--सुख और दुख----
हो सकता है कि मेरे इस लेख में आप को मेरी बातें किताबी बातों की तरह लगें, यह भी हो सकता है कि आप को ऐसा भी लगे कि में ज्ञान बाँट रही हूँ, या जो कुछ मैंने इस लेख के ज़रिये कहने कि कोशिश कि है वह कहना बहुत आसान है मगर करना उतना ही मुश्किल...
जीवन-यात्रा
ज्योतिष के द्वारा कैरियर का चुनाव सही है—-पं. कृष्ण गोपाल मिश्र
आचार्य पंडित दयानन्द - 0
ज्योतिष के द्वारा कैरियर का चुनाव सही है----पं. कृष्ण गोपाल मिश्र
हमारे देश में किशोरावस्था के बाद बच्चों के कैरियर को लेकर आभिभावकों को बहुत सारी दुविधाएँ रहती हैं । एक तरफ बच्चों के मन की आकांक्षाएं जो कि बहुत हद तक भौतिक परिवेश व भौतिकता के चमक-दमक से प्रभावित होती हैं वहीं दूसरी ओर अभिभावकों के मन में अपने...
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|| श्री कृष्ण शरणं मम ||
"जीवन सार्थक करने का पावन पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी "
हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे ! हरे राम ! हरे राम ! राम ! राम ! हरे हरे !
जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर...
शाबर मन्त्रों के भावार्थ ----
ओम वक्रतुण्डाय हूं---
जब स्थिति आपके नियंत्रण से बाहर हो या लोग आपके बारे में नकारात्मक विचार रखते हों या आप हताश और निराश हों तो इस मंत्र का जाप करें। इससे लाभ मिलेगा यानी तुरंत प्रसाद मिलेगा।
इन मंत्रों को जपने से तमाम तरह की बाधाओं और बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है। इन मंत्रों से...
आनंद क्या है?
सुख तो एक उत्तेजना है और दुख भी। प्रीतिकर उत्तेजना को सुख और अप्रीतिकर को हम दुख कहते हैं। आनंद दोनों से भिन्न है। वह उत्तेजना की नहीं, शांति की अवस्था है। सुख को जो चाहता है, वह निरंतर दुख में पड़ता है, क्योंकि एक उत्तेजना के बाद दूसरी विरोधी उत्तेजना वैसे ही अपरिहार्य है, जैसे...
आइये जाने वर्तमान में शब्दों के अर्थों को-----
1. वास्तविक आशावादी : ऐसा गंजा जो बाल उगाने वाला वो ही तेल खरीदता है जिसके साथ कंघी फ्री हो.
2.आदर्श शिक्षक :जो स्वंय ना समझे की वो क्या पढ़ा रहा है
3) मच्छर : इंजेक्शन की ऐसी सिरिंज जो उड़ सकती है.
4) कामयाब व्यक्ति : जिसे पहली बीवी की वजह से कामयाबी हासिल...
जय हो लक्ष्मी माता की----
सौवर्णाम्बुज मध्यगां त्रिनयनां सौदामिनीसन्निभां ..
स्वर्ण-कमल के आसन पर स्वर्णिम-आभामय माँ की देह.
पद्मासन में हैं प्रसन्न, स्वर्णिम-सुगंध से पूरित गेह.
शंख-चक्र-वर-अभय सुशोभित चार भुजाओं में अभिराम.
मेरा मस्तक ऐसी माँ के श्री चरणों में नत , अविराम.
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