***भगवान को प्रसन्न करनेवाले आठ भाव-पुष्प***** —Pawan Talhan
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जो नाराधाम पुराणों में अर्थवाद [अतिरंजित कथन] की शंका करते हैं, उनके लिये हुए समस्त पुण्य नष्ट हो जाते हैं! मोहग्रस्त मानव दूसरे-दूसरे कार्यों के साधन में लगे रहते हैं, परन्तु पुराण श्रवण रूप पुण्य कर्म का अनुष्ठान नहीं करते हैं! जो मनुष्य बिना किसी परिश्रम के यहाँ अनंत पुण्य प्राप्त करना चाहता हो, उसको भक्तिभाव से निश्चय ही श्रवण करना चाहिये!!
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अहिंसा प्रथमं पुष्पं पुष्पमिन्द्रियनिग्रह:!
सर्वपुष्पं दया भहर पुष्पं शान्तिर्विशिष्यते!!
शाम: पुष्पं तप: पुष्पं ध्यानं पुष्पं च सप्तमम!
सत्यं चैवाष्टमं पुष्पमेतैस्तुष्यति केशव:!!
“अहिंसा” [किसी भी प्राणी का तन-मन-वचन से न बुरा चाहना, न करना, न समर्थन करना] प्रथम पुष्प!
“उन्द्रिय-निग्रह” [ इन्द्रियों को मनमाने विषयों में न जाने देना] दूसरा पुष्प!
“प्राणी मात्र पर दया” [ दूसरे के दुःख को अपना दुःख समझकर उसे दूर करने के लिये चेष्टा] तीसरा सर्वोपयोगी पुष्प है!
” शान्ति” [किसी भी अवस्था में चित्त का क्षुब्ध न होना] चतुर्थ पुष्प सबसे कर है!
“शम” [मन का वश में रहना] पांचवां पुष्प है!
“तप” [ स्वधर्म के पालनार्थ कष्ट सहना] छटा पुष्प है!
“ध्यान” [ इष्टदेव के स्वरुप में चित्त की तदाकार-वृत्ति] सातवाँ पुष्प है!
“सत्य” [ यह आठवां पुष्प है] इन पुष्पों से भगवान केशव संतुष्ट होते हैं!
****सत्यं सत्यं न संशय*****
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जो नाराधाम पुराणों में अर्थवाद [अतिरंजित कथन] की शंका करते हैं, उनके लिये हुए समस्त पुण्य नष्ट हो जाते हैं! मोहग्रस्त मानव दूसरे-दूसरे कार्यों के साधन में लगे रहते हैं, परन्तु पुराण श्रवण रूप पुण्य कर्म का अनुष्ठान नहीं करते हैं! जो मनुष्य बिना किसी परिश्रम के यहाँ अनंत पुण्य प्राप्त करना चाहता हो, उसको भक्तिभाव से निश्चय ही श्रवण करना चाहिये!!
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अहिंसा प्रथमं पुष्पं पुष्पमिन्द्रियनिग्रह:!
सर्वपुष्पं दया भहर पुष्पं शान्तिर्विशिष्यते!!
शाम: पुष्पं तप: पुष्पं ध्यानं पुष्पं च सप्तमम!
सत्यं चैवाष्टमं पुष्पमेतैस्तुष्यति केशव:!!
“अहिंसा” [किसी भी प्राणी का तन-मन-वचन से न बुरा चाहना, न करना, न समर्थन करना] प्रथम पुष्प!
“उन्द्रिय-निग्रह” [ इन्द्रियों को मनमाने विषयों में न जाने देना] दूसरा पुष्प!
“प्राणी मात्र पर दया” [ दूसरे के दुःख को अपना दुःख समझकर उसे दूर करने के लिये चेष्टा] तीसरा सर्वोपयोगी पुष्प है!
” शान्ति” [किसी भी अवस्था में चित्त का क्षुब्ध न होना] चतुर्थ पुष्प सबसे कर है!
“शम” [मन का वश में रहना] पांचवां पुष्प है!
“तप” [ स्वधर्म के पालनार्थ कष्ट सहना] छटा पुष्प है!
“ध्यान” [ इष्टदेव के स्वरुप में चित्त की तदाकार-वृत्ति] सातवाँ पुष्प है!
“सत्य” [ यह आठवां पुष्प है] इन पुष्पों से भगवान केशव संतुष्ट होते हैं!
****सत्यं सत्यं न संशय*****