“श्री गणेश”:-(शिव शक्ति के प्यारे)
माता-पिता के लिए संतान ही सबकुछ होता है।सर्वोपरि और परम माता-पिता शिव-शक्ति है इन्हें हम प्रकृति और पूरूष कहते है ये निराकार एवं निर्गुण है परन्तु बिना साकार के हम आंनदित नहीं हो सकते।कारण हम स्वयं साकार है,पहले जो साकार की लीला देखेगा वही तो निराकार के रहस्य से परिचित होगा।इस प्रकृति और पूरूष का जो परम प्रेम है वह श्री गणेश है और षडानन श्री कार्तिकेय जी है।ये दोनो पुत्र सृष्टि मे बड़े प्यारे है।शिव तो शक्ति के हृदय में रहते है और शिव के हृदय में रूद्र रूप हनुमान भक्ति से पूर्णरुपेण चैतन्य विराज रहे है।
वही श्री हनुमान के हृदय में श्री सीताराम जी विराज रहे है जो साक्षात विष्णु है।ये आकाश तत्व में महाशुन्य है जो चराचर जगत में व्याप्त है यही आदि गणेश है।शक्ति के गोद मे दुलार,प्यार कौन पायेगा,वही जो सनातन माता-पिता का पुत्र होगा।शिव-शक्ति का प्रेम अमिट है तथा संसार के सभी जीव इन्हीं की संतान है लेकिन जब शक्ति ने अपने उबटन से एक शिशु की मूर्ति बनाकर प्राण प्रतिष्ठा का मंत्र फूंका तो एक सुन्दर बालक के रूप में श्री गणेश प्रकट हुए।गणेश क्या है मंगलदाता,भाग्य विधाता।कारण एक बार गुरू गोरखनाथ जी ने दत्तात्रेय जी से पूछा कि कौन मुक्त है,कौन बन्धन दुःख में है,कौन नष्ट होता है और कौन अजर अमर है?यदि यह प्रकट करने योग्य हो तो आप इस पर प्रकाश डालिये।दत्तात्रेय जी ने कहा कि ब्रह्म मुक्त है,और प्रकृति दुःख सहती है।यही अपार गुप्त ज्ञान है।प्रकृति अपने दुःख के निवारण के लिए ही श्री गणेश की उत्पति से अपने सारे संतानो की पीड़ा हरती है तभी तो ब्रह्म शिव भी पुत्र प्रेम में गणपति को गोद मे बिठाये भक्तों का कल्याण करते है।इसलिये मातृॠण से मुक्त होने के लिये सभी जीव को शक्ति उपासना करनी चाहिये और वहाँ प्रथम पूज्य श्री गणेश को प्रसन्न किये बिना शक्ति की कृपा प्राप्त नहीं होती।गणेश जी के आशीर्वाद के फलस्वरुप ही माता पिता जीव पर सबसे ज्यादा करूणा बरसाते हैं।बुद्धि के दाता श्री गणेश का हमारे शरीर में आधार चक्र के पास निवास का यहीं कारण हैं कि शक्ति के साथ ये सदैव विराजमान है,शिव तो आज्ञा चक्र से सहस्त्रसार मे बैठे है वहाँ तक पहुँचना बहुत कठिन है और नीचे शक्ति अलसायी सोयी रहती है।जब श्री गणेश की कृपा साधक पर होती है तो वे माँ को जगाकर ऊपर भागते है,तो शक्ति पुत्र के पिछे भागती है।अब तो साधक का कल्याण होना निश्चित ही है कारण गणेश हँसते खिलखिलाते शिव के गोद में जाकर बैठ जाते है,जिससे माँ भी अपने पुत्र के मोह और प्रेम वश शिव के पास पहुँच वामभाग में विराज जाती हैं।तब जीव समाधि में जाकर उस परम तत्व माता पिता का दर्शन कर लेता हैं,ऐसे कृपालु हैं हमारे गणेश।जीवन में बहुत पीड़ा हैं जीव को पर गणेश हर उस पीड़ा से निकाल बाहर करते है पल में।कितने स्वरूप में है गणेश जी विराजमान और उनकी अनेकानेक लीलाएँ है तभी तो गणेश प्रथम पूज्य है।कितना भी साधना उपासना कर लिजिये लेकिन श्री गणेश जी के कृपा के बिना आगे बढ पाना सम्भव ही नहीं।जिस त्रिपुर सुन्दरी को एक बार देखने के लिए साधक पुरा जीवन साधना में समर्पित कर देता है उस माँ के गोद में गणेश हँसते खिलखिलाते माँ को मोह में बाँधे रहते हैं।आदि शंकराचार्य के समय की एक घटना है।एक सिद्ध माता का मंदिर बन्द था कारण वह प्राचीन तांत्रिक पीठ था तथा वहाँ शक्ति कुपित हो गई थी।उस समय कितने साधक मंदिर के अन्दर गये लेकिन बाहर कभी नहीं निकल पाये।तभी एकबार वहाँ शंकराचार्य जी पहुँच गये तथा एक गणेश मूर्ति को प्राणप्रतिष्ठा कर गणेश स्तोत्र का पाठ करते हुये अन्दर पहुँच गये,अब तो जैसे ही माँ शक्ति श्री गणेश को देखी प्रसन्न हो गई और हमेशा के लिये वह मंदिर खुल गया,ऐसे है हमारे श्री गणेश जी।पति पत्नि में चाहे मतभेद रहता हो,सारे रिश्ते कही न कही तनाव पैदा कर देते हो परन्तु संतान सभी को प्यारा है कारण संतान में जीव को गणेश,कार्तिक दिखाइ देते है।सारा व्रत,उपवास,पूजन लोग अपने संतान को सुखी रखने के लिये ही करते है। जीवन में सारा पूर्व अर्जित पुण्य प्रताप संतान के दुःख मिटाने में ही लग जाता है,ऐसा होता है माता पिता का प्रेम।माता पिता के उस प्रेम की लाज श्रीगणेश शिव शक्ति के पास रखते है और सारी अशुभता को दूर कर मंगल प्रदान करते हैं।गणेश की उपासना मात्र से सृष्टि के सभी देवी देवता कृपा करते हैं।एक बार एक भक्त स्त्री अर्धपागल हो गई,कारण किसी देवी मंदिर में कुछ गलती के कारण ऐसा हो गया था।मैंने गणेश मंत्र के साथ गणेश यंत्र दे दिया,कुछ ही दिनों में स्त्री पुर्ण ठीक हो गई तथा माता ने स्वप्न में दर्शन देकर आशिर्वाद भी दिया।अगर गणेश नहीं होते तो इस सृष्टि का कार्य सुचारू रूप से नहीं चल पाता,इसलिये माता ने सभी जीव पर विशेष कृपा कर श्रीगणेश की उत्पति कर उन्हें गजानन बनाकर सृष्टि में प्रथम पूज्य बना दिया।गणेश शीघ्र प्रसन्न होकर,भक्त के सारे अमंगल को हर कर मंगल प्रदान करते है।अनेकानेक लीलाएँ है गजानन की, ये ग्रह दोष,या कोई बाधा तत्क्षण दूर कर भक्त की मनोकामना पूर्ण कर देते हैं।”आज मै यहाँ श्रीगणेश की स्तुति पाठ दे रहा हूँ।एक मोदक या बेसन के प्रसाद के साथ ११ दूर्वा और सिन्दूर अर्पण कर गणेश जी का एक बार भी पाठ कर लिया जाय तो विघ्नों का शमन होता है और जीवन के हर कार्य में सफलता मिलता रहता है निरंतर।”
-:श्रीगणेश स्तुति:-
चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेम् पाशांकुशौ मोदकपात्र दन्तौ।करैर्दधानं सरसीरूहस्थं,गणाधिनाथं शशिचूडमीडे॥
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारूभक्षणम्।उमासुतं शोकविनाशकारकं,नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्॥
अलिमण्डल मण्डित् गण्ड थलं तिलकीकृत कोमलचन्द्रकलम्।कर घात विदारित वैरिबलं,प्रणमामि गणाधिपतिं जटिलम्॥
खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरम्।प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्ध मधुपव्यालोल गण्डस्थलम्।दन्ताघात विदारितारि रूधिरैःसिंदूरशोभाकरं,वन्दे शैलसुता सुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम्॥
नमो नमःसुरवर पूजितांघ्रये,नमो नमःनिरूपम मंगलात्मने।नमो नमःविपुल पदैक सिद्धयै,नमो नमः करिकलभाननाय ते॥
शुक्लाम्बरं धरं देवं,शशिवर्ण चतुर्भुजम्,प्रसन्न वदनं ध्यायेत,सर्वविघ्नोपशान्तये॥गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः,मातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभः।निर्विघ्न कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।सर्व विघ्न विनाशाय सर्व कल्याण हेतवे,पार्वती प्रियपुत्राय गणेशाय नमो नमः॥
प्रातःस्मरामि गणनाथमनाथ बन्धु,सिंदूरपूर्ण परिशोभित गण्ड युग्मम्,उद्दण्डविघ्नपरिखण्डन चण्ड दण्डमाखण्डलादि सुरनायक वृन्द वन्द्यम्॥
प्रातर्नमामि चतुरानन वन्द्यमानं,इच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं,पुत्रं विलास चतुरै शिवयोःशिवाय॥
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्त शोकं,दावानलं गणविभुं वरकुञ्जरास्यम्।अज्ञान कानन विनाशन हव्यवाहमुत्साहवर्द्धनमहं सुतमीश्वरस्य॥
-:द्वादश गणेश स्तुति:-
प्रणम्य शिरसा देवं,गौरीपुत्र विनायकम्।भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥प्रथमं वक्रतुण्ड च एकदन्तं द्वितीयकम।तृतीय कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्ण तथाष्टकम्॥नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकं।एकादशं गणपतिं,द्वादशं तु गजाननम्॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥
रात्री के बारह बज रहे थे,माँ का जप हो रहा था।विरह वेदना से प्राण व्याकुल हो गये थे,तभी ध्यान में गणेश आ गये।वे मुस्कुरा रहे थे तभी मैंने ध्यान से उन्हें अलग कर खुद को माँ के चरणों पर केंद्रित करना चाहा पर लाख चाहने पर भी गणेश टस से मस नहीं हुये।”आखिर चाहते क्या हो गणेश” तभी गुरू जी ध्यान में आकर बोले…..।गणेश का जप कर मना लो माँ को,माँ गणेश जी के पिछे खड़ी है।अब मैं गणपति गणपति कह रोने लगा तभी श्रीगणेश ने अपना सूंड़ मेरे माथे पर रख दिया।आगे जो हुआ वह मै यहाँ बता नहीं सकता।हिन्दू धर्म में बिना गणेश जी की कृपा प्राप्त किये कुछ भी संभव नहीं है।
कार्तिक जी शिव के त्रिनेत्र के तेज से प्रकट हुये है।ये दक्षिण भारत के ईष्ट देवता है,वे अपने पिता शिव के प्रचार के साथ शिव तत्व की प्राप्ति में जीव को तल्लीन रखते है।ये शिव शक्ति के प्रिय पुत्र है।