कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज व भगवान विष्णु के अंशावतार धन्वन्तरि का पूजन किए जाने का विधान है। धनतेरस पर भगवान यमराज के निमित्त व्रत भी रखा जाता है।
पूजन विधि- इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निर्मित्त दक्षिण की ओर मुंह करके दीपदान करना चाहिए। दीपदान करते समय यह मंत्र बोलना चाहिए-
“मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।।”

रात्रि को घर की स्त्रियां इस दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती हैं और जल, रोली, चावल, फूल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर यमराज का पूजन करती हैं। हल जूती मिट्टी को दूध में भिगोकर सेमर वृक्ष की डाली में लगाएं और उसको तीन बार अपने शरीर पर फेर कर कुंकुम का टीका लगाएं और दीप प्रज्जवलित करें।
इस प्रकार यमराज की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है तथा परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
दीपदान का महत्व :-
धर्मशास्त्रों में भी उल्लेखित है-कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।।
अर्थात- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को यमराज के निमित्त दीपदान करने से मृत्यु का भय समाप्त होता है।
इस दिन भगवान धन्वंतरि का षोडशउपचार पूजा विधिवत करने का भी विशेष महत्व है जिससे परिवार में सभी स्वस्थ रहते हैं तथा किसी प्रकार की बीमारी नहीं होती।

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