*भगवान कृष्ण जी के द्वारा ईश शिव जी स्तुति*******
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श्रीकृष्ण उचाव——
नमोस्तु ते शाश्वत सर्वयोने
ब्रह्माधिपं त्वामृषयो वदन्ति !
तपश्च सत्त्वं सर्वें प्रवदन्ति संत:!!१!!
त्वं ब्रह्मा हरिरथ विश्व योनिरग्नि:
सहनर्ता दिनकरमण्डलाधिवास:!
प्राणस्त्वं हुतवहवासदिभेद–
स्त्वामेकं शरणमुपैमि देवामीषम!!२!!
संख्यास्त्वां विगुणमथाहरेकरूपं
योगास्त्वां सततमुपासते हृदिस्थम!
वेदास्तवामभिदधतीह रूद्रमग्निं
र्वामेकं शरणमुपैशम देवमीशम!!३!!
श्रीकृष्ण जी बोले—शाश्वत! सब के मूल कारण ! आपको नमस्कार है! ऋषिलोग आप को ब्रह्मा का भी अधिपति कहते हैं! संतजन तप, सत्त्व, रज, एवं तमोगुण और सब कुछ आपको ही बतलाते हैं! आप ब्रह्मा, विष्णु, विश्वयोनि, अग्नि, संहर्ता और सूर्यमण्डल में निवास करने वाले हैं! प्राण, हुतवह [अग्नि] तथा इन्द्रादि विविध देव आप ही हैं! मैं अद्वितीय देव ईश की शरण में आया हूँ! सांख्यशास्त्र वाले आपको एकरूप और गुणातीत कहते हैं! यिगिजन हृदय में रहने वाले आप की सतत उपासना करते हैं! वेद आपको रूद्र, अग्नि नाम से कहते हैं! मैं आप ईश देव की शरण में आया हूँ!
त्वत्पादे कुसुममथापि पत्रमेकं
दत्त्वासी भवति विमुक्तविश्वबन्ध:!
सर्वाघं प्रणुदति सिद्धयोगिजुष्टं
स्मृत्वा ते पदयुगलं भवत्प्रसादात !!४!!
यस्याशेषविभागहीनमममलं हृन्तरावस्थितं
तत्त्वं ज्योतिरनन्तमेकमचलं सत्यं परं सर्वगम!
स्थानं प्राहुरनादिमध्यनिधनं यस्मादिदं जायते
नित्यं त्वाहमुपैमि सत्यविभवं विश्वे विश्वेरं तं शिवम्!!५!!
मनुष्य आपके चरण में मात्र एक पुष्प अथवा एक बिल्बपत्र ही चढ़ाकर संसार-बंधन से विमुक्त हो जाता है! सिद्धों तथा योगियों द्वारा सेवित आप के चरणकमलों का स्मरण कर आपकी कृपा से मनुष्य सभी पापों को विनष्ट कर डालता है! तत्त्वज्ञ लोग जिन्हें सभी प्रका के विभाग से रहित, निर्मल, अंतर्हृदय में अवस्थित, ज्योति, अनन्त, अद्वितीय, अचल, सत्य, पर, सर्वव्यापी तथा आदि, मध्य और अन्त से रहित स्थानरूप कहते हैं, ऐसे आप सत्य विभव, सनातन विश्वेश्वर शिव की शरण में मैं आया हूँ!!
ॐ नमो नीलकंठाय त्रिनेत्राय च रंहसे !
महादेवाय ते नित्यमीशानाय नमो नाम:!!
नम: पिनाकिने तुभ्यं नमो मुण्डाय दण्डिने!
नमस्ते वज्रहस्ताय दिग्वस्त्राय कपर्दिने !!
नमो भैरवनादाय कालरूपाय दंष्ट्रिणे!
नागयज्ञोपवीताय नमस्ते वहिंरेतसे !!
नमोsस्तु ते गिरिशाय स्वाहाकाराय ते नम:!
नमो मुक्ताटटहासाय भीमाय च नमो नम:!!
नमस्ते कामनाशाय नम: काल प्रमाथिने !
नमो भैरववेषाय हराय च निश्नगीने !!
प्रणवरूप नीलकंठ, त्रिलोचन और शक्तिरूप आपको नमस्कार है! आप महादेव तथा नित्य ईशान को बार-बार नमस्कार है! पिनाक नामक द्शानुष धारण करने वाले आप को नमस्कार है, मुण्ड और दण्ड धारण करने वाले आपको नमस्कार है!!!!! हाथ में वज्र धारण करने वाले, दिशारूपी वस्त्र वाले कपर्दी [जटाधारी] आपको नमस्कार है! भयंकर नाद करने वाले तथा दाढ़ वाले काल स्वरुप आप को नमस्कार है! नागों की यज्ञोपवित के रूप में धारण करने वाले और अग्निस्वरुप वीर्य वाले आपको नमस्कार है! गिरीश! आपको नमस्कार है, स्वाहाकार! आपको नमस्कार है, उन्मुक्त अट्टहास करने वाले आप को नमस्कार है और भीम रूप आप को बार-बार नमस्कार है, कालका मंथन करने वाले आपको नमस्कार है, भयानक वेष धारण करने वाले आप को नमस्कार है और निषंग [तरकस] धारी हरको नमस्कार है!
—–शेष—–श्रीकृष्ण स्तुति——-[२२ –श्लोक शेष—–]
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श्रीकृष्ण उचाव——
नमोस्तु ते शाश्वत सर्वयोने
ब्रह्माधिपं त्वामृषयो वदन्ति !
तपश्च सत्त्वं सर्वें प्रवदन्ति संत:!!१!!
त्वं ब्रह्मा हरिरथ विश्व योनिरग्नि:
सहनर्ता दिनकरमण्डलाधिवास:!
प्राणस्त्वं हुतवहवासदिभेद–
स्त्वामेकं शरणमुपैमि देवामीषम!!२!!
संख्यास्त्वां विगुणमथाहरेकरूपं
योगास्त्वां सततमुपासते हृदिस्थम!
वेदास्तवामभिदधतीह रूद्रमग्निं
र्वामेकं शरणमुपैशम देवमीशम!!३!!
श्रीकृष्ण जी बोले—शाश्वत! सब के मूल कारण ! आपको नमस्कार है! ऋषिलोग आप को ब्रह्मा का भी अधिपति कहते हैं! संतजन तप, सत्त्व, रज, एवं तमोगुण और सब कुछ आपको ही बतलाते हैं! आप ब्रह्मा, विष्णु, विश्वयोनि, अग्नि, संहर्ता और सूर्यमण्डल में निवास करने वाले हैं! प्राण, हुतवह [अग्नि] तथा इन्द्रादि विविध देव आप ही हैं! मैं अद्वितीय देव ईश की शरण में आया हूँ! सांख्यशास्त्र वाले आपको एकरूप और गुणातीत कहते हैं! यिगिजन हृदय में रहने वाले आप की सतत उपासना करते हैं! वेद आपको रूद्र, अग्नि नाम से कहते हैं! मैं आप ईश देव की शरण में आया हूँ!
त्वत्पादे कुसुममथापि पत्रमेकं
दत्त्वासी भवति विमुक्तविश्वबन्ध:!
सर्वाघं प्रणुदति सिद्धयोगिजुष्टं
स्मृत्वा ते पदयुगलं भवत्प्रसादात !!४!!
यस्याशेषविभागहीनमममलं हृन्तरावस्थितं
तत्त्वं ज्योतिरनन्तमेकमचलं सत्यं परं सर्वगम!
स्थानं प्राहुरनादिमध्यनिधनं यस्मादिदं जायते
नित्यं त्वाहमुपैमि सत्यविभवं विश्वे विश्वेरं तं शिवम्!!५!!
मनुष्य आपके चरण में मात्र एक पुष्प अथवा एक बिल्बपत्र ही चढ़ाकर संसार-बंधन से विमुक्त हो जाता है! सिद्धों तथा योगियों द्वारा सेवित आप के चरणकमलों का स्मरण कर आपकी कृपा से मनुष्य सभी पापों को विनष्ट कर डालता है! तत्त्वज्ञ लोग जिन्हें सभी प्रका के विभाग से रहित, निर्मल, अंतर्हृदय में अवस्थित, ज्योति, अनन्त, अद्वितीय, अचल, सत्य, पर, सर्वव्यापी तथा आदि, मध्य और अन्त से रहित स्थानरूप कहते हैं, ऐसे आप सत्य विभव, सनातन विश्वेश्वर शिव की शरण में मैं आया हूँ!!
ॐ नमो नीलकंठाय त्रिनेत्राय च रंहसे !
महादेवाय ते नित्यमीशानाय नमो नाम:!!
नम: पिनाकिने तुभ्यं नमो मुण्डाय दण्डिने!
नमस्ते वज्रहस्ताय दिग्वस्त्राय कपर्दिने !!
नमो भैरवनादाय कालरूपाय दंष्ट्रिणे!
नागयज्ञोपवीताय नमस्ते वहिंरेतसे !!
नमोsस्तु ते गिरिशाय स्वाहाकाराय ते नम:!
नमो मुक्ताटटहासाय भीमाय च नमो नम:!!
नमस्ते कामनाशाय नम: काल प्रमाथिने !
नमो भैरववेषाय हराय च निश्नगीने !!
प्रणवरूप नीलकंठ, त्रिलोचन और शक्तिरूप आपको नमस्कार है! आप महादेव तथा नित्य ईशान को बार-बार नमस्कार है! पिनाक नामक द्शानुष धारण करने वाले आप को नमस्कार है, मुण्ड और दण्ड धारण करने वाले आपको नमस्कार है!!!!! हाथ में वज्र धारण करने वाले, दिशारूपी वस्त्र वाले कपर्दी [जटाधारी] आपको नमस्कार है! भयंकर नाद करने वाले तथा दाढ़ वाले काल स्वरुप आप को नमस्कार है! नागों की यज्ञोपवित के रूप में धारण करने वाले और अग्निस्वरुप वीर्य वाले आपको नमस्कार है! गिरीश! आपको नमस्कार है, स्वाहाकार! आपको नमस्कार है, उन्मुक्त अट्टहास करने वाले आप को नमस्कार है और भीम रूप आप को बार-बार नमस्कार है, कालका मंथन करने वाले आपको नमस्कार है, भयानक वेष धारण करने वाले आप को नमस्कार है और निषंग [तरकस] धारी हरको नमस्कार है!
—–शेष—–श्रीकृष्ण स्तुति——-[२२ –श्लोक शेष—–]