प्राय: लोगों की यह शिकायत होती है कि हमारा मन पढाई में नहीं लगता या अमुक बुराई से हटता नहीं. इच्छा तो बहुत करते हैं, धर्मानुष्ठान भी करते हैं, उसके लिए दान- जाप और उपासना इत्यादि का भी सहारा लेते हैं, किन्तु मन है कि सही मार्ग की ओर अग्रसर होता ही नहीं. हम अपनी ओर से बहुत प्रयास करते हैं, लेकिन वो है कि फिर उसी ओर भागने लगता है. जब इस प्रकार की बातें सुनने को मिलती हैं तो लगता है कि मन ही सब कुछ है, वही जीवन की सम्पूर्ण गतिविधियों का संचालन कर्ता है.
यह बात यदि मान भी लें तो यह नहीं कहा जा सकता कि मन स्वभावत: अधोमुखी है. दरअसल हमारी रूचि जिन विषयों में होती है, हम उन्ही का चिन्तन करने लगते हैं और उन्ही में तृ्प्ती अनुभव करते हैं. मन को जब किसी विषय में रूचि नहीं होती, तभी वह अन्यत्र भागता है. कल्याणकारी विषयों से दुराव और विपरीत दिशा की ओर भटकता मन ही मानवी दुख का सबसे बडा कारण बनता है. इस अवस्था से तब तक छुटकारा नहीं पाया जा सकता, जब तक मन को वहाँ से हटाकर उसे अन्य किसी उपयोगी विषय में नहीं लगा पाते.जीवन साधना का प्रमुख कर्तव्य भी यही है कि हमारी मानसिक चेष्टाएँ पतनोन्मुख न होने पाएं.
चलिए अब बात करते हैं कि वैदिक ज्योतिष का आधार लेकर हम अपने मन को किस प्रकार विपरीत विषयों, व्यसनों से दूर कर अनुकूल विषय की ओर मोड सकते हैं. इसके लिए मन से जुडी हुई कुछ समस्यायों के लिए बेहद आसान एवं सटीक उपाय दिए जा रहे हैं:—-
विद्याध्ययन (पढाई) में अरूचि:-
.. अब एक व्यक्ति विद्याध्ययन करना चाहता है किन्तु उसका मन पढाई की ओर न लगकर अन्य किसी ओर जैसे खेलना, घूमना-फिरना या फिर यूँ ही पढते समय आलस हावी होने लगता है तो उसके लिए:—
(A) अगर बालक की खेल-कूद में अधिक रूचि उसकी विद्याध्ययन में बाधा उत्पन कर रही है तो उसकी जन्मपत्रिका के चतुर्थेश( Lord of 4th house) का रत्न (Gem stone) चाँदी में धारण करवा दिया जाए और साथ में गरिष्ठ भोजन की अपेक्षा उसे जलीय पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में करने को दिया जाए तो आप देखेंगें कि उसका मन कुछ ही दिनों में खेल-कूद की ओर से मुडने लगेगा.
(B) ऎसे ही यदि कारण उसका अधिक घूमना-फिरना, मित्र संगति है तो उसे लग्नेश (Lord of 1st house) का रत्न धारण करा दिया जाए. साथ में किसी प्रकार (चाहे कुछ देर के लिए ही सही) उसे नियमित रूप से व्यायाम करने को कहा जाए तो उसका मन स्वत: ही भ्रमणकारी प्रवृ्ति तथा अत्यधिक मित्र-संगति से मुख मोड लेगा.
(C) यदि आलस के कारण पढाई में मन नहीं लग रहा तो उसके लिए व्यक्ति पंचमेश(Lord of 5th house) रत्न तांबें में या नवमेश (Lord of 9th house) का रत्न सोने में धारण कर ले, साथ में उसे खाने में नमक की अपेक्षा मीठा अधिक मात्रा में दिया जाए तो आलस चुटकियों में गायब समझिए……
विभिन्न प्रकार के व्यसनों से मुक्ति (Get rid of addiction) :—-
.. जो व्यक्ति भाँग के अतिरिक्त शराब इत्यादि अन्य किसी प्रकार के नशे का शिकार है और वो नशे को छोडना भी चाहता है किन्तु आत्मबल की कमी एवं मन की दुष्प्रवृ्ति उसे व्यसन से मुक्त नहीं होने दे पा रही तो ऎसा व्यक्ति यदि द्वितीयेश ( Lord of 2nd house) और नवमेश (Lord of 9th house) का रत्न एक साथ धारण करे और खानपान में चरपरे पदार्थों की कमी करके खट्टे पदार्थों का सेवन अधिकाधिक मात्रा में करे तो धीरे धीरे उसका मन स्वत: ही व्यसन से दूर भागने लगेगा.
* सिर्फ एकमात्र ये ध्यान रहे कि धारण किए जा रहे रत्न(Gem stone) का स्वामी ग्रह जन्मकुंडली में नीच राशि में स्थित न हो.
अनुकूल किया हुआ मन ही मनुष्य का सहायक है और इससे बढकर उसका उद्धारकर्ता संसार में शायद ही कोई हो. जिस मन पर मनुष्य की उन्नति अवलम्बित है, उसे इच्छित, अनुकूल एवं कल्याणकारी विषय की ओर मोडने के लिए वैदिक ज्योतिष के इन उपायों से बढकर अन्य कोई भी श्रेष्ठ किन्तु सरल माध्यम नहीं हो सकता.
इस बात को तो प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि ज्योतिष के माध्यम से भविष्य की वास्तविक जानकारी हेतु व्यक्ति के पास अपनी जन्मपत्रिका अथवा सही जन्म विवरण यथा जन्म तारीख, जन्म समय, जन्म स्थान का होना परम आवश्यक है, जिसके आधार पर ही उसके जन्मकालीन ग्रहों के माध्यम से उसके भविष्य का स्पष्ट आंकलन किया जा सकता है. किन्तु अपने भविष्य के बारे में जानने के अथवा अपने जीवन की किसी समस्या, बाधा से मुक्ति हेतु समाधान प्राप्ति के इच्छुक जनों की ओर से हमें रोजाना प्राप्त होने वाली ढेर सारी ई-मेल में से अक्सर कुछ संख्या ऎसे लोगों की भी होती हैं, जिन्हे अपना जन्म विवरण भी ज्ञात नहीं होता, लेकिन उनके पास होता है तो सिर्फ एक विश्वास, एक उम्मीद कि शायद यहाँ से उन्हे अपनी किसी समस्या का कोई समाधान मिल जाए. सो, आज की यह पोस्ट ऎसे ही पाठकों तथा उनके द्वारा अक्सर रखी जाने वाली कुछ समस्यायों के निवारणार्थ प्रस्तुत है:——.
पराविज्ञान का क्षेत्र जिसमें ज्योतिष सहित तंत्र, मंत्र, योग तथा टोटके इत्यादि विषय आते हैं, परम्परागत प्राचीन भारतीय धरोहर हैं.ये सब विषय आदि काल से मानव के साथ जुडे हुए हैं. भय, रोग, संतान संबंधी समस्याएं तथा वैवाहिक विषमताएं जैसी समस्याएं अथवा धन-संपत्ति, सामाजिक मान-सम्मान, घर में सुख-शांती, युद्ध, शत्रु दमन जैसी अभिलाषाएं भी अनंत काल से मानव के हर्ष-विषाद का कारण रही हैं. अत: मानव के अभ्युदय के साथ ही,पूर्ण सफलता उन्ही व्यक्तियों को मिलती देखी गई है, जो लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में प्रयास करते हैं. ईश्वर की आराधना, जप, भजन, दान, संत सेवा, तीर्थ यात्रा भ्रमण, धार्मिक स्थल निर्माण इत्यादि जहाँ आध्यात्मिक कर्म क्षेत्र है, वहीं भौतिक उपलब्धियों को पाने के उपाय, जिनमें धन-वैभव,मान-सम्मान-सुखी गृ्हस्थ आते हैं, लौकिक कर्म हैं. इनमें यदि टोटका रूपी उपायों की बात की जाए तो उन्हे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है:-
शाब्दिक रूप से टोटका रूपी इस प्रकार के त्वरित उपाय का आशय ऎसे कार्य से लिया जाता है,जिसके द्वारा कोई कठिन कार्य सफलतापूर्वक एवं शीघ्रता से पूर्ण कर लिया जाता है । टोटके वास्तव में तन्त्र विधा का ही एक भाग हैं.वास्तुशास्त्र,तन्त्रशास्त्र एवं शकुनशास्त्र इत्यादि अनेक विधाओं में विभिन्न कामनाओं की शीध्रता एवं सरलतापूर्वक पूर्ति हेतु इन उपायों का प्रयोग किया जाता है। ऎसे उपाय वस्तुत: सर्वव्यापी है । प्राचीनकाल से लेकर अब तक सभी युगों में तथा आदिवासी अशिक्षित समाज से लेकर मध्यम वर्ग एवं उच्च वर्गीय समाज तक कहीं ना कहीं सदैव इस प्रकार के उपायों का प्रचलन रहा है । इनके प्रचलन के भी मुख्यत: दो कारण हैं। प्रथम तो इनका चमत्कारी प्रभाव और दूसरा व्यक्ति के अन्तर्मन में व्याप्त असफलता का भय.जो व्यक्ति अपनी सफलता के प्रति अधिक सचेत रहता है, वह टोटका आदि पराविधाओं की ओर उन्मुख भी होता है;क्योंकि कहीं न कहीं उसके मन में असफलता का भय व्याप्त रहता है।
इस प्रकार के टोटके रूपी उपाय जीवन में यदा कदा उपयोग में लाए जाते ही रहे हैं.लेकिन फिर भी अपनी बुद्धि-विवेक से ही निर्णय लेना चाहिए. वैसे भी इन्सान को सदैव अपने जीवन में तथ्यपरक होना चाहिए. यद्यपि ये सब अपने आप में पवित्र एवं सफल क्रियाएं रही हैं, परन्तु इनसे उचित तथा अपेक्षित लाभ हेतु विश्वास, संयम एवं समय की भी अपनी एक महता है. ये विद्याएं आदि काल से समाज द्वारा उपयोग में लाई जाती रही हैं और इनके जीवंत रहने का आधार इनसे जुडा विश्वास ही है, जो सदियों से अटूट तो है, पर अंधा कदापि नहीं हैं.
अक्सर जीवन में बहुत बार ऎसा भी देखने में आता है कि मानव की अनेक समस्याओं के समाधान, रोग उपचार में जहाँ विज्ञान असफल हो जाता है, वहाँ एक छोटा सा नुस्खा उपाय ऎसा चमत्कारी लाभ दे जाता है कि मानने को विवश हो जाना पडता है कि इन सब के पीछे कहीं कुछ तो ऎसा है, जिसे इन्सानी बुद्धि अभी तक समझ नहीं पा रही.
पारिवारिक मतभेद, गृ्ह-कलह इत्यादि से मुक्ति हेतु कुछ स्वनुभूत उपाय:-
व्यक्ति के जीवन में पारिवारिक कलह सबसे बडी समस्या के रूप में सामने आता है. इन्सान जीवन की अन्य समस्यायों से तो निज आत्मविश्वास एवं परिवारजन के सहयोग से पार पा लेता है, लेकिन गृ्ह क्लेश से एकदम टूट जाता है. घर परिवार में नित्यप्रति का कलह क्लेश इन्सान को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक–इन तीनों पक्ष से पीडित कर उसके प्रगति मार्ग को ही अवरूद्ध कर डालता है. फलस्वरूप जीवन में सिवाए दुखों के कुछ भी हाथ नहीं लगता…..ऎसे व्यक्ति, जो पारिवारिक अशान्ती रूपी कष्ट झेल रहे हैं, उनके लिए कुछ बेहद सरल, किन्तु पूर्णत: फलदायी उपाय दिए जा रहे हैं. श्रद्धा एवं विश्वास को आधार में रखकर, उनमें से किसी एक या दो उपायों को किया जाए तो निश्चय ही गृ्ह कलह से राहत प्राप्त कर सकेंगें.:—–
1.जिस परिवार में नित्य क्लेश, कलह, अशांती का वास रहता हो तो उससे मुक्ति एवं सुख-सौहार्द की अभिवृ्द्धि हेतु ऎसे परिवार की गृ्हणी को सूर्योदय से पूर्व ही जगना चाहिए और घर की साफ-सफाई इत्यादि कर लेनी चाहिए. तत्पश्चात स्नानादि क्रिया से निवृ्त हो सूर्योदय समय सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए. ऎसा करने से सिर्फ कुछ ही दिनों में गृ्ह क्लेश से मुक्ति मिलने लगती है और धीरे धीरे परिवार के सभी मतभेद समाप्त हो,आपसी प्रेम एवं सौहार्द का वास होने लगता है.
2. यदि कलह पति-पत्नि के मध्य है तो दम्पति को वृ्हस्पतिवार के दिन श्री लक्ष्मीनारायण के मन्दिर में दर्शनार्थ अवश्य जाना चाहिए. वहाँ बेसन की कोई मिठाई प्रशाद रूप में वितरित करें.
.. घर के पूजनस्थल में एक शंख अवश्य रखें. नित्य अथवा सप्ताह में कम से कम दो बार ( किसी भी दिन) प्रात: समय शंख में जल भरकर रखें तथा संध्याकाल में उस जल को घर में चारों ओर थोडा थोडा छिडक दें.
4. घर की उत्तर दिशा में स्फटिक का श्रीयन्त्र तथा चाँदी की छोटी छोटी चरण पादुका बनवाकर स्थापित करें.
व्यक्ति को ऋण मुक्त कराने में यह उपाय अवश्य ही सहायता करेगा:——
न्यूनतम दस मंगलवार लगातार नियमित रूप से शिव लिंग पर मसूर की दाल ॐ ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय नम: मन्त्र का उच्चारण करते हुए अर्पित करें तो अवश्य ही ऋण से मुक्ति की परिस्थितियाँ निर्मित होने लगेंगी.