अपराधक्षमापणस्तोत्रं---
ॐ अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥ १ ॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥ २ ॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रोन्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ ३ ॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥ ४ ॥
सर्वरूपमयी देवी सर्वं देवीमयं जगत् ।
अतोऽहं विश्वरूपां त्वां नमामि परमेश्वरीम् ॥ ५ ॥
यदक्षरं परिभ्रष्टं मात्राहीनञ्च यद्भवेत्...
॥अथ योगिनीहृदयम्॥
श्रीदेव्युवाच--
देवदेव महदेव परिपूर्णप्रथामय ।
वामकेश्वरतन्त्रेऽस्मिन्नज्ञातर्थास्त्वनेकशः ।। १ ।।
तांस्तानर्थानशेषेण वक्तुमर्हसि भैरव ।
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि महागुह्यं योगिनिहृदयं परम् ।। २ ।।
त्वत्प्रीत्या कथयाम्यद्य गोपनीयं विशेषतः ।
कर्णात्कर्णोर्पदेशेन सम्प्राप्तमवनीतलम् ।। ३ ।।
न देयं परशिष्येभ्यो नास्तिकेभ्यो न चेश्वरि ।
न शुश्रूषालसानाञ्च नैवानर्थप्रदायिनाम् ।। ४ ।।
परीक्षिताय दातव्यं वत्सरार्धोषिताय च ।
एतज्ज्ञात्वा वररोहे सद्यः खेचरतां व्रजेत् ।। ५ ।।
चक्रसङ्केतको मन्त्रपूजासङ्केतकौ तथा ।
त्रिविधस्त्रिपुरादेव्याः सङ्केतः परमेश्वरि ।। ६ ।।
यावदेतन्न जानाति सङ्केतत्रयमुत्तमम्...
॥अथ योगिनीहृदयम्॥
श्रीदेव्युवाच--
देवदेव महदेव परिपूर्णप्रथामय ।
वामकेश्वरतन्त्रेऽस्मिन्नज्ञातर्थास्त्वनेकशः ।। १ ।।
तांस्तानर्थानशेषेण वक्तुमर्हसि भैरव ।
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि महागुह्यं योगिनिहृदयं परम् ।। २ ।।
त्वत्प्रीत्या कथयाम्यद्य गोपनीयं विशेषतः ।
कर्णात्कर्णोर्पदेशेन सम्प्राप्तमवनीतलम् ।। ३ ।।
न देयं परशिष्येभ्यो नास्तिकेभ्यो न चेश्वरि ।
न शुश्रूषालसानाञ्च नैवानर्थप्रदायिनाम् ।। ४ ।।
परीक्षिताय दातव्यं वत्सरार्धोषिताय च ।
एतज्ज्ञात्वा वररोहे सद्यः खेचरतां व्रजेत् ।। ५ ।।
चक्रसङ्केतको मन्त्रपूजासङ्केतकौ तथा ।
त्रिविधस्त्रिपुरादेव्याः सङ्केतः परमेश्वरि ।। ६ ।।
यावदेतन्न जानाति सङ्केतत्रयमुत्तमम्...
तंत्र शास्र की जानकारी---
तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। यह शास्त्र, वेदों के समय से हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग रहा है। विश्वास है कि तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का...
तंत्र शास्र की जानकारी---
तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। यह शास्त्र, वेदों के समय से हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग रहा है। विश्वास है कि तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का...
दक्षिण दिशा का द्वार (दरवाजा)---
हमारे मन में दक्षिण दिशा से बहुत भय है। इसलिए कोई भी अपने मकान का द्वार दक्षिण में नहीं रखना चाहता है।
पश्चिम में कुछ अच्छा है। अतः दो चार प्रतिशत भवन पश्चिम द्वार में मिल जाते हैं। भवनों के प्रायः
पूर्व और उत्तर मुखी द्वार शुभ है। यही तोड़ इस दक्षिण दिशा का है। यदि आपका...
दक्षिण दिशा का द्वार (दरवाजा)---
हमारे मन में दक्षिण दिशा से बहुत भय है। इसलिए कोई भी अपने मकान का द्वार दक्षिण में नहीं रखना चाहता है।
पश्चिम में कुछ अच्छा है। अतः दो चार प्रतिशत भवन पश्चिम द्वार में मिल जाते हैं। भवनों के प्रायः
पूर्व और उत्तर मुखी द्वार शुभ है। यही तोड़ इस दक्षिण दिशा का है। यदि आपका...
आग्नेय दिशा / मुखी ....मकान/भवन----
वास्तु शास्त्र प्राकृतिक तत्वों पर आधारित उच्चकोटि का विज्ञान हैं। वास्तुशास्त्र परोक्ष रूप से प्र्रकृति के नियमों का अनुसरण करता हैं जो मानव को पंच तत्वों में सन्तुलन बनाएँ रखने की प्रेरणा देता हैं। सृष्टि की रचना पंच तत्वों से हुई हैं जो कि वायु, अग्नि, जल, आकाश एवं पृथ्वी हैं। यह तत्व एक निश्चित...
आग्नेय दिशा / मुखी ....मकान/भवन----
वास्तु शास्त्र प्राकृतिक तत्वों पर आधारित उच्चकोटि का विज्ञान हैं। वास्तुशास्त्र परोक्ष रूप से प्र्रकृति के नियमों का अनुसरण करता हैं जो मानव को पंच तत्वों में सन्तुलन बनाएँ रखने की प्रेरणा देता हैं। सृष्टि की रचना पंच तत्वों से हुई हैं जो कि वायु, अग्नि, जल, आकाश एवं पृथ्वी हैं। यह तत्व एक निश्चित...
वायव्य दिशा / मुखी ....मकान/भवन----
वास्तु का अर्थ है वास करने का स्थान। महाराज भोज देव द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में ‘समरांगण सूत्रधार’ नामक ग्रंथ लिखा गया था जो वस्तु शास्त्र का प्रमाणिक एवं अमूल्य ग्रथं है। वैसे वास्तु शास्त्र कोई नया विषय या ज्ञान नहीं है। बहुत पुराने समय से यह भारत में प्रचलित था। जीवनचर्या की तमाम क्रियाएं किस...