प्रिय पाठकों/मित्रों, भारत की सनातन संस्कृति की धरोहर का सांस्कृतिक दूत है परम पवित्र भगवा ध्वज! धर्म ध्वजा केसरिया, भगवा या नारंगी रंग की होती है| संस्कृति की समग्रता, राष्ट्रीय एकता जिसमें समाहित है| आदि काल से वैदिक संस्कृति, सनातन संस्कृति, हिंदू संस्कृति, आर्य संस्कृति, भारतीय संस्कृति एक दूसरे के पर्याय हैं जिसमें समस्त मांगलिक कार्यों के प्रारंभ करते समय उत्सवों में, पर्वों में, घरों- मंदिरों- देवालयों- वृक्षों, रथों- वाहनों पर भगवा ध्वज या केसरिया पताकाएं फहराई जाती रही हैं| वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार भगवा ध्वज में तीन तत्व- ध्वजा, पताका (डोेरी) और डंडा- जिन्हें ईश्वरीय स्वरूप माना गया है जो आधिभौतिक, आध्यात्मिक, आधिदैविक हैं| यह ध्वजा परम पुरुषार्थ को प्राप्त कराती है एवं सभी प्रकार से रक्षा करती है|
धर्मध्वजा भगवा या नारंगी रंग की ही क्यों होती है?
वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की भारत में वैदिक काल से आज तक यज्ञ एवं ध्वज का महत्व है| भारत में, जिसे जम्बूद्वीप भी कहा जाता है, यज्ञमय यज्ञ पुरुष भगवान विष्णु का सदा यज्ञों द्वारा वंदन किया जाता है| यज्ञ भगवान विष्णु का ही स्वरूप है, ‘‘यज्ञै यज्ञमयो विष्णु’’| यज्ञ की अग्नि शिखाएं उसी की आभानुसार भगवा रुप भगवा ध्वज बना| अग्नि स्वर्ण को तपा कर शुद्ध सोना बना देती है| शुद्धता त्याग, समर्पण, बलिदान, शक्ति और भक्ति का संदेश देती है| उसकी स्वर्णमयी हिरण्यमयी चमकती सी आमा का रंग ही तो भगवा ध्वज में दिखता है|
वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के मुताबिक हिंदू संस्कृति में सूर्य की उपासना प्रभात वेला में की जाती है| सूर्योदय के समय उपस्थित सूर्य की लालिमा भगवा ध्वज में समाहित है| उसकी सर्वमयी रश्मियां अंधःकार को नष्ट करती हुई जग में प्रकाश फैलाती है| अज्ञानता का, अविद्या का नाश करती है और प्रकृति में ऊर्जा का संचार करती है| प्रत्येक प्राणी अपने कार्य में जुट जाता है| बड़े- बड़े संत महात्मा, ऋषिमुनि, त्यागी तपस्वी इससे ऊर्जा प्राप्त करते हैं| सैनिक लड़ाई के मैदान में जाते हैं तो केसरिया पगड़ी धारण करते हैं| केसरिया बाना उन्हें जोश और उत्सर्ग करने की प्रेरणा देता है, उनके रथों में, हाथों में भगवा पताकाएं फहराती हैं|
भगवे ध्वज में सूर्य का तेज समाया हुआ है। यह भगवा रंग त्याग, शौर्य, आध्यात्मिकता का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा सारथ्य किये गये अर्जुन के रथ पर भगवा ध्वज ही विराजमान था। भगवा रंग भारतीय संस्कृति का प्रतीक है| उसके बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती है| वेद, उपनिषद, पुराण श्रुति इसका यशोगान करते हैं| संतगण इसकी ओंकार, निराकार या साकार की तरह पूजा अर्चना करते हैं| शायद यही कारण है देवस्थानों पर सिंदूरी रंग का ही प्रयोग होता है|वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार इसी आस्था से अनुप्राणित होकर हिंदू नारियां सुहाग के प्रतीक के रूप में इसी रंग से मांग भरती हैं| साधुगण, वैरागी, त्यागी, तपस्वी भगवा वस्त्र धारण करते हैं|देश के मठ-मंदिरों ने ही प्राचीन काल से हमारा धर्म, हमारी अस्मिता संभालकर रखी है। इसीलिए यह ध्वज संघ के लिये उचित होगा, ऐसा उनका मानना था। शिवाजी महाराज के स्वराज्य में लहराया जानेवाला ‘जरीपटका’ (जिसकी क़िनार पर ज़र है ऐसा भगवा ध्वज) था |
ध्वज भरावा व सनातन धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व यह मंत्र पढ़ा जाता है-
मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड ध्वज: मंगलम पुण्डरीकाक्ष:, मंगलाय तनों हरि:|
वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के मुताबिक चाहे गृह प्रवेश हो, पाणिग्रहण संस्कार हो या अन्य कोई हिंदू रीति-रिवाज, पूजा पर्व, उत्सव हो घर के शिखर पर ध्वजा फहराई जाती है और भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि प्रभु हम सब का मंगल करें| भगवान गरुड़ द्वारा रक्षित एवं सेवित ध्वजा हमारा मंगल करें| हमारे ऊपर आने वाली विघ्न-बाधाएं दूर करें| हमारे मंदिर, मकान, महल, भवन, आवासीय परिसर से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त करें, नष्ट करें| शिखर पर फहराने से समस्त विघ्न-बाधाएं, अनिष्टकारी शक्तियां, अलाय-बलाय व पाप नष्ट हो जाता है| गरुड़ ध्वजा हमारे लिए सुख समृद्धि, शक्ति और दैवीय कृपा सहित कल्याणकारी हो|
वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के मुताबिक वास्तु पुरूष सिद्धांत के अनुसार घर की छत जातक की कुण्डली का बारहवां भाव कहलाती है। इस भाव से व्यक्ति के आर्थिक नुकसान धन हानि और शैय्या सुख देखा जाता है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली के बारहवें भाव में बुद्ध और राहू अत्य़धिक बुरा प्रभाव देते हैं दूसरी ओर केतू और शुक्र बारहवें भाव में सर्वश्रेष्ठ प्रभाव देते हैं।
वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के मुताबिक कभी-कभी व्यक्ति के जीवन में ऐसी स्थिती आ जाती है जिससे आर्थिक समस्याओं और दुर्भाग्य से दो-चार होना पड़ता है जिसके तहत व्यक्ति कंगाली की हद तक आ जाता है। यह स्थिती कुण्डली में राहू केतू शनि और मंगल के कारण आती है।
.) ध्वजा को विजय और सकारात्मकता ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए पहले के जमाने में जब युद्ध में या किसी अन्य कार्य में विजय प्राप्त होती थी तो ध्वजा फहराई जाती थी।
.) वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के मुताबिक वास्तु के अनुसार भी ध्वजा को शुभता का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि घर पर ध्वजा लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ ही घर को बुरी नजर भी नहीं लगती है।
.) वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के मुताबिक घर के उत्तर-पश्चिम कोने में यदि ध्वजा लगाई जाती है तो उसे वास्तु के दृष्टिकोण से बहुत अधिक शुभ माना जाता है।
4) वायव्य कोण यानी उत्तर पश्चिम में ध्वजा वास्तु के अनुसार जरूर लगाना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण यानी
वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है।ज्योतिष के अनुसार राहु को रोग, शोक व दोष का कारक माना जाता है। वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि यदि घर के इस कोने में किसी भी तरह का वास्तुदोष हो या ना भी हो तब भी ध्वजा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर की सुख व समृद्धि बढ़ती है।
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