भक्तों का संकट दूर करती हैं माँ —सच्चे हृदय से करो माँ का सुमिरन
जब-जब भी भक्तों ने अपने हृदय से मातेश्वरी का स्मरण किया है, तो समय साक्षी है कि माँ जगदम्बा तत्काल किसी भी रूप में अपने भक्तों का संकट दूर कर उसे अपार स्नेह और वात्सल्य प्रदान करती हैं लेकिन कोई छल-कपट या दंभ से माँ को चुनौती देता है तो उस पर अपार कोप ढाती हैं।
माँ तो बस प्रेम की भूखी हैं। अतः पाखण्ड न करके केवल प्रेम से, सच्चे हृदय से माँ का सुमिरन करो। माँ तुम्हारे सब दुख दूर कर तुम्हें मोक्ष प्रदान करेंगी। नवरात्र उपासना के दौरान जहाँ विधि-विधान से अनुष्ठान हो रहे थे। वहीं ज्ञानी पंडितों द्वारा लोगों को आदि शक्ति की उपासना का महत्व भी बताया गया।
कहा जाता है कि माता जानकी जी ने गौरी माँ की उपासना से ही श्रीराम को प्राप्त किया तथा माँ सीता की भक्ति से हनुमान जी आठों सिद्धियों और नौ निधियों को देने वाले बन गए। अतः नवरात्रि उपासना यदि श्री हनुमान की अध्यक्षता में की जाती है तो माता भगवती तुरंत फलदायी हो जाती हैं।
भगवती दुर्गा के आगे-आगे विजय ध्वज लेकर चलने वाले हनुमान जी ही होते हैं। अतः श्री हनुमान सदैव माँ की सेवा में तत्पर रहते हैं।
नवरात्रि में पाँचवाँ दिन स्कंदमाता का होता है। यह भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय के नाम से भी जाने जाते हैं। भगवान स्कंद अर्थात् कार्तिकेय की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पाँचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है, इनकी वाणी शुभ है। कमल के आसन पर ये विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पदासना देवी भी कहते हैं। इनका वाहक सिंह है।
दुर्गा शक्तियों में से छठवें दिन कात्यायन देवी का पूजन किया जाता है। माँ कात्यायनी अमोद फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इस स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है।
आदि शक्ति दुर्गा का सप्तम स्वरूप कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इनके तीन नेत्र, साँसों से अग्नि निकलती है, हाथों में ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से भगवती कालिका अपने भक्तों को निर्भयता का वरदान देती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र, मध्य ललाट में स्थिर कर साधना करनी चाहिए।
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति महागौरी है। नवरात्र के आठवें दिन इनकी पूजा का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष घुल जाते है। उसके पूर्व संचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।
माँ दुर्गाजी की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मावैवर्त्त पुराण में श्रीकृष्ण जन्मखंड में ये सिद्धियाँ अठारह बताई गई हैं। माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं।