श्राद्ध—क्या, क्यों और कैसे ?—by पं.डी.के.शर्मा”वत्स”–
भारतीय संस्कृ्ति एवं समाज में अपने पूर्वजों एवं दिवंगत माता-पिता का स्मरण श्राद्धपक्ष में करके उनके प्रति असीम श्रद्धा के साथ तर्पण, पिंडदान, यज्ञ तथा भोजन का विशेष प्रावधान किया जाता है. वर्ष में जिस भी तिथि को वे दिवंगत होते हैं,पितृ्पक्ष की उसी तिथि को उनके निमित्त विधि-विधान पूर्वक श्राद्ध कार्य सम्पन्न किया जाता है.हमारे धर्म शास्त्रों में श्राद्ध के सम्बन्ध में सब कुछ इतने विस्तारपूर्ण तरीके से विचार किया गया है कि इसके सम्मुख अन्य समस्त धार्मिक क्रियाकलाप गौण लगते हैं.श्राद्ध के छोटे से छोटे कार्य के सम्बन्ध में इतनी सूक्ष्म मीमांसा और समीक्षा की गई है कि जिसे जानने के बाद कोई भी विचारशील व्यक्ति चमत्कृ्त हो उठेगा. वास्तव में मृ्त पूर्वजों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किए गए दान को ही श्राद्ध कहा जाता है. हम यूँ भी कह सकते हैं कि श्रद्धापूर्वक किए जाने के कारण ही इसे श्राद्ध कहा गया है.’संस्कृ्त व्यन्जनाद्यं च पयोदधिघृ्तान्वितम, श्रद्धया दीयते यस्मात श्राद्धं तेन प्रकीर्तितम !!’ अर्थात पकाये हुए शुद्ध पकवान व दूध, दही, घी आदि को श्रद्धापूर्वक पितरों के निमित्त दान करने का नाम ही श्राद्ध है.
बहुत से व्यक्ति ऎसी भी सोच रखते हैं कि श्राद्ध वगैरह सब ढोंग हैं, भला यहाँ समर्पित वस्तुएं पितरों को कैसे पहुँच सकती हैं ? खैर, ऎसी शंका का होना स्वभाविक है, लेकिन जो व्यक्ति मन में इस प्रकार की शंका रखते हैं, उन्हे ये पूर्वलिखित आलेख श्राद्ध कर्म का औचित्य और पितृ्दोष अवश्य ही पढना चाहिए. आज हम श्राद्ध से संबंधित कुछ पहलुओं पर एक नजर डालते हैं——
श्राद्ध के प्रकार :—-
..नित्य श्राद्ध—प्रतिदिन श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किये जाने वाले देवपूजन, माता-पिता एवं गुरुजनों के पूजन को नित्य श्राद्ध कहा जाता हैं.
..काम्य श्राद्ध—जो श्राद्ध किसी कामना की पूर्ती के लिए किया जाता है.
..वृ्द्ध श्राद्ध—विवाहादिक अवसर पर घर के बडे बुजुर्गों के आशीर्वाद प्राप्ति हेतु किया जाने वाला श्राद्ध
4.सपिंडि श्राद्ध—सम्मान की इच्छा से किए जाने वाला श्राद्ध
5.गौष्ठ श्राद्ध—-गौशाला में गाय की सेवा के रूप में किया जाने वाला श्राद्ध
6.कर्मांग श्राद्ध—भावी सन्तति हेतु किए जाने वाले गर्भाधान, सोमयाग, सीमान्तोन्नयन आदि संस्कार
7.दैविक श्राद्ध–देवताओं के प्रसन्नार्थ किए जाने वाला श्राद्ध
8.शुद्धि श्राद्ध– किसी पाप कर्म के प्रायश्चित रूप में किया जाने वाला श्राद्ध
9.तुष्टि श्राद्ध–देशान्तर जाने वाले सम्बन्धी की कुशलता की कामना से किया जाने वाला दान-पुण्य .
1..पार्व श्राद्ध– अमावस्या आदि पर्वों पर मन्त्रपूर्वक किया जाने वाला श्राद्ध
श्राद्धकर्ता के लिए कुछ वर्जनाएं………..
1.निषिद्ध पदार्थ:- पान का सेवन, तेल की मालिश, स्त्रीसंभोग, औषधी सेवन तथा पराए अन्न का भक्षण—-ये सब श्रद्धकर्ता के लिए वर्जित मानी गई हैं.
2.निषिद्ध धातु:-श्रद्ध में ताँबें के पात्र का ही विशेष महत्व है. जहाँ तक हो सके, श्राद्धकाल में भोजन पकाने से लेकर परोसने तक लोहे/स्टील आदि के बर्तनों का इस्तेमाल न कर ताँबें के पात्र ही उपयोग में लाए जाने चाहिए.
3.निषिद्ध पुष्प:- बेलपत्र, कदम्ब, मौलसिरी तथा अन्य लाल रंग एवं तीव्र गंध वाले कोई भी पुष्प श्राद्धकार्य में वर्जित हैं जब कि कमल, मालती, जूही, चम्पा, प्राय: सभी सुगंधित श्वेत पुष्प तथा तुलसी अति प्रशस्त हैं.
4.निषिद्ध अन्न:–श्राद्धकाल में चना, मसूर, कुलथी, मूली, काला जीरा, कचनार, कैंथ, खीरा, काले उडद, काला नमक, लौकी, राई तथा सरसों—ये सब अन्न पूर्णत: त्याज्य हैं.
श्राद्ध में पाठय प्रसंग– श्राद्धकाल में पुरूषसूक्त, श्रीसूक्त, सौपर्णाख्यान, मैत्रावरूणाख्यान, रूद्रसूक्त, ऎन्द्रसूक्त, सप्तार्चिस्तव, गायत्री पाठ, एवं मधुमति सूक्त आदि का पाठ करना मन, बुद्धि एवं कर्म तीनों की शुद्धि के लिए अत्यंत फलप्रद औषधी का काम करते हैं.
श्राद्धकाल में पितृ प्रसन्नार्थ एवं पितृ दोष निवारणार्थ जपनीय मन्त्र:—-
1. ॐ क्रीं क्लीं ऎं सर्वपितृ्भ्यो स्वात्म सिद्धये ॐ फट !!
2. ॐ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ॐ !!
3. ॐ पितृ्भ्य्: स्वधायिभ्य: स्वधानम: पितामहेभ्य: स्वाधायिभ्य: स्वधानम:! प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: अक्षन्न पितरो मीमदन्त पितरोतीतृ्पन्त पितर: पितर: शुन्दध्वम ॐ पितृ्भ्यो नम: !!
इसके अतिरिक्त जो लोग “पितृ दोष” से पीडित हैं अर्थात जिन्हे मालूम है कि उनकी जन्मपत्रिका में पितृ्दोष विद्यमान है और वें इस दोष से मुक्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हे पितृ पक्ष की इस अवधि में नित्य सूर्योदय समय इच्छित संख्या में निम्नकिंत मन्त्र का जाप करना चाहिए. नित्य मन्त्र जाप के पश्चात सूर्यदेव को तिल, कुशा मिश्रित जल द्वारा अर्घ्य तथा किसी निर्धन व्यक्ति को तिल दान अवश्य करें.
मन्त्र:- ॐ ऎं पितृ्दोष शमनं हीं ॐ स्वधा !!

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