शकुन शास्त्र—

ज्योतिष सीखने के लिये सबसे पहले भारतीय ज्योतिष के अन्दर शकुन शास्त्र को जानना जरूरी है,क्योंकि भेद को जाने बिना भाव का अर्थ समझ में नही आता है,तरीके से सीखा गया काम हर जगह फ़लदायी होता है,अक्सर ज्योतिषी से पूंछा जाता है कि हमे यात्रा करनी है,या हमे अमुक काम करना है,मुहूर्त बतादो,अब पूरी ज्योतिष की जानकारी तो है,लेकिन शकुन शास्त्र का जरा सा भी ज्ञान नही है,तो ज्योतिष वहीं पर अपना नाम खराब करवा देती है,सबसे पहले आपको शकुन शास्त्र,दिशाओं का ज्ञान,यात्रा और कार्य को करने के मुहूर्त आदि की जानकारी जानवरों के द्वारा प्रत्यक्ष में बताये जाने वाले शकुन आदि का विवेचन करते है.

यात्रा मुहूर्त तथा शुभाशुभ शकुन विचार–
अनुराधा ज्येष्ठा मूल हस्त मृगसिरा अश्विनी पुनर्वसु पुष्य और रेवती ये नक्षत्र यात्रा के लिये शुभ है,आर्द्रा भरणी कृतिका मघा उत्तरा विशाखा और आशलेषा ये नक्षत्र त्याज्य है,अलावा नक्षत्र मध्यम माने गये है,षष्ठी द्वादसी रिक्ता तथा पर्व तिथियां भी त्याज्य है,मिथुन कन्या मकर तुला ये लगन शुभ है,यात्रा में चन्द्रबल तथा शुभ शकुनो का भी विचार करना चाहिये.

दिकशूल—
शनिवार और सोमवार को पूर्व दिशा में यात्रा नही करनी चाहिये,गुरुवार को दक्षिण दिशा की यात्रा त्याज्य करनी चाहिये,रविवार और शुक्रवार को पश्चिम की यात्रा नही करनी चाहिये,बुधवार और मंगलवार को उत्तर की यात्रा नही करनी चाहिये,इन दिनो में और उपरोक्त दिशाओं में यात्रा करने से दिकशूल माना जाता है.

सर्वदिशागमनार्थ शुभ नक्षत्र—
हस्त रेवती अश्वनी श्रवण और मृगसिरा ये नक्षत्र सभी दिशाओं की यात्रा के लिये शुभ बताये गये है,जिस प्रकार से विद्यारम्भ के लिये गुरुवार श्रेष्ठ रहता है,उसी प्रकार पुष्य नक्षत्र को सभी कार्यों के लिये श्रेष्ठ माना जाता है.

योगिनी विचार—
प्रतिपदा और नवमी तिथि को योगिनी पूर्व दिशा में रहती है,तृतीया और एकादशी को अग्नि कोण में त्रयोदशी को और पंचमी को दक्षिण दिशा में चतुर्दशी और षष्ठी को पश्चिम दिशा में पूर्णिमा और सप्तमी को वायु कोण में द्वादसी और चतुर्थी को नैऋत्य कोण में,दसमी और द्वितीया को उत्तर दिशा में अष्टमी और अमावस्या को ईशानकोण में योगिनी का वास रहता है,वाम भाग में योगिनी सुखदायक,पीठ पीछे वांछित सिद्धि दायक,दाहिनी ओर धन नाशक और सम्मुख मौत देने वाली होती है.

यात्रा हेतु तिथि विचार—
यात्रा के लिये प्रतिपदा श्रेष्ठ तिथि मानी जाती है,द्वितीया कार्यसिद्धि के लिये,त्रुतीया आरोग्यदायक,चतुर्थी कलह प्रिय,पंचमी कल्याणप्रदा षष्ठी कलहकारिणी सप्तमी भक्षयपान सहित,अष्टमी व्याधि दायक नवमी मौत दायक,दसमी भूमि लाभ प्रद,एकादसी स्वर्ण लाभ करवाने वाली,द्वादसी प्राण नाशक,और त्रयोदसी सर्व सिद्धि दायक होती है,त्रयोदसी चाहे शुक्ल पक्ष की हो या कृष्ण पक्ष की सभी सिद्धियों को देती है,पूर्णिमा एवं अमावस्या को यात्रा नही करनी चाहिये,तिथि क्षय मासान्त तथा ग्रहण के बाद के तीन दिन यात्रा नुकसान दायक मानी गयी है.

पंथा राहु विचार–
दिन और रात को बराबर आठ भागों में बांटने के बाद आधा आधा प्रहर के अनुपात से विलोम क्रमानुसार राहु पूर्व से आरम्भ कर चारों दिशाओं में भ्रमण करता है,अर्थात पहले आधे प्रहर पूर्व में दूसरे में वाव्य कोण में तीसरे में दक्षिण में चौथे में ईशान कोण में पांचवें में पश्चिम में छठे में अग्निकोण में सातवें में उत्तर में तथा आठवें में अर्ध प्रहर में नैऋत्य कोण में रहता है.

राहु आदि का फ़ल—
राहु दाहिनी दिशा में होता है तो विजय मिलती है,योगिनी बायीं तरह सिद्धि दायक होती है,राहु और योगिनी दोनो पीछे रहने पर शुभ माने गये है,चन्द्रमा सामने शुभ माना गया है.

यात्रा या वार परिहार—
रविवार को पान,सोमवार को भात (चावल),मंगलवार को आंवला,बुधवार को मिष्ठान,गुरुवार को दही,शुक्रवार को चटपटी वस्तु और शनिवार को माह यानी उडद खाकर यात्रा पर जाने से दिशा शूल या काम नही बिगडता है.

दिशाशूल परिहार–
रविवार को घी पीकर,सोमवार को दूध पीकर,मंगलवार को गुड खाकर,बुधवार को तिल खाकर,गुरुवार को दही खा कर शुक्रवार को जौ खाकर और शनिवार को उडद खाकर यात्रा करने से दिशाशूल का दोष शान्त माना जाता है.

राहु विचार—
रविवार को नैऋत्य कोण में सोमवार को उत्तर दिशा में,मंगलवार को आग्नेय कोण में,बुधवार को पश्चिम दिशा में,गुरुवार को ईशान कोण में,शुक्रवार को दक्षिण दिशा में,शनिवार को वायव्य कोण में राहु का निवास माना जाता है.

चन्द्रबल विचार—
पहला चन्द्रमा कल्याण कारक,दूसरा चन्द्रमा मन संतोष दायक,तीसरा चन्द्रमा धन सम्पत्ति दायक,चौथा चन्द्रमा कलह दायक,पांचवां चन्द्रमा ज्ञान दायक,छठा चन्द्रमा सम्पत्ति दायक,सातवां चन्द्रमा राज्य सम्मान दायक,आठवां चन्द्रमा मौत दायक,नवां चन्द्रमा धर्म लाभ दायक,दसवां चन्द्रमा मन इच्छित फ़ल प्रदायक,ग्यारहवां चन्द्रमा सर्वलाभ प्रद,बारहवां चन्द्रमा हानि प्रद होता है,यात्रा विवाह आदि कार्यों को आरम्भ करते समय चन्द्रबल का विचार करना चाहिये.

घात चन्द्र विचार—
मेष की पहली वृष की पांचवी मिथुन की नौवीं कर्क की दूसरी सिंह की छठी कन्या की दसवीं तुला की तीसरी वृश्चिक की सातवीं धनु की चौथी, मकर की आठवीं कुम्भ की ग्यारहवीं मीन की बारहवीं घडी घात चन्द्र मानी गयी है,यात्रा करने पर युद्ध में जाने पर कोर्ट कचहरी में जाने पर खेती में कार्य आरम्भ करने पर व्यापार के शुरु करने पर घर की नीव लगाने पर घात चन्द्र वर्जित मानी गयी है,घात चन्द्र में रोग होने पर मौत,कोर्ट में केस दायर करने पर हार,और यात्रा करने पर सजा या झूठा आरोप,विवाह करने पर वैधव्य होना निश्चित है.

यात्रा में सूर्य विचार—
गत रात्रि के अन्तिम प्रहर से आरम्भ करके दो दो प्रहर तक सूर्य पूर्वादि दिशाओं में भ्रमण करता है,यात्रा के समय सूर्य को दाहिने और बायें तथा प्रवेश के समय पीछे शुभ माना गया है.

कुलिक विचार—
रविवार को चौदहवां सोमवार को बारहवां,मंगलवार को दसवां बुधवार को आठवां,बृहस्पतिवार को छठा और शुक्र वार को चौथा शनिवार को दूसरा मुहूर्त कुलिक संज्ञक होता है,यह मुहूर्त अशुभ माना जाता है.

कालहोरा ज्ञान—
सोमवार को इष्टघटी ग्यारह हो तो इसको दो से गुणा करने पर बाइस होते है,इसमें पांच का भाग देने पर शेष दो बचते है,इस शेष दो को बाइस में से घटाने पर बीस शेष बचते है,इसमे एक जोडने पर इक्कीस होते है,दहाई और इकाई को जोडने पर तीन का लाभ मिलता है,तीन का इक्कीस में भाग देने पर लभति सात आती है,सोमवार से सातवीं कालहोरा रविवार की होती है.

कालहोरा ज्ञात करने की दूसरी विधि—
कालहोरा ज्ञान की दूसरी विधि है कि जिस दिन कालहोरा का ज्ञान करना हो,उस दिन के क्रम से इक्कीस इक्कीस घडी का प्रमाण कालहोरा सूर्य,शुक्र,बुध,चन्द्र,शनि,गुरु और मंगल इस क्रम से गिनकर समझ लें,शुभ ग्रह की होरा को शुभ तथा पाप ग्रह की होरा को अशुभ समझना चाहिये,जैसे सोमवार की इष्टघडी इक्कीस में किसकी काल होरा होगी? यह जानने के लिये दो सौ ग्यारह घडी के प्रमाण से ग्यारह घडी इष्टघडी में पांच वीं होरा हुयी,वह सोमवार से चन्द्र एक शनि दो गुरु तीन मंगल चार और सूर्य पांच वीं होरा हुयी,उस समय में सूर्यवार का कर्तव्य मानना चाहिये.

नासिका विचार–
नासिका का बांया स्वर चन्द्र तथा दाहिना स्वर सूर्य संज्ञक होता है,चन्द्र स्वर यात्रा करना शुभ और सूर्य स्वर में अशुभ मानते है,जो स्वर बह रहा हो,उसी ओर का पैर पहले उठाकर यात्रा करने से विजय प्राप्त होती है,जब दोनो स्वर एक साथ चलते हों तो शून्य स्वर कहलाता है,उस समय में यात्रा करना हानिकारक होता है,यह यात्रा शब्द का बोध दैनिक जीवन यात्रा से भी जुडा होता है,यानी जब हम सबसे पहले अपनी रोजाना की जीवन यात्रा से भी मानकर चलते है,और सुबह जाग कर बिस्तर से पैर को नीचे रखने से ही यात्रा का शुभारम्भ हो जाता है.

सर्वांक ज्ञान—
शुक्र पक्ष की प्रतिपदा से तिथि संख्या रविवार से वार संख्या और अश्विनी नक्षत्र से नक्षत्र संख्या अपने अपने अनुसार अलग अलग जगह पर लिखते है,फ़िर २,३,४ से गुणा करने के बाद ३,७,८ से भाग देते है,प्रथम स्थान पर शून्य शेष रहे तो हानि द्वितीय स्थान में शून्य रहे तो शत्रु भय और तृतीय स्थान में शून्य रहे तो मरण होता है,तीनो स्थान में शून्य हो तो विजय मिलती है.

वत्स दिशा विचार—
भाद्रपद मास से प्रारम्भ कर तीन तीन महीने तक वत्स पूर्व आदि दिशाओं मे रहता है,अर्थात भाद्रपद,अश्विन,कार्तिक मास में पूर्व में अगहन,पौष,माघ में दक्षिण दिशा में,फ़ाल्गुन,चैत्र,बैसाख मास में पश्चिम में,और ज्येष्ट,आषाड,और श्रावण मास में उत्तर दिशा में निवास करता है,यात्रा,विवाह,गृहद्वार निर्माण बडे लोगों से भेंट और कोर्ट केश आदि में सम्मुख वत्स विचार वर्जित माना जाता है.

कुत्ते के द्वारा शुभाशुभ शकुन विचारने का नियम—
कुत्ता आज के जमाने में प्रत्येक घर में मिल जाता है,और सभी को पता है कि कुत्ता की अतीन्द्रिय जागृत होती है,किसी भी होनी अनहोनी को वह जानता है,अद्र्श्य आत्मा को देखने और किसी भी बदलाव को सूंघ कर जान लेने की क्षमता कुत्ते के अन्दर होती है,कुत्ते को दरवेश का दर्जा दिया गया है,समय असमय को बताने में कुत्ता अपनी भाषा में इन्सान को बताने की कोशिश करता है,और जो कुत्ते की भाषा को समझते है,वे अनहोनियों से बचे रहते है,और जो मूर्ख होते है,और अपने को जबरदस्ती हानि की तरफ़ ले जाना चाहते है वे उसकी भाषा को बकवास कह कर टाल देते है,कुत्ता अगर यात्रा के शुरु करते ही किसी कचडे पर पेशाब करता है,तो जान लीजिये कि यात्रा या शुरु किया जाने वाला कार्य सफ़ल है,यदि किसी सूखी लकडी पर पेशाब करता है,तो भौतिक धन की प्राप्ति होती है,अगर कुत्ता कांटेदार झाड पर,पत्थर या राख पर पेशाब करने के बाद काम शुरु करने वाले के आगे चल दे तो वह कार्य खराब हो जाता है,यदि कुत्ता किसी कपडे को लाकर सामने खडा हो तो समझना चाहिये कि कार्य सफ़ल है,यदि कुत्ता कार्य शुरु करने वाले के पैर चाटे,कान फ़डफ़डाये,अथवा काटने को दौडे तो समझना चाहिये कि सामने काफ़ी बाधायें आ रही है,यदि कुत्ता यात्रा के समय या काम शुरु करने के समय अपने शरीर को खुजलाना चालू कर दे तो जान लेना चाहिये के वह कार्य करने अथवा यात्रा पर जाने से मना कर रहा है,यदि कुत्ता किसी कार्य को शुरु करते वक्त या यात्रा पर जाते वक्त चारों पैर ऊपर की तरफ़ करके सोये तो भी कार्य या यात्रा नही करनी चाहिये,यदि गली मोहल्ले के आवारा कुत्ते किसी भी समय ऊपर की तरफ़ मुंह करके रोना चालू करें तो समझना चाहिये कि उस गली या मोहल्ले के प्रमुख व्यक्ति पर कोई मुशीबत आने वाली है,यात्रा करने के साथ या काम करने के साथ कुत्ते आपस में लड पडें तो भी काम या यात्रा में विघ्न पैदा होता है,कुत्ते के कान फ़डफ़डाने का समय सभी कामों के लिये त्यागने में ही भलाई होती है,कुत्ता अगर बैचैन होकर इधर उधर भागना चालू करे,तो समझना चाहिये कि कोई आकस्मिक मुशीबत आ रही है,किसी बात को सोचने के पहले या धन खर्च करते वक्त अगर कुत्ता अपनी पूंछ को पकडने की कोशिश करता है,तो मान लेना चाहिये कि आपने अपने भविष्य के लिये नही सोचा है,और खर्च करने के बाद पछताना पडेगा,कुत्ता अगर सुबह के समय लान या बगीचे में घास खा रहा हो तो समझ लेना चाहिये कि घर के अन्दर जो खाना बना है,उसमे किसी प्रकार इन्फ़ेक्सन है,कुत्ता अगर जूता लेकर भाग रहा हो तो समझना चाहिये कि वह बाहर जाने से रोक रहा है,लडकी के अपने ससुराल जाने के वक्त अगर कुत्ता रोना चालू कर दे,तो समझना चाहिये कि लडकी को ससुराल से वापस आने में संदेह है,कुत्ता अगर मालिक के पैर के पास जाकर सोना चालू कर दे तो समझना चाहिये कि घर में किसी सदस्य के आने का संकेत है,कुत्ता अगर अपने खुद के पैर चाटना चालू करे तो यात्राओं की शुरुआत समझनी चाहिये,कुत्ता अगर एकान्त में बैठना चालू कर दे,और बुलाने से आने में आनाकानी करे तो समझना चाहिये कि घर मे किसी सदस्य के लम्बी बीमारी में जाने का संकेत है,कुत्ता अगर पूंछ नीचे डालकर मुख्य दरवाजे के पास कुछ खोजने का प्रयत्न कर रहा हो तो समझना चाहिये कि कोई कर्जा मांगने वाला आ रहा है,कुत्ता अगर भोजन करते वक्त बार बार बाहर और अन्दर भाग रहा हो तो समझना चाहिये कि भोजन और कोई करने आने वाला है.

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