धनहीनता के ज्योतिष योग-पं.चैतन्य—

ज्योतिष में फलित करते समय योगों का विशेष योगदान होता है। योग एक से अधिक ग्रह जब युति, दृष्टि, स्थिति वश संबंध बनाते हैं तो योग बनता है। योग कारक ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा व प्रत्यन्तर दशादि में योगों का फल मिलता है। योग को समझे बिना फलित व्यर्थ है। योग में योगकारक ग्रह का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योगकाकर ग्रह के बलाबल से योग का फल प्रभावित होता है। अब यहां ज्योतिष योगों कि चर्चा करेंगे जो इस प्रकार हैं। धनहीनता के ज्योतिष योग धनहानि किसी को भी अच्छी नहीं लगती है। आज उन ज्योतिष योगों की चर्चा करेंगे जो धनहानि या धनहीनता कराते हैं। कुछ योग इस प्रकार हैं- १. धनेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो या भाग्येश बारहवें भाव में हो तो जातक करोड़ों कमाकर भी निर्धन रहता है। ऐसे जातक को धन के लिए अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके पास धन एकत्रा नहीं होता है अर्थात् दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धन रुकता नहीं है। २. जातक की कुंडली में धनेश अस्त या नीच राशि में स्थित हो तथा द्वितीय व आठवें भाव में पापग्रह हो तो जातक सदैव कर्जदार रहता है। ३. जातक की कुंडली में धन भाव में पापग्रह स्थित हों। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित हो एवं लग्नेश नवमेश एवं लाभेश(एकादश का स्वामी) से युत हो या दृष्ट हो तो जातक के ऊपर कोई न कोई कर्ज अवश्य रहता है। ४. किसी की कुंडली में लाभेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो जातक निर्धन होता है। ऐसा जातक कर्जदार, संकीर्ण मन वाला एवं कंजूस होता है। यदि लग्नेश भी निर्बल हो तो जातक अत्यन्त निर्धन होता है। ५. षष्ठेश एवं लाभेश का संबंध दूसरे भाव से हो तो जातक सदैव ऋणी रहता है। उसका पहला ऋण उतरता नहीं कि दूसरा चढ़ जाता है। यह योग वृष, वृश्चिक, मीन लग्न में पूर्णतः सत्य सिद्ध होते देखा गया है। ६. धन भाव में पाप ग्रह हों तथा धनेश भी पापग्रह हो तो ऐसा जातक दूसरों से ऋण लेता है। अब चाहे वह किसी करोड़पति के घर ही क्यों न जन्मा हो। ७. किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है। यदि चन्द्र निर्बल है तो जातक स्वयं धन का नाश करता है। व्यर्थ में देशाटन करता है और पुत्रा एवं स्त्री संबंधी पीड़ा जातक को होती है। ८. यदि कुंडली में गुरु से चन्द्र छठे, आठवें या बारहवें हो एवं चन्द्र केन्द्र में न हो तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है और उसके पास धन का अभाव होता है। ऐसे जातक के अपने ही उसे धोखा देते हैं। संकट के समय उसकी सहायता नहीं करते हैं। अनेक उतार-चढ़ाव जातक के जीवन में आते हैं। ९. यदि लाभेश नीच, अस्त य पापग्रह से पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा धनेश व लग्नेश निर्बल हो तो ऐसा जातक महा दरिद्र होता है। उसके पास सदैव धन की कमी रहती है। सिंह एवं कुम्भ लग्न में यह योग घटित होते देखा गया है। १०. यदि किसी जातक की कुण्डली में दशमेश, तृतीयेश एवं भाग्येश निर्बल, नीच या अस्त हो तो ऐसा जातक भिक्षुक, दूसरों से धन पाने की याचना करने वाला होता है। ११. किसी कुण्डली में मेष में चन्द्र, कुम्भ में शनि, मकर में शुक्र एवं धनु में सूर्य हो तो ऐसे जातक के पिता एवं दादा द्वारा अर्जित धन की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा जातक निज भुजबल से ही धन अर्जित करता है और उन्नति करता है। १२. यदि कुण्डली का लग्नेश निर्बल हो, धनेश सूर्य से युत होकर द्वादश भाव में हो तथा द्वादश भाव में नीच या पापग्रह से दृष्ट सूर्य हो तो ऐसा जातक राज्य से दण्ड स्वरूप धन का नाश करता है। ऐसा जातक मुकदमें धन हारता है। यदि सरकारी नौकरी में है तो अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित या नौकरी से निकाले जाने का भय रहता है। वृश्चिक लग्न में यह योग अत्यन्त सत्य सिद्ध होता देखा गया है। १३. यदि धनेश एवं लाभेश छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो एवं एकादश में मंगल एवं दूसरे राहु हो तो ऐसा जातक राजदण्ड के कारण धनहानि उठाता है। वह मुकदमे, कोर्ट व कचहरी में मुकदमा हारता है। अधिकारी उससे नाराज रहते हैं। उसे इनकम टैक्स से छापा लगने का भय भी रहता है। मूलतः धनेश, लाभेश, दशमेश, लग्नेश एवं भाग्येश निर्बल हो तो धनहीनता का योग बनता है। उक्त धनहीनता के योग योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में फल देते हैं। फल कहते समय दशा एवं गोचर का विचार भी कर लेना चाहिए।

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