दोनों प्रकाशक ग्रहों सूर्य और चंद्रमा को कांतिहीन करने की क्षमता राहुदेव में हैं। चंद्रमा मन के कारक हैं। चंद्रमा के साथ युति करके राहु विचारों और भावनाओं में उथल-पुथल मचा देते हैं। ऎसी स्थिति में राहु की दशा मानसिक तनाव लेकर आती है। संभवत: भगवान शिव का हलाहल पान और राहु का गहरा संबंध है। राहु के कारकत्व में दुर्गा पूजा का भी उल्लेख है, अर्थात् शक्ति की पूजा राहु से प्रेरित है। माँ सरस्वती को राहु की अभीष्ट देवी माना गया है। अर्थात् ज्ञान और बुद्धि की देवी का आशीर्वाद भी राहुदेव को प्राप्त है। ज्ञान, भक्ति और शक्ति का अद्भुत संगम हैं राहुदेव।
राहुदेव की आराधना निम्न श्लोक से की जानी चाहिए- अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भ सम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ||