गन्डमूल नक्षत्र तथा उनका जीवन पर पडने वाला प्रभाव—( रेवती नक्षत्र )


रेवती नक्षत्र:-कालपुरूष की अन्तिम राशि मीन के अन्तर्गत आने वाला यह नक्षत्र, .7 नक्षत्रों के इस चक्र का सबसे अन्तिम नक्षत्र है, इसे आप यूँ भी समझ सकते हैं कि यह नक्षत्र जीवन के अन्त और पुनर्जन्म के बीच का सन्धिस्थल है, उस श्रृंखला की एक कडी है. इसलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों का सम्बन्ध भी किसी श्रृंखला के अन्त तथा किसी कार्य, परिवार या विचारधारा की श्रृंखला के प्रारम्भ से होता है.यह नक्षत्र .2 तारों का एक समूह है. जिसकी आकृति बिल्कुल मृदंग के सदृश्य है. लोकभाषा में इसे श्रवण कुमार की पत्नि भी कहा जाता है. इस नक्षत्र के प्रभाव में मनुष्यों का स्वभाव बडा ही विचित्र या कहें कि एक तरह से बेढंग टाईप का होता है.अर्थात कुछ लापरवाही युक्त..मसलन—खाना खाया तो खाया, नहीं तो नहीं खाया. शरीर के प्रति अनासक्त भाव और विदेही स्थिति में जीना इस नक्षत्र की यह एक बहुत बडी विशेषता है. यह नक्षत्र जातक को इस प्रकार की मन:स्थिति तक पहुँचा देता है कि जहाँ पहुंचकर व्यक्ति की विचारशक्ति शिथिल होने लगती है; किन्तु उसका, व्यक्ति के नित्य नैमितिक व्यवहारों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पडता. भाग्यवशात इन लोगों को वृद्धावस्था में धन की कमी एवं भीषण व्याधियों का सामना करना पडता है.

प्रथम चरण:- इस नक्षत्र चरण के जातक का स्वभाव एक तरह से सागर के समान होता है——बाहर से लहरों सा चंचल किन्तु भीतर से सागर के समान शान्त, गम्भीर व स्थिर. इस नक्षत्र चरण में मुख्यत: दो प्रकार के लोगों का जन्म होता है—एक विषयसुखों का पूर्णत: परित्याग करने वाले और दूसरे व्यसनाधीन. रेवती का यह चरण हर एक चीज का लय करने वाला चरण है. दूसरे इसमें अनासक्ति भाव होने के कारण, उन बातों में जिसमें अन्त:स्फूर्ती से काम लिया जाता है, ये लोग पारंगत होते हैं.
द्वितीय चरण:- इस चरण में जन्म लेने वाले जातकों की सोच कुछ इस प्रकार की रहती है कि–इनको कोई ठीक से नहीं समझता है और इन्हे यथेष्ट सहानुभूति एवं संवेदना नहीं देता है. इसलिए अपनी खुशियों, अपने हर्ष,अपने विषाद को ये लोग अपने भीतर ही संजो कर रखने के आदि होते हैं.दूसरों से ये लोग केवल बाहरी छिछले अनुभवों और विचारों का ही आदान-प्रदान करते हैं.हालाँकि सांसारिकता, भौतिकता की ओर विशेष आकर्षण होने के चलते ये लोग धनोपार्जन एवं सुख-सम्पदा के क्षेत्र में विशेष सफलता हासिल कर लेते हैं. किन्तु आध्यात्मिक पक्ष इनका कमजोर ही रहता है. यह चरण व्यक्ति को कल्पनाशील बनाता है. इनकी कल्पनाशीलता बहुधा विगत कीर्तियों की यादों में या भावी आशाओं में ही उलझी रहती है.
तृतीय चरण:- इस चरण में जन्म लेने वाले जातकों को जीवन में आनन्द और सुख से अधिक उतरदायित्वों का ही निर्वाह करना पडता है.इसके जातक सर्वदा बेचैन बने रहते हैं, उनका चित्त अशान्त और मन सदैव असंतुष्ट रहता है. दूसरों की उन्नति, विकास और बुद्धि के लिए सहायता करने में बेशक सदैव तत्पर रहते हैं, परन्तु अपने इस परोपकार के बदले में ये लोग केवल काँटों का ताज ही पाते हैं. यह चरण व्यक्ति के दैनिक जीवन में आध्यात्मिकता का ज्ञान देकर सुखमय वृद्धावस्था की नींव डालता है. 52 वर्ष की आयु पश्चात शेष जीवन आनन्दमय व्यतीत होता है. जिसकी कीमत ये लोग, बहुत सी चीजों का त्याग कर अपनी युवावस्था में ही चुका चुके होते हैं.
चतुर्थ चरण:- इस चरण में जन्म लेने वाले जातकों को अपनी सुख-सुविधा किन्ही विशेष लोगों, विशेष सिद्धान्तों, विशेष परम्पराओं अथवा किन्ही विशेष उदेश्यों की रक्षा के लिए(इच्छा/अनिच्छावश) त्याग करना ही पडता हैं.वार्तालाप में मधुरता इनका एक अतिरिक्त गुण रहता है. ह्रदय के साफ होने के बावजूद भी इन्हे बिना किसी अपने दोष के अत्यन्त दु:ख और कष्ट सहने पडते हैं. निश्चित रूप से व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक कष्ट, दु:ख और निराशा का होना आध्यात्मिकता के विकास से सम्बद्ध होती है. जब सांसारिक जीवन में व्यक्ति विशेष कठिनाईयों का अनुभव करता है, तब उसे आवश्यक रूप से निराशा का सामना करना पडता है. यही निराशा जीवन में आध्यात्मिकता को अंकुरित कर आगे का मार्ग खोलने में सहायक बनती है.

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गन्डमूल नक्षत्र, उनका कारण और जीवन पर पडने वाला उनका प्रभाव—(अश्विनी नक्षत्र)—-


वैवैदिक ज्योतिष जो कि पूर्ण रूप से .2 राशियों और 27 नक्षत्रों का ही खेल है. नक्षत्र यानि कि आकाशीय तारा-समूह. आकाश में चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा में भ्रमण करता हुआ 27.3 दिनों में परिक्रमा पूर्ण करता है. इस प्रकार एक मासिक चक्र में आकाशमंडल में जिन मुख्य तारों के समूहों से चन्द्रमा गुजरता है,चन्द्रमा तथा तारों के उसी संयोग को नक्षत्र कहा जाता है. ज्योतिष में इन 27 नक्षत्रों को मूल,पंचक,ध्रुव,चर, मिश्र, अधोमुख, उर्ध्वमुख, दग्ध और तिर्यड मुख आदि नामों से जाना जाता है. इनमें से आश्विनी, ज्येष्ठा, आश्लेषा, मघा, मूल और रेवती—इन छ: नक्षत्रों को मूल संज्ञक या गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है. एक आम धारणा है कि इनमें से किसी नक्षत्र में यदि किसी बालक का जन्म हो,तो जन्म लेने वाले शिशु का शरीर भाग्य से ही बच सकता है. साथ ही शिशु के माता-पिता भी धन-सम्पत्ति,शरीर आदि के तौर पर कष्ट के भागी बनते हैं. कुछ नक्षत्रों के किसी चरण में तो माता-पिता में से किसी एक की मृत्यु तक भी सम्भव होना कहा जाता है.

लेकिन क्या कारण है कि कोई बच्चा इन नक्षत्रों में जन्म लेता है ? और क्या वास्तव में इनमें से किसी नक्षत्र में जन्मा शिशु स्वयं अथवा निज माता-पिता के लिए कष्टकारी होता है ?

दरअसल जब हम कहते हैं कि अमुक बच्चा अपने पिता पर भारी है या कि माता अथवा अन्य किसी सगे-सम्बन्धी पर भारी है तो उसका अर्थ ये नहीं होता कि वास्तव में उस शिशु के ग्रहयोग अमुक व्यक्ति के लिए कष्टकारी हैं या कि किन्ही विपरीत परिस्थितियों के निर्माणकर्ता हैं. गन्डमूल नक्षत्र में जन्मा शिशु एक प्रकार से उस सम्बन्धी विशेष के लिए सचेतक का कार्य करता है—सिर्फ ये दर्शाने भर के लिए कि वो व्यक्ति निज कर्म से च्युत हो चुका है या किन्ही विपरीत् कर्मों का आश्रय ले रहा है. उस अमुक व्यक्ति होने वाली किसी प्रकार की हानि,अहित, कष्ट इत्यादि के लिए तो उसके स्वयं के कर्म ही उत्तरदायी है, ये नहीं कि गंडमूलोत्पन शिशु के जन्म के कारण उसे किन्ही कष्टों का सामना करना पड रहा है. प्रकृ्ति(विधाता) द्वारा उस शिशु को उस परिवार, उस नक्षत्र विशेष में उत्पन करना भी कर्म चक्र का ही एक हिस्सा है.

हालाँकि जन्मपत्रिका देखकर इतनी सूक्ष्मता तक पहुँच पाना किसी तोतारटंत, किताबी ज्ञानी ज्योतिषी के लिए तो सात जन्म भी संभव नहीं. आँखों पर धन की पट्टी बँधी हो तो आप भूत और भविष्य तो क्या वर्तमान भी ढंग से नहीं देख सकते. बिना आन्तरिक ज्ञान और सेवा भावना के काल के गर्भ में इतनी गहराई तक झाँक पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं…..
चलिए, अब बात करते हैं भिन्न भिन्न गंडमूल नक्षत्रों में जन्म लेने पर जीवन पर पडने वाले प्रभाव के बारे में. रम्भ करते हैं अश्विनी नक्षत्र से:—– 

अश्विनी नक्षत्र:- अश्विनी नक्षत्र 3 तारों का समूह है, जो आकाशमंडल में जनवरी के प्रारम्भ में, सूर्यास्त के बाद, सिर पर दिखाई देता है. इस नक्षत्र में पैदा हुए व्यक्ति का एक स्वतन्त्र चिन्तन होता है. व्यक्ति बुद्धिमान होने के साथ ही, उसे आर्थिक दृ्ष्टि से भी जीवन में कोई विशेष चिन्ता नहीं करनी पडती. अपनी योग्यता के माध्यम से शान्त और एकाग्रचित हो कर, वो जीवन में सफलता प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है.

1. इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने का व्यक्ति के कार्मिक बन्धनों से अति घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है. पूर्व जन्म के पाप-कर्मों का फल इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने के रूप में सामने आता है. जीवन में पगे-पगे कठिन परिस्थितियों, जटिलताओं का सामना करना पडता है. समझ लीजिए कि इनके जीवन में संचित कर्मों का बोझ एवं भावी विकास की रूपरेखा एक ही साथ उदय होते हैं. फलस्वरूप इन्हे सफलता आसानी से नहीं प्राप्त हो पाती. इस चरण में जन्म होने का अर्थ ये है कि जातक अपने पिता के लिए सचेतक रूप में उत्पन हुआ है……

2. द्वितीय चरण में जन्म लेने पर व्यक्ति के बाह्यरूप में निडरता, साहस और पराक्रम दिखाई पडता है किन्तु अपने आन्तरिक जीवन में वो सर्वदा अकेलापन अनुभव करता है. उसकी स्थिति प्राय: अर्जुन के जैसी बनी रहती है–कि युद्ध करूँ या न करूँ. आध्यात्मिकता और सांसारिकता के झूले में झूलता हुआ सा जीवन..इनके व्यक्तित्व का संतुलित विकास इनकी भावनाओं की स्थिरता पर ही निर्भर करता है.यद्यपि यह नियम सभी के लिए मान्य है तथापि इन लोगों को इसकी सर्वाधिक आवश्यकता रहती है. 

3. तृतीय चरण में जन्म लेने वाला व्यक्ति सदैव ऎसा महसूस करता है कि मानो उसके ह्रदय में एक भयंकर बवंडर सा चल रहा हो. उसे जीवन प्रयन्त समुद्र-मन्थन सी स्थिति का अनुभव होता रहता है. उसकी हालत बिल्कुल शहीदों जैसी हो जाती है. यह चरण व्यक्ति की लोकप्रियता और कीर्ति के लिए शुभ फलदायक नहीं होता. अत: ऎसा जातक भले ही अग्रगामी और लोकनयक हो जाये, लेकिन वो लोकप्रिय नहीं हो सकता.

4. यदि जन्म चतुर्थ चरण हो, तो जातक अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उग्र, निर्मम, निष्ठुर, निश्चित, विचारपूर्ण तथा दृड होता है. जीवन की कठिनाईयाँ इसका मार्ग अवरूद्ध नहीं कर सकती. फलस्वरूप जातक व्यवसायिक, राजनीति अथवा प्रशासन के क्षेत्र में प्रभावशाली मुकाम तक पहुँच पाने में सक्षम होता है.

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गन्डमूल नक्षत्र तथा उनका जीवन पर पडने वाला प्रभाव—(आश्लेषा,मघा नक्षत्र)

आश्लेषा नक्षत्र:- यह नक्षत्र 5 तारों का समूह है, जो कि देखने में किसी चक्र के समान प्रतीत होता है. कर्क राशि के 16-4. डिग्री से सिँह राशि के आरम्भ तक इसका विस्तार है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों का स्वभाव, प्रकृति, सामर्थ्य तथा विकास के मार्ग—चारों ही एक दूसरे से बिल्कुल अलग थलग होते हैं. इस कारणवश इनका कोई भी पूर्वनिर्धारित स्वरूप नहीं होता.एक तरह से इनका जीवन भी बिल्कुल गतिमान सर्प की भान्ती रहता है. इसलिए इस नक्षत्र के गन्डमूल को “सर्पमूल” भी कहा जाता है. 
1. यदि किसी जातक का जन्म इस नक्षत्र के जन्म में हो तो, इनके जीवन में प्रत्यक्ष या परोक्ष में, इनके सभी काम तथा समस्त प्रतिक्रियाएं आत्म केन्द्री होती हैं. इसके फलस्वरूप इनके जीवन में मानसिक असंतुलन, व्यक्तित्व विदारण (split-personality), अस्थिरता तथा विरोधाभास (contradiction) सदैव चलता ही रहता है. 
2. इस चरण में जन्म लेने वाले जातकों की जो एक सबसे बडी दुर्बलता होती है, वो है इनकी संवेदनशील भावनात्मक प्रवृति. जिस कारण चाह कर भी इन्हे अपनी चेष्टाओं की समुचित मान्यता नहीं मिल पाती. जहाँ कल्पना शक्ति, मौलिकता तथा अपनी वाकपटुता के प्रकटीकरण की आवश्यकता होती है, वहीं ये जीवन में मार खा जाते हैं.
3. इस चरण के जातकों के जीवन में आने वाली कठिनाईयाँ इनके पूर्व कर्मों के अनुपात में ही जन्म लेती हैं. जिनको सक्रिय कर समाप्त करने के लिए कठिन से कठिन यातनाएं प्रस्तुत करने में भी प्रकृति नहीं हिचकिचाती. ऎसा करने में जहाँ उसका लक्ष्य व्यक्ति की आत्मा को स्पुष्ट बनाना, वहीं उसके भावी जीवन में उसके कार्मिक दु:खों का निर्मूल निवारण करना ही होता है. वस्तुत: यह चरण शिशु की माता द्वारा किए गए/किए जा रहे कर्मों का ही सूचक बनता है.
4. इस चरण की एक जो मुख्य विषेशता रहती है, वो ये कि इसमें जन्म लेने वाले जातक चाहे किसी भी स्तर पर क्यों न हों, वे अपनी छाप सामाजिक व्यवस्था पर निश्चित रूप से छोडते हैं. इनके जीवन की प्रत्येक घटना इन्हे किसी विशेष दिशा और किसी विशिष्ट जीवनशैली में डालने के लिए किसी दैवी शक्ति से उत्प्रेरित होती है. मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का लेखा रखने वाली शक्ति, इनके माध्यम से पिता द्वारा किए गए कर्मों के फलों को इस प्रकार प्रदान करती हैं कि जातक अपने जन्मदाता (पिता) में एक नया दृष्टिकोण तथा नया जीवन-पथ निर्धारित कर सके. 
मघा नक्षत्र:- यह नक्षत्र कुल छ: तारों का समूह है, जिसका क्षेत्र सिँह राशि के 0 डिग्री से 13-20 डिग्री तक है. माघ मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा इस नक्षत्र के पास रहता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्तियों में क्रियात्मक अभिप्रेरणा तथा उन्नति करने की लालसा एवं विकास एवं विस्तार करने की अदम्य इच्छा रहती है. और यह क्रियात्मकता अभिव्यक्ति के सभी स्तरों पर क्रियाशील रहती है.इस नक्षत्र के जातक पर उसके अपने कुल के किसी पितर(अविवाहित मृतक) का कार्मिक प्रभाव रहता है.
1. इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाला जातक तिरोभाव के मार्ग(path of involution) पर चलते हुए बेचैन, जीवन शक्ति से भरपूर, सर्वदा नईं दिशाओं को ढूंढने के लिए उत्सुक तथा प्रस्तुत वस्तुओं तथा सम्बन्धों के नये अर्थ निकालने में व्यस्त रहते हैं. बालक का इस चरण में जन्म लेना माता द्वारा निज कौटुम्बिक उतरदायित्वों के निर्वहण से विमुखता को इंगित करता है.
2. अपने कुल के पितरों के पूर्ण प्रभाव में होने के कारण इस चरण के जातक प्राचीन सभ्यताओं तथा परम्परागत मूल्यों के हिमायती होते हैं. दूसरों के द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को अपनाने, या दूसरों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना इन लोगों के लिए निहायत ही मुश्किल भरा होता है. कोई कितना भी दक्ष क्यों न हो, उसे ये अपने से अच्छा स्वीकार कर ही नहीं पाते. यह चरण एक तरह से पितृ कर्मों हेतु इस रूप में संकेतक का कार्य करता है कि जातक का पिता आध्यात्मिकता की ओर से उदासीन, भावनात्मक क्षेत्र में स्वकेन्द्रित तथा मानसिक रूप से निज इच्छाओं की पूर्ती हेतु दूसरों के साथ अनैतिक व्यवहार करने वाला होता है.
3. आकस्मिकता इस चरण में जन्म लेने वले जातकों का एक विशेष फल है. इनके जीवन में शु एवं अशुभ फल दोनों बिना किसी पूर्वाभास के बिल्कुल अप्रत्याशित रूप से ही सामने आते हैं. इनके जीवन की प्राय: सभी प्रमुख घटनाएं इनके पिता से किसी न किसी तरह सम्बद्ध रहती हैं. वास्तव में इन जातकों का जन्म किसी विशेष कर्मफल के कारण होता है. 
4. ये लोग प्राय: ऎसा सोचते रहते हैं कि इनको कोई ठीक से नहीं समझता है और इन्हे यथेष्ट सहानुभूति एवं संवेदना नहीं देता है. इसलिए अपनी खुशियों, अपने हर्ष, अपने विषाद को ये लोग अपने भीतर ही संजो कर रखते हैं. दूसरों से ये लोग केवल बाहरी छिछले अनुभवों और विचारों का ही आदान-प्रदान करते हैं. हालाँकि सांसारिकता, भौतिकता की ओर विशेष आकर्षण होने के चलते ये लोग धनोपार्जन एवं सुख-सम्पदा के क्षेत्र में विशेष सफलता हासिल कर लेते हैं.
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गन्डमूल नक्षत्र तथा उनका जीवन पर पडने वाला प्रभाव—( ज्येष्ठा नक्षत्र )—–

ज्येष्ठा नक्षत्र:- यह नक्षत्र तीन तारों का एक समूह है. जिसका क्षेत्र वृश्चिक राशि के 16-40 अंश से धनु राशि के 0-0 अंश तक है.स्वार्थ और असंतोष इस नक्षत्र का एक मुख्य कार्मिक फल है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक जीवन में सफलता और निराशा दोनों का एक विचित्र सम्मिश्रण अनुभव करते हैं. यह कहना कठिन होता है कि इस नक्षत्र वाले राक्षसी प्रवृतियों की ओर विशेष आकर्षित होते हैं या दैवीय प्रवृतियों की ओर, परन्तु दोनों ही दशाओं में इन्हे अदभुत शक्ति, आश्चर्यजनक सफलता और कार्मिक प्रतिफल के कारण निराशा जरूर भुगतनी पडती है. 

1. इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाला जातक एकदम व्यक्तिवादी(Individualistic) जीवन व्यतीत करता है. इनके ह्रदय में किसी प्रकार का स्नेह तथा निस्वार्थ परोपकार की भावना नहीं पनपने पाती. जब व्यक्तिगत इच्छा की पूर्ती हो जाती है, तब दूसरे व्यक्ति का इनके लिए कोई मूल्य शेष नहीं रहता. यहाँ तक कि इन्हे अपने आंतरिक जीवन की महत्ता का भी स्पष्ट ज्ञान या उसको जानने की लालसा भी नहीं रहती. यह चरण स्वयं के तथा पिता के बडे भाई के कर्मों के सचेतक रूप में काम करता है.

2. यह द्वितीय चरण व्यक्ति की आत्म हीनता का सूचक है. वाकचातुरी, असंयमित जिव्हा और मलिन ह्रदय आत्मिक विकास में सदैव बाधा बने रहते हैं. बेशक आज के युग में ये दुर्गुण भौतिक ऎश्वर्य तथा कामजनित वासना की पूर्ती के श्रेष्ठ माध्यम कहे जा सकते हैं, किन्तु इन्सान की आत्मिक शक्ति का निरर्थक एवं निरन्तर क्षय होता जाता है. यह चरण प्रथमश: तो अपने से छोटे भ्राता के जन्म में बाधा एवं दूसरे उसके जन्म लेने के पश्चात उसके कर्मजन्य दुष्फलों की सूचान देता है.

3. किसी व्यक्ति का इसके तृतीय चरण में जन्म लेना ही एक बडी भारी विचित्रता को दर्शाता है. वो ये कि जीवन के आरम्भिक काल में ही अनायास जातक को अचेतन विदेहात्मक ज्ञान(Unconscious psychism) का आभास होने लगता है. ऎसे व्यक्ति बिना प्रयास बहुत सी बातें जान जाते हैं, उन्हे अनेक बातों तथा अनेक लोगों के अन्तर्सम्बन्धों का अन्तर्ज्ञान होने लगता है. परन्तु यदि नक्षत्रपति बुध के नीच/मेष/कुम्भ राशि में होने के कारणवश ये शक्तियाँ उपस्थित नहीं हो अथवा निष्क्रिय हों और जन्मकुंडली के ग्रहों के प्रभाव से इसके विकास की संभावना भी अवरूद्ध हो गई हो, तब वैसी परिस्थिति में इनकी मूल प्रकृति पूरी तरह से नकारात्मक होती है, ह्रदय कठोर और मन अधार्मिक रहता है. 

4. इस चतुर्थ नक्षत्र चरण को “गंडातमूल” भी कहा जाता है. इसमें जन्म लेने वाला जातक जीवन प्रयन्त आध्यात्मिकता और भौतिकता के द्वन्द से पीडित रहता है.आत्मा कहती है–“धर्म कर”, लेकिन मन उसे नकार देता है—“छोड, फिर देखी जाएगी. अभी तो आराम कर”. बस यही द्वन्द जीवन प्रयन्त चलता रहता है. सुअवसर प्राप्त होने पर भी आध्यात्मिकता की ओर कोई विशेष अभिरूचि नहीं होने पाती. इस नक्षत्र चरण में जन्म होना व्यक्ति के पूर्वजन्मकृत अपने ही कार्मिक दोषों का सूचक है. जिनका फल उसे स्वयं के शारीरिक कष्टों के रूप में वहन करना पडता है.
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मूल नक्षत्र:—— 
यह नक्षत्र 11 तारों का एक समूह है, जिसकी आकृति सिँह की पूँछ के समान है.इस नक्षत्र का विस्तार 0-0 अंश से धनु राशि के 13-20 अंश तक है. इस मूल नक्षत्रोत्पत्ति का एकमात्र कारण ये है कि प्रकृति द्वारा जातक को अपने पूर्वजन्म के कार्मिक बन्धनों से छुटकारा दिलाने का एक अवसर प्रदान किया गया है. इसे आप एक प्रकार से दैव-कृपा ही कह सकते हैं. ओर दैव-कृपा की रूचि अपने पात्र को ऎन्द्रिय एवं भौतिक सुख प्रदान करने की नहीं होती. वह उन्हे सिर्फ आत्म-ज्ञान की ओर अग्रसर करना चाहती है.फलस्वरूप ऎसी स्थिति में निश्चित रूप में व्यक्ति का जीवन आवश्यक रूप से सरल, शान्त एवं निष्कंटक नहीं रह सकता, क्यों कि दैव उसे सुख और ऎश्वर्य जगत की क्षणभंगुरता दिखलाने का अवसर प्रदान करता ही रहता है.जिसकी वजह से जीवन की बाह्य और आन्तरिक प्रवृतियों का एकीकरण कर पाना जातक के लिए बेहद कठिनतम कार्य सिद्ध होता है. ऎसे जातक के लिए व्यक्तिगत आनन्द नहीं वरन् पारिवारिक तथा सामाजिक आभारों का भार वहन करना ही एक तरह से इनके भाग्य में होता है.   

1. इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने पर जातक इतिहास, पुराण, धार्मिक ग्रन्थ तथा श्रेष्ठतम कला-कृतियों में विशेष रूचि रखने वाला होता है. व्यक्ति अपने सामाजिक व्यवहार में न्यायसंगत होते हुए धार्मिक नियमों का प्रतिपालन परमात्मा के भय से नहीं अपितु आत्मा की आवाज से करते हैं.इस चरण में जन्म होने का अर्थ ये है कि जातक अपने पिता के लिए सचेतक रूप में उत्पन हुआ है…… 

2. इसका जातक संगठन शक्ति को चलाने वाला और बडा चालाक, चतुर और अपने कार्य का माहिर व्यक्ति होता है.साथ ही इन लोगों में अपनी वेशभूषा के प्रति अतिरिक्त सावधानी देखी जाती है. वार्तालाप में मधुरता इनका एक अतिरिक्त गुण रहता है. ये लोग दरअसल भौतिकता के ज्ञान से भरे रहते हैं. ये नैतिकता, आदर्शवादिता, आध्यात्मिकता तथा धार्मिक विषयों पर बहुत ठीक और निपुणता से व्याख्यान दे सकते हैं, परन्तु इनमें स्वयं इस कठिन मार्ग पर चलने का साहस बिल्कुल नहीं होता. साहस से भी अधिक इनमें संकल्प शक्ति का अभाव होता है. बहुधा इनका जीवन प्राय: प्रवास में ही व्यतीत होता है. द्वितीय चरण का जातक अपनी माता के लिए सचेतक रूप में जन्म लेता है…… 

3. मूल नक्षत्र का ये तृतीय चरण व्यक्ति को निवृति मार्ग की ओर उत्प्रेरित करता है. हालाँकि यह जातक की प्रकृति को परिलक्षित करता है, न कि उसके कार्य की दिशा को. इसलिए अपनी परिस्थितियों से निराशा एवं दैवी-असंतोष के कारणवश इस नक्षत्र चरण में जन्म लेने वाला जातक ताउम्र असंतुष्ट रहता है. काल्पनिक आदर्शों से उत्प्रेरित होकर ये लोग पूर्णता को प्राप्त करने में जुटे रहते हैं, लेकिन जब लक्ष्य असाध्य प्रतीत होने लगता है तो उस आदर्श से मुँह मोडकर छिद्रान्वेषण करने में भी देर नहीं लगाते.  यह चरण व्यक्ति के भावनात्मक जीवन में सुख और पारिवारिकन सौहार्द की कमी को दर्शाता है.

4. नक्षत्र के इस चरण में जन्म लेने वाले जातक बौद्धिक व्यक्ति होते हैं, जो अपनी ही एक अलग विशेषता रखते हैं. वो विशेषता ये है कि बाह्यमुखी होने के चलते ये लोग प्रकृति के गुप्त नियमों को प्रकाशित कर पाने तथा किसी व्यक्ति विशेष की आन्तरिक शक्तियों को उभारने की जबरदस्त क्षमता रखते हैं. परन्तु जीवन में सम्भावनाओं से लाभ उठा पाने से ये लोग पीछे रह जाते हैं.

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