एक इंसान अपने भाग्य के बारे में जानना चाहता है। भाग्य विधाता माता-पिता होते है। जैसे माता-पिता होते है, वैसा संतान का भाग्य। ऋषियों ने जाना, समझा और इंसानो को समझाने का प्रयास किया है। प्रथम पिता गगनदेव, प्रथम माता भूमि देवी है। हम भूमि और गगन की संतान है। भूमि दो सौ कि.मी. मे एक भाषा एक लंबाई-चौडाई शरीर की बनावट का अंतर होता है, दुसरा भाषा का अंतर होता है, शरीर का अंतर होता है, जैसी भूमि वैसी भूमि की संतान। जैसे भूमि के संस्कार वैसे संतान के संस्कार। जैसा भूमि का बल वैसा संतान का बल। जैसा गगन का अहंकार वैसा संतान का अहंकार। जैसे गगन देने वाला वैसे 
संतान पिता देने वाला, पाने वाले हम संतान। संतान का भाग्य माता-पिता से है। प्रभु ईश्वर कहते है-
माता-पिता से संतान का भाग्य, यश, आयु, संगठन, शासन, मित्रता, न्याय, तुलना, धर्म, ईश्वर का मार्ग लाभ, धन-संपत्ति, स्वस्थ, माता-पिता के सत्य कर्म से संतान को मिलता है। माता-पिता अन्याय के मार्ग पर घूस खाना, झुठ को सच बनाना, अन्याय का संगठन बनाना, अघिक दर से ब्याज लेना, अधिक दर से व्यापार करना, मानव को क्षति करना ऐसे माता-पिता से जिस संतान का जन्म होता है, उस संतान का भाग्य अग्निपथ होता है। संतान अन्यायी, अधर्मी, संगठन रहीत अर्थात रिश्तेदारो से कोई मेल जोल नही, द्वेषी, लोभी, क्रोधी, श्ंाका, योजनाओ का ज्ञान बनाना, माता-पिता को क्षति पहुचाना, अस्वस्थ रहना, गलत संगत करना, मॉ बाप को सुख न देना। आयु पर क्षति, कोर्ट कचहरि, शत्रुता मे अन्याय के मार्ग पर संतान का भाग्य होता है। यह भाग्य माता और पिता तय करते है। जैसा बोया वैसा संतान ने पाया।
 जैसा भाग्य माता-पिता ने बनाया, वैसा भाग्य संतान का बनता है। जैसा माता-पिता ने बोया, वो संतान ने पाया। प्रथम पिता ने किया कार्य, झूठ को सच बनाया,सजा का पात्र पहली संतान, माता ने किया कार्य सजा का पात्र दुसरी संतान, अधिक दर से ब्याज लेना, व्यापार करना, घुस खाना, अन्यायी का सहयोगी बनकर सहयोग करना सजा का पात्र संतान। पिता ने किया कार्य सजा का पात्र पहली संतान, माता ने किया कार्य सजा का पात्र दुसरी संतान। माता-पिता ने आपसी मत भेद, आपसी युद्ध शासन किया, पिता ने अन्यायी बनकर सजा का पात्र पहली संतान, माता ने किया अन्यायी बनकर सजा का पात्र दुसरी संतान, भाग्य बनाया स्वयं ने पिता बनकर, भाग्य बनाया स्वयं ने माता बनकर, सजा का पात्र बनी संतान। 

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