ज्योतिष: शास्त्र, कला या विज्ञान=(ज्योतिष एक सच, झूठ या कुछ और..)—-
 
ज्योतिष विद्या भारत की बहुत सी महान उपलब्धियों में से एक है, लेकिन भारत में अब इस विद्या के जानकार को खोजना मुश्किल ही है। ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित .. श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में .6. श्लोक हैं। वेदों के उक्त श्लोकों पर आधारित आज का ज्योतिष पूर्णत: बदलकर भटक गया है। कुंडली पर आधारित फलित ज्योतिष का संबंध वेदों से नहीं है।

ज्योतिष विज्ञान की श्रेणी में आता है। यह उतना ही पुराना है जितने की वेद। इसलिए इसे वेदांग भी कहते हैं। जो तारे-सितारों की चमक या ज्योति दिखाई दे रही है उसका धरती के मौसम और जीवों के शरीर तथा मन पर होने वाले असर का अध्ययन करने की विद्या को ही ज्योतिष विद्या कहा जाता है। 

क्या से क्या हो गया :
वैदिक ज्ञान के बल पर भारत में एक से बढ़कर एक खगोलशास्त्री, ज्योतिष व भविष्यवक्ता हुए हैं। इनमें गर्ग, आर्यभट्ट, भृगु, बृहस्पति, कश्यप, पाराशर वराहमिहिर, पित्रायुस, बैद्धनाथ आदि प्रमुख हैं। वराहमिहिर का ज्ञान काफी उच्चकोटि का था और इस ज्ञान को उन्होंने यवनों को भी दिया था। भारत से यह ज्ञान ग्रीक गया। भारत के साथ ही ग्रीक, चीन, बेबीलोन, परशिया (ईरान) आदि देशों के विद्धानों ने भी ज्योतिष शास्त्र का विस्तार अपने यहाँ कि आबोहवा को जानकर किया। आज से करीब 2600 वर्ष पूर्व चेल्डिया के पंडितों व पुजारियों ने इस विषय पर गहन शोध किया और इसकी बारीकियों को उजागर किया।

प्रारंभ में यह ज्ञान राजा, पंडित, आचार्य, ऋषि, दार्शनिक और विज्ञान की समझ रखने वालों तक ही सीमित था। ये लोग इस ज्ञान का उपयोग मौसम को जानने, वास्तु रचना करने तथा सितारों की गति से होने वाले परिवर्तनों को जानने के लिए करते थे। इस ज्ञान के बल पर वे राज्य को प्राकृतिक घटनाओं से बचाते थे और ठीक समय पर ही कोई कार्य करते थे।

धीरे-धीरे यह विद्या जन सामान्य तक पहुँची तो राजा और प्रजा सहित सभी ने इस विद्या में मनमाने विश्वास और धारणाएँ जोड़ी। अंध धारणाओं के कारण धीरे-धीरे इसमें विकृतियाँ आने लगीं, लोग इसका गलत प्रयोग करने लगे। राजा भी इस विद्या के माध्यम से लोगों को डराकर अपने राज्य में विद्रोह को दबाना चाहता था और पंडित ने भी अपना चोला बदल लिया था।

इस सब कारण के चलते विद्धान ज्योतिषाचार्य व ज्योतिषग्रंथ समाप्त हो गए। शोध कार्य मृतप्राय होकर बंद हो गए। अज्ञानी लोगों ने ज्योतिष का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। इसे व्यापार का रूप देकर धन कमाने के लालच में झूठी भविष्यवाणी करके शोषक ‍वर्ग शोषण के धंधे में लग गया। जो भविष्यवाणी सच नहीं होती उसके भी मनमाने कारण निर्मित कर लिए जाते और जो सच हो जाती उसका बढ़ाचढ़ाकर प्रचार-प्रसार किया जाता। इसके चलते भारत में ज्योतिष का जन्म होने के बावजूद अब यह विद्या भारत से ही लुप्त हो चली है।

अब इस विद्या की जगह एक नई विद्या है कुंडली पर आधारित फलित ज्योतिष। ज्योतिषाचार्यो की महँगी फीस, महँगे व गलत उपायों से जनसामान्य आज भी धोखे में जी रहा है। आज ज्योतिष मात्र खिलवाड़ का विषय बन गया है। टीवी चैनलों के माध्यम से तो इस विद्या के दुरुपयोग का और भी विस्तार हो गया है। अब इसे विज्ञान कहना गलत होगा।

समय-समय पर ज्योतिष शास्त्र में उन्नति होती रही, लेकिन करीब दौ सौ सालों से ज्योतिष पर शोध किए जाने की आवश्यकता बनी हुई है। खगोल, भूगोल आदि सभी तरह का विज्ञान स्वयं को अपडेट करता रहता है, लेकिन ज्योतिष विद्या को कभी अपडेट करने का खयाल शायद ही किसी को आता हो। आधुनिक युग में बाजारवाद के चलते तो अब ज्योतिष एक विज्ञान नहीं व्यापार रह गया है। दूसरा यह कि इसमें इतना भ्रम है कि सही और गलत का फैसला नहीं कर सकते।

अपडेट करने की जरूरत इसलिए है कि लाखों वर्षों के सफर में धरती बहुत तरह के झटके झेलकर अब अपने स्थान पर नहीं रही है। पूरे तीन डिग्री अपनी धूरी से खसक गई है। उसी तरह ब्रह्मांड का कोई भी तारा ठीक उसी जगह नहीं है जहाँ वह लाखों साल पहले था। तापमान बदल गया है, मौसम बदल गया है और न जाने क्या-क्या बदला है इसका आकलन करना अभी बाकी है। असंख्‍य महातारों में से किसी एक तारे में एक प्रस्फोट होता है और ब्रह्मांड में एक नई सृष्टि की रचना हो जाती है। सब कुछ बदल गया है, लेकिन ज्योतिष विद्या वही प्राचीन है।

ग्रहों के देवता : प्रत्येक ग्रह के साथ एक देवी या देवता को जोड़कर उक्त देवी-देवता की जीवन कथा भी अब भ्रमपूर्ण हो चली है। जब राहु और केतु छाया ग्रह है और जिनका कोई अस्तित्व नहीं है तो फिर उनकी कथा का क्या मतलब। यह कथा कितनी सच और कितनी झूठ है यह कोई नहीं बता सकता। 

यह भी हो सकता है कि राहु और केतु नाम के दो राक्षस हुए हों और उन्ही के नाम पर छाया ग्रहों का नामकरण कर दिया गया हो, जैसे कि आधुनिक युग में प्लेटो ग्रह का नाम दार्शनिक प्लूटो पर रखा गया है। अब प्लूटो को पूजने से क्या प्लूटो ग्रह के दोष ठीक हो जाएँगे? यह भी हो सकता है कि ग्रहों की गति-दुर्गति, अच्छे और बुरे असर को मिथकीय रूप दिया गया हो। यह मामला अभी स्पष्ट होना बाकी है।

ज्योतिष की शिक्षा : ज्योतिष की शिक्षा देने वाले बहुत कम संस्थान है और ज्योतिषाचार्य की तादाद लाखों में। इन लाखों में से सिर्फ सैकड़ों ही ऐसे ज्योतिष हैं जिन्होंने विधिवत ज्योतिष की शिक्षा ली है बाकी सभी किताबी ज्ञान वाले हैं और फिर वे मनमाने फंडे बताकर लोगों को ठगने में माहिर हो चुके हैं। बातों को इस तरह गोलगोल घुमाते हैं कि जो न तो सच लगती है और ना ही झूठ। लेकिन यह भी सच है कि बहुत से ऐसे ज्योतिष हैं जिन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं ली, फिर भी वे ज्योतिष का ज्ञान रखते हैं और अच्छा रखते हैं एवं शास्त्र सम्मत बातें ही कहते हैं। कुछ भी अपने मन से नहीं जोड़ते।

वैज्ञानिक की माने या ज्योतिष की : इंग्लैंड की प्रतिष्ठित संस्था रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी 1922 में ही विज्ञान कांग्रेस में घोषणा कर चुकी है कि राशि 12 नहीं 13 है। यानी सूर्य और अन्य ग्रह 13 राशि मंडल (तारा मंडल) से होकर गुजरता है। इस तेरहवें तारा मंडल को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है- ओफियुकस। यह एक यूनानी देवता का नाम भी है।

माना जाता है कि ज्योतिष शास्त्र की कुछ गणितीय समस्याएँ थी जिस कारण से 13वीं राशि को शामिल नहीं किया गया। पहली समस्या यह कि 13 का पूर्ण भाग नहीं हो सकता। कुंडली को 13 खानों में बाँटना मुश्किल था। ग्रहों को 30 डिग्री से कम का ज्यादा गति करवाने से ज्योतिष गणित गड़बड़ा जाता है। 

360 डिग्री को 12 हिस्सों में बाँटना आसान हैं। विषम संख्‍या से कई तरह कि विषमताएँ पैदा होती है शायद इसिलिए 13वीं राशि को नजरअंदाज किया गया। दूसरी ओर पाश्चात्य जगत में 13 का अंक अशुभ माना जाता है इसलिए राशियों का तेरह होना उन्हें जमा नहीं। परम्परागत पाश्चात्य ज्योतिष भी 12 पर अड़ा रहा।

हालाँकि वैज्ञानिकों की माने तो राशियाँ तो 88 होना चाहिए। दरअसल वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा को 88 तारा मंडलों में विभक्त किया है। तारामंडल अर्थात कुछ या ज्यादा तारों का एक समूह। इन तारा मंडलों में से ज्योतिष अनुसार 12 और वैज्ञानिकों अनुसार 13-14 तारा मंडलों में सूर्य और सौर्य परिवार के अन्य ग्रह भ्रमण करते हैं जिस वक्त चंद्र वृश्चिक तारा मंडल या राशि में भ्रमण कर रहा है उस काल में यदि किसी का जन्म हुआ है तो उसकी राशि वृश्चिक मानी जाएगी। तारा मंडल दरअसल मील के पत्थरों की तरह है जिससे आकाश गंगा के विस्तार क्षेत्र का पता चलता है। ऐसी कई आकाश गंगाएँ है।

जरूरी नहीं की ग्रह सिर्फ 12 से 13 राशियों में ही भ्रमण करते रहते हैं। कुछ ग्रह सैकड़ों सालों में तो कुछ थोड़े ही सालों में बारह राशियों को छोड़कर 88 में से किसी भी राशि में कुछ काल के लिए भ्रमण करने लगते हैं, तब ऐसे में शुभ और अशुभ विचारों के बारे में क्या सोचना चाहिए यह तय नहीं है। 

जैसे मान लो कि गुरु के धनु राशि में प्रवेश करने के बाद ही विवाह आदि शुभ कार्य शुरू होते हैं, लेकिन 2007 में गुरु नासा की एफेमरिज अनुसार ओफियुकस राशि में भ्रमण कर रहा था और शुक्र हाइड्रा राशि में, लेकिन भारतीय ज्योतिषानुसार गुरु धनु राशि में था। अब आप ही बताएँ ज्योतिष की माने या वैज्ञानिकों की?

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