वास्तु से खोले समृद्धि के द्वार
प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन आनन्दमय, सुखी व समृद्ध बनाने में हमेशा लगा रहता हैं । कभी-कभी बहुत अधिक प्रयास करने पर भी वह सफल नहीं हो पाता हैं । ऐसे में वह ग्रह शांति, अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करता हैं । परन्तु उससे भी उसे आशाअनुरूप फल प्राप्त नहीं होने पर वह अपने भाग्य को कोसता हैं और कहता हैं मैरे भाग्य में कुछ ऐसा ही लिखा हुआ हैं ।
जैसा की सर्वविदित हैं कि भाग्य और वास्तु का गहरा सम्बन्ध हैं यदि आपका भाग्य (कुण्डली) उत्तम हैं और यदि वास्तु (निवास) में कुछ त्रुटियां हैं तो मनुष्य उतनी प्रगति नहीं कर पाता जितनी करनी चाहिए अर्थात मनुष्य की समृद्धि में भाग्य एवं वास्तु का बराबर-बराबर सम्बन्ध होता हैं । ग्रह शांति देवी-देवताओं की पूजा अर्चना और प्रयत्नों के अतिरिक्त भी मनुष्य को एक विषय पर और ध्यान देना चाहिए और वह हैं उसके घर एवं दूकान की वास्तु । वास्तु दोष निवारण करने से मुनष्य के जीवन की पूर्ण काया पलट हो सकती हैं वह सभी सुख व साधनों को प्राप्त कर सकता हैं । मकान का निर्माण इस प्रकार करें जो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप हो तो वह मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों को भवन के माध्यम से अपने कल्याण हेतु उपयोग कर सकता हैं ।
वास्तु निर्माण कार्य वर्तमान समय में अत्यावश्यक हो गया हैं क्योंकि निर्माण के पश्चात् यदि वास्तु दोष निकले और तक मकान में तोड़-फोड करनी पड़े तो वह अत्यंत कष्टकारक होता हैं । आर्थिक बोझ भी बढ जाता हैं। अतः उसका ध्यान रखकर वास्तु निर्माण के पूर्व वास्तुकार से सलाह लेकर यदि भवन या मकान निर्माण करें तो वास्तु दोष से बच सकते हैं ।
जन्मकुंडली के ग्रहों की प्रकृति व स्वभाव अनुसार सृजन प्रक्रिया बिना लाग लपेट के प्रभावी होती हैं और ऐसे में अगर कोई जातक जागरूकता को अपनाकर किसी विद्वान जातक से परामर्श कर अपना वास्तु ठीक कर लेता हैं तो वह समृद्धि प्राप्त करने लगता हैं। बने हुए भवनों एवं नवनिर्माण होने वाले भवनों में वास्तुदोष निवारण का प्रयास करना चाहिए बिना तोड़-फोड़ के प्रथम प्रयास में दिशा परिवर्तन कर अपनी दशा को बदलने का प्रयास करें । यदि इसमें सफलता नहीं मिले तो पिरामिड एवं फेंगशुई सामग्री का उपयोग कर गृह क्लेश से मुक्ति पाई जा सकती हैं । संक्षेप में कहाँ क्या होना चाहिए –
. -दक्षिण दिशा में रोशनदान खिड़की व शाट भी नहीं होना चाहिए। दक्षिण व पश्चिम में पड़ोस में भारी निर्माण से तरक्की अपने आप होगी व उत्तर पूर्व में सड़क पार्क होने पर भी तरक्की खुशहाली के योग अपने आप बनते रहेगें।
. – मुख्य द्वार उत्तर पूर्व में हो तो सबसे बढ़िया हैं। दक्षिण , दक्षिण – पश्चिम में हो तो अगर उसके सामने ऊँचे व भारी निर्माण होगा तो भी भारी तरक्की के आसार बनेगें , पर शर्त यह हैं कि उत्तर पूर्व में कम ऊँचे व हल्के निर्माण तरक्की देगें।
. – यदि सम्भव हो तो घर के बीच में चौक (बरामदा ) अवश्य छोड़े एवं उसे बिल्कूल साफ-स्वच्छ रखें । इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती हैं ।
4 – घर का प्रवेश द्वार यथासम्भव पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। प्रवेश द्वार के समक्ष सीढियॉ व रसोई नहीं होनी चाहिए । प्रवेश द्वार भवन के ठीक बीच में नहीं होना चाहिए। भवन में तीन दरवाजे एक सीध में न हो ।
5 -भवन में कांटेदार वृक्ष व पेड़ नहीं होने चाहिए ना ही दूध वाले पोधे – कनेर, ऑकड़ा केक्टस, बाैंसाई आदि । इनके स्थान पर सुगन्धित एवं खूबसूरत फूलों के पौधे लगाये ।
6 – घर में युद्ध के चित्र, बन्द घड़ी, टूटे हुए कॉच, तथा शयन कक्ष में पलंग के सामने दर्पण या ड्रेसिंग टेबल नहीं होनी चाहिए ।
7 -भवन में खिड़कियों की संख्या सम तथा सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए ।
8 -भवन के मुख्य द्वार में दोनों तरफ हरियाली वाले पौधे जैसे तुलसी और मनीप्लान्ट आदि रखने चाहिए । फूलों वाले पोधे घर के सामने वाले आंगन में ही लगाए । घर के पीछे लेगे होने से मानसिक कमजोरी को बढावा मिलता हैं ।
9 -मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह जैसे स्वास्तिक, ऊँ आदि अंकित करने के साथ साथ गणपति लक्ष्मी या कुबेर की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए ।
1. -मुख्य द्वार के सामने मन्दिर नहीं होना चाहिए । मुख्य द्वार की चौड़ाई हमेशा ऊँचाई की आधी होनी चाहिए ।
11 -मुख्य द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए । द्वार के सामने कूड़ा कर्कट और गंदगी एकत्र न होने दे यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतिक हैं ।
12 -रसोई घर आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए । गैस सिलेण्डर व अन्य अग्नि के स्त्रोतों तथा भोजन बनाते समय गृहणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ नहीं होनी चाहिए । रसोईघर हवादार एवं रोशनीयुक्त होना चाहिए । रेफ्रिजरेटर के ऊपर टोस्टर या माइक्रोवेव ओवन ना रखे । रसोई में चाकू स्टैण्ड पर खड़ा नहीं होना चाहिए । झूठें बर्तन रसोई में न रखे ।
13 -ड्राइंग रूम के लिए उत्तर दिशा उत्तम होती हैं । टी.वी., टेलिफोन व अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरण दक्षिण दिशा में रखें । दीवारों पर कम से कम कीलें प्रयुक्त करें । भवन में प्रयुक्त फर्नीचर पीपल, बड़ अथवा बेहडे के वृक्ष की लकड़ी का नहीं होना चाहिए ।
14 -किसी कौने में अधिक पेड़-पौधें ना लगाए इसका दुष्प्रभाव माता-पिता पर भी होता हैं वैसे भी वृक्ष मिट्टी को क्षति पहुॅचाते हैं ।
15 -घर का मुख्य द्वार छोटा हो तथा पीछे का दरवाजा बड़ा हो तो वहॉ के निवासी गंभीर आर्थिक संकट से गुजर सकते हैं ।
16 -घर का प्लास्टर उखड़ा हुआ नहीं होना चाहिए चाहे वह आंगन का हो, दीवारों का या रसोई अथवा शयनकक्ष का । दरवाजे एवं खिड़किया भी क्षतिग्रस्त नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए । अन्य दरवाजों एवं खिडकी पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचे ।
17 -मुख्य द्वार पर कभी दर्पण न लगायें । सूर्य के प्रकाश की और कभी भी कॉच ना रखे। इस कॉच का परिवर्तित प्रकाश आपका वैभव एवं ऐश्वर्य नष्ट कर सकता हैं ।
18 -घर एवं कमरे की छत सफेद होनी चाहिए, इससे वातावरण ऊर्जावान बना रहता हैं ।
19 -भवन में सीढियॉ पूर्व से पश्चिम या दक्षिण अथवा दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर रहती हैं । सीढिया कभी भी घूमावदार नहीं होनी चाहिए । सीढियों के नीचे पूजा घर और शौचालय अशुभ होता हैं । सीढियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रखें तथा वहॉ बैठकर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।
20 -पानी का टेंक पश्चिम में उपयुक्त रहता हैं । भूमिगत टंकी, हैण्डपम्प या बोरिंग ईशान (उत्तर पूर्व) दिशा में होने चाहिए । ओवर हेड टेंक के लिए उत्तर और वायण्य कोण (दिशा) के बीच का स्थान ठीक रहता हैं। टेंक का ऊपरी हिस्सा गोल होना चाहिए ।
21 -शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए । मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें । सीढियों के नीचे शौचालय का निर्माण कभी नहीं करवायें यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्ध करती हैं । शौचालय का द्वार हमेशा बंद रखे । उत्तर दिशा, ईशान, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण में शौचालय या टेंक निर्माण कदापि न करें ।
22 -भवन की दीवारों पर आई सीलन व दरारें आदि जल्दी ठीक करवा लेनी चाहिए क्योकि यह घर के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहती ।
23 -घर के सभी उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, घड़ियां, म्यूजिक सिस्टम, कम्प्यूटर आदि चलते रहने चाहिए। खराब होने पर इन्हें तुरन्त ठीक करवां लें क्योकि बन्द (खराब) उपकरण घर में होना अशुभ होता हैं ।
24 -भवन का ब्रह्म स्थान रिक्त होना चाहिए अर्थात भवन के मध्य कोई निर्माण कार्य नहीं करें ।
25 -बीम के नीचे न तो बैठंे और न ही शयन करें । शयन कक्ष, रसोई एवं भोजन कक्ष बीम रहित होने चाहिए ।
26 -वाहनों हेतु पार्किंग स्थल आग्नेय दिशा में उत्तम रहता हैं क्योंकि ये सभी उष्मीय ऊर्जा (ईधन) द्वारा चलते हैं ।
27 -भवन के दरवाजें व खिड़कियां न तो आवाज करें और न ही स्वतः खुले तथा बन्द हो ।
28 -व्यर्थ की सामग्री (कबाड़) को एकत्र न होने दें । घर में समान को अस्त व्यस्त न रखें । अनुपयोगी वस्तुओं को घर से निकालते रहें ।
29 -भवन के प्रत्येक कोने में प्रकाश व वायु का सुगमता से प्रवेश होना चाहिए । शुद्ध वायु आने व अशुद्ध वायु बाहर निकलने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए । ऐसा होने से छोटे मोटे वास्तु दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं ।
30 -दूकान में वायव्य दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए । अपना सेल काउंटर वायव्य दिशा में रखें, किन्तु तिजौरी एवं स्वयं के बैठने का स्थान नैऋत्य दिशा में रखें, मुख उत्तर या ईशान की ओर होना चाहिए ।
31 -भवन के वायव्य कोण में कुलर या ए.सी. को रखना चाहिए जबकि नैऋत्य कोण में भारी अलमारी को रखना चाहिए । वायव्य दिशा में स्थायी महत्व की वस्तुओं को कभी भी नहीं रखना चाहिए ।
इस प्रकार हम पाते हैं कि वास्तु के नियमों का पालन कर हम सुख एवं समृद्धि में वृद्धि कर खुशहाल रह सकते हैं । यदि दिशाओं का ध्यान रखकर भवन का निर्माण एवं भूखण्ड की व्यवस्था की जाए तो समाज में मान सम्मान बढ़ता हैं । इस प्रकार भारतीय वास्तु शास्त्र के सिद्धान्तों का पालन कर हम सुख एवं वैभव की प्राप्ति कर सकते हैं ।
जैसा की सर्वविदित हैं कि भाग्य और वास्तु का गहरा सम्बन्ध हैं यदि आपका भाग्य (कुण्डली) उत्तम हैं और यदि वास्तु (निवास) में कुछ त्रुटियां हैं तो मनुष्य उतनी प्रगति नहीं कर पाता जितनी करनी चाहिए अर्थात मनुष्य की समृद्धि में भाग्य एवं वास्तु का बराबर-बराबर सम्बन्ध होता हैं । ग्रह शांति देवी-देवताओं की पूजा अर्चना और प्रयत्नों के अतिरिक्त भी मनुष्य को एक विषय पर और ध्यान देना चाहिए और वह हैं उसके घर एवं दूकान की वास्तु । वास्तु दोष निवारण करने से मुनष्य के जीवन की पूर्ण काया पलट हो सकती हैं वह सभी सुख व साधनों को प्राप्त कर सकता हैं । मकान का निर्माण इस प्रकार करें जो प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप हो तो वह मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों को भवन के माध्यम से अपने कल्याण हेतु उपयोग कर सकता हैं ।
वास्तु निर्माण कार्य वर्तमान समय में अत्यावश्यक हो गया हैं क्योंकि निर्माण के पश्चात् यदि वास्तु दोष निकले और तक मकान में तोड़-फोड करनी पड़े तो वह अत्यंत कष्टकारक होता हैं । आर्थिक बोझ भी बढ जाता हैं। अतः उसका ध्यान रखकर वास्तु निर्माण के पूर्व वास्तुकार से सलाह लेकर यदि भवन या मकान निर्माण करें तो वास्तु दोष से बच सकते हैं ।
जन्मकुंडली के ग्रहों की प्रकृति व स्वभाव अनुसार सृजन प्रक्रिया बिना लाग लपेट के प्रभावी होती हैं और ऐसे में अगर कोई जातक जागरूकता को अपनाकर किसी विद्वान जातक से परामर्श कर अपना वास्तु ठीक कर लेता हैं तो वह समृद्धि प्राप्त करने लगता हैं। बने हुए भवनों एवं नवनिर्माण होने वाले भवनों में वास्तुदोष निवारण का प्रयास करना चाहिए बिना तोड़-फोड़ के प्रथम प्रयास में दिशा परिवर्तन कर अपनी दशा को बदलने का प्रयास करें । यदि इसमें सफलता नहीं मिले तो पिरामिड एवं फेंगशुई सामग्री का उपयोग कर गृह क्लेश से मुक्ति पाई जा सकती हैं । संक्षेप में कहाँ क्या होना चाहिए –
. -दक्षिण दिशा में रोशनदान खिड़की व शाट भी नहीं होना चाहिए। दक्षिण व पश्चिम में पड़ोस में भारी निर्माण से तरक्की अपने आप होगी व उत्तर पूर्व में सड़क पार्क होने पर भी तरक्की खुशहाली के योग अपने आप बनते रहेगें।
. – मुख्य द्वार उत्तर पूर्व में हो तो सबसे बढ़िया हैं। दक्षिण , दक्षिण – पश्चिम में हो तो अगर उसके सामने ऊँचे व भारी निर्माण होगा तो भी भारी तरक्की के आसार बनेगें , पर शर्त यह हैं कि उत्तर पूर्व में कम ऊँचे व हल्के निर्माण तरक्की देगें।
. – यदि सम्भव हो तो घर के बीच में चौक (बरामदा ) अवश्य छोड़े एवं उसे बिल्कूल साफ-स्वच्छ रखें । इससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती हैं ।
4 – घर का प्रवेश द्वार यथासम्भव पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। प्रवेश द्वार के समक्ष सीढियॉ व रसोई नहीं होनी चाहिए । प्रवेश द्वार भवन के ठीक बीच में नहीं होना चाहिए। भवन में तीन दरवाजे एक सीध में न हो ।
5 -भवन में कांटेदार वृक्ष व पेड़ नहीं होने चाहिए ना ही दूध वाले पोधे – कनेर, ऑकड़ा केक्टस, बाैंसाई आदि । इनके स्थान पर सुगन्धित एवं खूबसूरत फूलों के पौधे लगाये ।
6 – घर में युद्ध के चित्र, बन्द घड़ी, टूटे हुए कॉच, तथा शयन कक्ष में पलंग के सामने दर्पण या ड्रेसिंग टेबल नहीं होनी चाहिए ।
7 -भवन में खिड़कियों की संख्या सम तथा सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए ।
8 -भवन के मुख्य द्वार में दोनों तरफ हरियाली वाले पौधे जैसे तुलसी और मनीप्लान्ट आदि रखने चाहिए । फूलों वाले पोधे घर के सामने वाले आंगन में ही लगाए । घर के पीछे लेगे होने से मानसिक कमजोरी को बढावा मिलता हैं ।
9 -मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्ह जैसे स्वास्तिक, ऊँ आदि अंकित करने के साथ साथ गणपति लक्ष्मी या कुबेर की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए ।
1. -मुख्य द्वार के सामने मन्दिर नहीं होना चाहिए । मुख्य द्वार की चौड़ाई हमेशा ऊँचाई की आधी होनी चाहिए ।
11 -मुख्य द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए । द्वार के सामने कूड़ा कर्कट और गंदगी एकत्र न होने दे यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतिक हैं ।
12 -रसोई घर आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व दिशा में होना चाहिए । गैस सिलेण्डर व अन्य अग्नि के स्त्रोतों तथा भोजन बनाते समय गृहणी की पीठ रसोई के दरवाजे की तरफ नहीं होनी चाहिए । रसोईघर हवादार एवं रोशनीयुक्त होना चाहिए । रेफ्रिजरेटर के ऊपर टोस्टर या माइक्रोवेव ओवन ना रखे । रसोई में चाकू स्टैण्ड पर खड़ा नहीं होना चाहिए । झूठें बर्तन रसोई में न रखे ।
13 -ड्राइंग रूम के लिए उत्तर दिशा उत्तम होती हैं । टी.वी., टेलिफोन व अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरण दक्षिण दिशा में रखें । दीवारों पर कम से कम कीलें प्रयुक्त करें । भवन में प्रयुक्त फर्नीचर पीपल, बड़ अथवा बेहडे के वृक्ष की लकड़ी का नहीं होना चाहिए ।
14 -किसी कौने में अधिक पेड़-पौधें ना लगाए इसका दुष्प्रभाव माता-पिता पर भी होता हैं वैसे भी वृक्ष मिट्टी को क्षति पहुॅचाते हैं ।
15 -घर का मुख्य द्वार छोटा हो तथा पीछे का दरवाजा बड़ा हो तो वहॉ के निवासी गंभीर आर्थिक संकट से गुजर सकते हैं ।
16 -घर का प्लास्टर उखड़ा हुआ नहीं होना चाहिए चाहे वह आंगन का हो, दीवारों का या रसोई अथवा शयनकक्ष का । दरवाजे एवं खिड़किया भी क्षतिग्रस्त नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए । अन्य दरवाजों एवं खिडकी पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचे ।
17 -मुख्य द्वार पर कभी दर्पण न लगायें । सूर्य के प्रकाश की और कभी भी कॉच ना रखे। इस कॉच का परिवर्तित प्रकाश आपका वैभव एवं ऐश्वर्य नष्ट कर सकता हैं ।
18 -घर एवं कमरे की छत सफेद होनी चाहिए, इससे वातावरण ऊर्जावान बना रहता हैं ।
19 -भवन में सीढियॉ पूर्व से पश्चिम या दक्षिण अथवा दक्षिण पश्चिम दिशा में उत्तर रहती हैं । सीढिया कभी भी घूमावदार नहीं होनी चाहिए । सीढियों के नीचे पूजा घर और शौचालय अशुभ होता हैं । सीढियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रखें तथा वहॉ बैठकर कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।
20 -पानी का टेंक पश्चिम में उपयुक्त रहता हैं । भूमिगत टंकी, हैण्डपम्प या बोरिंग ईशान (उत्तर पूर्व) दिशा में होने चाहिए । ओवर हेड टेंक के लिए उत्तर और वायण्य कोण (दिशा) के बीच का स्थान ठीक रहता हैं। टेंक का ऊपरी हिस्सा गोल होना चाहिए ।
21 -शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए । मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें । सीढियों के नीचे शौचालय का निर्माण कभी नहीं करवायें यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्ध करती हैं । शौचालय का द्वार हमेशा बंद रखे । उत्तर दिशा, ईशान, पूर्व दिशा एवं आग्नेय कोण में शौचालय या टेंक निर्माण कदापि न करें ।
22 -भवन की दीवारों पर आई सीलन व दरारें आदि जल्दी ठीक करवा लेनी चाहिए क्योकि यह घर के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहती ।
23 -घर के सभी उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, घड़ियां, म्यूजिक सिस्टम, कम्प्यूटर आदि चलते रहने चाहिए। खराब होने पर इन्हें तुरन्त ठीक करवां लें क्योकि बन्द (खराब) उपकरण घर में होना अशुभ होता हैं ।
24 -भवन का ब्रह्म स्थान रिक्त होना चाहिए अर्थात भवन के मध्य कोई निर्माण कार्य नहीं करें ।
25 -बीम के नीचे न तो बैठंे और न ही शयन करें । शयन कक्ष, रसोई एवं भोजन कक्ष बीम रहित होने चाहिए ।
26 -वाहनों हेतु पार्किंग स्थल आग्नेय दिशा में उत्तम रहता हैं क्योंकि ये सभी उष्मीय ऊर्जा (ईधन) द्वारा चलते हैं ।
27 -भवन के दरवाजें व खिड़कियां न तो आवाज करें और न ही स्वतः खुले तथा बन्द हो ।
28 -व्यर्थ की सामग्री (कबाड़) को एकत्र न होने दें । घर में समान को अस्त व्यस्त न रखें । अनुपयोगी वस्तुओं को घर से निकालते रहें ।
29 -भवन के प्रत्येक कोने में प्रकाश व वायु का सुगमता से प्रवेश होना चाहिए । शुद्ध वायु आने व अशुद्ध वायु बाहर निकलने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए । ऐसा होने से छोटे मोटे वास्तु दोष स्वतः समाप्त हो जाते हैं ।
30 -दूकान में वायव्य दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए । अपना सेल काउंटर वायव्य दिशा में रखें, किन्तु तिजौरी एवं स्वयं के बैठने का स्थान नैऋत्य दिशा में रखें, मुख उत्तर या ईशान की ओर होना चाहिए ।
31 -भवन के वायव्य कोण में कुलर या ए.सी. को रखना चाहिए जबकि नैऋत्य कोण में भारी अलमारी को रखना चाहिए । वायव्य दिशा में स्थायी महत्व की वस्तुओं को कभी भी नहीं रखना चाहिए ।
इस प्रकार हम पाते हैं कि वास्तु के नियमों का पालन कर हम सुख एवं समृद्धि में वृद्धि कर खुशहाल रह सकते हैं । यदि दिशाओं का ध्यान रखकर भवन का निर्माण एवं भूखण्ड की व्यवस्था की जाए तो समाज में मान सम्मान बढ़ता हैं । इस प्रकार भारतीय वास्तु शास्त्र के सिद्धान्तों का पालन कर हम सुख एवं वैभव की प्राप्ति कर सकते हैं ।