क्या वास्तु निर्माण के जरिए भाग्य में बदलाव संभव है?—by पं.डी.के.शर्मा”वत्स”—
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“वास्तु शास्त्रं प्रवक्ष्यामि लोकानां हित काम्याया”
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कर्म का व्यक्ति के जीवन में कितना अधिक प्रभाव पडता है, यह इस एक उदाहरण के माध्यम से सहज ही समझा जा सकता है———एक व्यक्ति जिसनें अपने लिए एक नए घर का निर्माण किया, लेकिन उस नए घर में प्रवेश करते ही उसे बुरी तरह से आर्थिक समस्यायों का सामना करना पडा. बेचारे का खाना-पीना, सोना-जागना तक हराम हो गया. हालाँकि उसने घर का निर्माण पूरी तरह से वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुरूप ही कराया, लेकिन फिर ऎसा क्या हुआ कि उसे उस घर में प्रवेश करते ही आर्थिक समस्यायों का सामना करना पड गया. देखा गया है कि इन्सान को जब किसी भीषण संकट, कष्ट, परेशानी का सामना करना पडता है तो अनायास ही मन में कईं प्रकार की शंकाएं, द्वन्द जन्म लेने लगते हैं. उस व्यक्ति के साथ भी यही हुआ…एक ओर तो उसके मन में ये विचार घर कर बैठा कि हो न हो मकान की ये जगह ही मनहूस है, दूसरी ओर ये शंका भी जन्म लेने लगी कि कहीं वास्तुशास्त्र के कारण ही तो ये सारी गडबड नहीं हुई ?
खैर, वो व्यक्ति किसी की सलाह से मेरे पास आया. मैने जब उसके मकान का सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन किया तो यही पाया कि मकान तो वाकई वास्तुशास्त्र अनुरूप बना है. सिर्फ एक ही दोष था कि उसका ईशान कोण 9. अंशों से कुछ अधिक था, जो कि लाभप्रद नहीं माना जाता. अब असमंजस ये कि क्या सिर्फ ईशान कोण ही उस व्यक्ति की समस्यायों का वास्तविक कारण है ? नहीं! वास्तव में मकान में ऎसा कोई दोष था ही नहीं, जिसे कि उसकी समस्यायों का वास्तविक कारण कहा जा सकता.
दरअसल व्यक्ति की व्यापारिक एवं आर्थिक स्थिति पर चर्चा के दौरान ये बात स्पष्ट हो पाई कि उसकी समस्यायों का एकमात्र कारण था—-निर्माण कार्य में अपनी क्षमता से काफी अधिक मात्रा में धन का नियोजन. वस्तुत: उसनें बैंकों से ऋण लेकर तथा अपने व्यापार में से बहुत सारी पूंजी निकालकर मकान के निर्माण में लगा दी, जिसके कारण उसे आर्थिक समस्यायों का सामना करना पड रहा था. अभी भी धन की कमी के चलते, मकान की ऊपरी मंजिल का निर्माण कार्य बीच अधर में लटका हुआ था. समस्या का मूल कारण तो अब एकदम सामने स्पष्ट था….सो, उसे यही समझाया कि इधर-उधर से पैसा उधार लेकर मकान पर लगाने का कोई औचित्य नहीं है. अब इस पर ओर धन लगाना बन्द कर दे, क्यों कि समस्यायों का कारण मकान नहीं, अपितु तुम्हारा कर्म (उपर्युक्त निर्णय न लेना) है. जब उसके पास पर्याप्त धन नहीं था, तो उसे घर के निर्माण में इतना अधिक पैसा नहीं लगाना चाहिए था. अत: यदि दोष का निराकरण करना है तो इस घर को बेच देना ही उचित रहेगा. अन्तत: उस व्यक्ति नें सलाह मानकर घर बेच दिया ओर ऋण चुकता करके कुछ पैसा अपने व्यापार में लगाकर शेष बची पूंजी से अपने लिए एक छोटा घर खरीद लिया. बस हो गया उसकी समस्यायों का निवारण…….
अब देखिए, ये ठीक है कि भाग्य का निर्माण किसी सर्वशक्तिमान ईश्वरीय सत्ता द्वारा किया जाता है, लेकिन उसने हमें यह स्वतन्त्रता तो प्रदान की ही हुई है कि हम स्वयं में सुधारकर अपनी इच्छा एवं कार्यों(कर्मों) द्वारा उत्तम जीवन व्यतीत कर सकें. कर्मों को मूल तत्व एवं अनुकूल वातावरण की सहायता की आवश्यकता होती है. यदि हम ज्योतिष, वास्तुशास्त्र के अनुरूप अपने भवन इत्यादि में कोई परिवर्तन करते हैं तो वो भी तो कर्म का ही एक हिस्सा है.किन्तु ये हो सकता है कि कभी किसी ग्रह इत्यादि के कुप्रभाव के कारण भी भवन-सम्बंधी किन्ही कठिनाईयों, परेशानियों का सामना करना पड जाए. तब ग्रह शान्ती तथा मन्त्र-यन्त्रादि का आश्रय लेकर ही इनसे मुक्ति पाई जा सकती है.
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.. कार्यस्थल का ब्रह्म स्थान (केन्द्र स्थान) हमेशा खाली रखना चाहिए. ब्रह्म स्थान में कोई खंबा, स्तंभ, कील आदि नहीं लगाना चाहिए.
.. कार्यस्थल पर यदि प्रतीक्षा स्थल बनाना हो, तो सदैव वायव्य कोणे में ही बनाना चाहिए.
.. अपनी पीठ के पीछे कोई खुली खिडकी अथवा दरवाजा नहीं होना चाहिए.
4. विद्युत का सामान, मोटर, स्विच, जैनरेटर, ट्रासंफार्मर, धुंए की चिमनी इत्यादि को अग्नि कोण अथवा दक्षिण दिशा में रखना चाहिए.
5. कम्पयूटर हमेशा अग्नि कोण अथवा पूर्व दिशा में रखें.
6. बिक्री का सामान या जो सामान बिक नहीं रहा हो तो उसे वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम दिशा में रखें तो शीघ्र बिकेगा.
7. सजावट इत्यादि हेतु कभी भी कांटेदार पौधे, जैसे कैक्टस इत्यादि नहीं लगाने चाहिए.
वास्तु के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं बिना तोडफोड के दोष निवारण—–
* 4 X 4 इन्च का ताम्र धातु में निर्मित वास्तु दोष निवारण यन्त्र भवन के मुख्य द्वार पर लगाना चाहिए.
* भवन के मुख्य द्वार के ऊपर की दीवार पर बीच में गणेश जी की प्रतिमा, अन्दर और बाहर की तरफ, एक जगह पर आगे-पीछे लगाएं.
*वास्तु के अनुसार सुबह पूजा-स्थल (ईशान कोण) में श्री सूक्त, पुरूष सूक्त एवं संध्या समय श्री हनुमान चालीसा का नित्यप्रति पठन करने से भी शांति प्राप्त होती है.
*यदि भवन में जल का बहाव गलत दिशा में हो, या पानी की सप्लाई ठीक दिशा में नहीं है, तो उत्तर-पूर्व में कोई फाऊन्टेन (फौव्वारा) इत्यादि लगाएं. इससे भवन में जल संबंधी दोष दूर हो जाएगा.
* टी. वी. एंटीना/ डिश वगैरह ईशान या पूर्व की ओर न लगाकर नैऋत्य कोण में लगाएं, अगर भवन का कोई भाग ईशान से ऊँचा है, तो उसका भी दोष निवारण हो जाएगा.
* भवन या व्यापारिक संस्थान में कभी भी ग्रेनाईट पत्थर का उपयोग न करें. ग्रेनाईट चुम्बकीय प्रभाव में व्यवधान उत्पन कर नकारात्मक उर्जा का संचार करता है.
* भूखंड के ब्रह्म स्थल (केन्द्र स्थान) में ताम्र धातु निर्मित एक पिरामिड दबाएं .
* जब भी जल का सेवन करें, सदैव अपना मुख उत्तर-पूर्व की दिशा की ओर ही रखें.
* भोजन करते समय, थाली दक्षिण-पूर्व की ओर रखें और पूर्व की ओर मुख कर के ही भोजन करें.
* दक्षिण-पश्चिम कोण में दक्षिण की ओर सिराहना कर के सोने से नींद गहरी और अच्छी आती है. यदि दक्षिण की ओर सिर करना संभव न हो तो पूर्व दिशा की ओर भी कर सकते हैं.
* यदि भवन की उत्तर-पूर्व दिशा का फर्श दक्षिण-पश्चिम में बने फर्श से ऊँचा हो तो दक्षिण-पश्चिम में फ़र्श को ऊँचा करें.यदि ऎसा करना संभव न हो तो पश्चिम दिशा के कोणे में एक छोटा सा चबूतरा टाईप का बना सकते हैं.
* दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक दरवाजे, खिडकियाँ हों तो, उन्हे बन्द कर के, उनकी संख्या को कम कर दें.
* भवन के दक्षिण-पश्चिम कोने में सफेद/क्रीम रंग के फूलदान में पीले रंग के फूल रखने से पारिवारिक सदस्यों के वैचारिक मतभेद दूर होकर आपसी सौहार्द में वृ्द्धि होती है.
* श्यनकक्ष में कभी भी दर्पण न लगाएं. यदि लगाना ही चाहते हैं तो इस प्रकार लगाएं कि आप उसमें प्रतिबिम्बित न हों, अन्यथा प्रत्येक दूसरे वर्ष किसी गंभीर रोग से कष्ट का सामना करने को तैयार रहें.
* भवन की दक्षिण अथवा दक्षिण-पूर्व दिशा(आग्नेय कोण) में किसी प्रकार का वास्तुदोष हो तो उसकी निवृ्ति के लिए उस दिशा में ताम्र धातु का अग्निहोत्र(हवनकुण्ड) अथवा उस दिशा की दीवार पर लाल रंग से अग्निहोत्र का चित्र बनवाएं.
* सीढियाँ सदैव दक्षिणावर्त अर्थात उनका घुमाव बाएं से दाएं की ओर यानि घडी चलने की दिशा में होना चाहिए. वामावर्त यानि बाएं को घुमावदार सीढियाँ जीवन में अवनति की सूचक हैं. इससे बचने के लिए आप सीढियों के सामने की दीवार पर एक बडा सा दर्पण लगा सकते हैं, जिसमें सीढियों की प्रतिच्छाया दर्पण में पडती रहे.
* भवन में प्रवेश करते समय सामने की तरफ शौचालय अथवा रसोईघर नहीं होना चाहिए. यदि शौचालय है तो उसका दरवाजा सदैव बन्द रखें और दरवाजे पर एक दर्पण लगा दें. यदि द्वार के सामने रसोई है तो उसके दरवाजे के बाहर अपने इष्टदेव अथवा ॐ की कोई तस्वीर लगा दें.
* आपके भवन में जो जल के स्त्रोत्र हैं, जैसे नलकूप, हौज इत्यादि, तो उसके पास गमले में एक तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं.
* अकस्मात धन हानि, खर्चों की अधिकता, धन का संचय न हो पाना इत्यादि परेशानियों से बचने के लिए घर के अन्दर अल्मारी एवं तिजोरी इस स्थिति में रखनी चाहिए कि उसके कपाट उत्तर अथवा पूर्व दिशा की तरफ खुलें.
* भवन का मुख्यद्वार यथासंभव लाल, गुलाबी अथवा सफेद रंग का रखें.
* दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक भार, या सामान रखें. इस कोण की भार वहन क्षमता अधिक होती है.
* जिस घर की स्त्रियाँ अधिक बीमार रहती हों, तो उस घर के मुख्य द्वार के पास ऊपर चढती हुई बेल लगानी चाहिए. इससे परिवार के स्त्री वर्ग को शारीरिक-मानसिक व्याधियों से छुटकारा मिलता है.
* रसोई यदि गलत दिशा में बनी है, और उसे आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) में बनाना संभव न हो तो, गैस सिलेंडर अवश्य रसोई के दक्षिण पूर्व में रखें. रसोई को कभी भी स्टोर न बनाए, अन्यथा गृ्हस्वामिनी को तनाव, परिवार में किसी न किसी सद्स्य को रक्तचाप,मधुमेह, नेत्र पीडा अथवा पेट में गैस इत्यादि की कोई न कोई समस्या लगी रहेंगीं.
* ध्यान रहे कि कभी भी अध्ययन स्थल के पीछे दरवाजा या खिडकी आदि नहीं होनी चाहिए; यदि है, तो मन अशांत रहता है, क्रोध एवं आक्रोश का सृ्जन होता है,जिससे कि सफलता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है. जब कि भवन की उत्तर-पूर्व दिशा अथवा संभव न हो तो अध्ययन स्थल के उत्तर-पूर्व में बैठकर पढने से सफलता अनुगामी बन पीछे पीछे चलने लगती है.
* एक बात बताना चाहूँगा, जो कि योग शास्त्र से संबंध रखती है, लेकिन किसी भी अध्ययनकर्ता के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. वो ये कि अध्ययन करते सदैव आपकी इडा नाडी अर्थात बायाँ स्वर चल रहा होना चाहिए. इससे मस्तिष्क की एकाग्रता बनी रहकर किया गया अध्ययन मस्तिष्क में बहुत देर काल तक संचित रहता है. स्मरणशक्ति में वृ्द्धि होती है. अन्यथा यदि कहीं पिंगला नाडी अर्थात दाहिना स्वर चलता हो तो फिर वही होगा कि “आगा दौड पीछा छोड”. इधर आपने याद किया और उधर दिमाग से निकल गया. यानि मन की एकाग्रता और स्मरणशक्ति की हानि……
इन उपरोक्त उपायों को आप अपनी दृ्ड इच्छा शक्ति व सकारात्मक सोच एवं दैव कृ्पा का विलय कर करें, तो यह नितांत सत्य है कि इनसे आप अपने भवन से अधिकांश वास्तुजन्य दोषों को दूर कर कईं प्रकार की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकेंगें…….