सप्तम पर ग्रहों की दृष्टि-(शनि, राहु-केतु का दृष्टि फल)::–

##शनि यदि पंचम में रहकर सप्तम को देखता हो तो जातक विवेकी, गंभीर और शांत होता है। इनकी अध्यात्म, रिसर्च और तंत्र-मंत्र में रूचि रहती है। यह शनि भाइयों के लिए शुभ नहीं है, जीवनसाथी से भी मतभेद बनाए रखता है। साथी या तो कम पढ़ा-लिखा या कम स्तर का होता है।
##यदि शनि से बुध का अशुभ योग हो रहा हो तो जातक काम में बेईमानी करता है। यदि शनि दशम से सप्तम को देखता हो तो जातक को अधिकारी पद दिलवाता ही है। हालाँकि खूब मेहनत और संघर्ष देता है, मगर अंत में सफलता छप्पर फाड़कर मिलती है (यदि बाकी योग मजबूत हो तो)। ऐसे जातकों का भाग्योदय जन्मभूमि से दूर या विदेश में होता है। साथी समझदार होता है और तालमेल बना रहता है। यह शनि विवाह में देर करा सकता है। शनि की अशुभता बहुत अशुभ फल देती है।
##यदि शनि लग्न से सप्तम को देखता हो तो भाग्योदय होता ही है। साधारण से घर में जन्म होता है, विवाह के बाद एकदम दिन फिर जाते है। विशेष कर यदि तुला लग्न में शनि हो तो ऐसा होता ही है। साथी का रंग दबा हुआ होता है, दिखने में साधारण ही होता है मगर जातक को भरपूर सुख-साधन देता है। नीच का शनि कई समस्याओं को देता है। हर काम में विघ्न आते है। विवाह भी सफल नहीं हो पाता।
##सप्तम पर लग्न के राहु की दृष्टि साथी के जीवन को धोखा होना बताती है। ऐसे जातक व्यर्थ घमंड करते हैं और यदि अधिकारी बन जाए तो सभी को दुखी करके छोड़ते हैं। येनकेन प्रकारेण अपना काम बनवा लेते है। साथी की और ध्यान नहीं देते। अतः विवाह सफल नहीं होता। अक्सर दूसरा विवाह या अन्य संबंध भी होते देखा गया है।
##तीसरे भाव के राहु की दृष्टि जातक को पराक्रमी बनाती है, शत्रु उसके सामने टिक नहीं पाते। ये जातक साथी को काबू में रखते है मगर उनका ध्यान भी रखते है। आय भाव के राहु की दृष्टि व्यक्ति को रिश्वत लेने को उकसाती है। वह रिस्क लेने का शौकीन होता है और इससे धन का नुकसान करता है और साथी को भी दुःख देता है। कन्या संतान अधिक होती है। अन्धविश्वासी भी होते है।
##केतु की दृष्टि जातक को विचित्र स्वभाव का बनाती है। उसे वात विकार भी रहते है। वृश्चिक या धनु का केतु शुभ होता है और धन, स्त्री, संतान सभी सुख देता है। साथी से प्रेम रहता है। अशुभ या नीच का केतु चोट, नुकसान या मतभेद का कारण बनता है।

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