वास्तु भाग्य-वृद्धि कारक है! -पं.जटाशंकर चतुर्वेदी
वास्तु क्या भाग्य बदल सकता है, अक्सर लोग ये बात पूछते हैं। इसके उत्तर में यही कहेंगे कि वास्तु भाग्य नहीं बदल सकता है। किन्तु भाग्य वृद्धि कर सकता है। भाग्य वृद्धि कर सकता है तो कैसे? भाग्य वृद्धि करने में वास्तु की भूमिका मात्रा इतनी है कि सबकुछ वास्तु सम्मत ढंग से निर्माण करें और बाद में उसमें रखी गई वस्तुएं भी वास्तु सम्मत ढंग से रखेंगे तो भाग्य वृद्धि अवश्य होगी। तब कहते हैं कि इसके कुछ नियम हैं जिनको अपनाना आवश्यक है। आवश्यक वास्तु नियम वास्तु सलाह वास्तु विद से लें तो बेहतर है। यदि आप वास्तुविद के पास नहीं जाना चाहते हैं तो वास्तु नियमों का पालन अवश्य करें। वास्तु के मूल नियम इस प्रकार है। १. भूखण्ड के आकार में आयताकार या वर्गाकार को ही महत्त्व देना चाहिए। २. भूखण्ड क्रय करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आमने-सामने की भुजाएं बराबर हों। ३. भूखण्ड की चौड़ाई के दूगने से अधिक उसकी गहराई नहीं होनी चाहिए। ४. दिशाएं दस हैं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, पूर्व-उत्तर, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व। आकाश व पाताल। अब ध्यान रखने की बात यह है कि पूर्व, उत्तर, पूर्व-उत्तर दिशा नीची, खुली व हल्की होनी चाहिएं। इसकी अतिरिक्त अन्य दिशाओं की अपेक्षा ये दिशाएं आकाश मार्ग से भी खुली होनी चाहिएं। इसके विपरीत दक्षिण, पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम दिशाएं उंची, भारी व आकाश मार्ग से बन्द होनी चाहिएं। ५. दक्षिण, दक्षिण-पूर्व अग्नि का स्थान है। इसमें अग्नि की स्थापना होनी चाहिए। ६. पूर्व, उत्तर दिशा जल का स्थान होने के कारण इस दिशा में जल की स्थापना होनी चाहिए। ७. देवता के लिए पूर्व-उत्तर दिशा सर्वोत्तम है, उत्तर एवं पूर्व भी शुभ होती है। ईशान में भवन का देवता वास करता है, इसलिए इस स्थान पर पूजा या देवस्थल अवश्य बनाना चाहिए। इसे खुला और हल्का बनाना चाहिए। इसमें स्टोर या वजन रखने का स्थान कदापि नहीं बनाना चाहिए। इस स्थान को साफ रखना चाहिए। इस स्थान को प्रतिदिन साफ रखने से जीवन उन्नतिशील एवं सुख-समृद्धि से परिपूर्ण होता है। ८. पीने योग्य जल का भंडारण भी ईशान कोण में होना चाहिए। यह ध्यान रखें कि कभी भी आग्नेय कोण में जल का भंडारण न करें। गैस के स्लैब पर पानी का भंडारण तो कदापि न करें, वरना गृहक्लेश अधिक होगा। पारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होने लगेंगे। गृहक्लेश अधिक होता है तो किचन में चैक करें अवश्य जल और अग्नि एक साथ होंगे। अथवा ईशान कोण में वजन अधिक होगा या वह अधिक गंदा रहता होगा। ९. किचन दक्षिण या दक्षिण पूर्व में बनानी चाहिए। किचन में सिंक या हाथ धोने का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए। रात्रिा में किचन में झूठे बर्तन नहीं होने चाहिएं। यदि शेष रहते हैं तो एक टोकरे में भरकर किचन से बाहर आग्नेय कोण में रखने चाहिएं। १०. गीजर या माइक्रोवेव ओवन आग्नेय कोण के निकट ही होने चाहिएं। इसी प्रकार मिक्सी, आटा चक्की, जूसर आदि भी आग्नेय कोण में दक्षिण दिशा की ओर रखने चाहिएं। यदि किचन में रेफ्रीजिरेटर भी रख रहे हैं तो उसे सदैव आग्नेय, दक्षिण या पश्चिम की ओर रखें। ईशान या नैर्ऋत्य कोण में कदापि नहीं रखना चाहिए। यदि रखेंगे तो परिवार में वैचारिक मतभेद अधिक रहेंगे और कोई किसी की सुनेगा नहीं। ११. जीना एवं टॉयलेट तो कदापि पूर्व या उत्तर या पूर्व-उत्तर में न बनाएं। जब आप उक्त दस मूल सूत्राों या नियमों को अपनाएंगे और इनके अनुरूप अपना भवन बनाएंगे तो आप निश्चित रूप से सुख संग जीवन जिएंगे और जीवन में भाग्य वृद्धि होने से समस्त इच्छाएं पूर्ण होंगी और जीवन बाधा रहित होगा। वास्तु सम्मत भवन सदैव धनहानि, रोग एवं कर्ज से ग्रस्त रखता है। इनसे मुक्त होना चाहते हैं तो वास्तु सम्मत भवन अवश्य बनाएं। यदि निर्मित भवन है तो उसमें देख लें कि वास्तु दोष तो नहीं हैं और यदि हैं तो उन दोषों को दूर कर लेना ही बेहतर है। वास्तु भाग्य नहीं बदलता है। वास्तु जीवन सरल, सहज एवं बाधाविहीन बना देता है। वास्तु आधृत भवन घर को साधन सम्पन्न एवं सुख का आगार बनाता है। जीवन में उन्नति को जीवन संगिनी बनाना चाहते हैं और जीवन को समृद्धि की डगर पर ले जाना चाहते हैं तो आपको चाहिए कि आप अपने भवन के दोषों को ढूंढ लें और यदि आप नहीं ढूंढ पा रहे हैं तो किसी वास्तुविद को बुला लीजिए वह आपको आपके भवन के दोष देखकर बता देगा। बाद में उसकी सलाह के अनुसार उसे ठीक करे लें। वास्तु भाग्य बदले या न बदले पर जीवन में सुख-वृद्धि भाग्य-वृद्धि होने के कारण हो ही जाती है।

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