देवी बगलामुखी –पंडित दयानन्द शास्त्री 




BAGLAMUKHI –

देवी बगलामुखी : स्तंभन – सम्मोहन की मातृ-शक्ति–Baglamukhi with a mugadar killing the demon



Bagala or Bagalamukhi is the eighth Mahavidya in the famous series of the .. Mahavidyas.She is identified with the second night of courage and is the power or Shakti of cruelty.

She is described as the Devi with three eyes, wearing yellow clothes and gems, moon as her diadem, wearing champaka blossoms, with one hand holding the tongue of an enemy and with the left hand spiking him, thus should you meditate on the paralyser of the three worlds.

Bagalamukhi means “The Crane-Headed One”. This bird is thought of as the essence of deceit. She rules magic for the suppression of an enemy’s gossip. These enemies also have an inner meaning, and the peg she puts through the tongue may be construed as a peg or paralysis of our own prattling talk. She rules deceit which is at the heart of most speech. She can in this sense be considered as a terrible or Bhairavi form of Matrika Devi, the mother of all speech. According to Todala Tantra, her male consort is Maharudra.

Seated on the right of Bagala is the Maharudra, with one face, who dissolves the universe.

The Bagalamukhi Mantra as per Mantra Mahodadhi:

“Om Hleem Sarva Dusthaanaam Vaacham Mukham Paadam stambhaya jihvyamkilaya buddhim vinaashaya Hleem Om Swaha”

The tantrik worship of these most powerful Vidyas must be practiced only under the guidence of a siddha Guru.




माता बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं. इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं. ये स्तम्भन की देवी हैं. सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती. शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है. किसी छोटे कार्य के लिए १०००० तथा असाध्य से लगाने वाले कार्य के लिए एक लाख मंत्र का जाप करना चाहिए. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए.
३६ अक्षर का बगलामुखी महामंत्र इस प्रकार है- ॐ ल्ह्रिम बगलामुखी सर्वदुष्टानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धिं विनाशय ल्ह्रिमॐ स्वाहा. जप हल्दी की माला पर करना चाहिए और पूजा में पुष्प, नैवेद्य आदि भी पीले होने चाहिए.साधक पीले वस्त्र पहन कर पीले आसन पर बैठ कर मंत्र जाप करे.
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देवी बगलामुखी : स्तंभन – सम्मोहन की मातृ-शक्ति—-
भारतीय ऋषियों की मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति आदि के रहस्य का पूर्ण ज्ञान आगम-विद्या के माध्यम से ही सम्भव है। सम्पूर्ण विश्व-विद्या होने के कारण इसे महाविद्या की संज्ञा प्राप्त है। महाविद्याएं संख्या में दस हैं और इनका ‘मुंडमाला तन्त्र’ तथा ‘चामुंडा तन्त्र’ में विस्तृत उल्लेख है। आठवीं महाविद्या बगलामुखी एकवक्त्र महारुद्र की महाशक्ति है। यह शक्ति माया-मोह भ्रम पर प्राणी की विजय की प्रतीक है। बगलामुखी को अग्नि पुराण में सिद्ध-विद्या कहा गया है :
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा॥
बगला सिद्ध विद्याच मातंगी कमलाऽऽत्मिका।
एतादश महाविद्या: सिद्ध विद्या: प्रकीर्तिता:॥
देवी के बगलामुखी नाम से यह धारणा प्रचलित है कि मां का मुख बगुला पक्षी के समान है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं। वैदिक शब्द ‘बग्ला’ है, जिसका अपभ्रंश बगला बन गया है और इसी नाम से देवी की लोकप्रियता है। मां का दूसरा नाम पीतांबरा भी है- पीले हैं वस्त्र जिसके। समूचे विश्व में देवी की तांत्रिक सिद्ध-पीठ दतिया में है। झांसी (उत्तर प्रदेश) के समीप मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा जनपद है – दतिया। ‘जन-जन के गले का हार’ दतिया की आज समूचे विश्व में पहचान स्तंभन-सम्मोहन की मातृशक्ति मां पीतांबरा की शक्ति-पीठ के कारण है।
दतिया की पीतांबरा-पीठ जिस स्थान पर स्थित है, वहां पहले श्मशान भूमि थी। जनश्रुति के अनुसार पीठ के संस्थापक स्वामी जी ने महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य के अमृतजीवी पुत्र अश्वत्थामा के कहने पर इस क्षेत्र को अपनी लीला-भूमि के रूप में चुना। स्वामी जी का क्या नाम था — इसके संबंध में किसी को कोई जानकारी नहीं। भक्तजनों का कहना है कि सन् 19.9 में धौलपुर (राजस्थान) से उनका यहां आगमन हुआ था। उन्होंने काशी में संन्यास ग्रहण किया था। दतिया में उस समय घने जंगल के मध्य एकमात्र चबूतरे पर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में वन-खंडेश्वर महादेव का मंदिर था। जनश्रुति के अनुसार इस मंदिर की स्थापना अश्वत्थामा द्वारा हुई थी। स्वामी जी ने यहां निर्जन स्थान में मां पीतांबरा की आराधना की, मां ने जिस कुटिया में ध्यान लीन स्वामी जी को दर्शन दिए, वहीं ज्येष्ठ कृष्ण गुरुवार पंचमी सन् 19.4-35 में मां के मंदिर की स्थापना हुई। यहां पर श्रीगणेश, श्री बटुक भैरव, श्री काल भैरव, श्री परशुराम, श्री हनुमान, षड़ाम्राया शिव ‘तत्पुरुष’, अघोर, ईशान, वामदेव, नीलकंठ तथा सद्यो जाता मां प्राण-प्रतिष्ठित हैं। स्वामी जी ने यहां ‘धूमावती’ की भी स्थापना की। देवी का सम्पूर्ण विश्व में यही एकमात्र मंदिर है। भक्तजनों का दावा है कि स्वामी जी के जीवनकाल में इस पीठ में मां पीतांबरा की आरती के बाद ‘धूमावती’ प्रत्यक्ष रूप में भक्तों के साथ पंक्ति में खड़ी होकर पीतांबरा का प्रसाद ग्रहण करती थी।
तांत्रिक साधना के लिए मध्यप्रदेश में उज्जैन और दतिया के बाद तीसरा प्रमुख स्थान है – नलखेड़ा (शाजापुर जिला)। कस्बे के बाहर लक्ष्मी नदी के किनारे उत्तर-पश्चिम में बगलामुखी का प्राचीन मंदिर है। पूर्व दिशा में श्री बडलावदा हनुमान मंदिर, मध्य में पंचमुखी हनुमान मंदिर और बाहर श्री गणेश जी का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि जिस स्थान में मां बगलामुखी विराजती हैं, वह नगर प्राकृतिक आपदाओं से मुक्त रहता है। नलखेड़ा मंदिर विषयक मान्यता यह है कि यहां मां बगलामुखी की प्रतिमा महाभारतकालीन है। जनश्रुति के अनुसार विजय की कामना से यहां युधिष्ठिर ने देवी की आराधना की थी। द्वापर कालीन बगलामुखी माता के तीन सिद्ध पीठ ही स्वीकार किए जाते हैं — नलखेड़ा, नेपाल तथा बिहार।

त्वरित फलदायी साधना में बगलामुखी का मंत्र 36 अक्षरों का है : –

ऊं ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभ्य।
जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ऊ स्वाहा॥

भगवती को पीत वस्त्र प्रिय हैं और 36 की संख्या। इसी कारण 3600, 36,000-इसी क्रम में मंत्र जाप के अनुष्ठान विशेष फलदायक माने जाते हैं। यह आराधना वीरवार रात्रि (मकर राशि में सूर्य के होने पर चतुर्दशी, मंगलवार) को विशेष सिद्धिदायक मानी गई है।

धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र गीता की उद्गम-स्थली के रूप में विश्व विख्यात है। इस क्षेत्र को ‘ब्रह्मावर्त’ की भी संज्ञा प्राप्त है। इसका विस्तार पांच योजन कहा गया है और इसी विस्तार के अन्तर्गत है पृथूदक (पिहोवा)। तीर्थ के नामकरण का आधार महाराजा पृथु द्वारा अपने पिता की यहां अन्त्येष्टि कार्य को माना जाता है। पिहोवा नगर के उत्तर में प्राचीन एवं पावन तीर्थ प्राची है, जिसका उल्लेख ‘वामन पुराण’ में हुआ है। पिहोवा में अनेक प्राचीन मंदिर हैं – श्री पृथ्वीश्वर महादेव मंदिर, पशुपतिनाथ महादेव, कृष्ण-युधिष्ठिर मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर इत्यादि। प्रत्येक साधक भक्त की निजी पूजा-अर्चना विधि हो सकती है, परन्तु लक्ष्य एक ही है — परमतत्व की प्राप्ति। इस क्षेत्र के जाने-माने समाज सेवी तथा धार्मिक विद्वान महंत वंशीपुरी द्वारा कालीपीठ परिसर में अनेक मंदिरों की स्थापना की गई है । समीप ही धनीपुरा गांव में महंत वंशीपुरी जी तथा महंत भीमपुरी जी के संयुक्त प्रयास से भगवती पीतांबरा के भव्य धाम की स्थापना हुई है। इसी परिसर में 15 से 18 फरवरी, 2011 तक भगवती पीतांबरा का त्रि-दिवसीय यज्ञ-अनुष्ठान जन-कल्याण तथा राष्ट्र समुन्नित हेतु किया जा रहा है, जिसमें सहस्त्रों साधक देश के कोने-कोने से शामिल होकर विधि-विधानपूर्वक देवी की पूजा-अर्चना करेंगे।
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शत्रुओं का नाश करे बगुलामुखी यंत्र

आज लोग अपनी विफलता से दुखी नहीं, बल्कि पड़ोसी की सफलता से दुखी हैं। ऐसे में उन लोगों को सफलता देने के लिए माताओं में माता बगलामुखी (वाल्गामुखी) मानव कल्याण के लिये कलियुग में प्रत्यक्ष फल प्रदान करती रही हैं। आज इन्हीं माता, जो दुष्टों का संहार करती हैं। अशुभ समय का निवारण कर नई चेतना का संचार करती हैं। ऐसी माता के बारे में मैं अपनी अल्प बुद्धि से आपकी प्रसन्नता के लिए इनकी सेवा आराधना पर कुछ कहने का साहस कर रहा हूं। मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि मैं माता वाल्गामुखी (बगलामुखी) की जो बातें आपसे कह रहा हूं अगर आप उसका तनिक भी अनुसरण करते हैं तो माता आप पर कृपा जरूर करेंगी, लेकिन पाठक भाइयों ध्यान रहे। इनकी साधना अथवा प्रार्थना में आपकी श्रद्धा और विश्वास असीम हो तभी मां की शुभ दृष्टि आप पर पड़ेगी। इनकी आराधना करके आप जीवन में जो चाहें जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। सामान्यत: आजकल इनकी सर्वाधिक आराधना राजनेता लोग चुनाव जीतने और अपने शत्रुओं को परास्त करने में अनुष्ठान स्वरूप करवाते हैं। इनकी आराधना करने वाला शत्रु से कभी परास्त नहीं हो सकता, वरन उसे मनमाना कष्टï पहुंच सकता है। वर्ष 2004 के चुनाव में तो कई राजनेताओं जिनका नाम लेना उचित नहीं  है ने माता बगलामुखी की आराधना करके (पंडितों द्वारा) चुनाव भी जीते और अच्छे मंत्रालय भी प्राप्त किये। माता की यही आराधना युद्ध, वाद-विवाद मुकदमें में सफलता, शत्रुओं का नाश, मारण, मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, देवस्तम्भन, आकर्षण कलह, शत्रुस्तभन, रोगनाश, कार्यसिद्धि, वशीकरण व्यापार में बाधा निवारण, दुकान बाधना, कोख बाधना, शत्रु वाणी रोधक आदि कार्यों की बाधा दूर करने और बाधा पैदा करने दोनों में की जाती है। साधक अपनी इच्छानुसार माता को प्रसन्न करके इनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कि माता श्रद्धा और विश्वास से आराधना (साधना) करने पर अवश्य प्रसन्न होंगी, लेकिन ध्यान रहे इनकी आराधना (अनुष्ठान) करते समय ब्रह्मचर्य परमावश्यक है।
गृहस्थ भाइयों के लिये मैं माता की आराधना का सरल उपाय बता रहा हूं। आप इसे करके शीघ्र फल प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी देवी-देवता का अनुष्ठान (साधना) आरम्भ करने बैठे तो सर्वप्रथम शुभ मुर्हूत, शुभ दिन, शुभ स्थान, स्वच्छ वस्त्र, नये ताम्र पूजा पात्र, बिना किसी छल कपट के शांत चित्त, भोले भाव से यथाशक्ति यथा सामग्री, ब्रह्मचर्य के पालन की प्रतिज्ञा कर यह साधना आरम्भ कर सकते हैं। याद रहे अगर आप अति निर्धन हो तो केवल पीले पुष्प, पीले वस्त्र, हल्दी की 108 दाने की माला  और दीप जलाकर माता की प्रतिमा, यंत्र आदि रखकर शुद्ध आसन कम्बल, कुशा या मृगचर्य जो भी हो उस पर बैठकर माता की आराधना कर आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। माता बगलामुखी की आराधना के लिये जब सामग्री आदि इकट्ठा करके शुद्ध आसन पर बैठें (उत्तर मुख) तो दो बातों का ध्यान रखें, पहला तो यह कि सिद्धासन या पद्मासन हो, जप करते समय पैर के तलुओं और गुह्य स्थानों को न छुएं शरीर गला और सिर सम स्थित होना चाहिए। इसके पश्चात गंगाजल से छिड़काव कर (स्वयं पर) यह मंत्र पढें- अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपिवा, य: स्मरेत, पुण्डरी काक्षं स बाह्य अभ्यांतर: शुचि:। उसके बाद इस मंत्र से दाहिने हाथ से आचमन करें-ऊं केशवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, ऊं माधवाय नम:। अन्त में ऊं हृषीकेशाय नम: कहके हाथ धो लेना चाहिये। इसके बाद गायत्री मंत्र पढ़ते हुए तीन बार प्राणायाम करें।  चोटी बांधे और तिलक लगायें। अब पूजा दीप प्रज्जवलित करें। फिर विघ्नविनाशक गणपति का ध्यान करें। याद रहे ध्यान अथवा मंत्र सम्बंधित देवी-देवता का टेलीफोन नंबर है।
जैसे ही आप मंत्र का उच्चारण करेंगे, उस देवी-देवता के पास आपकी पुकार तुरंत पहुंच जायेगी। इसलिये मंत्र शुद्ध पढऩा चाहिये। मंत्र का शुद्ध उच्चारण न होने पर कोई फल नहीं मिलेगा, बल्कि नुकसान ही होगा। इसीलिए उच्चारण पर विशेष ध्यान रखें। अब आप गणेश जी के बाद सभी देवी-देवादि कुल, वास्तु, नवग्रह और ईष्ट देवी-देवतादि को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हुए कष्ट का निवारण कर शत्रुओं का संहार करने वाली वाल्गा (बंगलामुखी) का विनियोग मंत्र दाहिने हाथ में जल लेकर पढ़ें-ऊं अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषि: त्रिष्टुप्छन्द: बगलामुखी देवता, ह्लींबीजम् स्वाहा शक्ति: ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: (जल नीचे गिरा दें)। अब माता का ध्यान करें, याद रहे सारी पूजा में हल्दी और पीला पुष्प अनिवार्य रूप से होना चाहिए। ध्यान-
मध्ये सुधाब्धि मणि मण्डप रत्न वेद्यां,
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम,
पीताम्बरा भरण माल्य विभूषिताड्गीं
देवीं भजामि धृत मुद्गर वैरिजिह्वाम
जिह्वाग्र मादाय करेण देवीं,
वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम,
गदाभिघातेन च दक्षिणेन,
पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि॥

अपने हाथ में पीले पुष्प लेकर उपरोक्त ध्यान का शुद्ध उच्चारण करते हुए माता का ध्यान करें। उसके बाद यह मंत्र जाप करें। साधक ध्यान दें, अगर पूजा मैं विस्तार से कहूंगा तो आप भ्रमित हो सकते हैं। परंतु श्रद्धा-विश्वास से इतना ही करेंगे जितना कहा जा रहा है तो भी उतना ही लाभ मिलेगा। जैसे विष्णुसहस्र नाम का पाठ करने से जो फल मिलता है वही ऊं नमोऽभगवते वासुदेवाय से, यहां मैं इसलिये इसका जिक्र कर रहा हूं ताकि आपके मन में कोई संशय न रहे। राम कहना भी उतना ही फल देगा। अत: थोड़े मंत्रो के दिये जाने से कोई संशय न करें। अब जिसका आपको इंतजार था उन माता बगलामुखी के मंत्र को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। मंत्र है : ऊं ह्लीं बगलामुखि! सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊंस्वाहा। इस मंत्र का जाप पीली हल्दी की गांठ की माता से करें। आप चाहें तो इसी मंत्र से माता की षोड्शोपचार विधि से पूजा भी कर सकते हैं। आपको कम से कम पांच बातें पूजा में अवश्य ध्यान रखनी है-1. ब्रह्मचर्य, 2. शुद्घ और स्वच्छ आसन 3. गणेश नमस्कार और घी का दीपक 4. ध्यान और शुद्ध मंत्र का उच्चारण 5. पीले वस्त्र पहनना और पीली हल्दी की माला से जाप करना। आप कहेंगे मैं बार-बार यही सावधानी बता रहा हूं। तो मैं कहूंगा इससे गलती करोगे तो माता शायद ही क्षमा करें। इसलिये जो आपके वश में है, उसमें आप फेल न हों। बाकी का काम मां पर छोड़ दें। इतनी सी बातें आपकी कामयाबी के लिये काफी हैं।
अधिकारियों को वश में करने अथवा शत्रुओं द्वारा अपने पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए यह अनुष्ठान पर्याप्त है। तिल और चावल में दूध मिलाकर माता का हवन करने से श्री प्राप्ति होती हैै और दरिद्रता दूर भागती है। गूगल और तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। अगर वशीकरण करना हो तो उत्तर की ओर मुख करके और धन प्राप्ति के लिए पश्चिम की ओर मुख करके हवन करना चाहिए। अनुभूत प्रयोग कुछ इस प्रकार है। मधु, शहद, चीनी, दूर्वा, गुरुच और धान के लावा से हवन करने से समस्त रोग शान्त हो जाते हैं। गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिलाकर चिता पर हवन करने से शत्रु तबाह हो जाते हैं। भगवान शिव के मन्दिर में बैठकर सवा लाख जाप फिर दशांश हवन करें तो सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं। मधु घी, शक्कर और नमक से हवन आकर्षण (वशीकरण) के लिए प्रयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त भी बड़े प्रयोग हैं किन्तु इसका कहीं गलत प्रयोग न कर दिया जाए जो समाज के लिए हितकारी न हो इसलिये देना उचित नहीं है। अत: आप स्वयं के कल्याण के लिए माता की आराधना कर लाभ उठा सकते हैं। यहां संक्षिप्त विधि इसलिये दी गई है कि सामान्य प्राणी भी माता की आराधना कर लाभान्वित हो सकें। यह गृहस्थ भाइयों के लिए भी पर्याप्त है।      
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माँ बगलामुखी का प्राचीन मंदिर-

तांत्रिकों की देवी बगलामुखी—


ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदंस्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा।” 

प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में। 
भारत में माँ बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है

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मध्यप्रदेश में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहाँ देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। 

इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधि‍ष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहाँ की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है।

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यहाँ के पंडितजी कैलाश नारायण शर्मा ने बताया कि यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। यहाँ के पुजारी अपनी दसवीं पीढ़ी से पूजा-पाठ करते आए हैं। 1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं।

यहाँ के अन्य पंडित गोपालजी पंडा, मनोहरलाल पंडा आदि ने बताया कि यह मंदिर श्मशान क्षेत्र में स्थित है। बगलामुखी माता मूलत: तंत्र की देवी हैं, इसलिए यहाँ पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है। यह मंदिर इसलिए महत्व रखता है, क्योंकि यहाँ की मूर्ति स्वयंभू और जाग्रत है तथा इस मंदिर की स्थापना स्वयं महाराज युधिष्ठिर ने की थी।

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इस मंदिर में बिल्वपत्र, चंपा, सफेद आँकड़ा, आँवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित हैं। इसके आसपास सुंदर और हरा-भरा बगीचा देखते ही बनता है। नवरात्रि में यहाँ पर भक्तों का हुजूम लगा रहता है। मंदिर श्मशान क्षेत्र में होने के कारण वर्षभर यहाँ पर कम ही लोग आते हैं।

कैसे पहुँचें:-
वायु मार्ग: नलखेड़ा के बगलामुखी मंदिर स्थल के सबसे निकटतम इंदौरका एयरपोर्ट है।
रेल मार्ग: ट्रेन द्वारा इंदौर से 30 किमी पर स्थित देवास या लगभग 60 किमी मक्सी पहुँचकर भी शाजापुर जिले के गाँव नलखेड़ा पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग: इंदौर से लगभग 165 किमी की दूरी पर स्थित नलखेड़ा पहुँचने के लिए देवास या उज्जैन के रास्ते से जाने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध हैं।

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सर्वशक्ति सम्पन्न  बगलामुखी साधना—-


यह विद्या शत्रु का नाश करने में अद्भुत है, वहीं कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके मुख का तेज इतना हो जाता है कि उससे आँखें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है। आँखों में तेज बढ़ेगा, आपकी ओर कोई निगाह नहीं मिला पाएगा एवं आपके सभी उचित कार्य सहज होते जाएँगे। सामनेवाले विरोधियों को शांत करने में इस विद्या का अनेक राजनेता अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं। यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो हित होगा। हम यहाँ पर सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँह बंद करने वाली भगवती बगलामुखी की आराधना साधना  दे रहे हैं।
गुरु दिक्षा लेकर मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो वह मंत्र निश्चित रूप से सफलता दिलाने में सक्षम होता है।
इस साधना में विशेष सावधानियाँ रखने की आवश्यकता होती है । इस साधना को करने वाला साधक पूर्ण रूप से शुद्ध होकर (तन, मन, वचन) रात्री काल में पीले वस्त्र पहनकर व पीला आसन बिछाकर, पीले पुष्पों का प्रयोग कर, पीली (हल्दी या हकीक ) की 108 दानों की माला द्वारा मंत्रों का सही उच्चारण करते हुए कम से कम 11 माला का नित्य जाप 21 दिनों तक या कार्यसिद्ध होने तक करे या फिर नित्य 108 बार मंत्र जाप करने से भी आपको अभीष्ट सिद्ध की प्राप्ति होगी।खाने में पीला खाना व सोने के बिछौने को भी पीला रखना साधना काल में आवश्यक होता है वहीं नियम-संयम रखकर ब्रह्मचारीय होना भी आवश्यक है।
संक्षिप्त साधना विधि, छत्तीस अक्षर के मंत्र का विनियोग ऋयादिन्यास, करन्यास, हृदयाविन्यास व मंत्र इस प्रकार है–

विनियोग

ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः, त्रिष्टुप छंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयार्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास-

नारद ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुय छंद से नमः मुखे, बगलामुख्यै नमः, ह्मदि, ह्मीं बीजाय नमः गुहये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, प्रणवः कीलकम नमः सर्वांगे।

हृदयादि न्यास

ऊँ ह्लीं हृदयाय नमः बगलामुखी शिरसे स्वाहा, सर्वदुष्टानां शिरवायै वषट्, वाचं मुखं वदं स्तम्भ्य कवचाय हु, जिह्वां भीलय नेत्रत्रयास वैषट् बुद्धिं विनाशय ह्लींऊँ स्वाःआ फट्।

ध्यान

मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेघां
सिंहासनो परिगतां परिपीत वर्णाम्।
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी
देवीं भजामि घृत मुदग्र वैरिजिह्माम ।।

मंत्र इस प्रकार है–

ऊँ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ फट स्वाहा।
मंत्र जाप लक्ष्य बनाकर किया जाए तो उसका दशांश होम करना चाहिए। जिसमें चने की दाल, तिल एवं शुद्ध घी का प्रयोग करें एवं समिधा में आम की सूखी लकड़ी या पीपल की लकड़ी का भी प्रयोग कर सकते हैं। मंत्र जाप पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर करना चाहिए।

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