प्रिय पाठकों, भारत में जब कभी भी राजनीति, शक्ति और महिला नेतृत्व की बात होती है तब जयललिता का नाम अादर से लिया जाता है। तमिलनाडु की ‘पुरातची तलाईवी ‘अर्थात क्रांतिकारी नेता जयललिता जयराम का राजकीय क्षेत्र में महत्पूर्ण योगदान है। पांच टर्म तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रही जयललिता अपनी पार्टी एआईएडीएमके में निस्संदेह लोकप्रिय हैं और अपार सफलता का अानंद ले रही हैं। राजनीति के अतिरिक्त सिने जगत में भी .4. से भी अधिक तमिल फिल्मों में अभिनय करके दुनिया को अपनी बहुमुखी प्रतिभा से अवगत कराया। खूब शक्तिशाली व प्रभावशाली होने पर भी तमिलनाडु की यह ‘मारग्रेट थैचर’ अत्यन्त सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करती हैं। उनके पिता की मृत्यु मात्र 0. वर्ष की आयु में हो गयी थी| कभी वकील बनने का सपना देखने वाली जयललिता अपनी कुंडली के ग्रहों के प्रभाव स्वरूप आज यहाँ तक पहुँच गयी किन्तु इस दौरान उन्हें अच्छे-बुरे अनुभवों से गुजरना पड़ा |
क्या आगामी समय में ये अपने जीवन की कसौटियों को पार कर सकेंगी?
जयललिता-तमिलनाडु की मुख्यमंत्री
जन्म तारीखः24 फ़रवरी 1948
जन्म समयः दोपहर 14 बजकर .0 मिनट
जन्म स्थलः मैसूर, कर्नाटक, भारत
Name: Jayalalithaa Jayaram
Date of Birth: Tuesday, February 24, 1948
Time of Birth: 14:30:00
Place of Birth: Mysore
Longitude: 76 E 37
Latitude: 12 N 18
Time Zone: 5.५
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जयललिता की कुंडली मिथुन लग्न की है। इसमें द्वितीय भाव में शनि, मंगल, चन्द्र तृतीय भाव में, केतु पंचम में, बृहस्पति सप्तम भाव में, बुध, सूर्य नवम भाव में, शुक्र दशम भाव में औरराहु एकादश भाव में स्थित हैं।
बृहस्पति इनकी कुंडली के लिए बाधक ग्रह है। इसके बावजूद, यही ग्रह पंचमहापुरुष योग भी बना रहा है। यह योग जातक को कोई महत्वपूर्ण कार्य का हिस्सेदार बना यश दिलवाता है। मिथुन लग्र सिंह राशि तथा सूर्य की कुंभ राशि में मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का जन्म होने के कारण ऐसे जातक को प्रेम में मनचाहा संतोष नहीं मिलता, जनता के आगे आने वाले किसी वृत्ति में योग और नाम कमाते हैं। उन्हें जनता का प्यार मिलता है। जन्मपत्री के दशम भाव में शुक्र उच्च का होने के कारण ऐसा जातक कला के क्षेत्र में प्रगति के झंडे गाड़ता है। हर काम बड़े पैमाने पर करने का झुकाव रहता है और अत्यंत यशस्वी व्यक्ति इनकी ओर आकर्षित होते हैं। छोटे और अधीर लोग इनकी पूजा करते हैं। विपरीत लिंगियों पर इनका काफी प्रभाव रहता है। फिर भी कत्र्तव्य की पुकार के लिए अपने सुखों का त्याग करने के लिए तैयार हो जाते हैं। स्वयं को आदर्शवादी स्वप्र देखने वाला नायक समझते हैं और सफल भी होते हैं।
Jayalalithaa Jayaram का जन्म 24 फ़रवरी 1948 को हुआ , अंक शास्त्र के अनुसार उनका Psychic No.(जन्मांक) 6 , Life Path No (भाग्यांक ) 3 और Name Number (नामांक) 7 है , जन्मांक 6 जो कि शुक्र (Venus) का अंक है , शुक्र मनोरंजन , फिल्म ,मीडिया और शोहरत कि दुनिया का ग्रह है , उसने अपने स्वभाव के अनुसार ही जयललिता (Jaylalitha) को मनोरंजन की दुनिया से लेकर राजनीती तक अपार लोकप्रियता दी। भाग्यांक के रूप में सात्विक ग्रह गुरु (jupiter) का अंक 3 बहुत ही अच्छा प्रभाव देने वाला माना जाता है। शुक्र और गुरु दोनों ही ग्रह जयललिता कि कुंडली में केंद्र में अर्थात 10th और 7th House में विराजित है , शुक्र का अपनी उच्च कि राशि मीन में हो कर केंद्र भाव में होना मालव्य और हंस महापुरुष योग बन रहे है, यंहा गुरु 10th House का lord है और कर्म भाव को बल प्रदान कर रहा है।
सावधानी–2017 तक जयललिता को गंभीर रोग के दौर से गुजरना पड़ेगा-—
इस समय जयललिता की उपलब्ध कुंडली के अनुसार ग्रहस्पति की महादशा में शनि की अंतर्दशा और राहु का प्रत्यंतर चल रहा हैं (30 दिसम्बर 2016 तक) | कुल मिलाकर मारकेश की स्थिति बन रही हैं |
03 दिसंबर से 10 दिसंबर 2016 तक सूक्ष्म दशा सूर्य की चल रही हैं जो जय ललिता के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकती हैं |
छठे स्थान (शत्रु एवं रोग) का मालिक मंगल तृतीय भाव में बैठने के कारण ऐसे जातक को गुप्त शत्रुओं के हमलों से भारी मान व धन हानि उठानी पड़ती है तथा निमोनिया, भवांस नली, फेफड़ों में कमजोरी, रक्त संचार में गड़बड़ी, दिल की धड़कन तेजी और कमजोरी का शिकार हो जाते हैं। वर्तमान में इनको मार्केश की महादशा चल रही है तथा 17 जनवरी, 2017 तक इनको गंभीर रोग के दौर से गुजरना पड़ेगा। अगर इस समय वह कुछ गोपनीय उपाय कर लें तो मौत के मुंह से निकल सकती हैं तथा यह गुप्त शत्रुओं के षड्यंत्र का शिकार हो रही हैं जो इनके लिए मानहानि, धनहानि तथा कष्टदायक सिद्ध होगा, यानी तमिलनाडु की मुख्यमंत्री पर शनि हावी है।
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जयललिता की कुंडली में ग्रहों की स्थिति और इनके प्रभाव पर एक नजरः-
जयललिता की कुंडली में राजनीति का कारक ग्रह सूर्य, वायु तत्व की राशि कुंभ में वक्री बुध के साथ है। ज्योतिष शास्त्र में इसे बुध-अादित्य योग कहते है। सूर्य-बुध व मंगल-चंद्र की एक दूसरे पर दृष्टि होने के कारण इनकी कुंडली को बल प्राप्त हो रहा है। इनकी राजकीय सूझ-बूझ व निर्णय शक्ति उत्तम रहेगी। कुंडली में बुध की स्थिति ने राजनीतिक बुद्धि प्रदान की और उच्च स्थान दिया। गुरु ने जयललिता को मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचाया, वर्तमान में भी लोकसभा में गुरु अच्छी सफलता दिलाएगा।
इसके अलावा, चंद्र व मंगल की युति के कारण चंद्र-मंगल महालक्ष्मी योग का भी निर्माण हो रहा है।
जयललिता की कुंडली में गुरू स्वगृही तथा शुक्र उच्च का है। इस कारण तमिलनाडु का एक बड़ा वर्ग इनको बेहद पसंद करता है। जनता के बीच असामान्य रूप से लोकप्रिय होने के कारण ये पांच वर्ष तक राज्य की मुख्यंत्री पद पर अासीन रही है।
चलिए देखते हैं कि आगामी महीनों में ग्रह इनके जीवन में क्या असर डालेंगेः-
महत्वपूर्ण ज्योतिषीय फलकथनः —
जयललिता की जन्म कुंडली में ग्रह योग इतने अच्छे हैं कि सहज उदारता से जब किसी संकट में फंस जाएंगी तो लोग इनकी सहायता के लिए भागे आएंगे। चंद्र-मंगल का महालक्ष्मी राजयोग तथा राहू का लाभ घर में बैठने के कारण ऐसे जातक पर काले धन तथा लक्ष्मी की अटूट कृपा बनी रहती है तथा देश में उसके नाम का डंका बजता है तथा सूर्य-बुद्ध का राजयोग होने के कारण ऐसा जातक विलक्षण प्रतिभा का एवं व्यक्तित्व का धनी होता है परन्तु भाग्य स्थान का मालिक शनि का द्वितीय भाव में होने के कारण ऐसे जातक का अंतिम समय कष्टदायक होता है तथा शत्रुओं के षड्यंत्र में फंस जाता है।
गुरू के प्रभाव के कारण वह जनता के बीच लोकप्रियता व राजकीय मोर्चे पर स्थिरता कायम रखने में सक्षम रहेंगी। परंतु राहु एवं केतु के क्रमशः सिंह राशि व कुंभ राशि में भ्रमण करने से इन्हें किसी भी विकट स्थिति का सामना करने के लिए कमर कसकर तैयार रहना होगा। विवादों, अप्रत्याशित समस्याओं, प्रशासनिक कार्य में अवरोधों तथा संचार-संपर्क में त्रुटियों के चलते स्थिति विकिट रूप धारण कर सकती है।
जन्म के मंगल व चंद्र पर शनि की दृष्टि के कारण ये पूरी तरह से संतुष्ट नहीं रहेंगी। कुछ मामलों में बेबाक प्रतिक्रियाएं दे सकती हैं। साथ-साथ इन्हें अपनी भावुकता और गुस्से पर नियंत्रण रखना होगा।
गुरु कभी भी अग्नि तत्व (Fiery) प्रधान राशि में बहुत अच्छा फल प्रदान नहीं करता और जिस भाव में हो उसके लिए तो कभी भी नहीं , बस ये ही बड़ा कारण रहा कि 7th House अर्थात विवाह के भाव में गुरु के होने से वैवाहिक क्षेत्र ख़राब रहा ।
इस कुंडली (Horoscope ) ने Jaylalitha को ऐसे ही महत्वपूर्ण नहीं बनाया , इस कुंडली में दो बड़े राजयोग है , बुध और सूर्य का 9th House में बुधादित्य योग का निर्माण करना और 3rd House में चन्द्र मंगल राज योग बनाना ,वो भी सिंह राशि में (Royal Sign) , ये चन्द्र मंगल योग अपने निर्णयो में स्थिरता और उन्हें स्थापित करने के लिए दृढ़ता और निर्भीकता प्रदान करता है। वंही सूर्य बुध का योग महत्वकांक्षी बना कर सरल भाग्य (smooth Fortune ) प्रदान करता है, हलाकि उनका बचपन बहुत कठिनाइयों से गुजरा , पिता का सुख नहीं मिला , उसका कारण हो सकता है कि 9th House Lord शनि (saturn) का शत्रु राशि कर्क (cancer) में होना और अपने भाव नवम (9th ) से षष्टम (6th ) में होना , साथ ही नवमांश कुंडली में भी शनि बारहवे भाव (12th House ) में उपस्थित है। इधर 4th House पर शनि कि दृष्टि भी ठीक नहीं मानी जाती , इस दृष्टि ने उन्हें बचपन का सुख नहीं लेने दिया।
उच्च के शुक्र (venus) की दशा ने जो कि 10th House (कर्म भाव) में है ने उन्हें बहुत जल्दी फिल्मी दुनिया में स्थापित कर दिया। यंही से उनके कदम राजनीती की तरफ बढे और 1983 (3 ) में वे 36 वे (9 ) वर्ष में उन्होंने राजनीती में पदार्पण किया , इस समय उन्हें चन्द्र कि दशा चल रही है , जिसके बारे में ऊपर लिखा कि उसका योग अटल निर्णय और निर्भीकता देता है। पूर्णिमा के दिन जन्म के कारन चन्द्र बहुत मजबूत है और उसकी दशा ने जीवन में बड़ा परिवर्तन दिया , इस दशा में मिली सफलता का बड़ा कारण चन्द्रमा पर गुरु कि दृष्टि होना भी है।
२४ (6 ) जन 1991 (3 ) के दिन इन्होने पहली बार मुख्यमंत्री पद कि शपथ ली थी , इसी तरह ये वर्ष भी 9 का है मंगल प्रधान , जो की इनके जन्मांक 6 का मित्र अंक है , इन्हे अंको का हमेशा पूरा सहयोग रहा , एकादश स्थान के राहु ने बहुत कुछ दिया , फिर प्रारम्भ हुई गुरु दशा जो की 10th house lord है और लग्न (1st House ) को देख रहा है , अर्थात गुरु दशा में भी पद और प्रतिष्ठा सुनिश्चित ही थी.
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क्यों रही वैवाहिक सुख की कमी—
ज्योतिषीय नियम है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल का ह्वास और शुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल की समृद्धि होती है। जैसे, मानसागरी में वर्णन है कि केन्द्र भावगत बृहस्पति हजारों दोषों का नाशक होता है। किन्तु, विडंबना यह है कि सप्तम भावगत बृहस्पति जैसा शुभ ग्रह जो स्त्रियों के सौभाग्य और विवाह का कारक है, वैवाहिक सुख के लिए दूषित सिद्ध हुआ हैं।
यद्यपि बृहस्पति बुद्धि, ज्ञान और अध्यात्म से परिपूर्ण एक अति शुभ और पवित्र ग्रह है, मगर कुंडली में सप्तम भावगत बृहस्पति वैवाहिक जीवन के सुखों का हंता है। सप्तम भावगत बृहस्पति की दृष्टि लग्न पर होने से जातक सुन्दर, स्वस्थ, विद्वान, स्वाभिमानी और कर्मठ तथा अनेक प्रगतिशील गुणों से युक्त होता है, किन्तु ‘स्थान हानि करे जीवा’ उक्ति के अनुसार यह यौन उदासीनता के रूप में सप्तम भाव से संबन्धित सुखों की हानि करता है। प्राय: शनि को विलंबकारी माना जाता है, मगर स्त्रियों की कुंडली के सप्तम भावगत बृहस्पति से विवाह में विलंब ही नहीं होता, बल्कि विवाह की संभावना ही न्यून होती है।
यदि विवाह हो जाये तो पति-पत्नी को मानसिक और दैहिक सुख का ऐसा अभाव होता है, जो उनके वैवाहिक जीवन में भूचाल आ जाता हैं। वैद्यनाथ ने जातक पारिजात, अध्याय 14, श्लोक 17 में लिखा है, ‘नीचे गुरौ मदनगे सति नष्ट दारौ’ अर्थात् सप्तम भावगत नीच राशिस्थ बृहस्पति से जातक की स्त्री मर जाती है। कर्क लग्न की कुंडलियों में सप्तम भाव गत बृहस्पति की नीच राशि मकर होती है। व्यवहारिक रूप से उपयरुक्त कथन केवल कर्क लग्न वालों के लिए ही नहीं है, बल्कि कुंडली के सप्तम भाव अधिष्ठित किसी भी राशि में बृहस्पति हो, उससे वैवाहिक सुख अल्प ही होते हैं।
एक नियम यह भी है कि किसी भाव के स्वामी की अपनी राशि से षष्ठ, अष्टम या द्वादश स्थान पर स्थिति से उस भाव के फलों का नाश होता है। सप्तम से षष्ठ स्थान पर द्वादश भाव- भोग का स्थान और सप्तम से अष्टम द्वितीय भाव- धन, विद्या और परिवार तथा उनसे प्राप्त सुखों का स्थान है। यद्यपि इन भावों में पाप ग्रह अवांछनीय हैं, किन्तु सप्तमेश के रूप में शुभ ग्रह भी चंद्रमा, बुध, बृहस्पति और शुक्र किसी भी राशि में हों, वैवाहिक सुख हेतु अवांछनीय हैं। चंद्रमा से न्यूनतम और शुक्र से अधिकतम वैवाहिक दुख होते हैं। दांपत्य जीवन कलह से दुखी पाया गया, जिन्हें तलाक के बाद द्वितीय विवाह से सुखी जीवन मिला।
पुरुषों की कुंडली में सप्तम भावगत बुध से नपुंसकता होती है। यदि इसके संग शनि और केतु की युति हो तो नपुंसकता का परिमाण बढ़ जाता है। ऐसे पुरुषों की स्त्रियां यौन सुखों से मानसिक एवं दैहिक रूप से अतृप्त रहती हैं, जिसके कारण उनका जीवन अलगाव या तलाक हेतु संवेदनशील होता है। सप्तम भावगत बुध के संग चंद्रमा, मंगल, शुक्र और राहु से अनैतिक यौन क्रियाओं की उत्पत्ति होती है, जो वैवाहिक सुख की नाशक है।
‘‘यदि सप्तमेश बुध पाप ग्रहों से युक्त हो, नीचवर्ग में हो, पाप ग्रहों से दृष्ट होकर पाप स्थान में स्थित हो तो मनुष्य की स्त्री पति और कुल की नाशक होती है।’’सप्तम भाव के अतिरिक्त द्वादश भाव भी वैवाहिक सुख का स्थान हैं। चंद्रमा और शुक्र दो भोगप्रद ग्रह पुरुषों के विवाह के कारक है। चंद्रमा सौन्दर्य, यौवन और कल्पना के माध्यम से स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण उत्पन्न करता है।
दो भोगप्रद तत्वों के मिलने से अतिरेक होता है। अत: सप्तम और द्वादश भावगत चंद्रमा अथवा शुक्र के स्त्री-पुरुषों के नेत्रों में विपरीत लिंग के प्रति कुछ ऐसा आकर्षण होता है, जो उनके अनैतिक यौन संबन्धों का कारक बनता है। यदि शुक्र -मिथुन या कन्या राशि में हो या इसके संग कोई अन्य भोगप्रद ग्रह जैसे चंद्रमा, मंगल, बुध और राहु हो, तो शुक्र प्रदान भोगवादी प्रवृति में वृद्धि अनैतिक यौन संबन्धों की उत्पत्ति करती है।
ऐसे व्यक्ति न्यायप्रिय, सिद्धांतप्रिय और दृढ़प्रतिज्ञ नहीं होते बल्कि चंचल, चरित्रहीन, अस्थिर बुद्धि, अविश्वासी, व्यवहारकुशल मगर शराब, शबाब, कबाब, और सौंदर्य प्रधान वस्तुओं पर अपव्यय करने वाले होते हैं। क्या ऐसे व्यक्तियों का गृहस्थ जीवन सुखी रह सकता है? कदापि नहीं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों की भांति शुभ ग्रहों की विशेष स्थिति से वैवाहिक सुख नष्ट होते हैं।
इस कुंडलि को देखते हैं—तमिलनाडू की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की कुंडली में सप्तम भावगत स्वगृही और पाप ग्रहों से मुक्त बृहस्पति से बलवान हंस योग, दशम भावगत उच्च राशिस्थ शुक्र से बलवान बलवान मालव्य योग और नवम भावगत सूर्य-बुध से बुध-आदित्य योग के रुप में अनेक राजयोग विद्यमान हैं, जो सामाजिक और राजनैतिक जीवन में धन, पद एवं प्रतिष्ठा देय हैं, मगर वैवाहिक सुख नहीं। इतनी सुदृढ़ कुंडली होने पर भी जयललिता जी अविवाहित हैं। इसके दोषी केवल सप्तम भावगत देव गुरु बृहस्पति है।