****गोसावित्री-स्तोत्र***** पवन तलहन—–
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————–गो माता की जय हो!—————
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!!ॐ !! हे आर्यजनहो गोरक्षण करो या पेट का रक्षण करो,
क्योकि ——[ गाँव प्रतिष्ठा भूतानाम ]
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हमारे शास्त्रों [वेद-पद्मपुराण-भविष्यपुराण-ब्रह्माण्डपुराण-स्कन्दपुराण-महाभारत] में गो-माता के प्रति बहुत कुछ लिखा है! ब्रह्माण्ड पुराणानुसार गोसावित्री-स्तोत्र इस प्रकार है!
अखिल विश्व के पालक देवाधिदेव नारायण! आपके चरणों में मेरा प्रणाम है! पूर्वकाल में भगवान व्यास देवने जिस गोसावित्री-स्तोत्र को कहा था, उसीको सुनाता हूँ! यह गौओं का स्तोत्र समस्त पापों का नाश करनेवाला, सम्पूर्ण अभिलषित पदार्थों को देनेवाला, दिव्य एवं समस्त कल्याणों का करनेवाला है! गौके अग्रभाग में साक्षात जनार्दन विष्णुस्वरूप भगवान वेदव्यास रमण करते हैं! उसके सींगों की जड़ में देवी पार्वती और सींगों के मध्य भाग में भगवान सदाशिव विराजमान रहते हैं! उस्केमस्तक में ब्रह्मा, कंधे में वृहस्पति,ललाट में वृषभारुढ़ भगवान शंकर, कानों में अश्विनीकुमार तथा नेत्रों में सूर्य और चन्द्रमा रहते हैं! दांतों में समस्त ऋषिगण, जीभ में देवी सरस्वती तथा वक्ष:स्थल में एवं पिंडलियों में सारे देवता निवास करते हैं! उसके खुरों के मध्यभाग में गन्धर्व, अग्रभाग में चन्द्रमा एवं भगवान अनंत तथा पिछले भाग में मुख्य-मुख्य अप्सराओं का स्थान है! उसके पीछे के भाग [नितंब ] में पितृगणों का तथा भृकुटी मूल में तीनों गुणों का निवास बताया गया है! उसके रोमकूपों ऋषिगण तथाचामदी में प्रजापति निवास करते हैं! उसके थूहे में नक्षत्रोंसहित द्युलोक, पीठ में सूर्यतनय यमराज, अपानदेश में सम्पूर्ण तीर्थ एवं गोमूत्र में साक्षात गंगा जी विराजती हैं! उसकी दृष्टि, पीठ एवं गोबर में स्वयं लक्ष्मी जी निवास कराती हैं! नथुनों अश्विनीकुमारों का एवं होठों में भगवती चंडिका का वास है! गौओं के जो स्तन हैं, वे जलसे पूर्ण चारों समुद्र हैं; उनके रंभाने में देवी सावित्री तथा हुंकार में प्रजापति का वास है! इतना ही नहीं, समस्त गौएँ साक्षात विष्णुरूप हैं; उनके सम्पूर्ण अंगों में भगवान केशव विराजमान रहते हैं! गौमाता की जय हो!
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************गौस्तु मात्रा न विद्यते*************
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एक बार देवी-देवता, ऋषि-मुनि एवं ऋतुओं में वाद-विवाद होने लगा! आपस में सभी एक-दूसरे से अपने को बड़ा एवं महान मानते थे! आपस में निर्णय न होने पर वेद भगवान के न्यायालय में सभी उपस्थित हुए! अपनी-अपनी प्रतिष्ठा के अभिलाषी देवादि भगवान वेद के न्याय की प्रतीक्षा करने लगे! भगवान वेदके आदेश पर सभी ने अपना-अपना मत प्रकट किया! किसीने कहा कि मैंने अपने सत्कर्तव्य से समाज को ऊपर उठाया! किसीने कहा कि मैंने अपने कर्म से लोगों का उत्थान किया आदि!
इसका निर्णय देते हुए अथर्वेवेद भगवान ने कहा कि संसार में केवल एक ही सबसे महान एवं श्रेष्ठ है! उसीको चाहे गाय कहो या ऋषि या एक धाम या आशीर्वाद! अथवा संसार में एक ऋतू या एक ही पूजनीय देव मानो जो समाज का सर्वप्रकारेण उत्थानकारी है! वैदिक मन्त्र में प्रश्न इस प्रकार है—–
को नु गौ: क एकऋषि:किमु धाम का आशीष:!
यक्षं पृथिव्याममेकवृदेकर्तु:कतमो नु स:!! [अथर्ववेद ८/९/२५]
इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है—-सम्पूर्ण धरातल एक ही विश्व रूप गौ है! सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त एक ही परमात्मा, परमेश्वर श्रीराम सब के ज्ञाता और द्रष्टा ऋषि हैं! क्योंकि—-
रमन्ते योगिनोsनन्ते नित्यानन्दे चिदात्मानी !
इति रामपदेनासौ परं ब्रह्माभिधीयते !! श्रीरामपूर्वापिन्युनिषद मं. ६]
सब विश्व मिलकर एक ही धाम है! एक ही स्थान है! सबके लिये एक ही आशीर्वाद है, जो सब को कल्याण के लिये दिया जाता है! एक ही ऋतू वह है, जो मानवों में शुभ कर्म करने के लिये अखंड उत्साह-रूप से रहती है! यथा—-
एको गौरेक एकऋषिरेकं धामैकधाशिष:!
यक्षं पृथीव्याममेकवृदेकर्तुर्नाती रिच्यते!! [अथर्ववेद ८/९/२६]
स्वतंत्र-रूप से भी वेदव्यास भगवान ने पञ्चपरोपकारियों में श्रेष्ठ गाय को ही माना है! अर्थात गाय जीवों के हर पहलुओं में लाभकारी है!
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!!ॐ !! हे आर्यजनहो गोरक्षण करो या पेट का रक्षण करो,
क्योकि ——[ गाँव प्रतिष्ठा भूतानाम ]
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हमारे शास्त्रों [वेद-पद्मपुराण-भविष्यपुराण-ब्रह्माण्डपुराण-स्कन्दपुराण-महाभारत] में गो-माता के प्रति बहुत कुछ लिखा है! ब्रह्माण्ड पुराणानुसार गोसावित्री-स्तोत्र इस प्रकार है!
अखिल विश्व के पालक देवाधिदेव नारायण! आपके चरणों में मेरा प्रणाम है! पूर्वकाल में भगवान व्यास देवने जिस गोसावित्री-स्तोत्र को कहा था, उसीको सुनाता हूँ! यह गौओं का स्तोत्र समस्त पापों का नाश करनेवाला, सम्पूर्ण अभिलषित पदार्थों को देनेवाला, दिव्य एवं समस्त कल्याणों का करनेवाला है! गौके अग्रभाग में साक्षात जनार्दन विष्णुस्वरूप भगवान वेदव्यास रमण करते हैं! उसके सींगों की जड़ में देवी पार्वती और सींगों के मध्य भाग में भगवान सदाशिव विराजमान रहते हैं! उस्केमस्तक में ब्रह्मा, कंधे में वृहस्पति,ललाट में वृषभारुढ़ भगवान शंकर, कानों में अश्विनीकुमार तथा नेत्रों में सूर्य और चन्द्रमा रहते हैं! दांतों में समस्त ऋषिगण, जीभ में देवी सरस्वती तथा वक्ष:स्थल में एवं पिंडलियों में सारे देवता निवास करते हैं! उसके खुरों के मध्यभाग में गन्धर्व, अग्रभाग में चन्द्रमा एवं भगवान अनंत तथा पिछले भाग में मुख्य-मुख्य अप्सराओं का स्थान है! उसके पीछे के भाग [नितंब ] में पितृगणों का तथा भृकुटी मूल में तीनों गुणों का निवास बताया गया है! उसके रोमकूपों ऋषिगण तथाचामदी में प्रजापति निवास करते हैं! उसके थूहे में नक्षत्रोंसहित द्युलोक, पीठ में सूर्यतनय यमराज, अपानदेश में सम्पूर्ण तीर्थ एवं गोमूत्र में साक्षात गंगा जी विराजती हैं! उसकी दृष्टि, पीठ एवं गोबर में स्वयं लक्ष्मी जी निवास कराती हैं! नथुनों अश्विनीकुमारों का एवं होठों में भगवती चंडिका का वास है! गौओं के जो स्तन हैं, वे जलसे पूर्ण चारों समुद्र हैं; उनके रंभाने में देवी सावित्री तथा हुंकार में प्रजापति का वास है! इतना ही नहीं, समस्त गौएँ साक्षात विष्णुरूप हैं; उनके सम्पूर्ण अंगों में भगवान केशव विराजमान रहते हैं! गौमाता की जय हो!
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एक बार देवी-देवता, ऋषि-मुनि एवं ऋतुओं में वाद-विवाद होने लगा! आपस में सभी एक-दूसरे से अपने को बड़ा एवं महान मानते थे! आपस में निर्णय न होने पर वेद भगवान के न्यायालय में सभी उपस्थित हुए! अपनी-अपनी प्रतिष्ठा के अभिलाषी देवादि भगवान वेद के न्याय की प्रतीक्षा करने लगे! भगवान वेदके आदेश पर सभी ने अपना-अपना मत प्रकट किया! किसीने कहा कि मैंने अपने सत्कर्तव्य से समाज को ऊपर उठाया! किसीने कहा कि मैंने अपने कर्म से लोगों का उत्थान किया आदि!
इसका निर्णय देते हुए अथर्वेवेद भगवान ने कहा कि संसार में केवल एक ही सबसे महान एवं श्रेष्ठ है! उसीको चाहे गाय कहो या ऋषि या एक धाम या आशीर्वाद! अथवा संसार में एक ऋतू या एक ही पूजनीय देव मानो जो समाज का सर्वप्रकारेण उत्थानकारी है! वैदिक मन्त्र में प्रश्न इस प्रकार है—–
को नु गौ: क एकऋषि:किमु धाम का आशीष:!
यक्षं पृथिव्याममेकवृदेकर्तु:कतमो नु स:!! [अथर्ववेद ८/९/२५]
इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है—-सम्पूर्ण धरातल एक ही विश्व रूप गौ है! सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त एक ही परमात्मा, परमेश्वर श्रीराम सब के ज्ञाता और द्रष्टा ऋषि हैं! क्योंकि—-
रमन्ते योगिनोsनन्ते नित्यानन्दे चिदात्मानी !
इति रामपदेनासौ परं ब्रह्माभिधीयते !! श्रीरामपूर्वापिन्युनिषद मं. ६]
सब विश्व मिलकर एक ही धाम है! एक ही स्थान है! सबके लिये एक ही आशीर्वाद है, जो सब को कल्याण के लिये दिया जाता है! एक ही ऋतू वह है, जो मानवों में शुभ कर्म करने के लिये अखंड उत्साह-रूप से रहती है! यथा—-
एको गौरेक एकऋषिरेकं धामैकधाशिष:!
यक्षं पृथीव्याममेकवृदेकर्तुर्नाती रिच्यते!! [अथर्ववेद ८/९/२६]
स्वतंत्र-रूप से भी वेदव्यास भगवान ने पञ्चपरोपकारियों में श्रेष्ठ गाय को ही माना है! अर्थात गाय जीवों के हर पहलुओं में लाभकारी है!