वस्तुओं में फेरबदल कर वास्तु दोष समाप्त करें—

वास्तु शास्त्र इसके रचयिता विश्वकर्माजी की मानव को अभूतपूर्व देन है। ज्योतिष विज्ञान के अंतर्गत वास्तु का एक महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी भवन का निर्माण करते समय उसे वास्तुनुकूल बनाना आवश्यक है क्योंकि घर में सुख, शांति एवं समृद्धि इसी पर आधारित है। वास्तु दोष होने पर भवन में कई प्रकार की परेशानियाँ, अस्वस्थता, अकारण दुःख, हानि, चिंता एवं भय आदि बना रहता है।

आधुनिक युग में फ्लैट संस्कृति चारों ओर विकसित हो चुकी है। इन फ्लैटों में अगर वास्तु दोष हों तो भी तोड़-फोड़कर अनुकूल बनाना संभव नहीं हो पाता है। कई जगह धनाभाव या अर्थाभाव के कारण भी व्यक्ति वास्तु दोष का निवारण नहीं कर पाता है। लेकिन ऐसे में निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसे में हम घर के सामान या वस्तुओं में फेर-बदलकर वास्तु दोष को एक सीमा तक समाप्त कर सकते हैं।
वास्तु शास्त्र इसके रचयिता विश्वकर्माजी की मानव को अभूतपूर्व देन है। ज्योतिष विज्ञान के अंतर्गत वास्तु का एक महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी भवन का निर्माण करते समय उसे वास्तुनुकूल बनाना आवश्यक है क्योंकि घर में सुख, शांति एवं समृद्धि इसी पर आधारित है।

उदाहरण के तौर पर आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण का कोना) में रसोईघर होना चाहिए किन्तु ऐसा न होने पर अग्नि की पुष्टि नहीं हो पाती है। इसके निवारण के लिए हम घर की इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को जैसे फ्रीज, टी.वी. इत्यादि को इस कोने में रखकर इसे पुष्ट बना सकते हैं। इसी प्रकार घर की पूर्व एवं उत्तर दिशा को खाली रखा जाना चाहिए।

अगर ऐसा संभव न हो तो पूर्व या उत्तर दिशा में रखी वस्तुओं के वजन से लगभग डेढ़ गुना वजन नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) या दक्षिण दिशा में रखा जाना चाहिए क्योंकि नैऋत्य कोण भारी एवं ईशान कोण (पूर्व-उत्तर) हलका होना चाहिए। इसी प्रकार घर की घड़ियों को हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में लगाया जाना जाना चाहिए इससे अच्छे समय के आगमन के व्यवधान समाप्त होते हैं। ईशान कोण पवित्र एवं स्वच्छ रखा जाना चाहिए एवं एक घड़ा जल भरकर इस कोने में रखना चाहिए, इसके सत्परिणाम मिलते हैं।

सभी महत्वपूर्ण कागजों को पूर्व या उत्तर दिशा में रखा जाना चाहिए ऐसा न करने से इनसे संबंधित घटनाएँ अहितकारी रहती हैं। इस प्रकार घर के शयन कक्ष, पूजा-स्थल, तिजोरी, बाथरूम, बैठक-स्थल, भोजन-कक्ष, मुख्य द्वार एवं खिड़की आदि में परिवर्तन कर वास्तु दोष ठीक कर जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
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अविवाहित किस दिशा में सोएँ–जिससे शीघ्र विवाह हो—

आज चीनी ज्योतिष का प्रचलन बढ़ता ही चला जा रहा है। चीन ज्योतिष भारतीय ज्योतिष का मिला-जुला ही रूप है। फर्क इतना है कि हमारी विद्या प्राचीन मनीषियों तक ही सीमित रही और काफी काल तक विलुप्त ही रही लेकिन अब ज्योतिष के प्रति रुझान अधिक बढ़ने लगा है। इस क्षेत्र में काफी अनुसंधान व निरंतर प्रयोग चल रहे हैं। यहाँ पर कुछ अनुभूत जानकारियाँ हमारे पाठकों को दी जा रही हैं, ताकि हमारे पाठक अधिक से अधिक इसका लाभ लें।

अविवाहित युवक हो या युवती जिसका विवाह नहीं हो रहा है और अनेक बाधाएँ आ रही हैं, उन्हें घर के नैऋत्य कोण अर्थात दक्षिण-पश्चिम दिशा वाले कोण में सोना चाहिए, इससे शीघ्र विवाह योग बनेंगे। यदि किसी परिवार में अलग से कमरा न हो तो वह नैऋत्य कोण वाली जगह में सोएँ और लाभ पाएँ।
चीन ज्योतिष भारतीय ज्योतिष का मिला-जुला ही रूप है। फर्क इतना है कि हमारी विद्या प्राचीन मनीषियों तक ही सीमित रही और काफी काल तक विलुप्त ही रही लेकिन अब ज्योतिष के प्रति रुझान अधिक बढ़ने लगा है।

कुँवारे लड़के या लड़कियों के शयन कक्ष में हरे पौधे या फूलों का गुलदस्ता नहीं रखें। फेंगशुई में इसे लकड़ी तत्व को माना है एवं लकड़ी तत्व येंग ऊर्जा को बढ़ाता है, अतः येंग ऊर्जा अधिक होगी तो विवाह में बाधा पैदा करेगी। शयन कक्ष में गहरे व लाल रंग के पुष्प कदापि न हों क्योंकि ये शुभ नहीं माने जाते। सफेद रंग के परदे या सोने के बिस्तर पर सफेद रंग की चादर शुभ रहेगी। टी.वी., टेलीफोन या कम्प्यूटर भी न शयन कक्ष में रखें, न ही किताबों को रखें क्योंकि इनके होने से सोने में बाधा रहेगी और नींद नहीं आएगी।

अविवाहित युवक या युवती को कभी भी दरवाजे के सामने सिर या पाँव नहीं रखना चाहिए। नैऋत्य कोण में क्रिस्टल का झाड़ रखें तो उत्तम रहेगा। नैऋत्य कोण वाले कमरे में प्रेमी युगल के चित्र लगाएँ, मोर-मोरनी या लव बर्ड्स के चित्र भी लगा सकते हैं।

शयन कक्ष में हल्के गुलाबी परदे लगा सकते हैं। इस प्रकार यदि अविवाहितों के लिए उपाय किए जाएँ तो विवाह से बाधा दूर होगी एवं उत्तम रिश्ते आने की संभावनाएँ अधिक बढ़ जाएगी।
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वास्तु से मिलेगा मानसिक संतोष—

इस दुनिया को आखिर कोई तो है, जो चलाता है। कुछ-कुछ तो हम जानते हैं, बहुत कुछ ऐसा भी है, जिसे हम बिलकुल नहीं जानते। जो थोड़ा-बहुत हम जानते हैं, उसी में से एक है वास्तु। इस संबंध में शास्त्र और यांत्रिकी दो भिन्न पहलू हैं। यहाँ जिक्र हो रहा है केवल शास्त्र का।

कोई माने या न माने, यह शास्त्र पूरी तरह प्रामाणिक और वैज्ञानिक है, वरना क्या वजह है कि मध्य युग के बाद से सुप्त पड़े इस विषय को इक्कीसवीं सदी में नई चेतना मिली? इस समय जब कम्प्यूटर, क्लोन, अंतरिक्ष के रहस्य जान लेने की बात हो रही है, यह प्राचीन भारतीय शास्त्र अपनी अहमियत दर्ज करा रहा है।
किसी पुराने टूटे-फूटे से मकान में रहनेवाला महलों का मालिक कैसे बन जाता है? वही व्यक्ति महलनुमा मकान में रहकर दिवालिया क्यों हो जाता है? एक ही बाजार में छोटीसी दुकान पर दिनभर भीड़ रहती है और ठीक सामने स्थित भव्य शोरूम में मक्खियाँ उड़ती रहती हैं, क्यो?

इंदौर का राजबाड़ा बार-बार क्यों जल जाता है? इंदौर का ही दक्षिणी हिस्सा सपना-संगीता रोड नया व्यापारिक क्षेत्र कैसे बन गया? दक्षिण मुंबई में देश-विदेश की तमाम नामी-गिरामी कंपनियों के कार्यालय क्यों हैं? देश के प्राचीन मंदिरों, महलों का शिल्प वास्तु से प्रेरित/प्रभावित क्यों हैं?

किसी पुराने टूटे-फूटे से मकान में रहने वाला महलों का मालिक कैसे बन जाता है? वही व्यक्ति महलनुमा मकान में रहकर भी दिवालिया क्यों हो जाता है? एक ही बाजार में किसी छोटी-सी दुकान पर दिनभर भीड़ उमड़ी रहती है और ठीक सामने स्थित भव्य शोरूम में मक्खियाँ उड़ती रहती हैं, क्यों?

ये कोई अनबूझ पहेली नहीं है। इन तमाम सवालों के जवाब हैं। मेरी स्पष्ट मान्यता है कि यह काफी हद तक वास्तु अनुरूप निर्माण का परिणाम है। यह भी सही है कि हर व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव, सुख-दुःख आते हैं। चूँकि यह भाग्य का खेल है। यदि ब्रह्माण्ड है, नक्षत्र है, ग्रह हैं तो ग्रह योग भी हैं और इसीलिए वास्तु शास्त्र भी है।

आपने गौर किया होगा कि किसी मकान में गृह स्वामी की, तो किसी में गृह स्वामिनी की अकाल मृत्यु हो जाती है। किसी घर में अकसर कोई न कोई बीमार रहता है। किसी मकान में वंश आगे नहीं बढ़ता। कहीं पति-पत्नी में तकरार बहुत होती है, तो कहीं औलाद अवज्ञाकारी होती है। ये सब क्या है? वही वास्तु-दोष। हाल ही में आपने पढ़ा होगा कि ग्वालियर के सिंधिया राजघराने में कोई भी पुरुष 6. वर्ष का नहीं हो पाता।

यह कोई अभिशाप या सिंधिया घराने में पैदा होने वाले पुरुषों की शरीर रचना में किसी कमी की वजह से नहीं है। निश्चित रूप से ग्वालियर राजमहल में ऐसा कोई वास्तुदोष होगा, जो पुरुष सदस्यों की लंबी उम्र में बाधक है। यह मेरा निजी अभिमत नहीं है। शास्त्रों में इसकी स्पष्ट व्याख्या की गई है। वेदों में इसका सविस्तार वर्णन है। संवत्‌ .480 में उदयपुर के महाराजा कुंभकर्ण के कार्यकाल में श्रीमंडन सूत्रधार ने भी वास्तुशास्त्र पर एक ग्रंथ लिखा था। उसी आधार पर 1891 में एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई ‘राजवल्लभ’।

वास्तुशास्त्र आखिर करता क्या है? यह बताता है कि कहाँ, क्या होना चाहिए? मसलन, एक आँख की जगह कान लगा हो या एक आँख गर्दन पर हो अथवा नाक आपके घुटने पर हो, ऐसा संभव है क्या? यदि ऐसा हो जाए तो मानव शरीर कितना विकृत लगेगा।
वास्तुशास्त्र पर उपलब्ध ग्रंथों में इसे काफी प्रामाणिक माना गया है। इसमें बताया गया है कि पृथ्वी के चुंबकीय प्रवाहों, दिशाओं, सूर्य की किरणों, वायु प्रवाह एवं गुरुत्वाकर्षण के नियमों का समन्वय ही वास्तुशास्त्र है। राजवल्लभ के अलावा मयशिल्पम्‌, शिल्प रत्नाकार, समरांगण सूत्रधार आदि कई दुर्लभ ग्रंथ हैं, जो पुरातन वास्तुशास्त्र पर अच्छे से प्रकाश डालते हैं। अथर्ववेद, यजुर्वेद, भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, वायु पुराण, पद्म पुराण, विष्णु धर्मोत्तर पुराण, गर्ग संहिता, नारद संहिता, सारंगधर संहिता, वृहत्त संहिता में वास्तुशास्त्र पर प्रकाश डाला गया है।

वास्तुशास्त्र आखिर करता क्या है? यह बताता है कि कहाँ, क्या होना चाहिए? मसलन, एक आँख की जगह कान लगा हो या एक आँख गर्दन पर हो अथवा नाक आपके घुटने पर हो, ऐसा संभव है क्या? यदि ऐसा हो जाए तो मानव शरीर कितना विकृत लगेगा। वास्तु यही बताता है कि मकान में रसोई घर (दक्षिण-पूर्व कोने में), पूजाघर (उत्तर-पूर्व कोने में), शयनकक्ष (दक्षिण-पश्चिम कोने में), मेहमान कक्ष या बच्चों का कक्ष (उत्तर-पश्चिम कोने में) कहाँ होना चाहिए।

बैठक भी उत्तर-पूर्व में ठीक होती है। सोते वक्त सिर दक्षिण या पूर्व में होना चाहिए। उसकी वजह है। पूर्व में सूर्य होता है, जो स्थिर है। दिनभर थकान के बाद जब विश्राम करते हैं, तो सूर्य से ऊर्जा सीधे हमारे मस्तिष्क को मिल जाती है, जो हमें अगले दिन के लिए ऊर्जावान बना देती है। या फिर दक्षिण में इसलिए कि दक्षिण में चुंबकीय प्रवाह होता है, जो हमारे शरीर के रक्त को पूरे शरीर से मस्तिष्क की ओर खींचता है, जो हमें स्वस्थ, प्रसन्न, ऊर्जावान रखता है। जो अपना सिर उत्तर या पश्चिम में करके सोते हैं, वे अक्सर बीमार, बोझिल या उनींदे ही नजर आएँगे।

वास्तु का सबसे अच्छा पालन नए निर्माण में हो सकता है। इसका यह मतलब नहीं है कि मौजूदा बनावट से छेड़छाड़ करना टेढ़ी खीर है। यदि आप स्वस्थ, प्रसन्नचित्त और सुख-समृद्धि चाहते हैं, तो घर की या दफ्तर, दुकान की कुछ व्यवस्थाएँ बदलने को तत्पर रहना चाहिए। लेकिन एक बात जरूर जान लें। वास्तु कोई लॉटरी का टिकट नहीं है, जो आपको मालामाल कर दे। वैसे लॉटरी भी हर टिकट पर तो खुलती नहीं, वास्तु अनुरूप संरचना कर लेने से आपको हर काम में तृप्ति, मानसिक संतोष मिलेगा। क्या यह कम मूल्यवान है? जब आप प्रसन्नचित्त और स्वस्थ मन शरीर से कोई काम करेंगे तो अपेक्षित सफलता स्वाभाविक है। यही वास्तु का सुखद फल है।

दरअसल, सारी गड़बड़ी तब होती है, जब हम आज सुबह बोकर शाम में फल पा लेने की ख्वाहिश कर बैठते हैं, जबकि जो पौधा बोता है, छाया और फल उसे नहीं, अगली पीढ़ी को मिलता है। वास्तु भी प्रकृति के इस नियम से अछूता नहीं। वास्तु अनुरूप निर्माण कर लेने या बदलाव कर लेने से सुखद परिवर्तन अवश्यंभावी है।

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