****श्रीविष्णोरष्टा विंशतिनामस्तोत्रम******


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किं नु नाम सह्त्राणि जपते च पुन: पुन:!
यानी नामानि दिव्यानि चाचक्ष्व केशव!!१!!
हे–केशव—मनुष्य बारंबार एक हजार नामों का जप क्यों करता है? आपके नाम हों, उनका वर्णन कीजिये!!१!!
मत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम!
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम !!२!!
पद्मनाभं सहत्राक्षं वनमालिं हलायुधम!
गोवर्धनं हृषीकेशं वैकुन्ठ पुरुशोत्तामम!!३!!
विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायण हरिम !
दामोदरं श्रीधरं च वेदान्ग गरुड़ध्वजम !!४!!
अनन्तं कृष्णगोपालं जपतो नास्ति पातकम!
गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च!!५!!
कन्यादानसह्त्राणां फलं प्राप्नोति मानव:!
अमायां वा पौर्णमास्यास्यामेकादाश्यां तथैव च!!६!!
संध्याकाले स्मरेन्नित्यं प्रात:काले तथैव च!
मध्याह्ने च जपन्नित्यं सर्वपापै: प्रमुच्यते !!७!!
श्री कृष्ण भगवान बोले—
मत्स्य, कूर्म, वाराह, वामन, जनार्दन, गोविन्द, पुण्डरीकाक्ष, माधव, मधुसूदन, पद्मानाभ, सह्त्राक्ष, वनमाली, हलायुद्ध, गोवर्धन, हृषिकेश, वैकुण्ठ, पुरुषोत्तम, विश्वरूप, वासुदेव, राम, नारायण, हरि, दामोदर, श्रीधर, वेदान्ग, गरुड़ध्वज, अनन्त और कृष्णगोपाल– नामों का जप करने वाले मनुष्य के भीतर पाप नैन रहता! वह एक करोड़ गोदान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ और एक हजार कन्यादान का फल प्राप्त करता है! अमावस्या, पूर्णिमा तथा एकादशी तिथि को और प्रतिदिन सायं-प्रात: एवं मध्याह्न के समय इन नामों का जप करने वाला पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है!
*********कृष्ण वन्दे जगतगुरुम********
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