राहु का चमत्कार—-

भारत ही वह देश है जहाँ सर्प को देखकर हाथ जो़डे जाते हैं। देवता के रूप में उसकी प्रतिष्ठा की जाती है, जिसका प्रमाण नागपंचमी का पर्व है। नींव पूजन के समय चाँदी का नाग-नागिन का जो़डा स्थापित कर घर के स्थायित्व की कामना की जाती है। इस विश्वास का आधार यह माना जाता है कि यह पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है, वही शेषनाग जिनकी शय्या पर पालनकर्ता विष्णु विराजमान हैं। ज्योतिष में राहु सर्प के प्रतीक हैं। वस्तुत: राहु में देवत्व के गुण भी विद्यमान हैं। राहु सिंहिका राक्षसी के पुत्र हैं तथा इनके पिता विप्रचिति सदैव आसुरी संस्कारों से दूर रहे, साथ ही समुद्र मंथन के समय अमृतपान करने के कारण इन्हें अमरत्व एवं देवत्व की प्राप्ति हुई, तभी से शंकर भक्त राहु अन्य ग्रहों के साथ ब्रम्हा जी की सभा में विराजमान रहते हैं इसीलिए इन्हें ग्रह के रूप में मान्यता मिली है। संकुचित विचारधारा के कारण राहु को संकट का पर्याय मान लिया गया परन्तु राहु उच्चा पद, राज, सत्ता और गुप्त ज्ञान की राह भी खोलते हैं। 

जन्मपत्रिका में राहु के रहस्य को समझकर उच्चाकोटि की भविष्यवाणी की जा सकती है। सर्प का जो संबंध भूमि से है उस संबंध को जन्मपत्रिका में राहु से समझा जा सकता है। जब जन्मपत्रिका में राहु का संबंध भूमि के कारक मंगल से होता है तो यह वास्तु संबंधी दोष का संकेत देता है। इसी प्रकार चौथा भाव जन्म स्थान, भूमि, भवन का कारक भाव है, यहाँ राहु की उपस्थिति यह संकेत देती है कि भूमि-भवन में कोई वास्तु दोष होगा या जन्म स्थान जल्दी छूट जाएगा। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इन्हीं राहुदेव की दशा-अंतर्दशा में ही वास्तु दोष दूर होने का साधन भी बनता है। 

मंगल-राहु की यह युति यदि शुभ हो तो यह व्यक्ति को उच्चाकोटि का वास्तुशास्त्री भी बनाती है। गृह निर्माण के प्रथम चरण नींव पूजन में जहाँ राहु के प्रतीक सर्प की प्रतिष्ठा होती है, वहीं नींव स्थापना का स्थान भी राहु की स्थिति के आधार पर ही निर्धारित किया जाता है। नींव सदैव राहु पृष्ठ में ही रखे जाने का विधान है। जन्मपत्रिका में राहु की स्थिति जहाँ कुछ बाधाओं, पूर्वजन्म के कर्मो का संकेत देती है वहीं कुछ भावों में उत्तर कालामृत नामक ग्रंथ में कवि कालिदास ने छत्र और चँवर को राहु से विचार करने योग्य कहा है। 

लघुपाराशरी में केन्द्र-त्रिकोण के स्वामियों के साथ राहु की युति को अत्यंत उच्चाकोटि का राजयोग माना गया है। जन्मपत्रिका का पंचम भाव जहाँ पूर्वजन्म के कर्मो का फल है वहीं संतान सुख का भी है। पंचम भाव में राहु हों या पंचम भाव के स्वामी के साथ राहु हों तो यह संतान प्राप्ति में आने वाली बाधा का संकेत है। यदि इन स्थितियों में मंगल भी प्रभावित करें तो स्थिति और भी विकट हो जाती है, जिसे शास्त्रों में सर्प दोष कहा गया है। 

सर्प प्रतिष्ठा और सर्प की पूजा ही इस दोष को शांत करने में सहायक होती है। पंचम भाव में स्थित राहु जहाँ एक ओर संतान की हानि देते हैं, वहीं कूटनीतिज्ञ बुद्धि भी देते हैं,यह स्थिति व्यक्ति को गूढ़ दृष्टि भी देती है। साथ ही यह एक राजयोगकारक स्थिति है अर्थात् राहुदेव का हिसाब एकदम साफ है, एक हाथ से लिया तो दूसरे हाथ से दो गुना दे दिया। यह आश्चर्यजनक और सुखद तथ्य है कि शुक्र के समान राहु भी विवाह के कारक है। सप्तम भाव या सप्तम भाव के स्वामी के साथ राहु का संबंध हो तो राहु की दशा-अंतर्दशा विवाहकारक सिद्ध होती है। 

दोनों प्रकाशक ग्रहों सूर्य और चंद्रमा को कांतिहीन करने की क्षमता राहुदेव में हैं। चंद्रमा मन के कारक हैं। चंद्रमा के साथ युति करके राहु विचारों और भावनाओं में उथल-पुथल मचा देते हैं। ऎसी स्थिति में राहु की दशा मानसिक तनाव लेकर आती है। संभवत: भगवान शिव का हलाहल पान और राहु का गहरा संबंध है। राहु के कारकत्व में दुर्गा पूजा का भी उल्लेख है, अर्थात् शक्ति की पूजा राहु से प्रेरित है। माँ सरस्वती को राहु की अभीष्ट देवी माना गया है। अर्थात् ज्ञान और बुद्धि की देवी का आशीर्वाद भी राहुदेव को प्राप्त है। ज्ञान, भक्ति और शक्ति का अद्भुत संगम हैं राहुदेव।
राहुदेव की आराधना निम्न श्लोक से की जानी चाहिए- 
अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्। 
सिंहिकागर्भ सम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ||

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