ज्योतिष के द्वारा कैरियर का चुनाव सही है—-पं. कृष्ण गोपाल मिश्र
हमारे देश में किशोरावस्था के बाद बच्चों के कैरियर को लेकर आभिभावकों को बहुत सारी दुविधा‌एँ रहती हैं । एक तरफ बच्चों के मन की आकांक्षा‌एं जो कि बहुत हद तक भौतिक परिवेश व भौतिकता के चमक-दमक से प्रभावित होती हैं वहीं दूसरी ओर अभिभावकों के मन में अपने नौनिहालों से जुड़े सपने को लेकर उनपर दबाव और एक तरफ तो इनकी अपनी पढ़ा‌ई की क्षमता व अपने स्वभाव के अनुकूलता को देखते हु‌ए कैरियर के प्रति दुविधा तो स्वाभाविक है । उदाहरण के तौर पर मान लीजि‌ए कि एक बच्चा बहुत सा‌इंस, मैथ्स आदि विषयों में बड़ा अच्छा परिणाम दे रहा है, इसके आधार पर टीचर या अभिभावक सा‌इंस से संबंधित विषयों पर जा‌एं तो वह कह सकते हैं कि बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर बन सकता है । परन्तु यदि बच्चा अपने कोमल मन में कल्पना‌ओं, सपनों के जाल से इस कदर प्रभावित है, कि अमिताभ, शाहरूख खान, आमिर खान, उसके जीवन के लक्ष्य में शामिल हो सकते हैं ।
ऐसी स्थिति में कैरियर का आकलन कौन कर सकता है ? यदि बच्चा अपने ही सपनों में रह कर चले तो क्या गारंटी हैं कि उसे अपने सपनों में सफलता मिल ही जा‌एगी । तो क्या गारंटी है कि ये कोमल मन दो चार पाँच साल बाद अपने इस लक्ष्य से दिग्भ्रमित नहीं होगा । बहुत से ऐसे बच्चे जो शुरू में पढ़ा‌ई में कमजोर होते हैं और बाद में मजबूत हो जाते हैं, बहुत से ऐसे बच्चे होते हैं जो शुरू में मजबूत और बाद में कमजोर हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में बच्चे के साथ रहने वाले बच्चे के माँ-बाप इन परिवर्तनों का अनुमान तो लगा ही नहीं सकते फिर मनोचिकित्सक किस आधार पर इस बात को जान सकते हैं । एक अच्छा भला आदमी उम्र के किस पड़ाव में सिजोफ्रेनिया, फोबिया व अन्य मानसिक रोगों से कब ग्रसित हो जाय, इनका अंदाजा मनोचिकित्सक तो पहले लगा हीं नहीं सकता, हाँ जब लक्षण होते हैं तो चिकित्सक डा‌इग्नोस कर सकते हैं । ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान है, जिससे आप आदमी का स्वभाव ही नहीं उसके पूरे जीवन के मानसिक एकाग्रता, सोच, स्वभाव में परिवर्तन, स्वास्थ्य में परिवर्तन आदि का आंकलन पहले से ही कर सकता है ।
ज्योतिष ही एक ऐसा विज्ञान है, जिसमें हम वर्तमान में बच्चों की स्थिति, उसके पिछली पढ़ा‌ई की स्थिति, आगे पढ़ा‌ई की स्थिति, और उसके आगे लक्ष्य में परिवर्तन आदि की स्थिति का पहले आकलन कर सकते हैं, तथा उसे पहले ही दिशा दे सकता है, वैसे ज्योतिष तो ये मानता है कि हर चीज पूर्व निर्धारित है, इसलि‌ए होना वही है जो उसके जन्म के समय निर्धारित हु‌आ है । लेकिन ज्योतिष विज्ञान फेबरबुल व अनफेबरबुल (कारक व अकारक) दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करके भविष्य का आंकलन करता है । जिस पर ये पूरी सृष्टि बा‌इंडिंग एनर्जी के तहत विजुवल रूप लेती है, ठीक उसी प्रकार ज्योतिष भी ऋणात्मक व धनात्मक दो तरह के ऊर्जीय सत्ता‌ओं को जोड़ने वाला, एक न्यूट्रल सत्ता को मिलाकर संसार की संरचना का नही, यानि इन तीनों तरह की ऊर्जा‌ओं का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन तरह के ग्रहों के समूह का तुलनात्मक अध्ययन ही ज्योतिष है ।
प्राचीन काल में हमारे यहाँ विज्ञान, इलाज, शिक्षा आदि तरह के कार्यों का जिम्मा सिर्फ ऋषि‌ओं मुनियों का ही था और ये इतने ज्ञानी होते थे कि ये अपने ईगो और प्रतिस्पर्धा के कारण अपने ज्ञान को आम जन मानस तक बहुत आसानी से बांटते नहीं थे बल्कि जनमानस तक अपने ज्ञान का स्वरूप आस्था के रूप में प्रकट करते थे ताकि समाज इनसे जुड़ा रहे तथा एक भय वश इनके सामाजिक बंधन में जुड़ा रहे । अगर ऐसा नहीं होता तो आप सभी जरा सोचि‌ए कि जो विज्ञान आज सृष्टि का आधार पदार्थ भी संरचना का सूक्ष्मतम कण, प्रोटान, इलेक्ट्रॉन व न्यूट्रॉन को अपनी बा‌इंडिंग एनर्जी को आधार मानता है, और इसी को अपने शब्दों में हमारे ऋषि मुनियों ने ब्रह्‌मा, विष्णु, महेश बोले हैं । अगर ब्रह्मा को देखा जा‌ए तो बह्मा की जो ऊर्जामयी छवि का वर्णन प्रस्तुत किया गया है, वह एकदम जैसे प्रोटॉन की छवि के तरह ही है, क्योंकि प्रोटॉन ही धनात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है । चूंकि इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक प्रतिनिधित्व करता है और हमारे यहाँ शिव का आवरण जो बनाया गया है वह काला ठंडा । इन इन दोनों ऊर्जा‌ओं को जोड़कर के बा‌इंडिंग ऊर्जा पैदा करने वाले तीसरे ऊर्जा का नाम है न्यूट्रॉन । ये न्यूट्रॉन ही इन दोनों ऊर्जा‌ओं के बीच में पा‌ई (निशान) उत्पन्‍न कर एक पदार्थ स्वरूप को विजु‌अल रूप देता है, और विष्णु हमारे उसी ऊर्जा स्वरूप के प्रतिनिधित्व के रूप में बताये गये हैं ।
जब ये इतनी छोटी सी बात अपने आप में इतना बड़ा रहस्य लिये हु‌ए है तो फिर हमारे यहाँ ज्योतिष तो विज्ञान का पितामह स्वरूप है । यही नहीं ज्योतिष द्वारा इलाज पद्धति आयुर्वेद काफी कुछ आगे तक एडवांस पद्धति बहुत पहले से लिये चला आ रहा है । उदाहरण स्वरूप एक डॉक्टर जब किसी व्यक्‍ति के पेट में पाचन क्रिया का ठीक हो जाना या एसिड बनता है तो डॉक्टर कहता है कि उसका मेटाबॉलिक सिस्टम ठीक हो गया है लेकिन आयुर्वेद ही इस बीमारी में अलग-अलग व्यक्‍तियों में अलग-अलग नजरिया रखता है ।
यह ये भी देखता है कि इसके पेट में हा‌इड्रोक्लोरिक एसिड की अधिकता से पेट खराब हु‌आ है या कम होने से हु‌आ है । क्योंकि दोनों को दो नाम देते हैं, जिस में हा‌इड्रोक्लोरिक एसिड की अधिकता होती है उसे जठराग्नि तथा जिसमें कम होती है उसे मंदाग्नि कहते हैं । अतः यहां पर आयुर्वेद के हिसाब से जठराग्नि हमेशा कफ प्रधान शरीर में होता है और मंदाग्नि हमेशा पित्तज प्रधान शरीर में होता है यानि आयुर्वेद इलाज शरीर के प्रकृति के आधार पर करता है । अतः हम यहां कहना चाहेंगे हमारे यहाँ का ज्ञान विशेषकर आयुर्वेद और ज्योतिष पूर्णतः वैधानिक वैज्ञानिक एवं जांचा परखा तथा अनुभव के आधार पर ही बनाया गया है ।
अलबत्ता हमारी संस्कृति पर इतनी बार आक्रमण हु‌आ है कि हमने अपनी भाषा ही खो दी है, और किसी भी ज्ञान का संवाहक भाषा ही होती है, इस कारण इसका प्रचार-प्रसार यह महत्ता हम जगजाहिर नहीं कर पाये । व्यर्थ ही जो हमारे यहाँ बुद्धिजीवी व ज्ञानी लोग थे उन्होंने अपने ज्ञान को छुपाने की कोशिश की ताकि उनकी भी महत्ता समाज में बनी रहे लेकिन आज सारा विश्‍व इन चीजों को बहुत तेजी से महसूस कर रहा है, एवं ज्योतिष की तरफ आकर्षित कर रहा है ।
ये अलग बात है कि इस क्षेत्र में अगर विज्ञान के छात्र आयें तो ज्यादा रचनात्मकता दिखा सकते हैं । इस क्षेत्र के जरिये कैरियर का‌उसिलिंग की पहल करना काफी अच्छा होगा, इससे पूर्वाग्रह और स्वार्थी तत्वों के अल्प ज्ञान के ज्योतिषियों से मिलकर इसके लि‌ए पूर्वाग्रह ना अपनाकर एक सकारात्मक सोच अपनाते हु‌ए, विद्वान व्यक्‍तियों का समावेश किया जाना चाहि‌ए, निःसंदेह इस क्षेत्र से कैरियर का‌उसलिंग काफी अच्छा साबित होगा ।

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