Home JYOTISH Page 235

JYOTISH

>कालसर्प योग के सफल होने की कहानी----भले ही सुनने में अजीब लगे, लेकिन एक बात पहले स्‍पष्‍ट कर देना चाहता हूं कि ऐसा कोई योग होता ही नहीं हैज्‍योतिष की किसी भी शाखा में कभी भी कालसर्प जैसा योग नहीं बताया गया है। पिछले दो-तीन दशक में इस योग का जन्‍म हुआ और इसका असर इतना अधिक व्‍यापक बताया...
>ज्‍योतिष में शोध की संभावनाएं----कुण्‍डली देखने के दौरान कई बार ऐसा लगता है कि पूर्व में दिए गए सिद्धांत अब पुराने पड़ने लगे हैं। लोगों कीकई जरूरतें और दिए गए सिद्धांतों से परे नजर आती है। हो सकता है ज्‍योतिष की बहुत सी विधाएं औरबिंदुओं से मैं अनभिज्ञ होउं, लेकिन फिर भी एक बात दावे से कही जा सकती है वह यह कि इस विज्ञान में अबभी शोध की अनन्‍त संभावनाएं मौजूद है।स्त्रियों के लिएज्‍योतिष में मूल रूप से जो योग दिए गए हैं उनमें से अधिकांश शुभ-अशुभ योग पुरुषों को ध्‍यान में रखकरदिए गए हैं। स्त्रियों के लिए महज कुछ योग हैं वे भी पुरुषों को यह बताने के लिए है कि स्‍त्री कैसी हो। मेरी एकपोस्‍ट में मैनें स्‍त्री की सुंदरता पर लिखा तो कई महिला ब्‍लॉगरों ने न केवल मुझे गालियां निकाली बल्कि यहजिज्ञासा भी प्रकट की कि क्‍या ऐसी ही कोई कसौटी पुरुषों के लिए भी बनी है क्‍या?मुझे खेद के साथ बताना पड़ेगा कि पुरुषों को विवाह के योग्‍य जांचने के लिए ऐसी किसी कसौटी को मैं ढूंढनहीं पाया हूं। हां लेकिन किसी पुरुष की कुण्‍डली देखकर यह बताया जा सकता है कि वह जिन्‍दगी में कितनासफल होगा और विकास की क्‍या संभावनाएं हैं। प्रेम करता है या नहीं, अपनी स्‍त्री से इसकी कैसी बनेगीजैसी कुछ बातें बताई जा सकती है लेकिन कोई तय पैमाने नहीं छोड़े गए हैं जैसे कि स्त्रियों के लिए दिए गएहैं।ज्‍योतिष में अब तक हुए अधिकांश शोधों का आधार तात्‍कालिक आवश्‍यकताओं के अनुरूप होता है। ऐसे मेंप्राचीन काल में ‘शिकारी पुरुष’ और ‘घोंसला संभालने वाली स्‍त्री’ अपन-अपने काम कर रहे थे। सभ्‍यता केविकास के साथ लाइफ स्‍टाइल बदली और कम शारीरिक क्षमता वाले सार्वजनिक कामों में स्त्रियों कीभागीदारी बढ़ी। अब भी स्त्रियों का मुख्‍य काम बच्‍चे पैदा करना और घर संभालना था। विलासिता में हुईबढ़ोतरी का परिणाम यह रहा कि बेहतर संतान के लिए बेहतर स्त्रियों की खोज होने लगी। ताकतवर वंश काअधिपति वंश की वृद्धि के लिए एक से अधिक स्त्रियों का वरण करने लगा ताकि उसे श्रेष्‍ठतम संतान प्राप्‍त होसके। इसे कुछ-कुछ अच्‍छी नस्‍ल की गाएं पालने जैसा काम कह सकते हैं। बस यहां चुनाव करने वाला खुदश्रेष्‍ठ सांड ही होता था।युग बदला और भौतिक सुविधाएं और बढ़ी। कल के युग (कलयुग) में मशीनें ताकत का पर्याय बन चुकी है।शारीरिक क्षमताएं महज खेलों का हिस्‍सा है। अब वह हर काम जो पुरुष कर सकता है स्त्रियां भी कर सकतीहैं। ऐसे में बेहतर का चुनाव दोनों पक्षों की च्‍वाइस बन चुका है। ऐसे में स्‍त्री की सुंदरता के साथ पुरुष कीजनन क्षमता और काबिलियत की जांच जैसी आवश्‍यकताएं भी पैदा हुई है। किसी ज्‍योतिषी के पास इसकावाजिब जवाब न भी हो तो इसके हल्‍के फुल्‍के संकेत मिल सकते हैं। बाकी विशद शोध किया जाए तो पुरुषों केलिए भी ऐसे नॉर्म्‍स बन सकेंगे जैसे स्त्रियों के लिए बने हैं।कौन बनेगा राजा?यह तो हुई स्‍त्री और पुरुष&n bsp;की बात मुझे अन्‍य कई बिंदुओं पर भी शोध की आवश्‍यकता महसूस होती है।इनमें से एक है राजयोग। यानि राजा बनने की संभावना, व्‍यापक रूप में राजसी जीवन यापन की संभावना।पूर्व में हुए शोध बतलाते हैं कि मोटे तौर पर कुण्‍डली में सूर्य की बेहतर स्थिति राजा बनने की संभावना पैदाकरती है। इसी तरह गुरु से राजपुरोहित, मंगल से सेनापति, शुक्र से ऐश्‍वर्य और शनि से भृत्‍य। समय के साथशासन प्रणाली में हुए बदलाव का नतीजा यह है कि राजा दैवीय होने के बजाय प्रजा द्वारा चुना गया वह व्‍यक्तिहोता है जो जनता की सेवा करता है। यानि जो जितना अधिक अच्‍छा सेवक होगा वह उतनी ही ऊंची गद्दी परबैठेगा। यकीन मानिए ऐसा ही हो रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लग्‍न में शनि था। मैंने उनकीकुण्‍डली नहीं देखी लेकिन ऐसा ही बताया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की कुण्‍डली मेंलग्‍न में शनि था। और अब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्‍यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी की कुण्‍डलीमें भी लग्‍न में शनि है। यानि शनि की प्रमुखता शासन की प्रमुखता दिलाती है। इस बारे में अब तक तो कोईशोध मैंने नहीं देखा है, लेकिन ऐसे अन्‍य लोगों का विश्‍लेषण किया जाए तो पता चलेगा कि पूर्व में दिए गएअधिकांश‍ नियम समय के साथ बदलते जा रहे हैं। तो मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सूर्य की बजाय शनिताकत और अधिकार का पर्याय बन रहा है। कैसे? इस सवाल का जवाब जानने के लिए ही शोध कीआवश्‍यकता है।
>यह समझ का खेल है---शेयर बाजार की नब्‍ज-----ज्‍योतिष में मैंने निजी तौर पर अनुभव किया है कि कई बार ज्‍योतिषी गलत होता है तो कई बार जातक भी समझने में चूक कर जाता है। अधिकांशत: ऐसा होता है कि जातक वही सुनना चाहता है जो वह सोचकर आया है। ज्‍योतिषी तो उसके लिए महज एक बहाना होता है। उसकी...
>मेरा, उसका सबका वास्‍तु - ऊर्जा का प्रवाह----इस साल एक बार फिर वास्‍तु की कक्षाएं लेने का मौका मिला। पिछली बार जहां पहले से वास्‍तु के जानकार लोगों से लेकर छोटी बालिका तक के विद्यार्थी थे वहीं इस बार सभी युवा या अधेड़ थे, और मेरी लगातार परीक्षा लेने की फिराक में थे। कुछ ने इधर उधर कुछ पढ़...

प्रख्यात लेख

मेरी पसंदीदा रचनायें

error: Content is protected !!